हरजिंदर
राजनीतिज्ञों की एक खासियत होती है- वे कभी नए साल का इंतजार नहीं करते. वे साल शुरू होने से पहले ही सक्रिय हो जाते हैं. बल्कि आजकल तो खैर हर समय ही सक्रिय रहते हैं.
दिल्ली का चुनाव अगले साल के शुरू में है और वह दूर भी नहीं है इस हिसाब से दिल्ली के नेताओं का अभी से सक्रिय हो जाना तो समझ में आता है. लेकिन बिहार का चुनाव अभी दूर है. फिर भी वहां राजनीति शुरू हो चुकी है. खासकर वहां राष्ट्रीय जनता दल यानी राजद के नेता तेजस्वी यादव जिस तरह सक्रिय हुए हैं वह बताता है कि बिहार में विधानसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है.
पिछले दिनों उन्होंने बिहार के सीमांचल क्षेत्र की एक यात्रा की जिसे ‘कार्यकर्ता दर्शन सह संवाद यात्रा‘ कहा गया. बिहार के इस पिछड़े क्षेत्र में अररिया, पूर्णियां, कटिहार और किशनगंज जैसे जिले आते हैं. इस क्षेत्र की एक और खासियत यह है कि यहां मुस्लिम आबादी बाकी बिहार के मुकाबले ज्यादा है.
इस यात्रा के दौरान उन्होंने तमाम दूसरे वादों के अलावा दो वादे प्रमुखता के साथ किए. एक तो वे इस क्षेत्र के विकास के लिए सीमांचल विकास प्राधिकरण बनाएंगे. लेकिन उन्होंने जो दूसरा वादा किया है वह चुनावी दृष्टि से महत्वपूर्ण और राजनीतिक दृष्टि से विवादास्पद है. उन्होंने कहा कि वे मुसलमानों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देंगे. वैसे एक तरह से तेजस्वी यादव ने कोई नई बात नहीं कही है, उनके पिता और राजद के सुप्रीमों लालू यादव भी कुछ ही दिन पहले मुस्लिमों को आरक्षण देने के बात कर चुके हैं.
मुसलमानों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने का मसला शुरू से ही विवादस्पद रहा है. तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में इस आरक्षण का प्रावधान किया गया है. कर्नाटक और तेलंगाना भी इसकी कोशिश में जुटे हुए हैं. कईं और जगहों पर इसकी कोशिश की गई लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे निरस्त कर दिया.
भारत में आरक्षण धर्म के आधार पर नहीं दिया जाता बल्कि जाति या पिछड़ेपन के आधार पर दिया जाता है इसीलिए मामला सुप्रीम कोर्ट में गिर जाता है. जहां वह दिया जा रहा है वहां भी या तो यह मुस्लिम समुदाय की पिछड़ी जातियों को दिया जा रहा है, या इस समुदाय के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को इस लाभ मिल रहा है.
सत्ता में आने पर तेजेस्वी यादव अपने चुनावी वादे को किस तरह पूरा करेंगे इसका उन्होंने अभी तक कोई खुलासा नहीं किया है, लेकिन एक ऐसा पास जरूर फेंक दिया है खुद उन्हें भी परेशान कर सकता है. उन्होंने अपनी विरोधी भारतीय जनता पार्टी को अपने खिलाफ एक हथियार जरूर दे दिया है.
अगर हम पिछले कुछ विधानसभा चुनावों को याद करें तो मुसलमानों को आरक्षण का विरोध भाजपा का एक प्रमुख मुद्दा रहा है. दक्षिणी राज्यों के विधानसभा चुनावों में कईं जगह भाजपा नेता और गृहमंत्री अमित शाह ने यह बात अपनी रैलियों में कही थी कि उनकी पार्टी अगर सत्ता में आई तो वह मुसलमानों को दिया जाने वाला आरक्षण खत्म कर देगी. हालांकि इसका कहीं बहुत असर पड़ा हो ऐसा नहीं कहा जा सकता.
बिहार में इतना खुलकर भाजपा यह सब कह पाएगी अभी कहा नहीं जा सकता. अभी तक तो यही लग रहा है कि भाजपा इस बार भी बिहार चुनाव नीतीश कुमार के साथ ही लड़ेगी. नीतीश कुमार नहीं चाहेंगे कि इस तरह की शब्दावली बिहार के चुनाव में इस्तेमाल हो. नीतीश कुमार हमेशा से ही मुस्लिम मतदाताओं पर अपने दावेदारी ठोंकते रहे हैं.
उनके बारे में एक और बात कही जाती है कि पूरे उत्तर भारत में इस समय जिस तरह की सांप्रदायिक नफरत दिख रही है नीतीश कुमार ने उसे बिहार में पैर जमाने नहीं दिया. इसलिए क्या वे भाजपा उस तरह के चुनाव प्रचार की इजाजत देंगे जिस तरह का प्रचार वह बाकी देश में करती रही है?
लेकिन इससे भी बड़ा सवाल फिलहाल यह है कि क्या मुसलमानों को आरक्षण देने का वादा तेजस्वी यादव को चुनाव जिता पाएगा?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)