प्रमोद जोशी
श्रीलंका ने चीन के पोत युआन वांग-5 के हंबनटोटा को टाल दिया है, जिसकी वजह से श्रीलंका-चीन और भारत तीनों के रिश्तों में ख़लिश आई है. पर संकट से घिरे श्रीलंका के लिए यह मसला गले की हड्डी बनने जा रहा है. यह मामला अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है.
श्रीलंका सरकार ने फिलहाल पोत के आगमन को स्थगित किया है. उसे पक्की तौर पर रोका नहीं है. चीन सरकार इसे लेकर आग-बबूला है. कोलंबो स्थित चीनी दूतावास ने श्रीलंका सरकार से अपनी नाराज़गी व्यक्त की है.
दूसरी तरफ यह भी साफ है कि भारत इस पोत को किसी कीमत पर हंबनटोटा तक आने नहीं देगा. चीन इसे वैज्ञानिक सर्वेक्षण पोत बता रहा है, जबकि भारत मानता है कि यह जासूसी पोत है.
इस पोत पर जिस तरह के रेडार और सेंसर लगे हैं, उनका इस्तेमाल उपग्रहों की ट्रैकिंग के लिए हो सकता है, तो अंतर महाद्वीपीय प्रक्षेपास्त्रों के लिए भी किया जा सकता है.
बात सिर्फ इस्तेमाल की है. चीन इस पोत को असैनिक और वैज्ञानिक-शोध से जुड़ा बता रहा है, पर पेंटागन की सालाना रिपोर्ट के अनुसार इस पोत का संचालन चीनी सेना की स्ट्रैटेजिक सपोर्ट फोर्स करती है। यह चीनी नौसेना का पोत है.
11 को आने वाला था
भारत के पास शको-शुब्हे के पक्की वजहें हैं, इसीलिए जैसे ही इस पोत के आगमन की सूचना मिली तब से भारत लगातार विरोध कर रहा था. श्रीलंका इस मामले पर फैसला करने में देरी लगाता रहा.
यह जहाज 11 से 17 अगस्त के बीच हंबनटोटा बंदरगाह पर रुकने वाला था. श्रीलंका की मीडिया की रिपोर्टों के अनुसार, जहाज के आगमन को स्थगित करने के पहले राष्ट्रपति रानिल विक्रमासिंघे ने चीन के राजदूत छी ज़ेनहोंग के साथ बंद कमरे में बैठक की थी.
हालांकि, श्रीलंका सरकार ने ऐसी बैठक से इनकार किया है. श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने देश से भागने के पहले 12 जुलाई को इस जासूसी जहाज को हंबनटोटा बंदरगाह पर आने की मंजूरी दी थी.
उसके बाद वे नौसेना की एक बोट पर बैठकर पहले मालदीव भागे और फिर सिंगापुर। राजपक्षे परिवार के गृहनगर पर बना हंबनटोटा बंदरगाह 99 साल की लीज पर चीन के हवाले हो चुका है.
चीन ने हंबनटोटा का विकास किया है, जिसके लिए श्रीलंका पर भारी कर्जा हो गया है. इस कर्जे को चुकाने के नाम पर 2017 में श्रीलंका ने यह बंदरगाह 99 साल के लीज पर चीन को सौंप दिया.
2014 में श्रीलंका ने चीनी परमाणु शक्ति चालित पनडुब्बी और युद्धपोत को कोलंबो में लंगर डालने की अनुमति दी थी। इस बात पर भारत ने आपत्ति जताई थी और अब सावधान भी हो गया है.
चीन वस्तुतः हंबनटोटा का इस्तेमाल अपने सैनिक अड्डे के रूप में करना चाहता है. न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन ने 28 जून को श्रीलंका सरकार को इस पोत के बारे में जानकारी दी थी.
उस समय श्रीलंका ने कहा था कि पोत हंबनटोटा में ईंधन भरेगा और कुछ खाने-पीने के सामान को लोड कर चला जाएगा.
बेमौके फँसा श्रीलंका
इस पोत की वजह से श्रीलंका अपने आर्थिक-संकट की बेला में भू-राजनीतिक विवाद में फँस गया है, जिसका उल्टा असर उसपर पड़ेगा. उसपर चीन का भारी कर्जा है.
श्रीलंका ने चीन से फिर नया कर्ज माँगा है, ताकि पुराने कर्ज को चुकाया (रिस्ट्रक्चर) जा सके। श्रीलंका के पर्यवेक्षकों को लगता है कि ऐसा होने जा रहा था, पर बदली हुई स्थितियों में नई दिक्कतें पैदा होंगी.
दूसरी तरफ भारत भी श्रीलंका की सहायता कर रहा है. ऐसे में पोत के आगमन का विपरीत प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है.वे मानते हैं कि शायद ऐसे में भारत फौरी तौर पर हमारी और मदद करेगा.
इससे भारत का प्रभाव श्रीलंका पर बढ़ेगा. श्रीलंका पर देनदारी कम होने पर ही अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष से कर्जा मिलने में सहूलियत होगी. यों भी भारत संकट पड़ने पर हमारा पहला मददगार साबित होता है.
क्या है इस पोत में ?
युआन वांग 5 शक्तिशाली रेडार और अत्याधुनिक तकनीक से लैस है. यह जहाज अंतरिक्ष और सैटेलाइट ट्रैकिंग के अलावा इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल के लॉन्च का भी पता लगा सकता है.
यह युआन वांग सीरीज का तीसरी पीढ़ी का ट्रैकिंग जहाज है. सैटेलाइट ट्रैकिंग के अलावा ऐसे पोत समुद्र तल की पड़ताल भी करते हैं, जिसकी जरूरत नौसेना के अभियानों में होती है. भारतीय नौसेना का पोत आईएनएस ध्रुव भी इसी किस्म का पोत है.
यह पोत करीब 750 किलोमीटर के दायरे में आकाशीय-ट्रैकिंग कर सकता है. इसके अलावा यह पानी के नीचे काफी गहराई तक समुद्री सतह की पड़ताल भी कर सकता है.
इसका मतलब है कि भारत के कल्पाक्कम, कुदानकुलम परमाणु ऊर्जा केंद्र और दक्षिण भारत में स्थित अंतरिक्ष अनुसंधान से जुड़े केंद्र और छह बंदरगाह और समुद्र तट उसकी जाँच की परिधि में होंगे.
श्रीलंकाई बेरुखी
इस मामले को मामूली मानकर छोड़ा नहीं जा सकता. श्रीलंका को ऐसा मानकर नहीं चलना चाहिए कि वह भारत की सुरक्षा की चिंता किए बगैर चीन के साथ संबंध बनाए रखेगा.
पिछले डेढ़ साल में श्रीलंका सरकार ने कुछ ऐसे फैसले किए हैं, जो उसकी बेरुखी को स्थापित करते हैं. पिछले साल जनवरी में श्रीलंका सरकार ने तमिलनाडु तट के एकदम करीब तीन द्वीपों पर अक्षय ऊर्जा की परियोजनाएं चीन की एक फर्म को दे दीं..
भारत सरकार को इसे रोकने के लिए जबर्दस्त राजनयिक प्रयास करने पड़े साथ ही इस परियोजना को विकसित करने की जिम्मेदारी भी लेनी पड़ी. हाल में श्रीलंका में आए संकट के दौरान भारत ने न केवल आर्थिक सहायता दी है, बल्कि दवाओं, खाद्य-सामग्री तथा अन्य जरूरी चीजों के रूप में मानवीय सहायता भी दी है.
बावजूद इसके कोई शर्त नहीं लगाई कि चीन के साथ रिश्ते रखे या न रखे. पर भारत अपनी सुरक्षा के साथ समझौता नहीं कर सकता. इस पोत को हंबनटोटा आने की अनुमति देने का समय भी महत्वपूर्ण है.
ताइवान को लेकर चीन के तेवर तीखे हैं. पूर्वी लद्दाख की सीमा पर उसके लड़ाकू विमान उड़ान भर रहे हैं. श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने अपनी कुर्सी जाते-जाते इस पोत के आगमन को स्वीकृति देकर इस प्रकरण की गंभीरता को रेखांकित किया है.
चीन की लगातार कोशिश है कि हमारे पड़ोसी देशों में भारत-विरोधी माहौल बनाया जाए. मालदीव में बाकायदा ‘इंडिया आउट’ आंदोलन चल रहा है. नेपाल और बांग्लादेश में भी भारत-विरोधी लॉबी सक्रिय है. पाकिस्तान तो उसका सबसे बड़ा दोस्त है ही.
( लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं )