हरजिंदर
भीषण गर्मी की खबरें जून के तीसरे हफ्ते से ही दुनिया भर से आने लग गईं थीं. 18 जून को ऐसी खबरें आने लगीं कि हज यात्रियों को भी यह गर्मी इस बार काफी परेशान कर रही है. 19 जून को सबसे पहले खबर आई कि मक्का मदीना क्षेत्र में भीषण गर्मी के कारण 550 हाजियों की जान चली गई. एक दो दिन में पता पड़ा कि मरने वालों की संख्या इससे कहीं ज्यादा बड़ी है.
23 जून को खुद सउदी अरब सरकार ने आधिकारिक रूप से इसे स्वीकार किया.दुनिया भर के मीडिया ने इसका कवरेज काफी प्रमुखता से किया. कईं अखबारों ने इसे सबसे बड़ी खबर बनाया. इस पर संपादकीय लिखे गए. इसे देखते हुए पर्यावरण और बढ़ती गर्मी के बारे में अखबारों और टीवी चैनलों ने कई विश्लेषण किए.
इंटरनेट के इस युग में पूरा सच जानने का पूरा तरीका आपके बीच उपलब्ध मीडिया ही नहीं है. आजकल जमीनी हालात को ज्यादा अच्छी तरह से समझने के लिए उन देशों के वेबसाईट और अखबारों को देखने का चलन है जहां कोई घटना हुई है. इससे पता चल जाता है कि समस्या कितनी गंभीर है और कितना इसे बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया या बताया जा रहा है.
इसलिए इस बार हज यात्रा के दौरान जो हुआ उसे समझने के लिए सउदी अरब के अखबारों को देखना जरूरी था.सउदी अरब में अंग्रेजी के चार अखबार मौजूद हैं. अल-हयात, अशरक अल-अव्सात, अरब न्यूज़ और सउदी गजट. इनमें से पहले दो अखबार इंटरनेट पर उपलब्ध नहीं हैं. बाकी दो में एक रियाद से छपता है और दूसरा जेद्दाह से.
इन दोनों ही अखबारों में काफी समय से हज यात्रा और उसकी तैयारियों के बारे में काफी कुछ छप रहा है. बंदोबस्त कितने अच्छे हैं और सरकार किस तरह से हालात पर नजर बनाए हुए है. सउदी गजट में तो इसके अलावा कईं दिनों तक कोई दूसरी खबर दिखाई ही नहीं दी. यहां तक कि फिलस्तीन में चल रहे संघर्ष की खबरें भी इस कारण से दबा दी गईं.
ये सब लगातार छप रहा था. तब भी जब गर्मी के कारण हज यात्री परेशानी से गुजर रहे थे. परेशानी की खबरें कहीं नहीं थीं. जब दुनिया भर के अखबारों में गर्मी की वजह से हज यात्रियों के मरने की खबरें छप रहीं थी तो ऐसी खबरों को लेकर यहां के अखबार मौन थे.
इसके बजाए वे यह छाप रहे थे कि सरकार ने गर्मी से बचने के क्या-क्या इंतजाम किए हैं. सउदी गजट तो इस पर फोटो फीचर छाप रहा था.सउदी अरब की सरकार ने 23 जून को जब आधिकारिक रूप से यह स्वीकार किया कि इस दौरान 1300 से ज्यादा हज यात्रियों को गर्मी की वजह से जान से हाथ धोना पड़ा है, उसके अगले दिन भी इन अखबारों ने सरकारी बयान तक को जगह नहीं दी.
यहां अरब न्यूज़ में 19 जून को छपी एक खबर पर ध्यान देना जरूरी है. अंदर के पेज पर छपी इस खबर में बताया गया कि दिल्ली में तापमान 50 डिग्री सेल्शियस पार कर गया है और इसकी वजह से लोगों के लिए समस्याएं खड़ी हो गई हैं.
यानी अखबार को दिल्ली की गर्मी और समस्याएं तो दिख रहीं थीं लेकिन उने अपने देश में जो हो रहा है वह नहीं दिखाई दिया.वैसे यहां जिन चार अंग्रेजी अखबारों का जिक्र किया गया है वे सभी किसी न किसी तरह से वहां के राजपरिवार से ही जुड़े हैं.
दुनिया भर में अभी भी ऐसी कईं देश हैं जहां सरकारें पूरी तरह अखबारों पर नियंत्रण रखती हैं. वहां सरकार विरोधी खबरें नहीं छप सकतीं. विभिन्न मुद्दों पर सरकार का ही पक्ष छपता है. लेकिन प्राकृतिक आपदा के शिकार लोगों की खबरें और यहां तक कि तथ्य भी रोक दिए जाएं, ऐसे सिर्फ सउदी अरब में ही हो सकता है.
अगर हम अल जजीरा चैनल और उसके वेबसाइट को देखें तो उसके पेशेवर रवैये में कहीं कोई कमी नहीं नजर आती. हालांकि उसमें कतर सरकार की एक बड़ी हिस्सेदारी है. क्या ऐसा सउदी अरब में नहीं हो सकता ?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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