त्वरित प्रतिक्रिया : पहलगाम का पहला सबक, पाकिस्तान को कड़वी दवाई

Story by  प्रमोद जोशी | Published by  [email protected] | Date 24-04-2025
Quick reaction: Pahalgam's first lesson, bitter medicine for Pakistan
Quick reaction: Pahalgam's first lesson, bitter medicine for Pakistan

 

joshiप्रमोद जोशी

पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद यह स्पष्ट है कि भारत अब पाकिस्तान को करारा जवाब देना शुरू कर दिया है. यह जवाब भविष्य में सैनिक-कार्रवाइयों के रूप में भी हो सकता है, पर इसकी शुरुआत राजनयिक रिश्तों को न्यूनतम स्तर पर पहुँचाते हुए हुई है. सेना को हाई अलर्ट कर दिया गया है. 

पीएम मोदी की अध्यक्षता में बुधवार की शाम हुई सीसीएस की बैठक में कुछ बड़े फैसले हुए हैं. विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने इन फैसलों की जानकारी देते हुए कहा कि 1960 की सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से स्थगित तब तक रखा जाएगा, जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद के लिए अपने समर्थन को त्याग नहीं देता. 

सीमा पार सभी तरह की आवाजाही के लिए अटारी चेक पोस्ट को भी बंद कर दिया है और पाकिस्तानी नागरिकों के लिए सार्क वीजा यात्रा विशेषाधिकारों को निलंबित कर दिया है. सार्क ढांचे के तहत भारत में मौजूद पाकिस्तानी नागरिकों को देश छोड़ने के लिए 48 घंटे का समय दिया गया है. 

राजनयिक चैनलों को न्यूनतम स्तर पर लाते हुए भारत ने सेना, नौसेना और वायु सेना सहित सभी पाकिस्तानी सैन्य सलाहकारों को निष्कासित कर दिया है. दूसरी तरफ भारत के सैन्य सलाहकारों को इस्लामाबाद स्थित उच्चायोग से वापस बुला लिया गया है. ये राजनयिक फैसले हैं. संभवतः बैठक में कुछ और फैसले भी हुए होंगे. 

india

गुस्से की लहर

पहलगाम के हमले को लेकर पूरे देश में गुस्से की लहर है. खासतौर से घाटी के नागरिकों ने बंद आयोजित करके पाकिस्तान को पहला जवाब दे दिया है. अभी कुछ भी कहना मुश्किल है, पर यदि सैनिक-कार्रवाई हुई तो यकीनन उड़ी के सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट अभियान से ज्यादा बड़ी होगी, क्योंकि उन दोनों से पाकिस्तान ने कुछ सीखा नहीं. 

पाकिस्तान अब लंबा सबक चाहता है. खासतौर से जनरल आसिम मुनीर के नाम कड़ा संदेश जाना चाहिए, जो जहरीली बातें कर रहे हैं. आतंकवादियों को घेरकर ठिकाने लगाना एक रणनीति है, पर असली ज़रूरत है, उन लोगों के सफाए की, जो पर्दे के पीछे हैं. 

किसी भी कार्रवाई के पहले उसके दीर्घकालीन निहितार्थ पर भी विचार करना होगा. इसके साथ ही राष्ट्रीय और वैश्विक-नेतृत्व को भी भरोसे में लेना होगा. इस सिलसिले में गुरुवार को सर्वदलीय बैठक बुलाई गई है. 

प्रधानमंत्री ने रक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी के अलावा अन्य विशेषज्ञों के साथ भी विमर्श किया. उधर रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने एनएसए अजित डोभाल, वायुसेना अध्यक्ष एयर चीफ मार्शल एपी सिंह, सेनाध्यक्ष जनरल उपेंद्र द्विवेदी और नौसेना प्रमुख दिनेश त्रिपाठी के साथ महत्वपूर्ण बैठक की अध्यक्षता की. 

india

रिश्ते बिगड़ेंगे

लगता है कि कश्मीर में काफी हद तक दब चुकी आग को पाकिस्तान फिर से भड़काना चाहता है. हमले का एक सीधा परिणाम यह भी है कि दोनों देशों के बीच रिश्तों को सुधारने की जो थोड़ी संभावना बची थी, वह फिलहाल जाती रहेगी. 

आतंकवादियों ने भारत के आंतरिक-सौहार्द को बिगाड़ने की कोशिश भी की है. हाल में पाकिस्तान के कुछ लोग भारत के पूर्वोत्तर और तमिलनाडु में अलगाववादी प्रवृत्तियों को बढ़ावा देने की बातें करने लगे हैं. कश्मीर और खालिस्तानी-आंदोलन तो उनकी देन ही हैं. 

बांग्लादेश में हुए सत्ता परिवर्तन से भी पाकिस्तान के हौसले बुलंद हैं. बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार डॉ मुहम्मद यूनुस ने अपनी चीन यात्रा के दौरान भारत के पूर्वोत्तर को ‘लैंड लॉक्ड’ बताकर इस क्षेत्र की नाज़ुक संरचना का फायदा उठाने का इरादा प्रकट किया था, जिसका भारत ने तभी जवाब दे दिया था.

चौतरफा निंदा

इस हमले की तमाम अंतरराष्ट्रीय नेताओं ने निंदा की है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूरोपीय संघ प्रमुख उर्सुला वॉन डेर लेयेन उन विश्व नेताओं में शामिल है, जिन्होंने हमलों की निंदा की है.

ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर एक पोस्ट में कहा, कश्मीर से बहुत परेशान करने वाली खबर आई है. आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका, भारत के साथ मजबूती से खड़ा है. कश्मीर के हालात बेहतर हो रहे थे और बड़ी संख्या में राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पर्यटक आने लगे थे. इस हमले की वजह से सामान्यीकरण की यह प्रक्रिया पीछे चली जाएगी.

अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत रहे हुसैन हक़्क़ानी ने एक्स पर लिखा, 2023 में 7 अक्तूबर को इसराइल में हमास के हमले के बाद ग़ज़ा भयानक त्रासदी का शिकार हो गया, उसी तरह पहलगाम के हमले के संभावित परिणाम भयावह हैं.

यह हमला तब हुआ है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिवसीय दौरे पर सऊदी अरब में थे, अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस चार दिवसीय दौरे पर भारत आए हुए थे. अमेरिका के साथ व्यापार समझौते पर बात करने के लिए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण अमेरिका गई हुई थीं. पीएम मोदी को सऊदी अरब का दौरा बीच में ही छोड़ना पड़ा और वित्तमंत्री को भी वापस आना पड़ा. 

india

पर्यटन पर असर

आतंकवादियों ने घाटी में पर्यटन के उस सीज़न को चुना, जब घास के मैदान और मुगल उद्यान वसंत का आनंद लेने के लिए हजारों पर्यटक यहाँ आते हैं. पहलगाम कई कारणों से महत्वपूर्ण है. यह अमरनाथ गुफा के लिए दो मार्गों में से एक के रूप में कार्य करता है, जो हर साल लाखों तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है. 

दूसरे इस बैसरन क्षेत्र में देवदार के घने जंगल हैं, जो लोकप्रिय ट्रैकिंग मार्ग भी है. इस हमले का इस क्षेत्र के पर्यटन पर बहुत बुरा असर पड़ेगा. इससे कश्मीर के लोगों का रोज़गार भी प्रभावित होगा. 

पिछले कुछ समय से सरकार ने जम्मू-कश्मीर में फिल्मों की शूटिंग को बढ़ावा देने के लिए एक फिल्म नीति विकसित की गई है, उसपर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा. 

लड़ाई का खतरा

पाँच साल पहले बालाकोट ऑपरेशन के अगले ही दिन कश्मीर पर पाकिस्तानी हवाई हमले से 2019 में ही लड़ाई बढ़ने का खतरा पैदा हो गया था, पर पाकिस्तान ने विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान को फौरन रिहा करके टकराव बढ़ने से रोक लिया था. 

हालांकि भारत ने अभी किसी प्रकार की जवाबी कार्रवाई की घोषणा नहीं की है, पर पाकिस्तान में युद्ध के नगाड़े बजने लगे हैं. कहा जा रहा है कि पाकिस्तान हर तरह से तैयार है और भारत को मुँहतोड़ जवाब दिया जाएगा. 

जिस दिन पहलगाम हमला हुआ, उसी दिन जारी की गई अमेरिका की 1980 और 90 के दशक की गुप्त सूचना रिपोर्ट का कहना है कि भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की संभावना कम होने के बावजूद, अमेरिका का मानना ​​है कि इस संघर्ष में एटमी हथियारों का इस्तेमाल हो सकता है. 

दक्षिण एशिया में सैनिक-कार्रवाई के साथ नाभिकीय-युद्ध का खतरा हमेशा जुड़ा रहता है. दुनिया इस वक्त यूक्रेन और पश्चिम एशिया के देशों की आग बुझाना चाहती है. ऐसे में दक्षिण एशिया में युद्ध भड़कना हर लिहाज़ से खतरनाक होगा. 

इस हमले के निहितार्थ और पृष्ठभूमि को समझने के लिए हमें पिछले साल बांग्लादेश में हुए बदलाव, पाकिस्तान में चल रहे आंतरिक-संघर्षों और भारत-अमेरिका रिश्तों की रोशनी का इस्तेमाल करना होगा. 

india

‘डीप स्टेट’ में घबराहट

अब पहलगाम में जो हुआ है, उससे कई तरह के संदेह पैदा हो रहे हैं. तहरीके तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी), बलोच लिबरेशन आर्मी और इमरान खान की तहरीके इंसाफ पार्टी के दबाव से पाकिस्तानी ‘डीप स्टेट’ में घबराहट है. उसने अपनी जनता का ध्यान दूसरी तरफ ले जाने के लिए इस गतिविधि को अंजाम दिया है. 

या फिर यह मान लिया जाए कि आतंकी संगठन बेकाबू हैं. बहरहाल हमला काफी सोच-समझकर और योजनाबद्ध तरीके से किया गया है. यह हमला ऐसे वक्त में हुआ है, जब जम्मू-कश्मीर प्रशासन को लगने लगा था कि स्थितियाँ सामान्य हो रही हैं. 

राजनीतिक दलों की ओर से लगातार माँग हो रही थी कि सेना की तैनाती कम की जाए, इसलिए पर्यटन स्थलों पर सुरक्षा-सैनिकों की संख्या धीरे-धीरे कम हो रही थी. इसके अलावा प्रशासनिक अधिकारियों को लगता था कि आतंकवादी कम से कम पर्यटकों को निशाना नहीं बनाएँगे. ऐसे मौके का फायदा आतंकियों ने उठाया. 

गहरा आघात

अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के निष्प्रभावी होने के बाद के बाद से भारत पर यह सबसे बड़ा आतंकी है. जनता के मन पर पड़े असर के लिहाज से यह 26/11 के मुंबई हमले के बाद सबसे बड़ा आघात हैं. 14 फरवरी 2019 के पुलवामा में बहुत बड़ा हमला हुआ था, पर वह सीआरपीएफ पर था, जबकि इसबार पर्यटकों को निशाना बनाया गया. 

इस हमले की ज़िम्मेदारी पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा के द रेज़िस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने ली है. लश्कर वस्तुतः पाकिस्तानी सेना की अनौपचारिक इकाई है और उसका उद्देश्य जम्मू-कश्मीर में लगातार हिंसक गतिविधियों को चलाना है. टीआरएफ का मुखौटा है, जिसका इस्तेमाल हमले को एक स्थानीय समूह के रूप में दिखाने के लिए किया गया. 

india

जनरल मुनीर का भाषण

कुछ दिन पहले ही पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल सैयद आसिम मुनीर ने प्रवासी पाकिस्तानियों के एक सम्मेलन में उन्मादी वक्तव्य में कहा था कि दुनिया की कोई ताक़त कश्मीर को पाकिस्तान से अलग नहीं कर सकती. कुछ लोग मानते हैं कि उनका भाषण इस हमले की पूर्व-पीठिका था. 

उन्होंने घोषणा की थी कि पाकिस्तान, कश्मीरी भाइयों को भारत के क़ब्ज़े के ख़िलाफ़ अकेले नहीं छोड़ सकता है. उन्होंने कश्मीर में हिंसा की धमकी ही नहीं दी, बल्कि सांप्रदायिक और विभाजनकारी बातें भी कहीं, जो दोनों देशों की जनता को लड़ाने के इरादे से कही गई थीं. 

मुनीर ने कहा था, हमारे धर्म अलग हैं, हमारे रीति-रिवाज अलग हैं, हमारी परंपराएं अलग हैं, हमारे विचार अलग हैं, हमारी महत्वाकांक्षाएं अलग हैं. हम दो राष्ट्र हैं, हम एक राष्ट्र नहीं हैं. 

दो कौमी नज़रिए की बात कहते हुए वे भूल गए कि बलोचिस्तान में वे मुसलमानों के खिलाफ ही लड़ाई चला रहे हैं. सवाल है कि पहलगाम हमले के प्रेरणास्रोत वे बने हैं, तो क्या इसके परिणामों की जिम्मेदारी भी वे लेंगे?

bloch

बलोचिस्तान 

इसी भाषण में जनरल मुनीर ने बलोचिस्तान में अशांति पर भी बात की, जो पाकिस्तान का सबसे बड़ा लेकिन सबसे अस्थिर प्रांत है, जहाँ विद्रोही गतिविधियों में तेजी से वृद्धि देखी गई है.

उन्होंने कहा, हम इन आतंकवादियों को बहुत जल्द ही धूल चटा देंगे. आपको लगता है कि ये 1,500 आतंकवादी हमसे बलोचिस्तान छीन सकते हैं? उनकी दस पीढ़ियाँ भी बलोचिस्तान और पाकिस्तान को नुकसान नहीं पहुँचा सकतीं. 

उनका यह बयान 11 मार्च को बलोचिस्तान लिबरेशन आर्मी द्वारा जाफर एक्सप्रेस के अपहरण के कुछ सप्ताह बाद आया, जिसमें 33 हमलावरों सहित 64 लोग मारे गए थे. पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत बलोचिस्तान लंबे समय से हिंसा का शिकार है. प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर होने के बावजूद, यह क्षेत्र आर्थिक रूप से हाशिए पर है और राजनीतिक रूप से अलग-थलग. 

(लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं)

ALSO READ पाकिस्तान प्रायोजित कश्मीरी आतंकवाद की जड़ें: इतिहास से वर्तमान तक