त्वरित टिप्पणी: जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 फिर से लागू करने के लिए संवैधानिक प्रक्रिया क्या है?

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 19-09-2024
Happy youth in tulip garden, Jammu and Kashmir
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राकेश चौरासिया

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को लेकर फिर जहर उगला है. ख्वाजा आसिफ ने जियो न्यूज पर हामिद मीर के कैपिटल टॉक में कहा, ‘‘जम्मू और कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35ए को बहाल करने के लिए पाकिस्तान और नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन एक ही पेज पर हैं.’’ इसकी भारत में तीव्र प्रतिक्रिया हुई है. भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है कि जब तक केंद्र में मोदी सरकार है, तब तक जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 वापस नहीं हो सकता. अब सवाल यह है कि क्या कभी जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 वापस हो सकता है? और ऐसा करने के लिए कांग्रेस चर्चाएं कर रही है, तो क्या देश इसके लिए तैयार है? अनुच्छेद 370 को पुनः लागू करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति के अलावा संवैधानिक प्रक्रिया क्या है?

भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 को 5 अगस्त 2019 को निरस्त कर दिया गया था. इस ऐतिहासिक कदम ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर दिया और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों (जम्मू-कश्मीर और लद्दाख) में विभाजित कर दिया गया. इस कदम के बाद से राजनीतिक विवाद तेज हो गया है. राष्ट्रीय दल कांग्रेस और क्षेत्रीय दल नेशनल कॉन्फ्रेंस ने विधानसभा चुनावों में यह वादा किया है कि अगर उनकी सरकार बनती है, तो वे अनुच्छेद 370 को पुनः लागू करेंगे. दूसरी ओर, केंद्र सरकार इस निर्णय को स्थायी मानती है और इसे बदलने की किसी संभावना को खारिज करती है.

अनुच्छेद 370 का निरसन

अनुच्छेद 370 को भारतीय संविधान में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने के उद्देश्य से जोड़ा गया था. इसके तहत राज्य को अपनी संवैधानिक स्वायत्तता मिली थी, और भारत के संविधान का केवल कुछ ही हिस्सा इस पर लागू होता था. राज्य की विधानसभा के पास विशेष शक्तियां थीं और राज्य के नागरिकों के लिए अलग कानून होते थे. 5 अगस्त 2019 को, भारत सरकार ने राष्ट्रपति के आदेश और संसद के माध्यम से अनुच्छेद 370 को प्रभावी रूप से निरस्त कर दिया. इसे ‘संविधान (जम्मू-कश्मीर के संबंध में) आदेश, 2019’ कहा गया, और इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त हो गया.

केंद्र सरकार ने दावा किया कि इस कदम से जम्मू-कश्मीर में विकास की गति तेज होगी और अलगाववाद व आतंकवाद पर लगाम लगेगी. हालांकि, कई राजनीतिक दल और क्षेत्रीय नेताओं ने इस कदम का विरोध किया और इसे जम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता पर प्रहार बताया.

सुप्रीम कोर्ट की मोहर

मई 2024 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के अपने 2019 के फैसले को चुनौती देने वाली सभी समीक्षा याचिकाओं को खारिज कर दिया. इस निर्णय में पांच न्यायाधीशों की पीठ का नेतृत्व भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने किया और इसमें न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बीआर गवई, सूर्यकांत और एएस बोपन्ना शामिल थे. पीठ ने मूल फैसले में कोई स्पष्ट त्रुटि नहीं पाई और याचिकाओं को खारिज कर दिया. पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करना एक नीतिगत निर्णय था, जो कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में आता है.

कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस का दृष्टिकोण

विधानसभा चुनावों से पहले, कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने स्पष्ट किया है कि यदि वे सत्ता में आते हैं, तो वे अनुच्छेद 370 को फिर से लागू करेंगे. कांग्रेस का मानना है कि जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को हटाने का निर्णय लोकतांत्रिक नहीं था और इस पर पुनर्विचार होना चाहिए.

नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला ने भी बार-बार कहा है कि अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर की पहचान का हिस्सा है और इसे बहाल करने के लिए वे हर संभव प्रयास करेंगे.

भाजपा और केंद्र सरकार का रुख

केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अनुच्छेद 370 को पुनः लागू करने के खिलाफ हैं. उनका कहना है कि इसे हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के विकास के लिए विशेष योजनाएं चलाई गई हैं और वहां की जनता को इसका लाभ मिल रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने इसे ‘इतिहास का सही निर्णय’ बताया है. सरकार का मानना है कि अनुच्छेद 370 को हटाने से जम्मू-कश्मीर भारत के अन्य राज्यों की तरह हो गया है और इससे क्षेत्रीय भेदभाव समाप्त हुआ है.

अनुच्छेद 370 वापस लाने की संवैधानिक प्रक्रिया क्या है?

अनुच्छेद 370 को पुनः लागू करने के लिए एक लंबी संवैधानिक प्रक्रिया की आवश्यकता होगी. इसके लिए निम्नलिखित कदम हो सकते हैं -

  • जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में यदि अनुच्छेद 370 को पुनः लागू करने के लिए कोई प्रस्ताव पारित हो भी जाता है, तो सबसे पहले, संसद के दोनों सदनों में इस आशय का एक विधेयक पेश किया जाना होगा. इसे बहुमत से पास होना होगा, जो कि वर्तमान राजनीतिक स्थिति में मुश्किल हो सकता है, क्योंकि केंद्र में भाजपा का बहुमत है और वह इस कदम का विरोध करेगी.
  • संसद में विधेयक पारित होने के बाद, इसे राष्ट्रपति की मंजूरी की आवश्यकता होगी. यह एक औपचारिक प्रक्रिया है, लेकिन राजनीतिक दबाव के चलते यह आसान नहीं होगी.
  • चूंकि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए संविधान में बदलाव किए गए थे. इसलिए इसे पुनः लागू करने के लिए संविधान में एक और संशोधन करना होगा. यह प्रक्रिया भी जटिल है और इसके लिए संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है. 

 

राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव

अगर अनुच्छेद 370 को पुनः लागू किया जाता है, तो इसका व्यापक प्रभाव होगा. जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है और इसका असर देश के अन्य हिस्सों पर भी पड़ सकता है. इसके अलावा, अनुच्छेद 370 के निरसन के बाद बहुत से नागरिकों को अन्य आम भारतीय की तरह वोटिंग, नागरिकता, अनुसूचित जनजाति स्टेटस, सरकारी नौकरियों में हिस्सेदारी आदि सामान्य अधिकारी मिले हैं, जिससे वे अनुच्छेद 370 लागू होने के समय वंचित थे. अनुच्छेद 370 फिर से लागू होने पर ऐसे नागरिक फिर इन अधिकारों से वंचित कर दिए जाएंगे.

इसके विपरीत, यह कदम एक बड़ा राजनीतिक विवाद भी खड़ा कर सकता है, क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर इसका विरोध तेज हो सकता है और इससे केंद्र-राज्य संबंधों में खटास पैदा हो सकती है.

आतंकवाद का प्रसार

अनुच्छेद 370 के निरसन के बाद आए-दिन होने वाली आतंकी वारदातों, हड़तालों, कैलेंडर जारी होने, युवाओं को बरगलाकर पत्थरबाजी करवाने आदि की घटनाएं अपने न्यूनतम स्तर पर आ गई हैं. अगर यह अनुच्छेद फिर से लागू होता है, तो इन घटनाओं में बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है.

आर्थिक प्रभाव

अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद जम्मू-कश्मीर में केंद्र द्वारा कई विकास योजनाएं लागू की गई हैं. अगर इसे फिर से लागू किया जाता है, तो इन योजनाओं पर असर पड़ सकता है. इसके अलावा, निवेश और व्यापार के संदर्भ में भी जम्मू-कश्मीर की स्थिति में बदलाव आ सकता है.

अनुच्छेद 370 को पुनः लागू करने की संभावना पर विचार करना एक जटिल संवैधानिक और राजनीतिक प्रक्रिया है. कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस जैसी पार्टियां इसे चुनावी मुद्दा बना रही हैं, लेकिन इसके पुनः लागू होने के लिए संवैधानिक प्रावधानों के अलावा, व्यापक राजनीतिक समर्थन की आवश्यकता होगी, जिसे जुटाना उनके लिए संभव नहीं है. वर्तमान स्थिति में केंद्र सरकार और भाजपा इसे पुनः लागू करने के पक्ष में नहीं हैं, और इसका विरोध भी बड़े पैमाने पर हो सकता है.

अनुच्छेद 370 क्या था?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा प्रदान करता था. इस अनुच्छेद के तहत, जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान के अधिकांश प्रावधान लागू नहीं होते थे. राज्य को अपनी स्वयं की संविधान सभा थी और वह अपने स्वयं के कानून बनाने के लिए स्वतंत्र था. यह अनुच्छेद 1947 में भारत के विभाजन के समय अस्थायी रूप से लागू किया गया था.

अनुच्छेद 370 के प्रमुख प्रावधान

  • जम्मू-कश्मीर राज्य की अपनी स्वतंत्र संविधान सभा थी, जो राज्य के लिए कानून बना सकती थी.
  • जम्मू-कश्मीर राज्य देश का अकेला ऐसा राज्य था, जहां भारतीय संविधान के अधिकांश प्रावधान लागू नहीं होते थे.
  • अन्य राज्यों के नागरिक जम्मू-कश्मीर में संपत्ति नहीं खरीद सकते थे. जबकि कोई भी पाकिस्तानी पुरुष या महिला यहां के व्यक्ति को विवाह करके यहां के नागरिक बन जाते थे.
  • जम्मू-कश्मीर का अपना अलग झंडा था.

 

अनुच्छेद 370 के कारण भारत को कई नुकसान उठाने पड़े

  • विशेष दर्जे के कारण जम्मू-कश्मीर में विकास की गति धीमी थी. केंद्र सरकार की कई विकास योजनाएं राज्य में लागू नहीं हो पाती थीं.
  • अनुच्छेद 370 के कारण जम्मू-कश्मीर अन्य राज्यों से अलग-थलग पड़ा हुआ था. इससे राज्य में अलगाववाद और आतंकवाद को बढ़ावा मिला.
  • विशेष दर्जे के कारण जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था अन्य राज्यों की तुलना में कम विकसित थी.
  • अनुच्छेद 370 ने भारत की राष्ट्रीय एकता को खतरा पैदा किया था.
  • अनुच्छेद 370 के कारण जम्मू-कश्मीर में भारतीय न्यायपालिका का अधिकार सीमित था.

 

अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से भारत को कई फायदे हुए 

  • अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद जम्मू-कश्मीर में विकास की गति तेज हो गई है. केंद्र सरकार की विकास योजनाएं अब राज्य में लागू हो रही हैं.
  • अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद और आतंकवाद में कमी आई है.
  • अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से भारत की राष्ट्रीय एकता मजबूत हुई है.
  • अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था में सुधार होने की उम्मीद है.
  • अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद जम्मू-कश्मीर में भारतीय न्यायपालिका का अधिकार मजबूत हुआ है.
  • अनुच्छेद 370 को निरस्त करना भारत के लिए एक ऐतिहासिक कदम था. इस फैसले ने जम्मू-कश्मीर के विकास को नई गति दी है और राष्ट्रीय एकता को मजबूत किया है.

 

अब ये न हो पाएगा

सौ टके की एक बात है कि अब जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 की वापसी तभी संभव है, जब कांग्रेस और नेशनल कान्फ्रेंस का एलायंस केंद्र सरकार की सत्ता में हो, जिसकी अभी दूर-दूर तक संभावना नहीं दीखती. चुनाव में कुछ लोगों के वोट बटोरने के लिए कांग्रेस यह चर्चा कर रही है, क्योंकि उसे लोकसभा के आम चुनाव में देश को ऐसी किसी चर्चा के लिए जवाबदेह होना होगा.