देश के सबसे पिछड़े इलाके की राजनीति

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 26-08-2024
Politics of the most backward area of ​​the country
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harjinहरजिंदर
जब बात हरियाणा की होती है तो बात उसकी हरियाली और खुशहाली की होती है. हरियाणा की गिनती देश के सबसे विकसित राज्यों में होती है. विकास के मामले में यह पंजाब समेत अपने सभी पड़ोसी राज्यों को काफी पीछे छोड़ चुका है. अब जब हरियाणा में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं तो इसके कुछ उन इलाकों पर ध्यान देना भी जरूरी है, जो राज्य की खुशहाली में अभी तक कदम से कदम नहीं मिला सके हैं.

इसी हरियाणा का सबसे जगमगाता कोना है गुरुग्राम या गुड़गांव. बंगलुरु के बाद यह देश का सबसे बड़ा साफ्टवेयर हब है. कईं मामलों में इसकी तुलना अमेरिका के सियेटल से की जाती है.  तेजी से तरक्की करने वाले शहरों के मामले में हमारी धारणा है कि इनके विकास का असर आस-पास के इलाकों में फैलता है.

धीमे-धीमे ही सही वे भी आगे बढ़ने लगते हैं. लेकिन गुरुग्राम के बारे में यह बात सही नहीं है.गुरुग्राम का पड़ोसी जिला है नूंह, जो इस जगमगाते शहर के पास बसा देश का एक अंधेरा कोना है. नूंह की गिनती हरियाणा के ही नहीं देश के सबसे पिछड़े इलाकों में होती है.

विकास के सभी पैमानों पर देश का यह सबसे पिछड़ा इलाका राजधानी दिल्ली से भी बहुत दूर नहीं है. इस मुस्लिम बहुल इलाके को परंपरागत तौर पर मेवात कहा जाता है. यहां के मुस्लिम समुदाय के लोग मेवाती मुसलमान कहलाते हैं.

हरियाणा की कुल आबादी में सात फीसदी से कुछ अधिक मुसलमान हैं. उनमें से आधे से ज्यादा सिर्फ नूंह जिले में ही रहते हैं. बाकी जिलों में मुस्लिम आबादी बहुत कम है. बहुत से जिलों में तो एक फीसदी से भी कम है. अगर नूंह को छोड़ दें तो हरियाणा देश के सबसे कम मुस्लिम आबादी वाले राज्यों में है.

इसके बावजूद देश के कईं जिलों में जो सांप्रदायिक उन्माद दिखता है वह हरियाणा में भी बहुत सी जगहों पर नजर आता है. हरियाणा उन राज्यों में है, जहां ईद जैसे मौके पर भी सार्वजनिक स्थानों पर नमाज पर रोक लगा दी गई. और नूंह में तो पिछले साल सांप्रदायिक दंगा ही हो गया. हालांकि उन चंद घटनाओं के बाद यह इलाका पूरी तरह से शांत है.

लगभग 80 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले इस जिले में तीन विधानसभा क्षेत्र पड़ते हैं- नूंह, पुन्हाना और फिरोजपुर जिरका. आमतौर पर सभी पार्टियां यह मुस्लिम उम्मीदवारों को ही चुनाव मैदान में उतारती हैं.

यहां तक कि भारतीय जनता पार्टी भी जो मुस्लिम समुदाय के सबसे कम उम्मीदवारों को टिकट देने के लिए जानी जाती है. यह बात अलग है कि इन तीनों सीटों पर भाजपा ने कभी जीत दर्ज नहीं की है.

एक अक्तूबर को होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी के पास इस चलन को और अपनी छवि को तोड़ने का एक मौका है. हालांकि सिर्फ चुनाव जीतने भर से काम नहीं चलेगा. असली चुनौती इस इलाके की तरक्की की है, जिसके लिए सभी दलों को एक साथ आगे आना होगा. 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)



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