हरजिंदर
राजनीति हर जगह अलग चाल चलती है. एक ही पार्टी, एक ही नेता अलग-अलग जगह अलग-अलग नीतियां अपनाते हैं. कईं बार तो ये नीतियां एक दूसरे के बिलकुल उलट होती हैं.अगर हम उत्तर प्रदेश को लें तो वहां अल्पसंख्यकों में आम धारणा यही है कि भारतीय जनता पार्टी मदरसों को सिरे से खत्म करना चाहती है.
एक सिरे से खत्म करना मुमकिन नहीं है, इसलिए माना यह जाता है कि प्रदेश में उन पर नकेल कसने के लिए तरह-तरह के कानून बना दिए गए हैं. मदरसों की शिक्षा के लिए एक बोर्ड बना दिया गया है. अब मदरसों का रजिस्ट्रेशन जरूरी है. इसे न करवाने पर भारी जुर्माने का प्रावधान कर दिया गया है. जो इस सब का विरोध कर रहे हैं उन्हें नीचा दिखाने के लिए भी एक पूरी शब्दावली इजाद कर ली गई है.
उत्तर प्रदेश से अब हम चलते हैं महाराष्ट्र में जहां इन दिनों चुनाव की प्रक्रिया चल रही है. चुनाव की घोषणा के कुछ ही दिन पहले राज्य की शिवसेना और भाजपा सरकार ने मदरसा टीचरों का वेतन बढ़ाकर तीन गुना कर दिया. उत्तर भारत के किसी राज्य में कोई भाजपा सरकार ऐसा करेगी इसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते.
हालांकि महाराष्ट्र में मुसलमानों की आबादी 11 फीसदी से ज्यादा है, लेकिन इस बार जब चुनाव में टक्कर कड़ी है और हर जगह कांटे का मुकाबला होने की संभावना है तो एक-एक वोट महत्वपूर्ण हो गया है. ऐसे में वहां मुस्लिम वोटों को लेकर हर पार्टी रणनीति बना रही है.
अभी कुछ ही दिन पहले भाजपा नेता और उप-मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने ‘वोट जिहाद‘ का जिक्र किया था. तब लगा था कि चुनाव में यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा हो सकता है. लेकिन जल्द ही बाजी पलटती दिखाई दी. दूसरे उप-मुख्यमंत्री अजित पवार ने यह घोषण कर दी कि उनकी पार्टी दस फीसदी टिकट मुसलमानों को देगी.
शिव सेना शिंदे गुट के नेता और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से भी कुछ लोगों ने जब मुसलमानों को पर्याप्त संख्या में पार्टी टिकट देने की मांग की तो इस पर उनकी प्रतिक्रिया नकारात्मक नहीं थी. यह सब तब हो रहा था जब कांग्रेस के कुछ नेता अपनी पार्टी पर इसलिए नाराज थे कि उन्होंने लोकसभा चुनाव में राज्य से एक भी मुसलमान को टिकट नहीं दिया.
दूसरी तरफ प्रकाश आंबेडकर की पार्टी वंचित बहुजन अघाड़ी भी लगातार यह कह रही कि वह बड़ी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारेगी.ठीक यहीं पर एक और चीज को याद रखना जरूरी है. महाराष्ट्र की विधान परिषद में दस सदस्यों का मनोनयन राज्यपाल करते हैं. पिछली बार इन दस में दो सीटें राज्य के मुस्लिम समुदाय के प्रतिष्ठित लोगों को दी गईं.
राज्य में मुसलमानों की 11 फीसदी से ज्यादा आबादी के बावजूद यहां मुस्लिम विधायकों की संख्या सात से 13 के बीच रही है. 2019 के विधानसभा चुनाव में दस मुस्लिम उम्मीदवार जीते थे. इस बार इस ट्रेंड में कोई बड़ा बदलाव होगा इसकी बहुत उम्मीद नहीं है, लेकिन मुसलमानों को महत्व दिया जा रहा है. जिसे हम मुस्लिम फोबिया कहते हैं वह कुछ दिख रहा है तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए.
हालांकि इसका कारण शायद यही है कि हर सीट पर बहुत कम अंतर से फैसला होने की संभावना सामने दिख रही है, इसलिए सभी दलों के लिए एक-एक वोट महत्वपूर्ण हो गया है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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