हरजिंदर
कहा जाता है कि किसी समाज की शैक्षणिक स्थिति क्या है इसे समझने का सबसे अच्छा तरीका यह जानना है कि उस समाज में महिलाएं कितनी शिक्षित हो रही हैं.पिछले हफ्ते संसद में मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा का मुद्दा उठा. मुद्दे को उठाया मजलिस-ए-इत्ताहदुल मुसलमीन के नेता असद्दुदीन ओवेसी ने.
ओवेसी इस बात का खंडन कर रहे थे कि मुस्लिम औरतें ज्यादा शोषित हैं. उन्होंने तमाम आंकड़ें दिए जो बताते हैं कि दूसरे समुदायों की तुलना में मुस्लिम लड़कियों शिक्षा संस्थानों में ज्यादा दाखिला ले रही हैं.
उन्होंने इसके लिए बहुत सारे आंकड़ों का हवाला भी दिया. जैसे उन्होंने कहा कि स्कूलों में दाखिले के मामले में बाकी समाज में लैंगिक समानता 0.93 है जबकि मुस्लिम समाज में 0.99.
उन्होंने यह भी तर्क दिया कि अपनी गरीबी और सरकार का सहयोग न मिलने के कारण मुसलमान शैक्षणिक तौर पर पिछड़े हैं.बेशक, ओवेसी ने लोकसभा की अपनी जोरदार तकरीर में जो कहा उन बातों में दम है. लेकिन मुस्लिम समुदाय की शिक्षा और खासकर मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा का मामला थोड़ा जटिल है.
किसी भी तरह से इसका अति सरलीकरण नहीं किया जा सकता, जो अक्सर राजनीतिक बहसों में हो जाता है.मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा को लेकर अभी तक देश में बहुत सारे अध्ययन हुए हैं. अगर हम उन्हें देखें तो तस्वीर काफी कुछ साफ होती है.
इनमें से सबसे ताजा अध्यन किया है प्रोफेसर अरूण सी मेहता ने जिसका शीर्षक है- द स्टेट आफ मुस्लिम एजूकेशन इन इंडिया - ए डाटा ड्रिवन रिपोर्ट. उनके इस अध्यन का आधार यूनीफाइड डिस्ट्रिक्ट इनफारमेशन सिस्टम फार एजूकेशन और आल इंडिया सर्वे आन हायर एजूकेशन के आंकड़े हैं.
इन आकंड़ों का विश्लेषण करते हुए प्रोफेसर मेहता ने पाया कि मुसलमानों की शिक्षा संस्थानों में दाखिले की दर बढ़ी है. लेकिन जैसे जैसे हम उच्च शिक्षा की ओर बढ़ते हैं मुस्लिम छात्र-छात्राओं की हिस्सेदारी लगातार कम होती जाती है. ठीक यहीं पर दो आंकड़े महत्वपूर्ण हो जाते हैं. उनके बीच में ही स्कूल या शिक्षा संस्थान छोड़ देने की दर यानी ड्राप आउट रेट बहुत ज्यादा है.
ठीक यहीं पर आंकड़ें एक और बात कहते हैं जिस पर ध्यान देना जरूरी है. इस अध्ययन के अनुसार प्राथमिक कक्षाओं में दाखिला लेने वाली मुस्लिम लड़कियों का प्रतिशत मुस्लिम लड़कों के मुकाबले कम जरूर है, लेकिन अगर एक मुस्लिम लड़की स्कूल में दखिला लेती है तो उसके अपनी शिक्षा पूरी करने की संभावना एक मुस्लिम लड़के के बनिस्पत बहुत ज्यादा है.
इसे एक दूसरी तरह से भी देखा जाना चाहिए. हर साल जब बोर्ड परीक्षा के नतीजे आते हैं तो हम पाते हैं कि पास होने वाली लड़कियों की दर पास होने वाले लड़कों से कहीं ज्यादा है. यानी शिक्षा के मामले में बाकी समाज में लड़कियां जो उपलब्धियां हासिल कर रही हैं वैसी ही उपलब्धियां मुस्लिम लड़कियां भी हासिल कर रही हैं.
हालांकि उच्च शिक्षा में उनका प्रतिशत बढ़ाने की जरूरत अभी भी है.ओवेसी ने गरीबी का जो मसला उठाया है वह भी महत्वपूर्ण है. इसके साथ जुड़ा हुआ एक दूसरा सच और भी है.मुस्लिम आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा वह है जिसे हम पसमांदा समाज के नाम से जानते हैं.
वे आर्थिक रूप से तो गरीब हैं . साथ ही सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी पिछड़े हैं. उन्हें शिक्षा की अहमियत समझाना और उसके प्रति जागरूक बनाना सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए. लेकिन ऐसा हो नहीं रहा.
ओवेसी ने संसद में जो मुद्दे उठाए हैं जो वे महत्वपूर्ण होते हुए भी कहीं जाते नहीं दिखाई दे रहे. इस तरह की तकरीरें आखिर में राजनीति का शिकार हो जाती हैं. ज्यादा जरूरी है कि समाज में अल्पसंख्यकों, पिछड़ों और दलितों की शिक्षा पर एक ऐसा सार्थक आौर गंभीर विमर्श शुरू हो जिससे राजनीति पर भी कुछ ठोस करने का दबाव बने.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)