प्रमोद जोशी
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका-यात्रा को कम से कम तीन सतह पर देखने समझने की जरूरत है. एक सामरिक-तकनीक सहयोग. दूसरे उन नाज़ुक राजनीतिक-नैतिक सवालों के लिहाज से, जो भारत में मोदी-सरकार के आने के बाद से पूछे जा रहे हैं. तीसरे वैश्विक-मंच पर भारत की भूमिका से जुड़े हैं. इसमें दो राय नहीं कि भारतीय शासनाध्यक्षों के अमेरिका-दौरों में इसे सफलतम मान सकते हैं.
प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी संसद के संयुक्त अधिवेशन में कहा, भारत-अमेरिका सहयोग का यह नया सूर्योदय है, भारत बढ़ेगा, तो दुनिया बढ़ेगी. यह एक नज़रिया है, जिसके अनेक अर्थ हैं. भारत में आया बदलाव तमाम विकासशील देशों में बदलाव का वाहक भी बनेगा.
राजनीति में आमराय
अमेरिकी राजनीति में भी भारत के साथ रिश्तों को बेहतर बनाने के पक्ष में काफी हद तक आमराय देखने को मिली है. वहाँ की राजनीति में भारत और खासतौर से नरेंद्र मोदी के विरोधियों की संख्या काफी बड़ी है. उनके कटु आलोचक भी इसबार अपेक्षाकृत खामोश थे. कुछ सांसदों ने उनके भाषण का बहिष्कार किया और एक पत्र भी जारी किया, पर उसकी भाषा काफी संयमित थी.
'द वाशिंगटन पोस्ट' ने लिखा, अमेरिकी सांसदों ने सदन में पीएम मोदी का गर्मजोशी से स्वागत किया और खड़े होकर उनका जोरदार अभिवादन किया. जब वे तो दीर्घा में कुछ लोग ‘मोदी-मोदी’ के नारे लगाए. कई सांसद उनसे हाथ मिलाने के लिए कतार में खड़े थे.
अखबार ने यह भी लिखा कि मोदी की इस चमकदार-यात्रा का शुक्रवार को इस धारणा के साथ समापन हुआ कि जब अमेरिका के सामरिक-हितों की बात होती है, तो वे मानवाधिकार और लोकतांत्रिक मूल्यों पर मतभेदों को न्यूनतम स्तर तक लाने के तरीके खोज लेते हैं.
वॉशिंगटन पोस्ट मोदी सरकार के सबसे कटु आलोचकों में शामिल हैं, पर इस यात्रा के महत्व को उसने भी स्वीकार किया है. मोदी के दूसरे कटु आलोचक 'द न्यूयॉर्क टाइम्स' ने अपने पहले पेज पर अमेरिकी कांग्रेस में 'नमस्ते' का अभिवादन करते हुए नरेंद्र मोदी फोटो छापी है. ऑनलाइन अखबार हफपोस्ट ने लिखा कि नरेंद्र मोदी की अमेरिकी यात्रा की आलोचना करने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं.
नए भारत का नेतृत्व
प्रधानमंत्री मोदी एक नए भारत का नेतृत्व कर रहे हैं, जो आर्थिक और भू-राजनीति के लिहाज से महत्वपूर्ण है. हमारी विदेश-नीति के अलग-अलग दौर रहे हैं, जिनकी आपस में तुलना नहीं की जा सकती, क्योंकि अलग-अलग समय की परिस्थितियाँ अलग रही हैं. साथ ही पुराने सिद्धांतों को भी हमेशा लागू नहीं किया जा सकता.
पचास के दशक में भारत की वैश्विक भूमिका, केवल आदर्शों में थी. आर्थिक और सामरिक क्षेत्र में नहीं. साथ ही भारतवंशियों की इतनी बड़ी तादाद दुनिया में नहीं थी. यह संख्या लगातार बढ़ेगी. आने वाले समय में भारत शिक्षा और चिकित्सा का केंद्र भी बनेगा. विकासशील देशों के नागरिक चिकित्सा के लिए भारत आ ही रहे हैं.
एक समय तक अमेरिका के साथ रिश्ते कायम करने में भारत के राजनेताओं को झिझक होती थी, पर मोदी ने भारत-अमेरिका रिश्तों को खुले दिल से स्वीकार किया है. इसबार की यात्रा में उन्होंने भारत में अल्पसंख्यकों और मानवाधिकार से जुड़े मसलों पर फैली कुछ गलतफहमियों को भी दूर किया है.
तकनीकी-छलाँग
इस यात्रा के दौरान जो समझौते हुए हैं, वे केवल सामरिक-संबंधों को आगे बढ़ाने वाले ही नहीं हैं, बल्कि अंतरिक्ष-अनुसंधान, क्वांटम कंप्यूटिंग, टेलीकम्युनिकेशंस, सेमी-कंडक्टर और एडवांस्ड आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में नए दरवाजे खोलने जा रहे हैं. कुशल भारतीय कामगारों के लिए वीज़ा नियमों में ढील दी जा रही है.
अमेरिका असाधारण स्तर के तकनीकी-हस्तांतरण के लिए तैयार हुआ है, वहीं आर्टेमिस समझौते में शामिल होकर भारत अब बड़े स्तर पर अंतरिक्ष अनुसंधान में शामिल होने जा रहा है. अमेरिका और 11 अन्य देशों के खनिज-सुरक्षा सहयोग (मिनरल सिक्योरिटी पार्टनरशिप) में शामिल होने के व्यापक निहितार्थ हैं. पिछले साल जून में यह सहयोग शुरू हुआ है.
दोनों देशों ने एडवांस्ड टेलीकम्युनिकेशंस के क्षेत्र में भी समझौता किया है. दोनों देश ओपन रैन सिस्टम्स और एडवांस्ड टेलीकम्युनिकेशंस रिसर्च में सहयोग करेंगे. इसका मतलब है कि भारत 6-जी और अमेरिकी टेलीकम्युनिकेशंस की अगली पीढ़ी क बीच समन्वय होगा. इसके लिए यूएस इंटरनेशनल डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन वित्तीय व्यवस्था करेगा और यूएसएड का सहयोग इसमें मिलेगा.
जेट-इंजन, ड्रोन
जनरल इलेक्ट्रिक और हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड भारत में तेजस मार्क-2 के लिए इंजन बनाएंगे. इसके लिए अमेरिका जिस स्तर का तकनीकी हस्तांतरण करेगा, वह अभूतपूर्व है. 1998 के एटमी धमाकों के बाद भारत पर लगी पाबंदियों को एलसीए तेजस कार्यक्रम को धक्का लगा था.
उसके लिए विकसित किया जा रहा कावेरी जेट इंजन कार्यक्रम भी पिछड़ गया. भारत अब जेट इंजन निर्माण के बड़े कार्यक्रम पर काम कर रहा है, जिसमें इस समझौते की बड़ी भूमिका होगी.जनरल एटॉमिक्स से भारत 31 लड़ाकू एमक्यू-9बी ड्रोन ख़रीदेगा.
यह डील तीन अरब डॉलर की बताई जाती है. इन्हें भारत में असेंबल किया जाएगा. दुनिया में जनरल एटॉमिक्स इस क्षेत्र की अग्रणी संस्था है, जो रक्षा और अन्य उच्च तकनीकों से जुड़े उपकरण बनाने वाली कंपनी है. भारत के प्राइवेट सेक्टर के साथ भी यह कंपनी काम कर रही है.
चालक रहित विमानों के अलावा यह कंपनी इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल रेडार, सिग्नल्स इंटेलिजेंस और ऑटोमेटेड सर्विलांस सिस्टम्स भी बनाती है. अमेरिका के ऊर्जा विभाग के लिए थर्मोन्यूक्लियर फ्यूज़न रिसर्च में शामिल प्राइवेट सेक्टर की यह प्रमुख कंपनी है. इसने यूसीएसडी सुपरकंप्यूटर सेंटर विकसित किया है और 24 देशों में 60 से ज्यादा ट्रिगा न्यूक्लियर रिसर्च रिएक्टर स्थापित किए हैं. यह सेमी-कंडक्टर तकनीक पर भी काम करती है.
सेमी कंडक्टर
प्रधानमंत्री मोदी भारत को सेमीकंडक्टर-तकनीक का बेस बनाना चाहते हैं. अमेरिका की चिप कंपनी माइक्रोन टेक्नोलॉजी भारत में 80 करोड़ डॉलर से अधिक का निवेश करेगी ताकि सेमीकंडक्टर की असेंबली और टेस्ट फैसिलिटी भारत में बन सके. अंततः यह निवेश 2.75 अरब डॉलर का होगा, बाकी निवेश भारत व गुजरात सरकार मिलकर करेगी.
भारत में सेमीकंडक्टर उद्योग का कोई आधार नहीं है. उसके लिए आवश्यक सुविधाएं और कुशल कर्मचारी भी नहीं हैं. अब अमेरिकी कंपनी एप्लाइड मैटीरियल्स ने भारत में एक सेमीकंडक्टर सेंटर फॉरकॉमर्शियलाइजेशन एंड इनोवेशन स्थापित करने की घोषणा की है, ताकि सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन की व्यवस्था हो सके.
इसके अलावा लैम रिसर्च करीब 60,000 भारतीय इंजीनियरों को ‘सेमीवर्स सॉल्यूशन’ की ट्रेनिंग देगा ताकि वर्कफोर्स तैयार करने का काम तेजी से हो सके.प्रधानमंत्री के दौरे से पहले ही पिछले सप्ताह कैबिनेट कमेटी की बैठक में माइक्रोन की निवेश योजना पर मुहर लग गई थी. माइक्रोन चीन में पहले से चिप निर्माण का काम कर रही है, लेकिन चीन के साथ बिगड़ते रिश्तों के कारण माइक्रोन भारत में अपना उत्पादन शुरू करना चाहता है.
माइक्रोन से पहले भारत में चिप बनाने के लिए वेदांता व फॉक्सकॉन की तरफ से भी घोषणाएं की जा चुकी है, लेकिन टेक्नोलॉजी-ट्रांसफर में हो रही दिक्कतों की वजह से वेदांता-फॉक्सकॉन से पहले माइक्रोन भारत में चिप बनाने लगेगी.
मास्टर शिप रिपेयर
अमेरिकी नौसेना ने कट्टुपल्ली (चेन्नई) स्थित लार्सन एंड टूब्रो शिपयार्ड के साथ मास्टर शिप रिपेयर एग्रीमेंट (एमएसआरए) किया है. इसके बाद अब वह माझगाँव डॉक लिमिटेड और गोवा शिपयार्ड के साथ समझौतों को अंतिम रूप दे रही है. इन समझौतों के बाद अमेरिकी नौसेना के पोत अपनी यात्रा के बीच में जरूरत पड़ने पर भारतीय शिपयार्डों में रिपेयर और सर्विसिंग करा सकेंगे.
विज्ञान-तकनीक और औद्योगिक सहयोग के ऐसे कुछ और समझौते हुए हैं. दोनों देशों की सेनाएँ मिलकर काम कर रही हैं. दोनों के बीच समझौता हुआ है कि लड़ाकू जहाज़ों में ईंधन के लिए वे एक दूसरे की फैसिलिटी का इस्तेमाल कर सकते हैं. दोनों मालाबार और रेड फ्लैग जैसे बड़े युद्धाभ्यास कर रहे हैं. हिंद महासागर में भारत के पी-8आई विमान दक्षिण चीन सागर तक उड़ान भरते हैं और इंटेलिजेंस साझा करते हैं.
दोनों देशों ने सुरक्षा की दृष्टि से समुद्र की सतह के नीचे के अध्ययन के क्षेत्र में भी सहयोग (अंडर सी डोमेन अवेयरनेस कोऑपरेशन) का समझौता किया है। पहली बार अमेरिकी सेना की कमांड में तीन भारतीय लायज़ाँ ऑफिसर नियुक्त किए जाएंगे. रक्षा-उद्योगों में सहयोग का भी एक समझौता हुआ है. शिक्षा संस्थानों में रक्षा से जुड़े अनुसंधान में भी दोनों देश सहयोग करेंगे.
कारोबार
हालांकि माना जा रहा था कि इस यात्रा के दौरान दोनों देश किसी व्यापारिक समझौते की घोषणा नहीं करेंगे, पर विशेषज्ञों को इस बात पर हैरानी हुई कि दोनों देशों ने घोषणा की कि छह अलग-अलग व्यापारिक मतभेदों को सुलझाया जाएगा, जिसमें टैरिफ़ का मुद्दा भी शामिल है. दोनों देशों ने विश्व व्यापार संगठन से जुड़े छह विवादों को सुलझाने का फैसला किया है.
अमेरिका ने बेंगलुरु और अहमदाबाद में नए कौंसुलेट खोलने की इच्छा व्यक्त की है. दूसरी तरफ भारत इस साल सिएटल में नए कौंसुलेट को खोलेगा. इसके अलावा भारत दो और कौंसुलेट की घोषणा करेगा. इस यात्रा के ठीक पहले चीन के ‘ग्लोबल टाइम्स’ में प्रकाशित एक आलेख में कहा गया था कि भारत और चीन के परंपरागत कारोबारी रिश्तों की जगह
अमेरिका नहीं ले पाएगा. वस्तुस्थिति यह है कि इस समय भारत का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर अमेरिका है. इन सबके अलावा ग्लोबल गवर्नेंस और डिजिटल-सहयोग के क्षेत्रों में भी काम करेंगे. इस यात्रा के दौरान राष्ट्रपति बाइडन ने कहा कि दोनों देशों के बीच करीब 190 अरब डॉलर का सालाना कारोबार हो रहा है.
यह चीन के साथ हो रहे व्यापार का दुगना है. अमेरिका के साथ भारत का व्यापार संतुलन घाटे में नहीं फायदे में है. दुनिया की तमाम कंपनियों की दिलचस्पी भारत में है, क्योंकि वे ग्लोबल सप्लाई को चीन से मुक्त करना चाहती हैं.
वस्तुतः इस यात्रा ने नए रास्ते खोले हैं, जिनपर चलने के बाद अभी और तमाम समझौते होंगे. यह एक प्रकार से भारत की हाईटेक-क्रांति की शुरुआत है.
( लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं )