हरजिंदर
लोगों की तरह ही समाज के भी मन में अक्सर कुछ शब्द अटक जाते हैं. और आज की दुनिया में जब वे उनके अर्थ खोजने या उससे जुड़ी हुई खबरें जानने की कोशिश करते हैं तो वे गूगल के पास जाते हैं. गूगल का सर्च इंजन सिर्फ उन्हें जानकारी ही नहीं देता बल्कि लोगों के सवालों को अपने डाटाबेस में दर्ज भी करता जाता है. गूगल ट्रेंड में जाकर आप आसानी से जान सकते हैं कि कौन सा शब्द या कौन से सवाल लोगों को परेशान कर रहे हैं.
गूगल ट्रेंड में हम जब पसमांदा शब्द को खोजते हैं तो बहुत दिलचस्प नतीजे दिखाई देते हैं. पिछले तकरीबन दो साल में यह शब्द राजनीतिक चर्चा में बहुत ज्यादा रहा है. सबसे पहले हम गूगल ट्रेंड पर पिछले एक साल के नतीजे देखते हैं.
एक साल के नतीजे इसलिए कि फरवरी 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब पसमांदा की बात की थी तो इसे लेकर काफी चर्चा शुरू हो गई थी. तब यह कहा गया था कि प्रधानमंत्री पसमांदा समाज तक पहंुचकर भारतीय राजनीति के समीकरण बदल सकते हैं.
तब फरवरी महीने के अंत तक गूगल में पसमांदा शब्द को लेकर सर्च अचानक ही बढ़ गई थी. मई महीने के आस-पास फिर से यह शब्द चर्चा में आया तो सर्च फिर से बढ़ गई.
गूगल ट्रेंड के आंकड़ें बताते हैं कि पिछले साल इसमें सबसे बड़ा बदलाव आया जून के अंत में. यह समय था जब प्रधानमंत्री भाजपा कार्यकर्ताओं के सम्मेलन को संबोधित करने भोपाल गए थे.
इस सम्मेलन को नाम दिया गया था, ‘मेरा बूथ, सबसे मजबूत संवाद‘. वहां पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और मध्य प्रदेश के तब के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की मौजूदगी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पसमांदा पर खास ध्यान देने की बात कही थी.
यही वह समय है जब अखबारों में इसे लेकर बहुत सी रिपोर्ट, विश्लेषण और संपादकीय छापे गए थे। इसे प्रधानमंत्री की मुस्लिम आउटरीच कहा गया था.
गूगल ट्रेंड बताता है कि पिछले पूरे साल का यही समय है जब पसमांदा शब्द को लेकर सबसे ज्यादा सर्च हुई थी. अगर पिछले साल फरवरी की तुलना जुलाई से करें तो पसंमादा शब्द की सर्च जुलाई में चार गुनी से भी ज्यादा हुई.
गूगल ट्रेंड सिर्फ सर्च के आंकड़ें ही नहीं देता उसका भूगोल भी बताता है. पिछले पूरे साल में इस शब्द को लेकर सबसे ज्यादा सर्च दिल्ली में हुई, आश्चर्यजनक रूप से उसके बाद उत्तराखंड में.
तीसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश था, चैथे पर जम्मू कश्मीर और पांचवें पर झारखंड. पसमांदा समाज को संगठित करने की सबसे बड़ी कोशिशें पिछले कुछ साल में बिहार में हुई हैं, लेकिन इस शब्द को सर्च करने वाले प्रदेशों में बिहार का नंबर सातवां है.
अगर हम पसमांदा शब्द की सर्च के पिछले पांच साल के आंकड़ों को देखते हैं तो पता चलता है कि पिछले दो साल में ही इसे लेकर सबसे ज्यादा सर्च हुई है.
लेकिन अगर हम पिछले बीस साल के आंकड़ों को देखते हैं तो कुछ और ही कहानी सामने आती है. पसमांदा शब्द को लेकर अभी तक जो सबसे ज्यादा सर्च हुई वे हैं 2005 और उसके बाद के आंकड़ें.
यही वह समय था जब सच्चर आयोग का गठन हुआ था और विभिन्न स्तरों पर मुसलमानों की स्थिति का आकलन करने का काम बड़े पैमाने पर हुआ था.
गूगल ट्रेंड से हम सिर्फ इतना ही समझ पाते हैं कि कोई शब्द हमारे सामाजिक विमर्श में किस तरह से जगह बना रहा है. इसके आगे की चीजें तो राजनीति और विकास नीति से ही तय होंगी.
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )