पाकिस्तानी लेखक का जाकिर नाइक से सवाल

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 20-10-2024
Pakistani writer's question to Zakir Naik
Pakistani writer's question to Zakir Naik

 

masoodवजाहत मसूद

हमारा देश अनेक जटिल राजनीतिक एवं आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा है. संविधान में संशोधन करना जाहिर तौर पर संसद की शक्ति है, लेकिन हमारे ऐतिहासिक संदर्भ में, विशेषकर वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था में, प्रस्तावित संवैधानिक संशोधन न केवल विभिन्न संवैधानिक संस्थानों में संतुलन बहाल करने का एक प्रयास है, बल्कि बुद्धिमता की परीक्षा भी है.  यह एक गठबंधन सरकार है जिसे संसद में विवादास्पद लेकिन शक्तिशाली विपक्ष का सामना करना पड़ता है.

संसद के बाहर भी वैसे भी सार्वजनिक स्तर पर राजनीतिक अशांति है. अर्थव्यवस्था में सुधार के कुछ संकेत दिखे हैं, लेकिन राजनीतिक स्थिरता के बिना विकास में निरंतरता की गारंटी देना आसान नहीं है. ऐसे में नेशनल असेंबली और उच्च सदन में दो-तिहाई बहुमत से संवैधानिक संशोधन को इस तरह मंजूरी देना कि इससे राज्य के जोर देने का आभास न हो,

प्रभावी होता नजर आ रहा है. ऐसे में  धार्मिक उपदेशक जाकिर नाइक को पाकिस्तान की लंबी यात्रा के लिए आमंत्रित किया है. जाकिर नाइक कुछ समय पहले अपने टेलीविजन भाषणों की मदद से भारत में लोकप्रिय हो गए थे.

जाकिर नाइक की खासियत विभिन्न धर्मों की पवित्र पुस्तकों और शिक्षाओं की तुलना करके अपनी मान्यताओं का प्रचार करना है. मुझे इसे तुलनात्मक धर्म कहना कठिन लगता है. तुलनात्मक धर्म एक गंभीर विद्वतापूर्ण अभ्यास है जिसमें विभिन्न धर्मों की शिक्षाओं और ऐतिहासिक विकास की मदद से मानव मान्यताओं की विविधता और समानता पर विचार किया जाता है. तुलनात्मक धर्मों के आधिकारिक विद्वानों के बीच सभी धर्मों और उनके अनुयायियों के प्रति सम्मान एक बुनियादी घटक रहा है. 

एक सदियों पुरानी परंपरा भी है जिसमें धार्मिक विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करने वाले उपदेशकों को धर्म-विरोधी मान्यताओं और परंपराओं को गलत साबित करने के गुर सिखाए जाते थे. यूरोप में धार्मिक सुधार आन्दोलन के दौरान इस क्षेत्र को विशेष महत्व दिया गया. हमारे क्षेत्र में ही, उन्नीसवीं सदी में ईसाई पुजारियों के आगमन और धार्मिक रूप से तटस्थ नव-औपनिवेशिक सरकार की स्थापना के बाद, हिंदू-मुस्लिम नेताओं के बीच बहस की परंपरा ने गति पकड़ी.

परंपरागत रूप से, भारत में मुस्लिम आस्था का प्रचार करने वाले सूफियों ने सहिष्णुता और पारस्परिक सम्मान के माध्यम से अपना दृष्टिकोण व्यक्त किया. भगत कबीर की परम्परा भारत में भी विद्यमान है. यह पंजाब में सिख और मुस्लिम विद्वानों के बीच सहिष्णुता का प्रतीक है.

मुस्लिम सूफी कई सिख पूजा स्थलों के निर्माण में शामिल रहे हैं. अमृतसर के गुरुद्वारा हरमंदर साहिब की स्थापना 1588 में मियां मीर ने की थी. सिंध में अमरकोट के मंदिर और साथ ही खैरपुर और भट शाह में मुस्लिम सूफी दरगाहें धर्म और राष्ट्रीयता के भेदभाव के बिना मानवीय सहिष्णुता के प्रतीक रहे हैं. इसके विपरीत, इस बहस ने विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के बीच कटुता और विरोध पैदा कर दिया.

जाकिर नाइक की भाषण शैली ऐसा ही निष्कर्ष अपरिहार्य है. उन्हें भारत छोड़कर मलेशिया में शरण लेनी पड़ी. उनके टेलीविजन चैनल को यूके और बांग्लादेश समेत मलेशिया के कई राज्यों में प्रतिबंधित कर दिया गया है. उन पर कुछ वित्तीय आरोप भी लगाए गए हैं जिनकी निष्पक्ष पुष्टि या खंडन नहीं किया जा सकता.

ज़ाकिर साहब के पाकिस्तान में कई प्रशंसक हैं, लेकिन उन्होंने पाकिस्तान में कई विषयों पर अपने विचार व्यक्त किए हैं जिससे पता चलता है कि उनके स्वभाव में उन लोगों के प्रति संवेदनशीलता की कमी है जो उनसे असहमत हैं.

शायद वह  पाकिस्तानी के सामाजिक ताने-बाने से परिचित भी नहीं हैं. रावलपिंडी की लड़कियों से लेकर महिला एंकरों तक जाकिर नाइक के बयान और महिला शासन पर उनकी राय से पता चलता है कि 59 साल के जाकिर नाइक को शायद यह नहीं पता कि जिस साल उनका जन्म हुआ वह पाकिस्तान का साल है.

 ज़ाकिर साहब से ऐसी राजनीतिक चेतना की उम्मीद करना नामुमकिन है, क्योंकि उन्होंने पाकिस्तान में  कहा कि "अगर तानाशाह कुरान और हदीस को माने तो तानाशाही में कोई बुराई नहीं है." अब जाकिर नाइक को कौन बताए कि तानाशाही इंसानों पर एक व्यक्ति के निरंकुश शासन का नाम है.

किसी तानाशाह से कुरान और हदीस का पालन करने की उम्मीद करना मूर्खतापूर्ण है. पाकिस्तान में तानाशाही के प्रतिरोध की गौरवशाली परंपरा रही है. पाकिस्तान में लोकतांत्रिक शासन प्रणाली पर आम सहमति है. ज़ाकिर नाइक आतिथ्य शिष्टाचार के मूल सिद्धांत को नहीं जानते हैं कि मेज़बान देश की राजनीतिक व्यवस्था पर मतदान नहीं किया जाना चाहिए.

ज़ाकिर साहब ने सिंध के गवर्नर हाउस में कहा कि "पाकिस्तान इस्लाम के नाम पर बनाया गया." यहां कुरान का कानून होना चाहिए. जाकिर नाइक को नहीं मालूम कि पाकिस्तान का एक लिखित संविधान है जिसमें साफ लिखा है कि इस देश में कुरान और सुन्नत के खिलाफ कोई कानून नहीं बनाया जा सकता.

जाकिर नाइक बताएं कि पाकिस्तान का कौन सा कानून कुरान और सुन्नत के खिलाफ है? उन्हें पता होना चाहिए कि पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत सभी नागरिकों को समान दर्जा दिया गया है. वही संविधान के अनुच्छेद 20 में प्रत्येक नागरिक को आस्था की स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है.

आस्था व्यक्तिगत विवेक से संबंधित है. मनुष्य में आस्थाओं की विविधता अपरिहार्य है. पाकिस्तान का संविधान विभिन्न संवैधानिक निकायों और संघीय इकाइयों के अधिकारों में पारस्परिक जवाबदेही की गारंटी देता है. पाकिस्तान में विभिन्न राजनीतिक विचारों वाले नागरिकों के बीच आपसी सम्मान की एक मजबूत परंपरा है.

डॉ. साहब का ज्ञान, अच्छी याददाश्त और स्पष्ट संवाद तो झलक सकता है, लेकिन धार्मिक और राजनीतिक मामलों में जाकिर नाइक का ज्ञान किसी सर्टिफिकेट की हैसियत नहीं रखता. उन्हें लोगों को अपने धर्म में आमंत्रित करने का अधिकार है, लेकिन उन्हें पाकिस्तान के राजनीतिक, कानूनी और सामाजिक मामलों में हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए.

लेखक पाकिस्तान के वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं, लेख ‘जंग’ से साभार