प्रमोद जोशी
इमरान खान की गिरफ्तारी, उसके बाद हुई हिंसा, अफरा-तफरी और फिर सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद इमरान खान की रिहाई होने के बावजूद स्थिति सामान्य नहीं हुई है, बल्कि कलह और ज्यादा खुलकर सामने आ गई है. देश की सेना, राजनीति और न्यायपालिका तीनों आरोपों के घेरे में हैं.
पाकिस्तान को इस वात्याचक्र से बाहर निकालने के लिए नए सिरे से अपनी शुरुआत करनी होगी. यह शुरुआत कैसे होगी और इसकी पहल कौन करेगा, कहना मुश्किल है. पिछले 76साल में वहाँ जो कुछ हुआ है, वह इसके लिए जिम्मेदार है. स्वतंत्रता के बाद से वहाँ जो व्यवस्था कायम की गई है, वह सेना, सुरक्षा और युद्ध पर केंद्रित है. अब पहिया उल्टा घुमाना भी आसान नहीं है.
इरादा क्या है ?
यह स्थिति न तो एक दिन में बनी है और न कोई एक व्यक्ति इसके लिए जिम्मेदार है. वहाँ के अवाम और राजनीति को विचार करना चाहिए कि पाकिस्तान की विचारधारा क्या है? वे चाहते क्या हैं ?
इमरान खान लोकतंत्र और भ्रष्टाचार की बातें कर ज़रूर रहे हैं, पर उनके पास भी इस बीमारी का कोई इलाज़ नहीं है. वे धार्मिक नारों का इस्तेमाल कर रहे हैं. इनके सहारे वे एकबार को सत्ता में वापस आ भी जाएंगे, तो देश को संकट से बार किस तरह निकालेंगे, यह स्पष्ट नहीं है.
इमरान खान ने राजनीति में अपने विरोधियों को चोर-डाकू बताकर प्रवेश किया था. उन्होंने 2016में पनामा पेपर्स ने देश के राजनेताओं की कारगुजारियों का पर्दाफाश किया. इसके सहारे इमरान ने सेना की मदद से नवाज़ शरीफ को जेल का रास्ता दिखाने में कामयाबी हासिल की, पर आज वे वैसे ही आरोपों के कठघरे में हैं.
उन्हें लेकर दस्तावेजी सबूत भी हैं. सिर्फ आंदोलन और हंगामे की मदद से वे कैसे बचेंगे ?
लोकतंत्र मुफीद नहीं
भारत की तरह पाकिस्तान में भी संविधान सभा बनी थी, जिसने 12 मार्च 1949 को संविधान के उद्देश्यों और लक्ष्यों का प्रस्ताव तो पास किया, पर संविधान नहीं बन पाया. नौ साल की कवायद के बाद 1956 में पाकिस्तान अपना संविधान बनाने में कामयाब हो पाया.
23 मार्च 1956 को इस्कंदर मिर्ज़ा राष्ट्रपति बनाए गए. उन्हें लोकतांत्रिक तरीके से चुना गया था, पर 7अक्तूबर 1958 को उन्होंने अपनी लोकतांत्रिक सरकार ही बर्खास्त कर दी और मार्शल लॉ लागू कर दिया. उनकी राय में पाकिस्तान के लिए लोकतंत्र मुफीद नहीं.
देश के राजनीतिक दल एक-दूसरे की खाल खींचने में लगे रहते हैं. उनकी दिलचस्पी लोकतंत्र का नाम लेने भर में है. यह भी सच है कि वहाँ लोकतंत्र के नाम पर भ्रष्टाचार को बोलबाला रहा, पर लोकतंत्र को बदनाम करने की एक सुनियोजित साजिश भी चलती रही.
दूसरी तरफ वहाँ इस्लामिक व्यवस्था कायम करने की बातें भी होती हैं. सवाल है कौन सी व्यवस्था सऊदी अरब जैसी, तुर्की या ईरान जैसी या अफगानिस्तान जैसी?
प्रोजेक्ट इमरान
इमरान खान को भविष्य में कठपुतली प्रधानमंत्री बनाने का सेना का प्रोजेक्ट 2010 के आसपास ही बन गया था. 2013 में नवाज शरीफ के प्रधानमंत्री बनने के बाद भी यह टकराव कायम रहा और 2015 में भारत के साथ बातचीत शुरू करने की कोशिशों पर पलीता लगा.
इमरान को खड़ा करने में कई जनरलों ने भूमिका निभाई, पर अंततः 2018 में जब कमर जावेद बाजवा सेनाध्यक्ष थे, इमरान खान सेना की सहायता से चुनाव जीते. सेना ने न केवल इमरान खान की चुनाव जीतने में मदद की, बल्कि अल्पसंख्यक रहने पर सांसदों का इंतजाम किया. जनरल फैज इसी वजह से इमरान खान के दोस्त बन गए.
इमरान ने अपने प्रतिस्पर्धियों को जेल में डालने का कार्यक्रम चलाया, जिसे देश की सेना ने सफाई माना. कुछ विशेषज्ञों की नज़रों में उनकी सरकार वस्तुतः सेना और राजनेताओं की ‘हाइब्रिड’ सरकार थी.
आईएसआई के एक पूर्व चीफ ले. जन. असद दुर्रानी ने कुछ समय पहले एक भारतीय पत्रकार से कहा कि इमरान को ही नहीं भुट्टो और नवाज़ शरीफ को भी सेना ने प्रधानमंत्री बनने में मदद की थी और उन दोनों ने भी सेना से पंगा मोल लिया था.
अब इमरान ने भी सेना और अमेरिका-विरोधी रुख अपनाया है. यह अलग सवाल है कि सेना और इमरान के बीच रिश्ते खराब क्यों हुए? वे भस्मासुर क्यों बने? इन सवालों के जवाब तभी मिलेंगे, जब बातें खुलकर होंगी और तथ्य सामने आएंगे.
सबके तेवर तीखे
प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने कहा है कि एक-एक फसादी को 72 घंटे के भीतर जेल में डालेंगे. उधर इमरान खान के तेवर तीखे हैं. उन्होंने आंदोलन शुरू करने की घोषणा कर दी है और अपनी गिरफ्तारी के पीछे देश के सेनाध्यक्ष का हाथ होने का आरोप लगाया है.
इमरान खान का कहना है कि देश को अब केवल सुप्रीम कोर्ट ही बचा सकता है. सरकार और एस्टेब्लिशमेंट (यानी सेना) को चुनाव से डर लग रहा है. उनकी माँग है कि मुख्य न्यायाधीश उमर अता बंदियाल की अध्यक्षता में एक स्वतंत्र आयोग इस बात की जाँच करे कि 9मई को हिंसा कैसे हुई और सरकारी इमारतों और कोर कमांडर के घर पर किन लोगों ने हमला किया वगैरह.
एक तरफ सेना है तो दूसरी तरफ देश की अदालतें इमरान खान की तरफदारी करती हुई नज़र आ रही हैं. सुप्रीम कोर्ट में पेशी के वक्त मुख्य न्यायाधीश ने जिस अंदाज़ में इमरान खान से कहा था कि आपको देख कर खुशी हो रही है, उससे लगता नहीं था कि वे एक अभियुक्त से बात कर रहे हैं.
अदालतों की भूमिका
इमरान खान अदालत की बात कर रहे हैं, पर इन्हीं अदालतों ने अपनी भूमिका निभाई होती, तो देश में मार्शल लॉ की परंपरा ही नहीं पड़ती. पाकिस्तान में आज भी खुफिया एजेंसियाँ किसी को भी उठा कर ले जा सकती हैं और बरसों तक गैर-कानूनी तरीके से कैद में रखती हैं. बहुत से लोग कभी लौट कर नहीं आए. ऐसे लोगों की संख्या हजारों में है.
देश में राजनीति को बदनाम करने की बाकायदा मुहिम चलती रही है. सच है कि राजनीति में बेईमानी भरी हुई है, पर ऐसा कमोबेश दुनियाभर की राजनीति में है. लोकतंत्र की स्थापना राजनीति की मदद के बगैर नहीं हो सकती.
ब्रिटिश न्यूज चैनल स्काई न्यूज से एक इंटरव्यू में इमरान खान ने कहा है कि देश के इतिहास में फिलहाल सबसे कमजोर लोकतंत्र है. ऐसी स्थिति में एकमात्र उम्मीद न्यायपालिका ही है. मुझे इस्लामाबाद हाई कोर्ट से ऐसे गिरफ़्तार किया गया जैसे मैं आतंकवादी हूं. उन्होंने सेनाध्यक्ष जनरल असीम मुनीर पर निशाना साधा और कहा, उन्होंने मेरा अपहरण कराया.
अंतरिम राहत
बहरहाल इस्लामाबाद हाईकोर्ट ने केवल अल-कादिर ट्रस्ट मामले में ही नहीं पूरे 145मामलों में अंतरिम राहत दे दी है. इस्लामाबाद हाइकोर्ट ने इमरान ख़ान की हिफ़ाज़ती ज़मानत की अर्ज़ियों पर फ़ैसला सुनाते हुए कहा है कि उन्हें 17मई तक किसी नए मुक़द्दमे में गिरफ़्तार नहीं किया जाएगा. उसके बाद शनिवार 13मई को इमरान खान ने ज़मान पार्क स्थित अपने निवास से वीडियो लिंक पर अवाम को संबोधित किया.
उन्होंने कहा, उनकी योजना मुझे और मेरी पार्टी को चुनाव से बाहर करने की है. किस देश में सबसे बड़ी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को इस तरह गिरफ्तार या हिरासत में लिया जाता है? मैं जानता हूँ कि देश में अराजकता कौन पैदा करना चाहता है और कौन इस स्थिति का फायदा उठाना चाहता है.
इमरान को लेकर सेना के भीतर भी मतभेद हैं. जूनियर सैनिक अफसर इमरान के समर्थक बताए जाते हैं. पाकिस्तानी सेना के बारे में आयशा सिद्दीका की टिप्पणियाँ विश्वसनीय होती हैं. उन्होंने लिखा है कि 9 मई को सैनिक छावनी में तोड़फोड़ करने वालों में बहुत से लोग सर्विंग कर्नल और ब्रिगेडियर रैंक के अफसरों के रिश्तेदार थे.
फौज के खिलाफ माहौल
पाकिस्तान में फौज के खिलाफ माहौल कभी इस कदर खराब नहीं हुआ था. सेना ने 9मई को देश के इतिहास का काला अध्याय बताया है और कहा है कि हमने बहुत ज्यादा आत्मानुशासन बरता है, पर अब सख्त कार्रवाई करेंगे. प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने राष्ट्र के नाम संदेश में कहा है कि उपद्रवियों के साथ सख्ती बरती जाएगी. कैसी सख्ती बरतेगी सरकार ?
सेनाध्यक्ष जनरल आसिम मुनीर ने भी कहा है कि फौज पर हमले और संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की किसी कोशिश को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. फौज के रावलपिंडी स्थित सीपीओ ख़ालिद हमदानी और एसएसपी ऑपरेशन आमिर नियाजी ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि जीएचक्यू हमले के मामले में 76अफ़राद गिरफ़्तार किए जा चुके हैं.
पंजाब के कार्यकारी मुख्यमंत्री मोहसिन नकवी ने कहा है कि सूबे में फ़ौजी ठिकानों पर योजनाबद्ध हमले किए गए थे. इस हिंसा में 80करोड़ के नुकसान का तख़मीना लगाया गया है. गिरफ़्तार लोगों को मुकम्मल तहक़ीक़ात के ज़रिए शिनाख़्त किया गया है. जिन लोगों की तलाश है उनकी तस्वीरों के साथ विज्ञापन जारी किए गए हैं.
उल्टा आरोप
इमरान ख़ान ने कहा है फ़ौज को मैंने बुरा भला नहीं कहा बल्कि आर्मी चीफ़ के एक्शन की वजह से फ़ौज को बुरा कहा गया. मेरी पार्टी के साढ़े तीन हजार वर्कर जेल में डाल दिए गए हैं. ऐसे वीडियो क्लिप्स मौजूद हैं, जिनसे साबित होता है कि तोड़-फोड़ करने के लिए फौजी ट्रकों पर सिविलियन ड्रेस में लोगों को लाया गया था.
जब भीड़ कोर कमांडर के घर की तरफ बढ़ रही थी, तब उसे रोकने के लिए न तो पुलिस थी और फौज थी.उनका कहना है कि मैंने पाकिस्तान के हितों की हमेशा रक्षा की. जब ओसामा बिन लादेन की पाकिस्तान में हत्या की गई, तब अकेला मैं ही था, जिसने उस बात का विरोध किया था.
पूर्व सेनाध्यक्ष ने मेरी पीठ पर छुरा भोंकते हुए चोर और लुटेरों को सत्ता सौंप दी है. अब हम ग़ुलामी को मंज़ूर नहीं करेंगे और ‘हक़ीक़ी आज़ादी’ हासिल करके रहेंगे.
सुप्रीम कोर्ट पर प्रदर्शन
सत्ताधारी पीडीएम से जुड़े दलों ने सोमवार को सुप्रीमकोर्ट के बाहर प्रदर्शन किया. पीपुल्स पार्टी के रहनुमा फ़ैसल करीम कुंडी ने एक संवाददाता सम्मेलन में मुल्क में जारी परेशानियों की ज़िम्मेदारी इमरान ख़ान की है.
इमरान ख़ान को जब गिरफ़्तार किया गया वे मुल्ज़िम थे. जब तक इल्ज़ाम हो वह मुल्ज़िम होता है. क्या वज़ह थी कि उन्हें अगले दिन हाईकोर्ट में पेशी के वक़्त तक मेहमान बना कर रखा गया ?
( लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं )