एसए जाहिद
26 वां संवैधानिक संशोधन पैकेज वर्तमान मेंपाकिस्तान के संघीय सरकार द्वारा चर्चा में है.इसलिए, तथ्यों को समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि सर्वोच्च न्यायपालिका और जनहित के संदर्भ में इस संवैधानिक संशोधन पैकेज का क्या महत्व है ?प्रस्तावित संशोधन पाकिस्तान के संवैधानिक इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण मील के पत्थर में से एक है.
इन संशोधनों का प्राथमिक उद्देश्य केवल जनहित है.इसलिए, इन संशोधनों को सभी प्रकार के राजनीतिक और व्यक्तिगत हितों को अलग रखते हुए वास्तविकता और जनहित के प्रकाश में देखा जाना चाहिए.केवल एक-दूसरे का खंडन, संदेह, अफवाहें फैलाकर और दुष्प्रचार करके जनता को गुमराह करने से बचना चाहिए.ऐसे प्रयास करने वालों को यह समझ लेना चाहिए कि इन संशोधनों को लेकर झूठे एवं झूठे नकारात्मक प्रयासों में वे सफल नहीं होंगे.
पाकिस्तान के संविधान में प्रस्तावित 26 वें संवैधानिक संशोधन का उद्देश्य पाकिस्तान में न्याय प्रणाली में सुधार और गति लाना और लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करना, न्यायिक प्रणाली में पारदर्शिता, सुचारुता और प्रांतीय प्रतिनिधित्व के माध्यम से एक निष्पक्ष और कुशल न्यायिक प्रक्रिया प्रदान करना है.
इससे सीधे तौर पर प्रभावित लोगों को निश्चित तौर पर राहत मिलेगी.प्रस्तावित संवैधानिक संशोधन में 54 खंड शामिल हैं जो संविधान के विभिन्न पहलुओं में सुधार के लिए निर्धारित हैं.प्रमुख परिवर्तनों में, खंड 13 में अनुच्छेद 175 (न्यायालयों की स्थापना और क्षेत्राधिकार) का संशोधन शामिल है जो अत्यंत महत्वपूर्ण है.इस संशोधन में एक संघीय संवैधानिक न्यायालय की स्थापना शामिल है,जो मौजूदा सर्वोच्च न्यायालय से अलग होगी.
कानूनी विशेषज्ञों के मुताबिक, पाकिस्तान की न्यायिक व्यवस्था दशकों से लंबित मामलों और फैसलों में पारदर्शिता और देरी की समस्या का सामना कर रही है.अब भी, अकेले सुप्रीम कोर्ट में लगभग 60,000 मामले लंबित हैं.इनमें से अधिकतर मामले मुकदमेबाजी के हैं.ये वर्षों से लंबित हैं.सुप्रीम कोर्ट का पूरा ध्यान राजनीतिक मामलों पर ही है. इससे आम आदमी निराश है. जिसे न्याय पाने में देरी और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.आम आदमी को वैसी किस्मत नहीं मिलती.
वर्तमान में, पाकिस्तान विश्व न्याय नियम सूचकांक में 130वें स्थान पर है.प्रस्तावित संघीय संवैधानिक न्यायालय के माध्यम से, मौजूदा सर्वोच्च न्यायालय को नागरिक और आपराधिक मामलों में शीघ्र और पारदर्शी तरीके से न्याय देने का अवसर मिलेगा.ध्यातव्य है कि संवैधानिक न्यायालयों की व्यवस्था विश्व के अधिकांश देशों में विद्यमान है.
एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के 56 देशों में संवैधानिक अदालतें हैं, जिनमें जर्मनी, इटली, रूस, तुर्की, स्पेन, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, कोलंबिया और इंडोनेशिया समेत अन्य देश शामिल हैं.संक्षेप में, कानून और अंतर-प्रांतीय संवैधानिक मुद्दों की व्याख्या के लिए संघीय संवैधानिक न्यायालय की स्थापनात्वरित समाधान के साथ उच्च न्यायपालिका के माध्यम से आम आदमी को त्वरित एवं पारदर्शी न्याय उपलब्ध कराना भी जरूरी है.
इसी तरह, संवेदनशील मामलों से जुड़े कई मामले सैन्य अदालतों में लंबित हैं, जिसके कारण इन संवेदनशील मामलों से जुड़े लोगों के मामले भी रुके हुए हैं.इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने भी स्टे दे दिया है. जिसका फायदा आतंकवादियों और राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुंचाने वालों को मिल रहा है.इस मुद्दे का मानवाधिकार से क्या लेना-देना है? पिछले पीटीआई युग के दौरान ऐसे लोगों के कई मामले सैन्य अदालतों में भेजे गए थे, जिनका फैसला भी हुआ था.इनमें निर्दोष लोग मारे गये और दोषियों को सजा मिली.
अनुच्छेद 175 ए में एक अन्य महत्वपूर्ण संशोधन में न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि भी शामिल है.यह संशोधन सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि करके बैकलॉग को दूर करने में मदद करेगा.नियुक्ति के लिए न्यायाधीशों का एक पैनल मुख्य न्यायाधीश का चयन करेगा.इससे पहले, अठारहवें संशोधन द्वारा एक न्यायिक आयोग की स्थापना की गई थी.
यह आयोग अभी भी अप्रभावी है.प्रस्तावित संवैधानिक संशोधनों में संविधान का अनुच्छेद 63ए भी शामिल है, जिसके अनुसार संसदीय दल के निर्देशों के विपरीत किसी भी कानून या विधेयक पर वोट करने वाले संसद सदस्य का वोट गिना जाएगा ताकि प्रत्येक संसद स्वतंत्र रूप से अपने विवेक का प्रयोग कर सके.
अपने विवेक और समझ का सही उपयोग कर सकते हैं संवैधानिक संशोधन पैकेज में बलूचिस्तान विधानसभा की सीटें 65 से बढ़ाकर 81 करना भी शामिल है, जो बलूचिस्तान के लोगों के लिए बहुत स्वागत योग्य और आवश्यक है.जहां तक 26वें संविधान संशोधन का सवाल है कि यह किस व्यक्ति विशेष के लिए है तो यह पूरी तरह से निराधार प्रचार है जिसे कुछ लोग अपने राजनीतिक और व्यक्तिगत हितों के लिए फैला रहे हैं.
सवाल यह है कि क्या किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति को पहले कार्यकाल में विस्तार नहीं दिया गया, लेकिन सत्ता की कुर्सी पर बने रहने के लिए विस्तार की पेशकश भी की गई और दी भी गई. वर्तमान संशोधन का उद्देश्य पहले की तरह संवैधानिक परिवर्तन के बिना विस्तार करना नहीं है, बल्कि यह संवैधानिक रूप से पदों के संदर्भ में सभी महत्वपूर्ण व्यक्तियों के लिए है और इसमें सभी को शामिल किया जाएगा.
-पाकिस्तान के जंग से साभार