पहलगाम का हमला: भारतीय मुसलमानों का आतंक को करारा जवाब

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 28-04-2025
Pahalgam attack: Indian Muslims' befitting reply to terrorism
Pahalgam attack: Indian Muslims' befitting reply to terrorism

 

 अब्दुल्लाह मंसूर

कश्मीर के पहलगाम इलाके में हाल ही में जो आतंकी हमला हुआ, जिसमें 26 मासूम लोगों, जिनमें ज़्यादातर सैलानी थे, की बेरहमी से जान ली गई, वह सिर्फ एक हिंसक वारदात नहीं थी, बल्कि एक गहरी साजिश थी. इस हमले का मकसद था भारत की एकता, शांति और कश्मीर में लौटती सामान्य ज़िंदगी को तोड़ना. यह हमला ऐसे वक़्त में हुआ जब घाटी में अमरनाथ यात्रा की तैयारियाँ ज़ोरों पर थीं और बड़ी तादाद में पर्यटक वहाँ आ रहे थे.

इससे यह साफ़ था कि कश्मीर शांति और तरक्की की तरफ बढ़ रहा था. आतंकियों ने इसी माहौल को खून से रंगने की कोशिश की. खासतौर पर तब, जब अमेरिका के उपराष्ट्रपति भारत के दौरे पर थे और अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की अहमियत बढ़ रही थी. 

पहलगाम, जिसे 'मिनी स्विट्ज़रलैंड' कहा जाता है, वहाँ इस तरह का खूनी खेल खेलना केवल इंसानी जानें लेना नहीं था, बल्कि उस मेहनत और छवि को चोट पहुँचाना था, जो भारत ने कश्मीर को एक सुरक्षित और खूबसूरत पर्यटन स्थल के रूप में पेश करने के लिए बनाई थी.

इस हमले के पीछे 'द रेजिस्टेंस फ्रंट' नाम के आतंकी संगठन का नाम आया, जिसे लश्कर-ए-तैयबा का ही एक और चेहरा माना जाता है और जो सीधे-सीधे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI से जुड़ा हुआ है.

दरअसल, पाकिस्तान की ओर से आतंकवाद का खेल कोई नई बात नहीं है. पिछले तीस सालों में भारत ने उरी, पठानकोट, पुलवामा और अब पहलगाम जैसे कई दर्दनाक हमले झेले हैं.

पाकिस्तान की फौज और उसकी एजेंसियाँ आतंकवाद को भारत के खिलाफ एक रणनीति की तरह इस्तेमाल करती रही हैं. हाल ही में पाकिस्तानी फौज के जनरल असीम मुनीर ने कश्मीर को 'जगुलर वेन' यानी जीवनरेखा बताया, उन्होंने कहा, "यह (कश्मीर) हमारी जगुलर वेन थी, है और रहेगी. 

हम इसे नहीं भूलेंगे. हम अपने कश्मीरी भाइयों को उनके संघर्ष में अकेला नहीं छोड़ेंगे" जिससे साफ हो गया कि पाकिस्तान अब भी भारत को अस्थिर करने के सपने देख रहा है. जबकि खुद पाकिस्तान इस वक़्त भारी राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक संकट में डूबा हुआ है, फिर भी आतंक के जरिए भारत को परेशान करने की उसकी पुरानी आदत बनी हुई है. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस हमले की कड़ी निंदा की और कहा कि जो भी इसके पीछे हैं, उन्हें "कल्पना से परे सजा" दी जाएगी. उन्होंने यह भी कहा कि भारत आतंकवाद के आगे कभी नहीं झुकेगा और दोषियों को "धरती के आखिरी छोर तक" ढूंढकर सजा दी जाएगी.

सरकार ने तुरंत कई कड़े कदम उठाए हैं-पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द कर दिए गए, अटारी बॉर्डर बंद कर दी गई, और सिंधु जल संधि को भी निलंबित कर दिया गया है. साथ ही, भारतीय दूतावास से पाकिस्तानी अधिकारियों को निष्कासित किया गया है और दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों में कटौती की गई है.

इस हमले का सबसे डरावना पहलू यह था कि आतंकियों ने धर्म पूछकर लोगों को निशाना बनाया. यह महज़ हिंसा नहीं थी, बल्कि भारत के सामाजिक ताने-बाने में ज़हर घोलने की कोशिश थी. 

उनकी मंशा थी कि देश के अंदर हिंदू-मुस्लिम के बीच अविश्वास पैदा हो, देश का भाईचारा टूटे और दंगे भड़कें. लेकिन इस बार आतंकियों के मंसूबे कामयाब नहीं हो सके. 

एक स्थानीय मुस्लिम नौजवान ने पर्यटकों को बचाने के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी. कश्मीर घाटी के आम लोगों ने आतंकवाद के खिलाफ खुलकर गुस्सा जताया. कई इलाकों में लोगों ने स्वेच्छा से दुकानों और पेट्रोल पंपों को बंद रखा.

35 सालों में यह पहली बार हुआ कि आतंकवाद के विरोध में खुद घाटी के लोगों ने बंद बुलाया. सत्ता और विपक्ष के नेताओं ने भी एक सुर में हमले की निंदा की. यहाँ तक कि हुर्रियत कॉन्फ्रेंस जैसे अलगाववादी गुटों ने भी इस हमले के खिलाफ आवाज उठाई, जो यह बताता है कि अब कश्मीर के आम मुसलमान आतंकवाद से तंग आ चुके हैं और अमन चाहते हैं.

कश्मीर के मुसलमानों ने आतंक के खिलाफ न सिर्फ आवाज उठाई, बल्कि घायल सैलानियों की मदद के लिए भी आगे आए. उन्होंने घायलों को अस्पताल पहुँचाया. अपने घरों में पनाह दी. 

दुखी परिवारों को सांत्वना दी. सोशल मीडिया पर भी कश्मीरी नौजवानों ने #NotInMyName जैसे हैशटैग चलाकर यह साफ कर दिया कि आतंकवाद उनका रास्ता नहीं है. अब कश्मीरियों के दिलों में इंसानियत का जज़्बा और मजबूत हो गया है. आतंक के लिए नफरत भी बढ़ रही है.

शिवसेना के नेता संजय निरुपम ने भी कश्मीर के मुसलमानों की हिम्मत की तारीफ़ करते हुए कहा कि इस बार घाटी के मुसलमानों ने पाकिस्तान और आतंक के खिलाफ डटकर विरोध किया है, जो पूरे देश के लिए उम्मीद की किरण है.

वहीं, 'इंडियन मुस्लिम फॉर पीस' और 'मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन' जैसे मुस्लिम युवाओं के संगठनों ने भी देश के अलग-अलग शहरों — भोपाल, बैतूल, इंदौर, अलीराजपुर, खंडवा, गरियाबंद और कोंडागांव — में शांति मार्च निकाले. इन मार्चों में साफ तौर पर कहा गया कि "आतंक का कोई मजहब नहीं होता" और "इस्लाम में आतंकवाद की कोई जगह नहीं है."

मुस्लिम नेताओं ने भी कहा कि मजहब के नाम पर मासूमों का खून बहाना इस्लाम के खिलाफ है और ऐसे दरिंदों को सख्त सजा मिलनी चाहिए. देश के कई मुस्लिम संगठनों ने राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन देकर आतंकवाद के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की.

साथ ही, उन्होंने यह भी अपील की कि सोशल मीडिया पर फैलने वाली नफरत और अफवाहों से बचा जाए ताकि भाईचारा और शांति बनी रहे. जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने भी हमले की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि आतंकवाद को मजहब से जोड़ना गलत है. उन्होंने आतंकवाद को "कैंसर" करार दिया जिसे खत्म करना हर मुसलमान का फर्ज़ है.

ऑल इंडिया इमाम ऑर्गनाइजेशन के प्रमुख उमर अहमद इलियासी ने घोषणा की कि देशभर की पाँच लाख से ज्यादा मस्जिदों में जुमे की नमाज़ के दौरान आतंकवाद के खिलाफ आवाज बुलंद की जाएगी और पहलगाम हमले के शहीदों के लिए दुआएँ मांगी जाएंगी. 

इलियासी साहब ने साफ कहा कि धर्म के नाम पर मासूमों की हत्या इस्लाम ही नहीं, बल्कि इंसानियत के भी खिलाफ है. सिर्फ भारत ही नहीं, सऊदी अरब, यूएई और ईरान जैसे बड़े मुस्लिम देशों ने भी इस हमले की कड़ी निंदा की.

सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और यूएई के विदेश मंत्रालय ने भारत के साथ एकजुटता दिखाई.. ईरान ने भी भारत सरकार और पीड़ित परिवारों के प्रति संवेदना जताई और साफ किया कि आतंकवाद इंसानियत के खिलाफ है और उसे किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जा सकता.

इस मुश्किल घड़ी में पसमांदा मुस्लिम महाज़ की भूमिका भी बहुत अहम रही. महाज़ ने इस हमले की सख्त निंदा करते हुए कहा कि आतंकवाद का इस्लाम से कोई रिश्ता नहीं है और इस तरह के कृत्य मुस्लिम समाज की छवि को भी नुकसान पहुँचाते हैं. 

महाज़ ने सरकार से मांग की कि आतंकवादियों और उनके मददगारों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए, ताकि देश में अमन बना रहे। पसमांदा मुस्लिम महाज़ ने हमेशा देश की एकता, अखंडता और अमन को सबसे ऊपर रखा है.

चाहे इज़राइल-फिलिस्तीन विवाद हो या देश के भीतर आतंकी घटनाएं, महाज़ ने हमेशा इंसानी जान की अहमियत को सबसे पहले रखा है. जब सरकार ने PFI जैसे संगठनों के खिलाफ कार्रवाई की थी, तब भी महाज़ ने उसका समर्थन किया था..

महाज़ के नेताओं ने साफ कहा कि पसमांदा मुसलमान संविधान, क़ानून और देश की एकता के साथ मजबूती से खड़े हैं. उन्होंने यह भी कहा कि मुस्लिम समाज के अंदर जो अशराफ और पसमांदा का फर्क है, उसमें अक्सर अशराफ नेतृत्व भावनाओं के नाम पर सियासत करता है, जबकि पसमांदा तबका शिक्षा, रोजगार और सामाजिक न्याय जैसे असली मुद्दों पर ध्यान देता है.

महाज ने अपील की कि मुस्लिम समाज को भावनात्मक राजनीति छोड़कर असली समस्याओं पर फोकस करना चाहिए और देश की सुरक्षा को सबसे पहली प्राथमिकता देनी चाहिए.

याद रहे, जब 2008 में मुंबई हमलों ने पूरे देश को हिला दिया था, तब दारुल उलूम देवबंद ने आतंकवाद के खिलाफ एक बड़ा सम्मेलन बुलाया था, जिसमें हजारों उलेमा ने  फतवा दिया था:

"बिला वजह किसी की जान लेना इस्लाम में सबसे बड़ा गुनाह है. आतंकवादियों का कोई मजहब नहीं होता." 2012 में भी दिल्ली में जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने एक विशाल सम्मेलन कर के कहा था: 

"आतंकवाद के नाम पर मजहब को जोड़ना एक साजिश है. भारतीय मुसलमान देशभक्त हैं और आतंकवाद के खिलाफ सरकार का पूरा समर्थन करते हैं." आज का भारतीय मुस्लिम नौजवान भी खुलकर आतंकवाद के खिलाफ खड़ा हो रहा है. सोशल मीडिया पर #IndianMuslimsAgainstTerrorism जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं.

हाल ही में पहलगाम में चार आतंकवादियों ने धर्म पूछकर निर्दोष लोगों पर हमला किया. उनका असली मकसद कश्मीर पर कब्जा करना नहीं था, बल्कि हमारे बीच नफरत और डर का बीज बोना था.

वे चाहते थे कि हिंदू और मुसलमानों के बीच दीवारें खड़ी हों, लेकिन भारत की एकता उनकी सबसे बड़ी हार बनेगी. इस कठिन समय में, हमें सरकार और सुरक्षाबलों पर पूरा भरोसा रखना चाहिए और किसी भी तरह की सांप्रदायिक भावनाओं को बढ़ावा नहीं देना चाहिए.

हमें समझना होगा कि अगर हम नफरत या शक में पड़ते हैं, तो हम अनजाने में आतंकियों के मकसद को पूरा कर रहे होते हैं. इसलिए अफवाहों और नफरत से दूर रहकर हमें भाईचारे और मोहब्बत को मजबूत करना चाहिए. भारत की असली ताकत उसकी विविधता और एकता है, और यही आतंकवादियों के लिए सबसे बड़ा जवाब है.

(लेखक पसमांदा मामलों के जानकार हैं और यह इनके अपने विचार हैं)