प्रो. अख़्तरुल वासे
आज़ादी की लड़ाई में जहां एक तरफ कांग्रेस के साथ ख़ुदाई-ख़िदमतगारों (ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान का संगठन) ने अहम भूमिका निभाई, वहीं दूसरी तरफ़ मजलिस अहरार, नेशनल कांफ्रेंस, मौलाना मुहम्मद अली जौहर, हकीम अजमल ख़ान, डॉ. मुख़्तार अहमद अंसारी ने असाधारण भूमिका निभाई.
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को 1923में दिल्ली में कांग्रेस के सबसे कम उम्र के अध्यक्ष और फिर कांग्रेस के सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष रहने का सम्मान मिला. जब आज़ादी मिल गई तो अंग्रज़ों ने इस मुल्क को जहां छोड़ा था वहां से इसको आगे बढ़ाने और हिंदुस्तानियों को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में सरदार पटेल, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, डॉ अंबेडकर, राज गोपालाचार्य, बाबू राजेंद्र प्रसाद और रफ़ी अहमद क़िदवई ने एक ऐसी योजना तैयार की जो भारत को बहुत आगे ले गई.
हालांकि अचानक महात्मा गांधी की शहादत, 1948, 1965, 1971और 1999में पाकिस्तान के साथ भारत के युद्ध और चीन की धोखेबाज़ नीति के तहत 1961में भारत के साथ युद्ध ने हमारे विकास के बढ़ते क़दमों को रोकने की कोशिश की, लेकिन हमारे नेतृत्व को सलाम, और उनसे भी ज़्यादा उन भारतीयों की महानता को और अधिक सलाम, जिन्होंने देश के निर्माण और विकास के सपने को हर नाज़ुक दौर से गुज़रने के बावजूद कभी भी बिखरने नहीं दिया.
सबसे पहली बात तो यह हुई कि अगर कुछ आवाज़ें उठी भी होंगी कि भारत को पाकिस्तान जैसा धार्मिक राज्य बनाया जाए, लेकिन एक बार फिर सलाम महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, बाबू राजेंद्र प्रसाद, सी. राज गोपालाचार्य और डॉ. अम्बेडकर को, जिन्होंने इन आवाज़ों पर कान नहीं धरे और न ही भारत को एक धार्मिक राज्य बनने दिया बल्कि इसके विपरीत भारत को एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के रूप में विकसित किया.
दूसरी ओर, इस स्वतंत्रता के परिणामस्वरूप, भारतीय मुसलमानों को भी एक नया और सुखद अनुभव प्राप्त हुआ. अब तक वे इस देश में या तो शासक या शासित थे, लेकिन अब नए और स्वतंत्र भारत में वे न तो शासक थे और न ही शासित, बल्कि सत्ता में समान भागीदार थे.
विभाजन के बाद उन्होंने जो धैर्यपूर्ण वातावरण पाया, उसमें उन्होंने बड़े सब्र और विनम्रता के साथ नई स्थिति के अनुकूल होने का भरसक प्रयास किया. मुसलमानों के नेता अपने देश में राष्ट्रविहीनता की भावना से बाहर अपने सह-धर्मियों की हिम्मत और साहस बंधाने में लगे हुए थे, उन्हें प्रोत्साहित किया और सांप्रदायिक दंगों के मौक़ों पर फायर ब्रिगेड के रूप में भी काम किया.
आज़ाद हिंदुस्तान में तीन मुस्लिम राष्ट्रपति, तीन उप राष्ट्रपति, एक कैबिनेट सचिव, एक गृह सचिव, एक विदेश सचिव, एक निदेशक ख़ुफ़िया ब्यूरो, एक वायु सेना प्रमुख, सुप्रीम कोर्ट के चार मुख्य न्यायाधीश, दो मुख्य चुनाव आयुक्त. कश्मीर में तो सभी लेकिन बिहार, महाराष्ट्र, राजस्थान, असम, मणिपुर, पांडिचेरी और केरल में एक-एक मुस्लिम मुख्यमंत्री रहे हैं.
इसके अलावा न जाने कितने गवर्नर, केंद्र और राज्यों में मंत्री रहे. उच्चतम न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश एक मुस्लिम जस्टिस फातिमा बीवी बनीं, जबकि भारतीय संसद के उच्च सदन की सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाली उपसभापति डॉ. नजमा हेपतुल्ला थीं.
अंटार्कटिका (दक्षिणी ध्रुव) के लिए भारत के पहले अभियान दल का नेतृत्व डॉ. एस. जेड. क़ासिम ने किया था, जिन्होंने वहां नए युग की गंगोत्री का निर्माण किया था और यह भी एक अच्छा संयोग है कि उनके डिप्टी लीडर भी स्वर्गीय डॉ. सिद्दीक़ी थे. इसी तरह डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को हमेशा मिसाइल मैन के रूप में याद किया जाएगा.
इसी तरह देश की सुरक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वालों में ब्रिगेडियर उस्मान, हवलदार समित और कैप्टन सैफ़ी जैसे अनगिनत शहीदों को भुलाया नहीं जा सकता. नए युग के महर्षि व्यास बन कर जिस तरह डॉ. राही मासूम रज़ा ने महाभारत की रचना टेलीविज़न धारावाहिक के लिए की उसे कौन भुला सकता है.
इसी तरह, भारतीय फिल्म उद्योग हो या खेल की दुनिया, हर क्षेत्र में देश को शोहरत और प्रसिद्धि दिलाने वाले मुसलमानों के नाम और कार्य किसी से छिपे नहीं हैं. भारत में विप्रो वाले अज़ीम प्रेमजी हों या सिपला के ख़्वाजा हमीद साहब के परिवार के सदस्य, इसी तरह हमदर्द के हकीम अब्दुल हमीद हों या हिमालय के मनाल परिवार, आज कोई भी भारतीय उन्हें नहीं भूल सकता.
अंत में यह कहते चलें कि आज जब हम आज़ादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर पूरे देश में घर-घर तिरंगा फहराने का अभियान बड़े गर्व के साथ चला रहे हैं, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस तिरंगे को एक मुस्लिम महिला बेगम सुरैया तैय्यबजी ने यह रूप दिया था जिसे हमारे नेताओं ने सहर्ष स्वीकार किया था.
आइए आज संकल्प लें कि हम इस देश में देशद्रोह और दंगे, सांप्रदायिक तनाव और किसी भी तरह के सामाजिक कलह को पनपने नहीं देंगे और अपने देश की महानता और राष्ट्रीय एकता के लिए हम सब भारत की महानता को बढ़ाने के लिए एकजुट होकर काम करेंगे. आज़ादी का अमृत महोत्सव की हार्दिक बधाई.
(लेखक जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रोफ़ेसर एमेरिटस (इस्लामिक स्टडीज़) हैं.