न्याय पत्र और अल्पसंख्यकों के वोट

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 10-04-2024
Nyaya Patra and votes of minorities
Nyaya Patra and votes of minorities

 

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पार्टियों के घोशणापत्र पढ़कर कोई वोट नहीं डालता. कुछ लोग तो यह भी मानते हैं कि चुनाव नैरेटिव से, किस्से कहानियों से और आधे सच व आधे झूठ से लड़े जाते हैं, घोशणापत्रों से नहीं. लेकिन चुनाव घोषणा पत्र अभी भी जारी होते हैं और पूरे जश्न के साथ जारी होते हैं, जो यह बताता है कि घोषणा पत्रों की उपयोगिता अभी भी खत्म नहीं हुई है.

यह ठीक है कि आज के दौर में चुनाव नैरेटिव से जीते जाते हैं, लेकिन चुनाव घोषणा पत्र को आम तौर पर उस नैरेटिव की नींव बनाने की कोशिश की जाती है. नैरेटिव तो माहौल में होता है, लेकिन घोषणा पत्र के दस्तावेज के रूप में एक प्रमाण की तरह.
 
पिछले कुछ समय में एक यह चलन जरूर शुरू हुआ है कि घोषणा पत्र को कोई और नाम दे दिया जाता है. जैसे भारतीय जनता पार्टी अपने घोषणा पत्र को संकल्प पत्र कहती है. इसी तरह से इस बार कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र को नाम दिया है- न्याय पत्र.
 
इस न्याय शब्द में ही कांग्रेस के पूरे घोषणा पत्र का सार छुपा हुआ है. इसमें वह दलितों, जनजातियों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों सभी से न्याय का वादा करती दिखाई देती है. यहां न्याय का अर्थ है सामाजिक न्याय और पार्टी ने कहा है कि वह सत्ता में आते ही पूरे देष में जाति जनगणना कराई गई.
 
लगभग वैसे ही जैसे कि जाति जनगणना पिछले दिनों बिहार में कराई गई थी हालांकि उसे जाति सर्वे का नाम दिया गया था.कांग्रेस का यह न्याय पत्र सामाजिक न्याय, जाति जनगणना और अल्पसंख्यकों की बात जरूर करता है लेकिन उसमें कहीं भी पसमांदा शब्द का जिक्र नहीं है. यह जरूर है कि अगर बिहार की तर्ज पर जाति जनगणना होती है तो उसमें सभी धर्मों के पिछड़ों और दलितों की गणना होनी ही चाहिए.
 
न्याय पत्र में यह भी कहा है कि आरक्षण पर जो 50 फीसदी की सीमा लगी हुई है पार्टी ने अगर सरकार बनाई तो वह उसे हटाएगी. हालांकि इसके आगे का कोई स्पष्टीकरण नहीं है कि अगर यह हुआ तो आरक्षण की यह सुविधा पसमांदा तक पहुंचेगी भी या नहीं.
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इसके साथ ही कांग्रेस ने पिछले दिनों उत्तराखंड में जो हुआ और जिसकी तरफ कईं और राज्य भी देख रहे हैं उस पर भी अपने राजनीति जगजाहिर कर दी है. न्याय पत्र में कहा गया है कि अल्पसंख्यकों को न सिर्फ अपने पर्सनल लाॅ को मानने की छूट होगी बल्कि उन्हें समुदाय के मामले में हर तरह की आजादी रहेगी.
 
लेकिन इस घोषणा पत्र में एक सबसे महत्वपूर्ण बात है जिस पर ज्यादा चर्चा नहीं हुई. पार्टी ने कहा है कि वह एक डायवर्सिटी कमीशन बनाएगी. जिससे कि समाज में जो बहुलता है, विभिन्न समुदायों की जो अपनी पहचान है उसे बचाया जा सके.
 
ये सब ऐसी बातें हैं जिसके लिए पिछले कुछ समय से यह कहा जा रहा है कि अब इन चीजों का समय गुजर चुका है. इस लिहाज से कांग्रेस ने एक बड़ा दांव खेला है. वह बहुत से पुराने मुद्दों को एक बार फिर मैदान में ले आई है.
 
सवाल यह भी है कि क्या इसका सचमुच कोई बड़ा असर पड़ेगा ? इससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या अल्पसंख्यक सिर्फ इन्हीं वजहों से कांग्रेस के पक्ष में खड़े होंगे ? या फिर उनके लिए घोषणापत्र में किए गए वादों के अलावा कुछ दूसरे समीकरण ज्यादा महत्वपूर्ण होंगे. घोशणापत्र भले ही अभी आप्रासांगिक न हुए हों लेकिन सिर्फ घोषणा पत्र की वजह से ही लोग किसी पार्टी को वोट नहीं देते.
 
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)