डॉ सुजीत कुमार दत्ता
वैश्विक राजनीति के आकाश में व्यवस्थित नाव अभी भी उछल-कूद रही है.एक तरफ यूक्रेन में युद्ध है, तो दूसरी तरफ चीन का उदय, आर्थिक संकट और संरचनात्मक परिवर्तन का खतरा है.इस बीच, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की के बीच हुई गरमागरम बैठक ने विश्व राजनीति में एक नया परिप्रेक्ष्य ला दिया है.
61वें म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन (एमएससी) की यह बैठक न केवल विचार-विमर्श का मंच थी, बल्कि वैश्विक संकटों और बदलावों का जीवंत दर्पण बनकर भी उभरी.सम्मेलन का फोकस यूक्रेन संकट, रूस और पश्चिमी शक्तियों के बीच संबंध तथा उनके बीच सामरिक महत्व पर था.
हमेशा की तरह यूक्रेन को सीधे समर्थन देने के बजाय, राष्ट्रपति ट्रम्प ने नाटो सदस्यों पर रक्षा खर्च बढ़ाने के लिए दबाव डाला.उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि भविष्य में, संयुक्त राज्य अमेरिका केवल नाटो कोष पर ही बड़ी रकम खर्च नहीं करेगा.दूसरी ओर, ज़ेलेंस्की ने संयुक्त राज्य अमेरिका से अधिक प्रत्यक्ष और मजबूत समर्थन की मांग की है, जो ट्रम्प की भू-राजनीतिक स्थिति के विपरीत है.
यह बैठक ऐसे समय में हुई जब संयुक्त राज्य अमेरिका में भू-राजनीतिक परिदृश्य तेजी से बदल रहा.चीन, रूस, यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच चल रहे तनाव और संधि विवादों के बीच यूक्रेन एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक स्थिति में है.
28 फरवरी, 2025 की बैठक में ट्रम्प का राष्ट्रपति जेलेंस्की के साथ असंतोष और नोकझोंक, पूरे वैश्विक संदर्भ की पुनः जांच करने जैसा प्रतीत हुआ.जब राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने कहा, "भले ही ट्रम्प चिल्ला रहे थे, लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ संबंधों को फिर से बनाना अभी भी संभव है," तो कई सवाल उठे कि इस गरमागरम बहस का अगला परिणाम क्या हो सकता है?
यूक्रेन युद्ध की स्थिति ने राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की और ट्रम्प के बीच कटु संबंधों की पृष्ठभूमि तैयार की है.2019 में ट्रम्प पर यूक्रेन के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का आरोप लगने के बाद से दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ रहा है.
यूक्रेनी राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की को उम्मीद है कि इस बैठक से स्थिति में सुधार हो सकेगा.यद्यपि राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की बिना कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस किए बैठक से चले गए, लेकिन उनकी टिप्पणियों से पता चलता है कि वह अभी भी संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ संबंधों को बहाल करने की संभावना को ध्यान में रख रहे हैं.
इस बीच, अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस भी चर्चा में शामिल हो गए.उन्होंने टिप्पणी की, 'आप एक बार भी आभार व्यक्त नहीं करते.' इस टिप्पणी के बाद ट्रम्प ने भी वेंस के समर्थन में सिर हिलाया.इस तरह की टिप्पणियों और बैठक की आगामी गतिविधियों ने यूक्रेन संकट को एक नई तरह की जटिलता में बदल दिया है.
क्या ट्रम्प और ज़ेलेंस्की के बीच हुई गरमागरम बहस इस रिश्ते में एक नए युग की शुरुआत है? या फिर यह यूक्रेन के लिए एक और नये संकट की प्रस्तावना है? यह प्रश्न विश्व भर में चर्चा का केन्द्र बन गया है.
संयुक्त राज्य अमेरिका विशेष रूप से यूक्रेन के खनिज संसाधनों में रुचि रखता है.यह देश चीन पर अपनी निर्भरता कम करना चाहता है.चीन विश्व के 75 प्रतिशत दुर्लभ खनिज पर नियंत्रण रखता है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए एक बड़ी चुनौती है.चीन ने पहले ही कुछ खनिजों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है.इसका अमेरिकी अर्थव्यवस्था और सैन्य शक्ति पर प्रभाव पड़ा है.यही कारण है कि संयुक्त राज्य अमेरिका यूक्रेन के खनिज संसाधनों में विशेष रुचि रखता है.
क्या यह हित यूक्रेन की संप्रभुता के लिए खतरा पैदा करेगा? अब सवाल यह उठता है कि क्या ट्रंप के साथ बैठक से पैदा हुई गर्मागर्म स्थिति यूक्रेन के लिए और अधिक खतरनाक हो जाएगी? या फिर इससे संयुक्त राज्य अमेरिका की भूराजनीतिक रणनीति में कोई बदलाव आएगा? इस पर सटीक परिप्रेक्ष्य देना कठिन है, लेकिन यह निश्चित है.इस बैठक ने यूक्रेन के लिए एक नई तरह की कूटनीतिक चुनौती पैदा कर दी है.
राष्ट्रपति ट्रम्प, जो स्वयं को एक नाजुक स्थिति में पा रहे हैं, लेकिन अपनी कूटनीतिक नीतियों पर अडिग हैं. प्रतिस्पर्धा के प्रति कड़ा रुख अपनाना चाहते हैं.यूक्रेन और उसकी सैन्य नीतियों के खिलाफ ट्रम्प के कुछ बयानों से अशांति पैदा हुई है, लेकिन अब उनकी समीक्षा की जरूरत है.
यदि ट्रम्प अपनी पिछली नीतियों का पुनर्मूल्यांकन करते हैं, तो क्या इससे यूक्रेन की सैन्य और राजनीतिक स्थिति और अधिक गंभीर हो जाएगी? इस बीच, ज़ेलेंस्की यूक्रेन के लोगों के लिए लड़ाई जारी रखे हुए हैं, लेकिन अब उन्हें इस संकट में अपनी ताकत और रणनीतिक क्षमता का परीक्षण करना होगा.यदि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में उनका समर्थन कम हो गया तो भविष्य में लोगों का उनके नेतृत्व पर भरोसा कम हो सकता है.
अब तक संयुक्त राज्य अमेरिका का भू-राजनीतिक परिप्रेक्ष्य काफी मजबूत रहा है, लेकिन विश्व राजनीति की वर्तमान स्थिति ने एक नई चुनौती पैदा कर दी है.चीन और रूस के बीच संबंधों की गहराई अब एक नए स्तर पर पहुंच गई है.एक ओर अमेरिका यूरोपीय संघ के साथ संबंध बनाए रखने की कोशिश कर रहा है, वहीं दूसरी ओर रूस और चीन के बीच गहरे संबंध विकसित हो गए हैं.
इस संबंध के परिणामस्वरूप विश्व राजनीति में अमेरिका के एकमात्र प्रभुत्व का युग समाप्त हो सकता है.यदि संयुक्त राज्य अमेरिका यूरोप को दरकिनार करके रूस के साथ संबंध विकसित करता है, तो यह विश्व राजनीति के लिए विनाशकारी हो सकता है.
संयुक्त राज्य अमेरिका ने 35 वर्षों में विश्व भर में जो प्रभुत्व स्थापित किया है, वह नए गठबंधनों के उदय से संभावित रूप से कमजोर हो सकता है.रूस और चीन के बीच बढ़ते संबंध भविष्य में अमेरिका के लिए बड़ी चुनौती बन सकते हैं, जिससे वैश्विक शासन में नये बदलाव आ सकते हैं.
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में निर्मित वैश्विक सुरक्षा प्रणाली अब अनेक चुनौतियों का सामना कर रही है.ट्रम्प के हालिया रुख से संकेत मिलता है कि संयुक्त राज्य अमेरिका अब वैश्विक सुरक्षा का बोझ उठाने के लिए तैयार नहीं.जैसा कि वह पहले करता था.इस परिवर्तन का मुख्य कारण संयुक्त राज्य अमेरिका की घरेलू राजनीति है.
अमेरिकी लोग अब विदेशी युद्धों पर अतिरिक्त धन खर्च नहीं करना चाहते.ट्रम्प की लोकप्रियता का एक प्रमुख कारण उनकी 'अमेरिका फर्स्ट' नीति है, जो विदेशी हितों की अपेक्षा घरेलू हितों को प्राथमिकता देती है.परिणामस्वरूप, यूक्रेन संकट सहित नाटो और यूरोप में सुरक्षा स्थिति अधिक अनिश्चित होती जा रही है.
यदि ट्रम्प की शर्तों के अनुसार नाटो को रक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद का 5 प्रतिशत खर्च करने के लिए मजबूर किया जाता है, तो इससे यूरोपीय अर्थव्यवस्था पर भारी दबाव पड़ेगा.फ्रांस और जर्मनी पहले ही इस प्रस्ताव का विरोध कर चुके हैं.
यूक्रेन संकट का समाधान या गहरा होना पूरी तरह से कूटनीतिक रणनीतियों और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के निर्णयों पर निर्भर करता है.बहरहाल, यह कहा जा सकता है कि इस बैठक में जिस तरह की गरमागरम स्थिति पैदा हुई, वह विश्व राजनीति में एक नया आयाम लेकर आएगी.
अब यूक्रेन को न केवल सैन्य सहायता की आवश्यकता है, बल्कि अपने भू-राजनीतिक अस्तित्व को सुरक्षित रखने के लिए दीर्घकालिक रणनीति और वैश्विक समर्थन की भी आवश्यकता है.इन घटनाओं के आलोक में, यूक्रेन के नेतृत्व और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच संबंधों के नए आयामों को तलाशने का अवसर बढ़ रहा है.
हालाँकि, केवल समय ही बताएगा कि इसका वास्तविक अर्थ और परिणाम क्या होंगे.आज विश्व में जिस प्रकार के रणनीतिक परिवर्तन हो रहे हैं, उसमें अर्थशास्त्र, सैन्य शक्ति और भूराजनीति एक-दूसरे को प्रतिबिंबित कर रहे हैं.विशेष रूप से, विश्व में शक्ति का नया संतुलन दुर्लभ खनिज संसाधनों के स्वामित्व से निर्धारित होगा.
चीन और रूस ने मिलकर एक शक्तिशाली गठबंधन बनाया है जो अमेरिकी प्रभुत्व का सामना कर सकता है.परिणामस्वरूप, संयुक्त राज्य अमेरिका की सैन्य शक्ति और आर्थिक शक्ति पर प्रश्नचिह्न लग सकता है, जिससे यूक्रेन संकट के बाद महत्वपूर्ण परिवर्तन हो सकता है.
ट्रम्प-ज़ेलेंस्की बैठक ने स्पष्ट संदेश दिया कि यूक्रेन संकट का समाधान अभी भी दूर है.यह और अधिक जटिल हो सकता है.ट्रम्प के अधीन, संयुक्त राज्य अमेरिका यूरोप के प्रति अपनी प्रतिबद्धता कम कर रहा है, जिससे यूक्रेन और नाटो के लिए बड़ी अनिश्चितता पैदा हो रही है.
इस बीच, यूरोप अपनी रणनीति तलाश रहा है, चीन का उदय एक नया शक्ति संतुलन बना रहा है, और रूस अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है.यह स्थिति विश्व राजनीति में एक नए चरण का सूत्रपात कर रही है, जहां सत्ता का केन्द्र धीरे-धीरे स्थानांतरित हो रहा है.यूक्रेन में युद्ध महज एक सैन्य संघर्ष नहीं, बल्कि यह नई विश्व व्यवस्था की दिशा निर्धारित करने में एक महत्वपूर्ण तत्व बनता जा रहा है.
(लेखक पेशे से प्रोफेसर और अंतरराष्ट्रीय मामलों के जाकार हैं)