वक़्फ़ संपत्तियों पर नया विधेयक: क्या मुसलमानों की चिंताएं जायज हैं?

Story by  क़ुरबान अली | Published by  [email protected] | Date 13-09-2024
New Bill on Waqf Properties: Are the Concerns of Muslims Justified? AI photo
New Bill on Waqf Properties: Are the Concerns of Muslims Justified? AI photo

 

qurbanक़ुरबान अली 

वक़्फ़ संशोधन विधेयक, 2024,  केंद्र सरकार द्वारा 8 अगस्त, 2024 को लोकसभा में पेश किया गया था. यह विधेयक वक़्फ़ अधिनियम, 1995 में संशोधन कर वक़्फ़ संपत्तियों को सरकार द्वारा नियंत्रित करने का अधिकार देने का प्रस्ताव करता है, जिसके तहत वक़्फ़ प्रबंधन के लिए हर राज्य सरकार को एक वक़्फ़ बोर्ड का गठन करना आवश्यक होगा.

नए संशोधन विधेयक के ज़रिये केंद्र सरकार 1995 के वक़्फ़ अधिनियम का नाम बदलकर इसे 'संयुक्त वक़्फ़ प्रबंधन, सशक्तिकरण, दक्षता और विकास अधिनियम, 1995' करना चाहती है.

जिस दिन यह वक़्फ़ संशोधन विधेयक, 2024, केंद्र सरकार द्वारा लोक सभा में पेश किया गया, उसी दिन इस प्रस्तावित विधेयक को लेकर इतना विरोध, शोर शराबा और हंगामा हुआ कि इसे मजबूरन संसद की एक संयुक्त समिति को भेजना पड़ा. 

आइये देखते हैं कि इस विधेयक में क्या है और क्यूँ इसका विरोध हो रहा है ? 

सरकार द्वारा प्रस्तावित विधेयक में कहा गया है कि: 

वक़्फ़ का गठन: इस अधिनियम के तहत वक़्फ़ बोर्डों का गठन किया जायेगा.

(i) घोषणा, (ii) दीर्घकालिक उपयोग के आधार पर मान्यता (उपयोगकर्ता द्वारा वक़्फ़), या (iii) उत्तराधिकार की रेखा समाप्त होने पर बंदोबस्त (वक़्फ़-अलल-औलाद).  विधेयक में कहा गया है कि केवल कम से कम पाँच वर्षों से इस्लाम का पालन करने वाला व्यक्ति ही वक़्फ़ संपत्ति घोषित कर सकता है.

यह अधिनियम स्पष्ट करता है कि व्यक्ति को घोषित की जा रही संपत्ति का मालिक होना चाहिए. यह उपयोगकर्ता द्वारा वक़्फ़ को हटाता है और यह भी जोड़ता है कि वक़्फ़-अलल-औलाद के परिणामस्वरूप महिला उत्तराधिकारियों सहित दानकर्ता के उत्तराधिकारी को उत्तराधिकार के अधिकारों से वंचित नहीं किया जाना चाहिए.

सरकारी संपत्ति को वक़्फ़  नहीं माना जाएगा


विधेयक में कहा गया है कि वक़्फ़ के रूप में पहचानी गई कोई भी सरकारी संपत्ति वक़्फ़ नहीं मानी जाएगी.अनिश्चितता की स्थिति में उस क्षेत्र/ज़िले  का कलेक्टर संपत्ति का स्वामित्व निर्धारित करेगा और राज्य सरकार को रिपोर्ट सौंपेगा. यदि उसे सरकारी संपत्ति माना जाता है, तो वह राजस्व रिकॉर्ड को अपडेट करेगा.

यह निर्धारित करने की शक्ति कि संपत्ति वक़्फ़ है या नहीं

अधिनियम वक़्फ़ बोर्ड को यह जांच करने और निर्धारित करने का अधिकार देता है कि संपत्ति वक़्फ़ है या नहीं. विधेयक इस प्रावधान को हटाता है. 

वक़्फ़ का सर्वेक्षण

 मौजूदा अधिनियम में वक़्फ़ का सर्वेक्षण करने के लिए सर्वेक्षण आयुक्त और अतिरिक्त आयुक्तों की नियुक्ति का प्रावधान है. इसके बजाय प्रस्तावित विधेयक कलेक्टरों को सर्वेक्षण करने का अधिकार देता है. लंबित सर्वेक्षण राज्य राजस्व कानूनों के अनुसार किए जाएंगे.

केंद्रीय वक़्फ़ परिषद

 मौजूदा  अधिनियम में केंद्रीय वक़्फ़ परिषद का गठन किये जाने का प्रावधान है जो केंद्र और राज्य सरकारों तथा वक़्फ़ बोर्डों को सलाह देती है.वक़्फ़ के प्रभारी केंद्रीय मंत्री परिषद के पदेन अध्यक्ष होते हैं.

मौजूदा अधिनियम के अनुसार परिषद के सभी सदस्य मुस्लिम होने चाहिए और उनमें से कम से कम दो महिलाएँ होनी चाहिए. इसके बजाय बिल में प्रावधान किया गया है कि दो सदस्य गैर-मुस्लिम होने चाहिए. अधिनियम के अनुसार परिषद में नियुक्त सांसदों, पूर्व न्यायाधीशों और प्रतिष्ठित व्यक्तियों का मुस्लिम होना ज़रूरी नहीं है. 

निम्नलिखित सदस्यों का मुस्लिम होना ज़रूरी है: (i) मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधि, (ii) इस्लामी कानून के विद्वान और (iii) वक़्फ़  बोर्डों के अध्यक्ष. मुस्लिम सदस्यों में से दो महिलाएँ होनी चाहिए.

वक़्फ़ बोर्ड

अधिनियम में मुस्लिम निर्वाचन मंडल से दो सदस्यों के चुनाव का प्रावधान है: (i) सांसद, (ii) विधायक और विधान पार्षद, तथा (iii) राज्य से बार काउंसिल के सदस्य. इसके बजाय विधेयक राज्य सरकार को बोर्ड में उपरोक्त प्रत्येक पृष्ठभूमि से एक व्यक्ति को नामित करने का अधिकार देता है.

उन्हें मुस्लिम होने की आवश्यकता नहीं है. इसमें कहा गया है कि बोर्ड में निम्नलिखित लोग होने चाहिए: (i) दो ग़ैर-मुस्लिम सदस्य। और (ii) शिया, सुन्नी और पिछड़े मुस्लिम वर्गों से कम से कम एक सदस्य.

इसमें बोहरा और आगाखानी समुदायों से भी एक-एक सदस्य होना चाहिए. यदि उनके पास राज्य में वक़्फ़ है. अधिनियम में प्रावधान है कि कम से कम दो सदस्य महिलाएँ होनी चाहिए. विधेयक में कहा गया है कि दो मुस्लिम सदस्य महिलाएँ होनी चाहिए.

न्यायाधिकरणों की संरचना

 अधिनियम के अनुसार राज्यों को वक़्फ़ से संबंधित विवादों को निपटाने के लिए न्यायाधिकरणों का गठन करना होगा. इन न्यायाधिकरणों का अध्यक्ष प्रथम श्रेणी, जिला, सत्र या सिविल न्यायाधीश के समकक्ष रैंक का न्यायाधीश होना चाहिए.

अन्य सदस्यों में शामिल हैं: (i) अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट के बराबर का एक राज्य अधिकारी, और (ii) मुस्लिम कानून और न्याय शास्त्र का जानकार व्यक्ति. बिल बाद वाले को न्यायाधिकरण से हटा देता है. इसके बजाय यह निम्नलिखित को सदस्यों के रूप में प्रदान करता है: (i) अध्यक्ष के रूप में एक वर्तमान या पूर्व जिला न्यायालय का न्यायाधीश, और (ii) राज्य सरकार के संयुक्त सचिव के रैंक का एक वर्तमान या पूर्व अधिकारी. 

ट्रिब्यूनल के आदेशों पर अपील

अधिनियम के तहत, ट्रिब्यूनल के निर्णय अंतिम होते हैं और न्यायालयों में उसके निर्णयों के खिलाफ अपील निषिद्ध है. बोर्ड या पीड़ित पक्ष के आवेदन पर उच्च न्यायालय अपने विवेक से मामलों पर विचार कर सकता है.

विधेयक ट्रिब्यूनल के निर्णयों को अंतिम मानने वाले प्रावधानों को हटा देता है. ट्रिब्यूनल के आदेशों के खिलाफ 90 दिनों के भीतर उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है.

केंद्र सरकार की शक्तियाँ

 यह बिल केंद्र सरकार को निम्नलिखित के संबंध में नियम बनाने का अधिकार देता है: (i) पंजीकरण, (ii) वक़्फ़ के खातों का प्रकाशन, और (iii) वक़्फ़ बोर्ड की कार्यवाही का प्रकाशन. एक्ट के तहत राज्य सरकार किसी भी समय वक़्फ़ के खातों का ऑडिट करवा सकती है. बिल केंद्र सरकार को सीएजी या किसी नामित अधिकारी से इनका ऑडिट करवाने का अधिकार देता है. 

बोहरा और आग़ाख़ानी के लिए वक़्फ़ बोर्ड

 अधिनियम सुन्नी और शिया संप्रदायों के लिए अलग-अलग वक़्फ़ बोर्ड स्थापित करने की अनुमति देता है, यदि शिया वक़्फ़ राज्य में सभी वक़्फ़ संपत्तियों या वक़्फ़ आय का 15% से अधिक हिस्सा बनते हैं. विधेयक  आग़ाख़ानी और बोहरा संप्रदायों के लिए अलग-अलग वक़्फ़ बोर्ड गठित किये जाने की भी अनुमति देता है.

मुसलमानों का विरोध 

वक़्फ़ संशोधन विधेयक को देश भर में मुसलमान विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. इस विधेयक के खिलाफ ज़ोरदार ढंग से अभियान चला रहे हैं. 

 क्यों मचा है  बवाल ? हिंदू, सिख समेत दूसरे धर्म के कानूनों से ये कितना अलग?

मुसलमानों की एक संस्था ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने इस बिल को लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शन और बैठकें करने का फैसला किया है. बोर्ड के एक सदस्य और सांसद  असादुद्दीन ओवैसी ने सवाल किया है कि, “ये लिमिटेशन हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम, 1997 पर लागू नहीं होता, फिर इसे वक़्फ़ पर क्यों लागू किया जा रहा है?”

मुसलमानों को यह भी आशंका है कि यदि सरकार द्वारा लाया जा रहा वक़्फ़ बिल संसद से पास हो  तो सरकारें मुसलमानों से उनकी मस्जिदें, कब्रिस्तान, दरगाहें और अन्य वक़्फ़ संपत्तियां छीन लेंगी.

मुसलमानों की यह आशंका निर्मूल नहीं है. राजधानी दिल्ली सहित कई राज्यों में केंद्र सरकार और कई राज्य सरकारों ने वक़्फ़ संपत्तियों  को अपने क़ब्ज़े में ले लिया है और वहां सरकारी इमारतें तामीर कर दी गयी हैं. 

ताज़ातरीन उद्धारण लोदी रोड स्थित शमशान और क़ब्रिस्तान के सामने लाल मस्जिद के इर्द गिर्द बन रही गृह मंत्रालय की एक इमारत जो वक़्फ़ की संपत्ति और क़ब्रिस्तान पर बनायी जा रही है. इसके अलावा राजधानी में ही वक़्फ़ की 123 ऐसी सम्पतियाँ हैं जो 'लुटयन ज़ोन' की प्राइम लैंड पर स्थित हैं.

दूसरी ओर यह भी एक सच्चाई है  कि आज़ादी के बाद से अबतक पिछले सत्ततर वर्षों में वक़्फ़ सम्पत्तियों का प्रबन्धन मुसलमानों के ही हाथों में है जो कू-प्रबंधन साबित हुआ है और पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश सहित दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बंगाल तथा कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में मुस्लिम वक़्फ़ प्रबंधकर्ता खुद ही मुसलमान करोड़ों-अरबों की संपत्ति बेच कर खा गए और मस्जिदों व क़ब्रिस्तानों पर 'मल्टी स्टोरी' इमारतें खड़ी कर दी गयीं. 

हालांकि बीजेपी के एक लोक सभा सदस्य निशिकांत दूबे का कहना है कि "वक़्फ़ संशोधन विधेयक संसद की संयुक्त समिति के पास विचाराधीन है.मैं ख़ुद इसका सदस्य हूँ.पूरे बिल को कम से कम 100 बार पढ़ चुका हूँ.

इस बिल की कौन सी धारा में मस्जिद, क़ब्रिस्तान, दरगाह, मदरसा पर सरकार क़ब्ज़ा करने का क़ानून ला रही है? यह बेबुनियाद है.वोट बैंक की राजनीति व मोदी विरोध की अंधी राजनीति ने देश के एक वर्ग विशेष के मन में लगातार नफ़रत पैदा करने की कोशिश की है.

काश वक़्फ़ जिसकी बुनियाद पैगंबर मोहम्मद साहब ने ग़रीबों के लिए रखी,वक़्फ़ की पहली कमेटी ग़ैर मुस्लिम ने बनाई, उनके आदेश पर मुस्लिम समाज गरीब मुसलमानों के हित में सोचकर कमेटी को बताता तो ज़्यादा बेहतर होता."

लेकिन केंद्र सरकार की मंशा और मक़सद को लेकर मुसलमानों के दिल और दिमाग़ में जो आशंकायें हैं वह बेबुनियाद नहीं हैं. अब यह संसद की उस संयुक्त समिति को तय करना है की वह मुसलमानों की आशंकाओं का कितना समाधान कर पाती है. 

तुझे हम वली समझते जो न बादा ख़्वार होता!

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और लंबे समय तक बीबीसी से जुड़े रहे हैं. )