डॉ. प्रितम भि. गेडाम
आज के आधुनिक दुनिया की वास्तविकता है कि दुर्भाग्य से अभिभावकों का व्यवहार ही बच्चों को नकारात्मकता की ओर धकेल रहा है. बच्चों में चिड़चिड़ापन, जिद, अनुचित व्यवहार के साथ शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं लगातार बढ़ रही हैं. जन्म के समय बच्चों का अपर्याप्त विकास, कुपोषण, विकलांगता जैसी समस्याएं भी बढ़ रही हैं.
आधुनिकता के नाम पर हम अपनी अच्छी बातें, संस्कार, विचार भूल गए हैं. बुरी बातों में लगकर जीवन को कठिन बना लिया है. अनेक माता-पिता या घर के बड़ों को यह भी नहीं पता कि उन्हें बच्चों के सामने कैसा व्यवहार करना चाहिए. इस कारण परिवार, समाज, देश और दुनिया में समस्याओं का पहाड़ खड़ा हो रहा है. बच्चे रोते हैं, इसलिए उन्हें मोबाइल फोन की आदत लगा दी जाती है.
बच्चे जिद करते हैं, इसलिए उन्हें जंक फूड खिलाया जाता है. बच्चों के मानसिक-शारीरिक स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह वस्तुएं, खाद्यपदार्थ भी बड़े प्यार से मुहैया करायी जाती हैं . अभिभावक ही कहते हैं, आज की पीढ़ी बहुत बिगड़ गई है, मां-बाप की बात बिल्कुल नहीं सुनते. हम संस्कारहीन, संवेदनहीन, नैतिकता हीन, स्वार्थी समाज के अभिन्न अंग है.
इस साल शिक्षक दिवस के उपलक्ष पर एक स्कूल में सांस्कृतिक कार्यक्रम के तौर पर छोटी बच्चियों के नृत्य का वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ. वह वीडियो देखकर हैरानी हुई. 6-7 साल की लड़कियां फिल्मी गाने पर डांस कर रही थीं.
फिल्मी अभिनेत्री की तरह आधुनिक वेशभूषा धारण कर नन्ही बच्चियां शिक्षा के उस मंदिर में नाच रही थीं और गा रही थी कि "आज की रात मजा हुस्न का, आँखों से लीजिये." शिक्षकों के सम्मानार्थ शिक्षक दिवस मनाया जाता है.
वहां ये छोटी-छोटी लड़कियां नृत्य कला का कौन-सा प्रदर्शन कर रही ? उस स्कूल के शिक्षकों और उन बच्चियों के अभिभावकों के बारे में क्या कहें, जिन्होंने इस तरह के कार्यक्रम का आयोजन किया ? आज की आधुनिक पीढ़ी हमारे देश के महान समाज सुधारक, वैज्ञानिक, महान क्रांतिकारी देशभक्तों के बारे में जानती हो या नहीं, लेकिन उन्हें रील, फैशन, फिल्म इंडस्ट्री के बारे में जानकारी होती है.
यहां तक कि बच्चों के रोल मॉडल भी देश के लिए जान न्योछावर करने वाले वीर सैनिक, संघर्षरत समाज सुधारक नहीं, बल्कि फिल्मी नायक-नायिकाएं हैं. क्योंकि बच्चों को पसंद आने वाली ऐसी मनोरंजक जानकारी उन्हें आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं.
आजकल संयुक्त परिवार अलग होकर छोटे परिवारों में विभक्त होते जा रहे हैं. अधिकांश परिवारों में, माता-पिता के पास अपने बच्चों की देखभाल के लिए समय नहीं है. बच्चे अपना समय कैसे बिताते हैं, उनकी दिनचर्या क्या होती है,
बच्चे कितना पैसा कहाँ खर्च करते है ? अधिकांश अभिभावकों को यह पता नहीं होता. बच्चे जैसा कहते हैं माता-पिता वैसा ही विश्वास करते हैं. बहुत बार बच्चों पर अतिविश्वास और अति लाड-प्यार भविष्य में परिवार, समाज, देश के लिए बहुत महंगा पड़ता है.
आजकल बच्चों में आपराधिक प्रवृत्ति काफी बढ़ गई है. वे छोटी-छोटी बातों पर उग्र हो जाते हैं. नशा करते हैं. हथियार रखते हैं. गिरोह बनाकर घूमते हैं. छोटी-छोटी बात पर लड़ने तैयार हो जाते हैं. गाली गलौज, छींटाकशी और अभद्र भाषा का प्रयोग तो ऐसे करते है कि चाहे कितनी भी महंगी शिक्षा क्यों न दी जाए.
उन्हें उचित मोड़ नहीं मिलता है. अक्सर खबरें पढ़ने-सुनने को मिलती हैं कि नाबालिग गंभीर अपराधों में शामिल हैं. हत्या, बलात्कार, चोरी, डकैती, मादक पदार्थों की तस्करी, जानलेवा हमले करने वाले कई गिरोहों में नाबालिग भी होते हैं.
जिद पूरी न होने पर कुछ लड़कियां और लड़के अपने माता-पिता की जान लेने से भी नहीं डरते. अपनी मनमानी पूरी न होने पर वे हिंसक हो जाते हैं. ये बच्चे अपराधी बनकर पैदा नहीं होते. माता-पिता की गैर जिम्मेदारी और लापरवाही के कारण अपराधी बनकर पूरे समाज के लिए घातक बन जाते हैं.
अधिकतर नवदम्पत्ति महिलाओं को घर पर भोजन बनाना पसंद नहीं. इसलिए हमेशा स्वादिष्ट भोजन के लिए होटल जाना पड़ता है. शरीर को आवश्यक पोषक तत्व नहीं मिल पाते, जिससे सेहत हमेशा खराब रहती है. बच्चों को भी बाहर खाने की आदत लग जाती है.
बच्चों को अपना अच्छा-बुरा पता नहीं होता. अभिभावक भी बच्चों पर अंकुश नहीं लगाते. उलटे उन्हें बिगाड़ देते हैं. अक्सर माता-पिता घर में बड़े-बुजुर्गों के साथ अमानवीय व्यवहार करते हैं. वही माता-पिता अपने बच्चों से आदर्श चरित्र की उम्मीद करते हैं.
हमारे सभ्य समाज में शायद ही देखने-सुनने मिलता है कि शादी से पहले बेटे अपने परिवार से विभक्त हो गए हैं या उन्होंने अपने बड़े बुजुर्गों, अभिभावकों को वृद्धाश्रम में छोड़ दिया है. शादी के बाद घर परिवार से विभक्त होना अब तो आम बात हो गयी है.
जब यह असहाय बुजुर्ग जीवन के अंतिम पड़ाव में कमजोर शरीर के साथ जिंदगी की जद्दोजहद से जूझ रहे होते है, उस वक्त उन्हें अपनों के सहारे की सबसे ज्यादा जरुरत होती है और उसी वक्त अपने उनका साथ छोड़ देते हैं.
आज के आधुनिक परिवेश में जहां सुख-सुविधाएं तो बहुत हैं, लेकिन इस आधुनिकता में मनुष्य ने अपनी खुशी, शांति, समाधान, स्वाभाविकता, भोलापन खो दिया है. मनुष्य इतने निचले स्तर पर चला गया है कि कई बार लोगों के स्वार्थ को देखकर ऐसा लगता है कि इनसे बेहतर तो पशु-पक्षी हैं, जो अपने लाभ के लिये दूसरों की जिंदगी तबाह नहीं करते.
फैशन और आधुनिक जीवनशैली के चक्कर में हम अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं. अपराध, भ्रष्टाचार, पद और सत्ता का दुरुपयोग, प्रदूषण, मिलावट, हर जगह राजनीतिक हस्तक्षेप, अश्लीलता, झूठ, दिखावे, भेदभाव, धोखाधड़ी, नशाखोरी, लालच, असभ्य व्यवहार, ईर्ष्या के इस प्रदूषित वातावरण में मन की शांति प्राप्त करना एक भ्रम है.
कई माता-पिता अपने बच्चों की आवश्यक जरूरतों और उनकी जिद के बीच के अंतर को नहीं समझते. बचपन से ही महंगे शौक, जिद, गर्लफ्रेंड-बॉयफ्रेंड रिलेशनशिप का चलन, तनाव, आधुनिकता, झूठा दिखावा, फिल्में और बच्चों के दिमाग पर सोशल मीडिया के बुरे प्रभाव ने उनमें गलत काम के प्रति आकर्षण बढ़ाकर उनके जीवन में जहर घोल दिया है.
अभिभावकों का लगातार व्यस्त रहना, बच्चों की दिनचर्या पर ध्यान न देना, बच्चों पर नियंत्रण न रखना, बच्चों की गलतियों को हमेशा नजरअंदाज करना, केवल महंगे उपकरण या भौतिक सुविधाएं प्रदान करना, बच्चों को अत्यधिक लाड़-प्यार करना और उनकी हर इच्छा पूरी करना ही माता-पिता अपनी जिम्मेदारी समझते हैं.
क्या बच्चों के सामने अभिभावक आदर्शवादी मार्गदर्शक की भूमिका बखूबी निभा रहे है? बच्चों को सही समय पर संस्कार उचित पालन-पोषण, पोषक वातावरण देना बहुत जरूरी है. एक बार समय बीत जाने पर पछतावे के अलावा कुछ नहीं बचता.
फिर उस गलती का खामियाजा व्यक्ति को जीवन भर भुगतना पड़ता है. माता-पिता को आधुनिक बनना चाहिए, लेकिन केवल सोच के साथ. सोच अगली पीढ़ी तक पहुंचानी चाहिए. यदि अभिभावक जागरूक होकर बच्चों को संस्कारवान बना दें, तो समाज की नब्बे फीसदी समस्याएं दूर हो जाएंगी.
माता-पिता चाहे कितने भी व्यस्त क्यों न हों, चाहे वे गरीब हों या अमीर, यह जिम्मेदारी है कि वे अपने बच्चों के लिए समय निकालें. आज के बच्चे कल देश का उज्ज्वल भविष्य हैं. बच्चों को जितने अच्छे संस्कार मिलेंगे, देश उतना बेहतर और मजबूत होगा. माता-पिता की गलती की सजा बच्चों को न भुगतनी पड़े.
बच्चे माता-पिता के व्यवहार का अनुकरण करते है, इसलिए माता-पिता का व्यवहार बच्चों के सामने हमेशा अनुकरणीय होना चाहिए. बच्चों को उत्कृष्ट व्यवहार और पोषक वातावरण दें. बच्चों को अच्छे और बुरे के बीच अंतर करना सिखाएं. कमजोरों की मदद करें . महिलाओं का सम्मान करना सिखाएं. माता-पिता अपने बच्चों को पैसा कैसे कमाया जाता है, यह सिखाने से पहले ईमानदारी के साथ सुख से जिंदगी कैसे जी जाती है, यह सिखायें.
देश में कल की पीढ़ी का भविष्य आज माता-पिता के हाथ में है. पीढ़ी को संस्कारित और सशक्त बनायें. केवल संस्कारित माता-पिता ही संस्कारशील बच्चों का सृजन कर सकते हैं. उन्हें उज्ज्वल भविष्य बनाने के लिए मजबूत बना सकते हैं.