प्रमोद जोशी
भारतीय सेना की गौरव-गाथा से जुड़ा एक ऐसा दिन है, जिसे दोनों देश ‘विजय दिवस’ के रूप में मनाते हैं. यह 16दिसम्बर को 1971की लड़ाई में पाकिस्तान पर भारत की जीत के कारण मनाया जाता है, जिसके बाद बांग्लादेश का जन्म हुआ.अब शेख हसीना के पराभव के बाद अंदेशा था कि इस साल दोनों देशों का संयुक्त समारोह होगा या नहीं. यह अंदेशा गलत साबित हुआ. 16दिसंबर को यह समारोह कोलकाता में पूर्वी कमान मुख्यालय में मनाया गया, जिसमें बांग्लादेश की सेना के अधिकारी भी शामिल हुए.
इस समारोह को मनाने के बारे में निर्णय गत 9दिसंबर को ढाका में भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री और बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस तथा बांग्लादेशी विदेश मामलों के सलाहकार तौहीद हुसैन और विदेश सचिव मोहम्मद जशीम उद्दीन के बीच उच्च स्तरीय वार्ता के बाद हुआ था.
तूफान के बाद
एक तरफ बांग्लादेश की राजनीति में उफान आने के बाद स्थितियाँ सामान्य होने की दिशा में बढ़ रही हैं, वहीं भारत के साथ रिश्ते नई परिस्थितियों में परिभाषित हो रहे हैं. शेख हसीना के पराभव के बाद से दोनों देशों के रिश्तों में जो तल्ख़ी आई है, उसे अब दूर करने के प्रयास हो रहे हं.
लगता है कि नए दौर के रिश्ते व्यावहारिक परिस्थितियों के कठोर धरातल पर चलेंगे. पड़ोसी होने के नाते व्यावहारिकता की राह पकड़ने में ही समझदारी है. दोनों के रिश्ते जिस ऊँचाई तक जा चुके थे, उनसे अचानक तेज उतार भी आसान नहीं है.
बांग्लादेश में भावी सत्ताधारियों की प्रकृति और मिज़ाज भी बहुत सी बातें तय करेगा. देखना होगा कि आज सत्ता की कमान जिन हाथों में है, उनका भविष्य क्या है. उनके अंतर्विरोध भी धीरे-धीरे खुल रहे हैं. हमें वहाँ जन प्रतिनिधि सरकार बनने का इंतज़ार करना होगा. उसके बाद ही नई सरकार की राजनीति के इर्द-गिर्द काम होगा.
फिलहाल परीक्षा इस बात की है कि अंतरिम सरकार स्वतंत्र और निष्पक्ष, लोकतांत्रिक प्रक्रिया से किस हद तक बाबस्ता है. साथ ही भारत में रह रही, शेख हसीना को समझना होगा कि निर्वासन में उनका घर भारत में ज़रूर है, लेकिन दिल्ली-ढाका संबंधों का भविष्य उनकी राजनीतिक अनिवार्यताओं से परे है. अलबत्ता अवामी लीग को अपनी ताकत को फिर से सँजोना होगा.
अमेरिकी दबाव
ऐसा लगता है कि बांग्लादेश पर अमेरिकी दबाव भी पड़ा है. ह्वाइट हाउस ने कहा है कि राष्ट्रपति जो बाइडेन बांग्लादेश की स्थिति पर बारीकी से नजर रख रहे हैं और धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हम अंतरिम सरकार को जवाबदेह मानेंगे.
ह्वाइट हाउस के राष्ट्रीय सुरक्षा कम्युनिकेशन सलाहकार जॉन किर्बी ने कहा कि शेख हसीना के हटने के बाद बांग्लादेश में सुरक्षा स्थिति कठिन हो गई है. बांग्लादेश का कट्टरपंथी रास्ते पर जाना अमेरिका को भी पसंद नहीं आएगा.
इसके अलावा विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने मंगलवार 10दिसंबर को अपने दैनिक संवाददाता सम्मेलन में कहा, अमेरिका चाहता है कि भारत और बांग्लादेश अपने मतभेदों को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाएं.
विदेश सचिव की यात्रा
इसके ठीक पहले विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने 9दिसंबर को बांग्लादेश की यात्रा करके नए दौर की बातचीत के पहले चरण की शुरुआत कर दी है, पर भारत उन भावनात्मक प्रश्नों की अनदेखी नहीं कर सकेगा, जो विभाजन के बाद से दक्षिण एशिया की राजनीति और समाज को प्रभावित कर रहे हैं.
इस यात्रा के बाद बांग्लादेश के विदेशी मामलों के सलाहकार मोहम्मद तौहीद हुसैन ने कुछ टिप्पणियां की हैं, जिनके अनुसार रिश्ते आपसी हितों पर आधारित होने चाहिए. भारतीय नेतृत्व भी यही बात कह रहा है. दो देशों के रिश्ते होते भी इसी आधार पर बनते हैं, उनमें राजनीतिक कारणों से ही नुक्ताचीनी की जाती है.
ऐसे समय में जब नेपाल, श्रीलंका और मालदीव में सरकारों के बदलाव ने भारत के लिए चुनौतियां खड़ी की हैं, बांग्लादेश का हिंसक बदलाव भारत के लिए बड़ा धक्का है. हमारी डिप्लोमेसी को इस मौके पर अपनी परिपक्वता दिखानी होगी.
सकारात्मक घटनाक्रम
बांग्लादेश के अखबार ‘ढाका ट्रिब्यून’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार बांग्लादेश के विशेषज्ञ दोनों देशों के विदेश सचिवों के बीच हुई वार्ता को सकारात्मक घटनाक्रम के रूप में देख रहे हैं. दूसरी तरफ वे यह भी मानते हैं कि भारत, वहाँ की सरकार, राजनेता और मीडिया, शेख हसीना के पतन को स्वीकार करने को तैयार नहीं लगते.
अखबार ने बांग्लादेश के पूर्व राजनयिकों का हवाला देते हुए लिखा है कि पड़ोसी देशों के बीच मतभेद स्वाभाविक हैं, तथा इन मुद्दों को सुलझाने और कम करने के लिए बातचीत ही एकमात्र रास्ता है.अलबत्ता एक बैठक के आधार पर पूरी स्थिति का आकलन करना जल्दबाजी होगी. आने वाले दिनों में दोनों देशों का व्यवहार और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रियाएँ महत्वपूर्ण होंगी.
एक अन्य पूर्व राजनयिक ने कहा कि दोनों देशों के बीच सहयोग के कई क्षेत्र मौजूद हैं, लेकिन इनमें से कई मुद्दों पर चर्चा अभी रुकी हुई है. रुकी हुई पहल फिर से शुरू होती है, तो यह संबंधों को मजबूत करने के लिए एक ईमानदार प्रयास का संकेत होगा.
सहयोग-कार्यक्रम
बांग्लादेश और भारत के बीच 80से अधिक द्विपक्षीय सहयोग-प्रणालियाँ चल रही हैं, जो जल, संपर्क, सीमा, सुरक्षा, रक्षा और वाणिज्य दूतावास जैसी सेवाओं से जुड़े हैं. ये प्लेटफॉर्म आमतौर पर सालाना 40से 50बैठकों का आयोजन करते हैं, यानी कि हर महीने दो से तीन.
अब स्थिति यह है कि 5अगस्त के बाद से चार महीनों में केवल तीन से चार बैठकें ही हुई हैं. बातचीत के मंच उपलब्ध होने के बावजूद, अगस्त के बाद से बैठकों की आवृत्ति में गिरावट आने का अर्थ है कि स्थिति में बदलाव है. देखना होगा कि इन बैठकों की संख्या बढ़ेगी या नहीं. अलबत्ता बांग्लादेशियों के लिए सामान्य वीज़ा सेवाएं धीरे-धीरे पुनः शुरू हो रही हैं, जो सकारात्मक संकेत है.
लाभकारी संबंध
विदेशमंत्री एस जयशंकर ने शुक्रवार को लोकसभा में कहा कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के साथ हो रहा व्यवहार भारत के लिए चिंता का विषय है और हमें उम्मीद है कि ढाका उनकी सुरक्षा के लिए कार्रवाई करेगा. उम्मीद है कि नई सरकार भारत के साथ पारस्परिक रूप से लाभकारी और स्थिर संबंध स्थापित करेगी.
उन्होंने कहा, जब हम पड़ोस प्रथम नीति की बात करते हैं, तो पाकिस्तान और चीन को छोड़कर लगभग हर पड़ोसी देश के साथ हमारी महत्वपूर्ण विकास परियोजनाएं हैं और बांग्लादेश के मामले में भी यही स्थिति है. वहाँ की विकास परियोजनाओं में भारत की अच्छी भागीदारी है.
विदेश सचिव विक्रम मिस्री की गत 9दिसंबर को बांग्लादेश-यात्रा के बाद विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया कि भारत-बांग्लादेश संबंधों में लोग मुख्य हितधारक हैं. उन्होंने कहा कि बांग्लादेश के साथ भारत का विकास सहयोग और जुड़ाव... बांग्लादेश के लोगों के लाभ के लिए है.
शेख हसीना
भारत वापस आने के बाद विदेश सचिव ने बुधवार को शशि थरूर की अध्यक्षता वाली विदेश मामलों की संसदीय समिति को बताया कि भारत शेख हसीना द्वारा बांग्लादेश की अंतरिम सरकार की आलोचना का समर्थन नहीं करता है और यह बात भारत-बांग्लादेश संबंधों में एक छोटी सी चुभन बनी हुई है.
उनका यह वक्तव्य राजनीतिक-दृष्टि से महत्वपूर्ण है. भारत सरकार ने इसके माध्यम से यह स्पष्ट किया है कि बांग्लादेश के साथ भारत के संबंध बनाने में किसी एक राजनीतिक दल या सरकार तक खुद को सीमित नहीं रखेगा.मिस्री ने कहा कि शेख हसीना अपनी टिप्पणी करने के लिए निजी संचार उपकरणों का इस्तेमाल किया है, और भारत सरकार ने उन्हें ऐसा कोई मंच या सुविधा प्रदान नहीं की है, जिसका इस्तेमाल वे भारतीय धरती से राजनीतिक गतिविधियों के लिए करें.
दूसरे देशों में हस्तक्षेप न करने की भारत की पारंपरिक प्रथा है, पर हसीना की मौजूदगी भारत की संस्कृति और दोस्तों की रक्षा करने की सभ्यतागत भावना के अनुरूप है.
उन्होंने बांग्लादेश को दक्षिण एशिया में व्यापार और कनेक्टिविटी में सबसे बड़ा साझेदार बताया और कहा कि हाल के वर्षों में दोनों पक्षों ने रेल संपर्क, बस संपर्क, अंतर्देशीय जलमार्ग बनाए हैं. हालांकि, उन्होंने समिति को बताया कि दोनों देशों के बीच यात्री रेल सेवाएं अभी निलंबित हैं.
भारत-विरोधी ताकतें
भारत की चिंता उन शक्तियों को लेकर है, जो शेख हसीना के कार्यकाल में दब ज़रूर गई थीं, पर खत्म नहीं हुई थीं. मिस्री ने बताया कि बांग्लादेश के अधिकारियों द्वारा भारत विरोधी गतिविधियों में लिप्त कई दोषी ‘आतंकवादियों’ को रिहा करने का निर्णय गहरी चिंता का विषय बना हुआ है.
बहरहाल मिस्री की यात्रा के दौरान एक महत्वपूर्ण बात यह हुई कि बांग्लादेश सरकार ने अल्पसंख्यकों पर हिंसा की 88घटनाओं की पुष्टि की, जिन, जुड़े 70लोगों को गिरफ्तार किया गया. इस विषय पर उनकी बातचीत के तुरंत बाद, मुख्य सलाहकार के प्रेस सचिव रफ़ीकुल आलम ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करके गिरफ्तारियों की संख्या बताई.
संसदीय समिति के कई सदस्यों ने बांग्लादेश में इस्कॉन के भिक्षुओं की गिरफ्तारी का मुद्दा उठाया, लेकिन सूत्रों के अनुसार, इस मुद्दे पर मिस्री ने कोई जवाब नहीं दिया. दूसरी ओर बांग्लादेश के अधिकारियों ने भारतीय मीडिया में बांग्लादेश की घटनाओं की अतिरंजित कवरेज पर चिंता व्यक्त की.
उन्होंने कहा, हालांकि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने इन रिपोर्टों को अतिरंजित बताने का प्रयास किया है, लेकिन कुछ ‘विश्वसनीय संस्थाओं’ ने कुछ घटनाओं का दस्तावेजीकरण किया है, जिन पर ध्यान देने की ज़रूरत है.
रिश्तों का विकास
पिछले एक दशक में, दोनों देशों के बीच जो रिश्ते बने हैं, वे भारत के शेष पड़ोसी देशों की तुलना में सबसे सफल हैं. बांग्लादेश के जन्म के समय से ही अवामी लीग के साथ बने संबंधों की इसमें भूमिका है. शेख हसीना के विरोधी और भारत विरोधी एक ही हैं. जब हसीना सत्ता में थीं, तब भी ऐसे तत्व भारत-विरोधी भावनाओं को भड़काने की कोशिश करते थे. खासतौर से पाकिस्तान-परस्त ताकतें इसके पीछे थीं, क्योंकि उन्हें लगता है कि बांग्लादेश का जन्म भारत की साज़िश से हुआ था.
इन भारत-विरोधी तत्वों की ओर इशारा करते हुए विदेश सचिव ने मिस्री ने कहा कि ढाका में अल्पसंख्यकों और इंदिरा गांधी सांस्कृतिक केंद्र जैसे राजनयिक संस्थानों पर हमले दुर्भाग्यपूर्ण हैं. बांग्लादेश का नागरिक समाज इन कट्टरपंथियों को हाशिए पर धकेलने में विफल रहा है.
(लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं)