जाति जनगणना में मुसलमान

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 17-02-2025
muslims in caste census
muslims in caste census

 

har- हरजिंदर

पसमांदा के हितों पर अक्सर उठने वाली आवाजों के बीच तेलंगाना राज्य ने इस पूरे विमर्श को एक नया मोड़ दे दिया है. वहां हुई जाति जनगणना में मुस्लिम आबादी की जिस तरह की सचाई सामने आई है वह देर सवेर पूरे भारत की राजनीति को प्रभावित सकती है.

तेलंगाना राज्य में पिछले दिनों जब राज्य की आबादी का जाति सर्वेक्षण यानी जाति जनगणना कराई गई थी तो यह नहीं सोचा गया था कि जाति के अलावा इसका एक अलग अर्थ धार्मिक समूहों को लेकर भी निकलेगा.

अब जब इस सर्वे के आंकड़ें आए हैं तो ऐसी बहुत सारी चीजें स्पष्ट तौर पर समझी जा सकती हैं जिन्हें लेकर पहले सिर्फ अटकलें ही लग सकती थीं.इस सर्वे के आंकड़ों के हिसाब से राज्य में 12.56 फीसदी आबादी मुसलमानों की है.

इनमें से कुल आबादी के 10.08 फीसदी वे मुसलमान हैं जो अन्य पिछड़ी जातियों यानी ओबीसी के हैं. इनमें से ज्यादातर लोग न सिर्फ आर्थिक बल्कि शैक्षणिक स्तर पर भी काफी पिछड़े हैं. तेलंगाना की 2.48 फीसदी मुस्लिम आबादी ही ऐसी है जाति के आधार पर इस तरह के पिछड़ेपन से ऊपर है.

कुलजमा आंकड़ों से एक बात और साफ होती है कि मुसलमानों में पिछड़ापन बाकी आबादी के मुकाबले कहीं ज्यादा है. इसके अलावा हम इसका एक दूसरा अर्थ यह भी निकाल सकते हैं कि भारत के मुसलमान सिर्फ एक धार्मिैक समुदाय नहीं हैं, वे जातीय आधार पर भी बंटे हुए हैं और यह भी उनके पिछड़ेपन का एक कारण है.

तेलंगाना के इस जाति सर्वे के नतीजे जो राजनीतिक चुनौती खड़ी करेंगे वह इस सबसे कहीं बड़ी है.भारत में जातिगत पिछड़ेपन का मुकाबला करने के लिए हमेेशा से ही नौकरियों में आरक्षण का औजार इस्तेमाल किया जाता रहा है. लेकिन अब यह रास्ता काफी कठिन हो गया है.

एक तो वह सार्वजनिक क्षेत्र काफी सिमटता जा रहा है जहां आरक्षण की व्यवस्था की जा सकती थी. कैरियर के लिए होने वाली प्रतियोगिता परीक्षाओं व संस्थानों वगैरह में यह अब भी उपलब्ध है लेकिन इस तरह के सर्वे से जाति के जो नए सच सामने आ रहे हैं वे यह भी कह रहे हैं कि आरक्षण में 50 फीसदी की ऊपरी सीमा बदलाव को एक हद तक ही नीचे जाने देगी.

हालांकि इस सीमा को भी खत्म करने की मांग हो रही है लेकिन फिलहाल तो यह सीमा है.ज्यादा बड़ी दिक्कत यह है कि मुसलमानों को जातिगत आधार पर मिलने वाले आरक्षण को भी सांप्रदायिक ढंग से देखा जाता है और इसे चुनावी मुद्दा बनाकर इस पर खासा हंगामा होता है. 

कर्नाटक के चुनाव में हम देख चुके हैं कि इस पर किस तरह के हंगामा हुआ था. तेलंगाना सरकार के लिए इस तरह के आरक्षण की बात करना आसान नहीं होगा. यह ठीक है कि आरक्षण अपने आप में पूरा इलाज नहीं है लेकिन दिक्कत यह है कि जातिगत आधार पर बने पिछड़ेपन से निपटने का हमारे पास कोई दूसरा नुस्खा भी नहीं है.    

तेलंगाना से इस सर्वे का एक असर यह भी पड़ा है कि कईं दूसरे राज्यों में भी इसी तरह के सर्वे की मांग शुरू हो गई है. पिछले दिनों तमिलनाडु में विभिन्न जाति समूहों ने मिल कर इस तरह का सर्वे कराने की मांग की.

विपक्षी दल पीएमके के नेता ए. रामदास ने भी इसके सुर में सुर मिलाना शुरू कर दिया है. राज्य के मुस्लिम नेता भी जाति जनगणना की बात करने लग गए हैं. तमिलनाडु में मुसलमानों के लिए नौकरियों में 3.5 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था है.

वे उम्मीद कर रहे हैं कि अगर पिछड़ेपन की असलियत सामने आएगी तो इस आरक्षण को बढ़ाने के लिए दबाव बनेगा. 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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