मध्य प्रदेश के मुस्लिम बुद्धिजीवी चाहते हैं अंतरधार्मिक संवाद बढ़े

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 07-07-2024
कई क्षेत्रों के आलिमों ने अंतरधार्मिक संवाद बढ़ाए जानने की जरूरत पर दिया जोर
कई क्षेत्रों के आलिमों ने अंतरधार्मिक संवाद बढ़ाए जानने की जरूरत पर दिया जोर

 

अब्दुल वसीम अंसारी / राजगढ़

देश के अलग-अलग हिस्सों में जाति और धर्म के नाम पर बढ़ रही द्वेष भावना बढ़ रही है. इसके बावजूद देश में सुकून और अमन-चैन की दुआ मांगने वाले लोग आज भी मौजूद हैं, जो चाहते हैं कि देश पहले की तरह संप्रदायिक सद्भावना की मिसाल बन जाए. और देश में बसने वाले सभी लोग एक दूसरे के धर्म, जाति और समाज का आदर व सम्मान करें, एक दूसरे के धर्म के बारे में समझें और अच्छी बातों को ग्रहण करें.

आवाज-द वॉयस हिंदी की टीम ने मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले से कुछ ऐसे ही नामचीन हस्तियों से बात की है, जिनका मानना है कि वाकई देश में अमन और शांति बनाए रखने के लिए अंतर धार्मिक संवाद का होना जरूरी है. अलग-अलग धर्म के लोग एक दूसरे के धर्म को समझें और गौर से सुने और बुराई को त्यागते हुए अच्छाई को ग्रहण करें.

राजगढ़ के पूर्व सांसद सांसद के प्रतिनिधि राशिद जमील का कहना है कि महान भारत देश विभिन्न धर्म, सभ्यताओं, विचारधाराओं और अन्य सभी से मिलकर ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की एक बड़ी बुनियाद रहा. बड़े संकोच के साथ कहना पड़ रहा है, स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपाई ने पृथ्वी सम्मलेन के दौरान जापान में जब ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की व्याख्या की थी, तब महान भारत देश की इन्हीं बातों का उल्लेख किया गया था.

वर्तमान समय का दुर्भाग्य ये है कि अखंड भारत अब विभिन्न धर्मों के बीच में वैमनस्यता पैदा करने के कारण खंड-खंड हो रहा है. इसके लिए बहुत ज्यादा जरूरी है कि अलग-अलग धर्मो का अनुसरण करने वाले लोगों को अपने अपने धर्म के बारे में  आपस में संवाद करना बहुत जरूरी है.

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जीमल कहते हैं कि जैसे कि गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को ज्ञान दिया था कि हम इतने बुद्धिमान और धर्मलवंबी लोगों के विरोध में क्यों युद्ध क्यों कर रहे हैं, जिस पर श्रीकृष्ण ने जवाब दिया कि इन लोगों ने सत्य का साथ नहीं दिया और मौन रहे, इसलिए पाप के भागी हैं.

यही बात कुरआन शरीफ में भी आती है कि जो लोग इंसाफ के खिलाफ हैं, शर के खिलाफ हैं, जुल्म के खिलाफ आवाज नहीं उठाते हैं, वे लोग भी कहीं न कही से जालिम के साथी हैं. मेरा सिर्फ इतना ही कहना है कि अगर वाकई में, मुल्क ए हिंदुस्तान को अमनो-अमान का गुलदस्ता बनाना चाहें, तो हमारे लिए बहुत ज्यादा जरूरी है कि जो भी राजनीतिक लोग हैं, उन्हें एक तरफ किया जाए और जो लोग वास्तव में अपने अपने धर्म के धर्मावलंबी हैं.

उन लोगों के बीच में बात तो की जाए, क्योंकि मजहब चाहे जो भी हो, सभी का अंतिम शब्द सिर्फ और सिर्फ यही है कि अमनो-अमान बना रहे, मानव एकता बनी रहे, जुल्म और अत्याचार का विरोध हो. अगर यह सब होता है, तो आज के समय में अंतर्धामिक संवाद जिम्मेदार लोगों के बीच बहुत जरूरी है.

साथ ही राशिद जमील कहते है कि यह भी एक दुर्भाग्य की बात है कि धर्म का उपयोग राजनीतिक फायदे के लिए होने लगा है. मेरा पर्सनल ओपिनियन ये है कि जिस जगह पर हो सके, जिला, प्रदेश या राष्ट्रीय लेवल पर, अलग-अलग धर्म के धर्मगुरु, जो किसी भी राजनीतिक दल से किसी भी तरह से ताल्लुक नहीं रखते हैं, वे आपस में खुलकर बैठें और एक दूसरे के धार्मिक स्थलों पर आएं और एक दूसरे की बात को सुनें और समझें.

अगर हम सुनेंगे ही नहीं और अपने दिल में दुर्भावना रखेंगे, तो ये तो गलत है, क्योंकि हम सच सुनने की ताकत ही नहीं रखते, कुरआन में जिस तरह से एक दूसरे से मशविरा और गीता में अच्छे लोगों से चर्चा का उल्लेख किया गया है, आज की स्थिति में, देश में अगर अमनो-अमान चाहिए, शांति चाहिए, ‘वसुधैव कुटुंबकम’ चाहिए, तो वाकई में अपने-अपने धर्म को मानने वाले लोग आपस में चर्चा तो करें. सबसे बड़े दुर्भाग्य की बात तो यही है कि आपसी संवाद ही बंद हो गया है.

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वहीं आवाज-द वॉयस हिंदी ने अपने विषय को आगे बढ़ाते हुए राजगढ़ अंजुमन कमेटी के पूर्व सदर और एडवोकेट शेख मुजीब से बात की, तो उनका कहना है कि आज की दशा में अंतर धार्मिक संवाद बिलकुल होना चाहिए, बल्कि इसके लिए  सामूहिक रूप से स्कूल, कॉलेज एवं कार्यालयों में भी सभी धर्म से संबंधित उपदेश की व्याख्या की जानी चाहिए.

साथ ही मुजीब यह भी कहते है कि सांप्रदायिक सदभावना कायम रखने के लिए, साम्प्रदायिक तत्वों पर दमनकारी नीति आवश्यक हैं, सरकार का संरक्षण नहीं, बल्कि ऐसे लोगों पर विधि अनुसार कार्यवाही होनी चाहिए. संवादहीनता तो समस्त बुराइयों कि जननी है.

राजगढ़ के डॉक्टर इरफान खान कहते हैं कि ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना ही हमारे राष्ट्र और राष्ट्रीयता की प्रगति के लिए बेहतर है, क्योंकि यह पूरा विश्व ही एक परिवार है.

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इसके अतरिक्त हमने राजगढ़ के एडवोकेट जगदीश प्रसाद शर्मा से भी बात की, जो पूर्व में राजगढ़ न्यायालय में सरकारी वकील भी रह चुके हैं. उनका कहना है कि सबसे बड़ा धर्म मानवता का है, रोगी उपचार के लिए डॉक्टर और वाहन चालक कभी यात्री की जाति या धर्म नहीं पूछता. साम्प्रदायिक कट्टरता हमें दूसरों से नहीं स्वयं से दूर करती है और हमारे भावों को दूषित करके गर्त में धकेलती है, जबकि सद्भाव हमें स्वयं के करीब लाकर ऊपर उठाता है. साम्प्रदायिकता और हिंसा कभी भी कल्याणकारी नहीं हो सकती.