फ़िरदौस ख़ान
ये बहुत ही ख़ुशी की बात है कि आवाज़-द वॉयस 23 जनवरी को अपनी तीसरी सालगिरह मना रहा है.सबसे पहले आवाज़-द वॉयस की पूरी टीम को मुबारकबाद देना चाहती हूं.जिस तरह आवाज़-द वॉयस ने बहुत ही कम वक़्त में मीडिया में अपनी एक अलग पहचान क़ायम की है, वह क़ाबिले तारीफ़ है.
इन तीन बरसों में हिन्दी के साथ-साथ अंग्रेज़ी, उर्दू, असमिया और मराठी के संस्करण निकालना कोई आसान काम नहीं है.यह भी ख़ुशी की बात है कि अब आवाज़-द वॉयस अपना अरबी संस्करण लेकर आने वाला है.
अरबी दुनिया के एक बड़े हिस्से में बोली जाती है.इसके अरबी संस्करण के आ जाने से हिन्दुस्तानी तहज़ीब अरबी भाषी इलाक़ों तक पहुंचेगी और वहां के लोग यहां की तहज़ीब से वाक़िफ़ हो सकेंगे.
आवाज़-द वॉयस की सबसे ख़ास बात यह है कि ये मीडिया संस्थान ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना के साथ काम कर रहा है. यहां सिर्फ़ मानवता की बात होती है, जनहित की बात होती है, जन सरोकारों की बात होती है.
ये संस्थान किसी विशेष धर्म, जाति, पंथ आदि की विचारधारा से निरपेक्ष है. ये किसी विशेष सियासी दल से भी प्रभावित नहीं है.यह साम्प्रदायिक सद्भाव और समभाव के लिए काम करता है.
पिछले कुछ अरसे से जिस तरह मीडिया का दुरुपयोग हो रहा है और इसकी छवि धूमिल हो रही है, ऐसे में आवाज़-द वॉयस एक उम्मीद की किरण बनकर उभरा है.
इसने रचनात्मक और सार्थक पत्रकारिता को बढ़ावा दिया है.इसकी रिपोर्ट्स इस बात की तस्दीक करती हैं कि इसका मक़सद सिर्फ़ और सिर्फ़ जनहित की पत्रकारिता करना है और बेहतर समाज के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाना है.
आवाज़-द वॉयस के सभी स्तम्भ ख़ास रिपोर्ट, समाज, शख़्सियत, विरासत, यूथ, खेल, ओपिनियन, महिला, भारत, विश्व, जीवन शैली, मनोरंजन, वीडियो, गैज़ेट, शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता, व्यापार भी ज्ञानवर्धक होने के साथ-साथ पठनीय भी हैं.
इसी वजह से इसके पाठकों की तादाद दिनोदिन बढ़ रही है.उम्मीद की जा रही है कि अगले साल तक ये तादाद एक अरब तक पहुंच जाएगी, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड होगा.
प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बीच वेब मीडिया भी अपनी मौजूदगी दर्ज करवा रहा है.आज हर हाथ में मोबाइल है.लोग अपने मोबाइल पर ही वीडियो देखना पसंद करते हैं और इसी पर पढ़ना भी पसंद करते हैं.बस हो, रेल हो या मेट्रो, हर जगह लोग मोबाइल पर ही कुछ न कुछ देख रहे होते हैं.
मोबाइल ने वेब मीडिया को ख़ूब बढ़ावा दिया है. आवाज़-द वॉयस का दावा है कि हमने इस चुनौतीपूर्ण समय में रचनात्मक पत्रकारिता करने की पूरी कोशिश की है.
हमारी टैगलाइन सोच हिंदुस्तानियत की, हमारी पत्रकारिता की भावना को रेखांकित करती है.हमारा ध्यान हमेशा लोगों का ध्रुवीकरण करने के बजाय भारतीयता और देश के समन्वित मूल्यों को बढ़ावा देने पर रहा है.
इन तीन वर्षों में हमने इस चुनौतीपूर्ण समय में रचनात्मक पत्रकारिता करने की पूरी कोशिश की है.हमारी टैगलाइन सोच हिंदुस्तानियत की, हमारी पत्रकारिता की भावना को रेखांकित करती है.हमारा ध्यान हमेशा लोगों का ध्रुवीकरण करने के बजाय भारतीयता और देश के समन्वित मूल्यों को बढ़ावा देने पर रहा है.
बेशक आवाज़-द वॉयस अपने इस दावे पर सौ फ़ीसद खरा उतरता है.एक बार फिर से आवाज़-द वॉयस को बहुत-बहुत मुबारकबाद.
(शायरा, लेखिका व पत्रकार)