श्रीलंका सरकार की माफी के मायने

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 29-07-2024
Meaning of Sri Lankan government's apology
Meaning of Sri Lankan government's apology

 

हरजिंदर

माफी मांगने और माफ कर देने के बारे में दुनिया भर में काफी कुछ कहा गया है. महात्मा गांधी कहा करते थे कि माफी मांगना बहादुरों के बस की ही बात होती है. यह भी कहा जाता है कि उसे भले ही माफ किया जाए या नहीं लेकिन जो माफी मांगता है वह खुद को सर पर पड़े एक बहुत बड़े बोझ से जरूर आजाद कर लेता है.

मामला जब इतिहास की किसी गलती के लिए किसी देश द्वारा माफी मांगे जाने का हो तो यह माफी अपने आप में  एक इतिहास रच देती है. इस मामले में ताजा खबर की बात करने से पहले हम इतिहास की कुछ गलतियों और माफियों की बात कर लेते हैं.

साल 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड की गिनती दुनिया के सबसे बर्बर नरसंहारों में होती है. यह ऐसा कांड था जिसने पूरी दुनिया को झझकोर दिया था. भारत में कईं संगठन, कई राजनीतिक दल पिछली एक सदी से ब्रिटेन से यह मांग कर रहे हैं कि उस बर्बर कत्लेआम के लिए ब्रिटिश सरकार को माफी मांगनी चाहिए.

1919 में वहां जो हुआ उसके लिए ब्रिटिश सरकार को समय-समय पर और कईं बार शर्मिंदा होना पड़ा है ,लेकिन सीधे तौर पर माफी मांगने की हिम्मत उसने नहीं दिखाई.ब्रिटेन के राज परिवार के लोगो ने जब भी भारत का दौर किया यह मुद्दा उछला. दिवंगत महारानी क्वीन एलिजाबेथ द्वितीय तो वहां गईं भी.

उन्होंने वहां मरने वालों के लिए एक मिनट का मौन भी रखा, लेकिन माफी के शब्द नहीं सुनाई दिए. इसी तरह डेविड कैमरून पहले ब्रिटिश  प्रधानमंत्री थे जिन्होंने जलियांवालां बाग का दौरा किया था.

उन्होंने कत्लेआम की निंदा भी की थी, लेकिन इसके आगे कुछ नहीं हुआ. 2019 में जब इस हत्याकांड की एक सदी पूरी हुई तो ब्रिटिश संसद में उस हत्याकांड के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित हुआ. तब की ब्रिटिश प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने इसे पूरे ब्रिटिश इतिहास का सबसे बड़ा कलंक बताया. लेकिन जिसे माफी कहा जाता है वह तब भी नही मांगी गई.

अब नजर डालते हैं एक और मामले पर जहां जापान ने इतिहास की गलती के लिए बाकायदा माफी मांगी. एक बार नहीं कईं बार मांगी. सदी की शुरुआत में जब जापानी सेना ने चीन और कोरिया जैसे देशों पर कब्जा जमा लिया था.

उस दौरान जापनी फौजी अफसर कुछ स्थानीय औरतों को अपने पास रख लेते थे और फिर जाते समय उन्हें छोड़ जाते थे. इन औरतों को कंफर्ट वुमन कहा जाता था. एक दौर में चीन और कोरिया में ऐसी औरतो की संख्या काफी थी जिनका पूरा जीवन ही बर्बाद हो गया था.

चीन को पता था कि जो हो गया वह तो नहीं बदला जा सकता, लेकिन उसके लिए माफी तो मांगी ही जा सकती है. जब इसके लिए जापान पर दबाव बनाय गया तो जापान ने इसे लेकर चीन से और चीन की औरतों से बाकायदा माफी मांगी.

यह माफी कईं मंचों पर मांगी गई, ताकि इसे लेकर चलने वाला विवाद खत्म हो सके. इसके बाद कोरिया ने भी कहा कि जापान को उससे भी माफी मांगनी चाहिए, और जापान ने ऐसा ही किया.
अब आते हैं ताजा खबर पर. श्रीलंका की सरकार ने अपने यहां रहने वाले मुस्लिम समुदाय से माफी मांगी है.

जिस दौरान पूरी दुनिया में कोविड की महामारी फैली थी उस समय वहां की सरकार ने मुस्लिम समुदाय के लोगों पर यह दबाव डाला था कि वे शवों को दफनाने के बजाए उनका दाह संस्कार करें.

इसके पीछे  सिर्फ कोविड महामारी को लेकर किसी तरह की भ्रांति का मामला भर नहीं था. दरअसल, उस समय पूरे श्रीलंका में सांप्रदायिक नफरत की राजनीति चल रही थी. इस दबाव के पीछे वहां का सांप्रदायिक उन्माद भी था.

दरअसल, सरकार की नीतियों के कारण पूरा श्रीलंका भीषण आर्थिक संकट में फंसता जा रहा था और सरकार उससे बचने के लिए सांप्रदायिक नफरत का इस्तेमाल कर रही थी. जब मामला बढ़ा तो पूरे देश में विरोध शुरू हो गए.

बड़ी संख्या में लोग पहंुचे और उन्होंने राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया. जुलाई 2022 में हुए इस जनविद्रोह में सभी धर्मों के लोग थे. सबकी समस्या समान थी, इसलिए वे अपने मतभेद भूल चुके थे. उन्हें उस नफरत के नुकसान का अहसास भी हो गया था.

सरकार की ताजा माफी को सद्भाव की उस दिशा में लिया गया एक कदम माना जा सकता है. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या अतीत के वे घाव अब भुला दिए जाएंगे ?श्रीलंका में मुसलमानों की आबादी दस फीसदी से भी कम है.

पिछले कुछ समय से वे सभी कम या ज्यादा कईं तरह के खौफ तले जीते रहे हैं. ऐसे खौफ रातो-रात खत्म नहीं होते. लेकिन सरकार की माफी से एक रास्ता बना है. यह रास्ता शांति और बड़े बदलाव की ओर ले जा सकता है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)


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