ढाई - चाल : बिहार में सांप्रदायिक हिंसा के मायने

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 20-03-2023
बिहार में सांप्रदायिक हिंसा के मायने (सभी तस्वीरें सिंबाॅलिक हैं)
बिहार में सांप्रदायिक हिंसा के मायने (सभी तस्वीरें सिंबाॅलिक हैं)

 

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माहौल अब बिहार में भी बिगड़ने लगा है. दूसरे राज्यों के मुकाबले देखें तो पिछले कुछ साल में बिहार में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाए कम रिकाॅर्ड हुई हैं. लेकिन अब ऐसा नहीं है. पिछले एक महीने में बिहार से जो खबरें आ रही हैं वे परेशान करने वाली हैं.

पिछले महीने 23 फरवरी को गया जिले में मुहम्मद बाबर को एक भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला. उसके दो साथियों को बुरी तरह घायल कर दिया. पांच मार्च को सीतामढ़ी जिले के एक गांव में पहले मस्जिद पर लगे लाउडस्पीकर के सवाल पर विवाद हुआ.फिर शाम को भीड़ ने वहां हमला कर दिया. दो दिन बाद सारण जिले में भीड़ ने 56 साल के नसीब कुरेशी को पीट-पीट कर मार डाला.
 
उस पर गोमांस बेचने का आरोप लगाया गया. अगले दिन जब सब जगह महिला दिवस मनाया जा रहा था, बेगूसराय जिले में एक अल्पसंख्यक लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया. एक अन्य लड़की के गाल बुरी तरह नोच दिए गए.
 
ऐसा नहीं है कि बिहार में अपराध नहीं होते हैं. लूटमार से लेकर हत्या तक हर तरह के अपराध मामले में बिहार काफी बदनाम भी रहा है. इसे नेशनल क्राइम रिकाॅर्ड ब्यूरो के आंकड़ों से बहुत अच्छी तरह समझा जा सकता है.
 
बावजूद इस आरोप के कि वहां पुलिस आसानी से अपराधों की रपट भी नहीं लिखती है और ज्यादातर अपराध आंकड़ों में दर्ज ही नहीं होते हैं. लेकिन पिछले कुछ साल से बिहार के इन अपराधों में सांप्रदायिकता वाला एंगल नदारत रहा है. वहां से जाति हिंसा की खबरे भले ही हर दूसरे रोज आती रही हों लेकिन सांप्रदायिक हिंसा के मामले में बिहार का जिक्र उस तरह से नहीं होता था जिस तरह से कुछ दूसरे राज्यों का होता है.
 
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राजनीति हमेशा ही ऐसे हालात का श्रेय लेने के लिए आगे आ जाती है. लालू यादव से लेकर नीतीश कुमार तक सब यह दावा करते रहे हैं कि ऐसा उनके प्रयासों के कारण ही मुमकिन हो सका है. इस दौरान प्रदेश के अल्पसंख्यकों को जो सुरक्षा बोध मिला है उसकी वजह से वे इन दोनों ही नेताओं का समर्थन भी करते रहे हैं.
 
अभी भी कर रहे हैं. इन दोनों ही नेताओं की भूमिका जो भी रही हो लेकिन जब तकरीबन पूरे देश में ही नफरत की राजनीति जगह-जगह उभरती रही, बिहार अपने आप को इससे बचाए रखने में कुछ हद तक कामयाब रहा.
 
वैसे यह स्थिति सिर्फ बिहार की ही नहीं है. पड़ोसी उड़ीसा में भी कमोबेश यही हुआ है. कुछ साल पहले तक उड़ीसा से ऐसी खबरें आती थीं अब बहुत कम ही ऐसी खबरें आती हैं. बेशक, इसका काफी कुछ श्रेय वहां के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को दिया जाता है.
 
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इसलिए अब जब बिहार में भी सांप्रदायिक हिंसा की छिटपुट घटनाएं होने लगी हैं तो कईं सवाल भी खड़े हो गए हैं. जब तकरीबन सभी जगह ही नफरत की राजनीति चल रही हो तो क्या एक या दो राज्यों को इससे बचाए रखा जा सकता है ?
 
हम चाहेंगे कि कम से कम सांप्रदायिक हिंसा के मामले में बिहार और उड़ीसा ने जो उदाहरण पेश किया है वे देश के सभी राज्यों को सद्बुद्धि दे. लेकिन हो इसका उलटा रहा है.
 
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )