मदरसों को बंद करने की नहीं, सुधार की आवश्यकता

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 16-10-2024
Madrasas need reform, not closure
Madrasas need reform, not closure

 

madhupअशोक मधुप

हाल ही में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को एक पत्र लिखकर मदरसों और मदरसा बोर्डों को दी जाने वाली सरकारी फंडिंग बंद करने की सिफारिश की है. आयोग ने मदरसा बोर्डों को भी बंद करने का सुझाव दिया है. इसके पीछे तर्क दिया गया है कि 2009 के शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) के तहत सभी बच्चों को औपचारिक शिक्षा मिलनी चाहिए, जो मदरसों के तहत पूरी नहीं हो रही है.

आयोग का मानना है कि मदरसों में पढ़ने वाले बच्चे आरटीई के प्रावधानों से वंचित रह जाते हैं, जो उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.हालांकि, आयोग की यह सिफारिश उचित नहीं मानी जा सकती. मदरसों को बंद करने का सुझाव देने के बजाय, आयोग को मदरसा शिक्षा प्रणाली में सुधार की सिफारिश करनी चाहिए थी.

सुधार के लिए मदरसों को समय दिया जाना चाहिए, ताकि वे अपनी व्यवस्थाओं में सुधार कर सकें. यदि निर्धारित समय सीमा के भीतर सुधार नहीं होते, तो मदरसा बोर्डों और मदरसों की सरकारी फंडिंग को रोकने की सिफारिश की जा सकती थी.

मदरसों के कामकाज पर NCPCR की चिंताएँ

NCPCR ने यह भी सिफारिश की है कि मदरसों में पढ़ रहे सभी गैर-मुस्लिम बच्चों को बाहर निकालकर औपचारिक स्कूलों में दाखिला दिया जाए. साथ ही, मुस्लिम बच्चों को भी आरटीई अधिनियम के तहत औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्कूलों में दाखिल करने की बात कही गई है.

आयोग का तर्क है कि धार्मिक शिक्षा देना संबंधित समुदाय की जिम्मेदारी होनी चाहिए, न कि राज्य की। सरकारी फंडिंग किसी भी ऐसी संस्था को नहीं दी जानी चाहिए, जो बच्चों के शिक्षा के अधिकार में बाधक बनती हो. आयोग की रिपोर्ट का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि देश के सभी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले और वे एक सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण में बड़े हों, ताकि वे राष्ट्र निर्माण में प्रभावी योगदान दे सकें.

सुधार की आवश्यकता

आयोग की सिफारिशों में सुधार की गुंजाइश है. मदरसा शिक्षा का इतिहास यह बताता है कि वह कभी भी सरकारी मदद पर आधारित नहीं थी. मदरसे आत्मनिर्भर थे और धार्मिक शिक्षा प्रदान करते थे. हालांकि, समय के साथ राजनैतिक दलों ने अपने स्वार्थों के चलते मदरसों और मदरसा बोर्डों को सरकारी सहायता देनी शुरू कर दी. इससे मदरसों का कामकाज बदलने लगा और वे सरकारी फंड पर निर्भर होने लगे.

आयोग को चाहिए था कि मदरसों और मदरसा बोर्डों में सुधार के लिए पहले समय दिया जाए. यदि वे सुधार करने में विफल होते हैं, तो उनकी फंडिंग रोकने पर विचार किया जा सकता है. मदरसा बोर्डों को बंद करने का सुझाव देने के बजाय, उन्हें सुधार के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए था.

मदरसों के प्रति समुदाय की प्रतिक्रिया

आयोग की इस सिफारिश का कुछ मुस्लिम संगठनों ने विरोध किया है. उनका कहना है कि मदरसों की व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता है, लेकिन उन्हें बंद करने की नहीं। देवबंदी उलेमाओं ने इस आदेश का विरोध करते हुए कहा कि हमारे पूर्वज कभी भी मदरसों के लिए सरकारी मदद लेने के पक्ष में नहीं थे. उनका मानना था कि धार्मिक शिक्षा की व्यवस्था को सरकार के हस्तक्षेप से दूर रखा जाना चाहिए.

राजनैतिक दलों के स्वार्थों के चलते मदरसों को सरकारी सहायता दी जाने लगी, लेकिन अब इस सहायता को रोकने का निर्णय लेना भाजपा शासित प्रदेशों के लिए भी आसान नहीं होगा. मामला न्यायालय तक जाएगा, और संभावना है कि न्यायालय भी पहले सुधार के लिए समय देने का सुझाव देगा, उसके बाद ही कोई कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए.

निष्कर्ष

मदरसों की व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता है, लेकिन उन्हें बंद करने का सुझाव देना सही समाधान नहीं है. NCPCR की सिफारिशों को सुधार के नजरिए से देखा जाना चाहिए, न कि प्रतिबंध के रूप में. मदरसों को धार्मिक और औपचारिक शिक्षा के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए, ताकि बच्चों को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित न किया जाए और वे भविष्य में राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.यह उनके विचार हैं.)