पाकिस्तान में ‘ खिचड़ी’ पकने लगी

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 14-07-2024
'Khichdi' started cooking in Pakistan
'Khichdi' started cooking in Pakistan

 

suhailसोहेल वाराइच

शाहबाज़ सरकार का हनीमून पीरियड बीत चुका है, इसलिए अब पत्रकारिता और आलोचनात्मक समीक्षा का औचित्य खड़ा हो गया है. यह सच है कि इस सरकार को किसी बड़ी राजनीतिक चुनौती का सामना नहीं करना पड़ रहा है, यह भी सच है कि इसे सत्ता पक्ष का पूरा समर्थन प्राप्त है.

यह भी सच है कि ताकतवर और तहरीक-ए इंसाफ के बीच तनाव के कारण विपक्ष मुश्किल में है. फिलहाल निर्णय लेने वालों के पास कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है. इन सब सकारात्मक संकेतों के बावजूद कहीं दूर धीमी आंच पर खिचड़ी पकने लगी है.

वह 'खासुल-खास' युवाओं की मेहनत और कौशल के प्रशंसक हैं, लेकिन उन्हें शिकायत है कि फैसलों की गति बहुत धीमी है. हर कोई मानता है कि प्रधानमंत्री अंधेरे में जागते हैं, जब बाकी लोग सो रहे होते हैं तब जागते हैं.

व्हाट्सएप पर आदेश जारी करना शुरू करते हैं, जानते हैं कि कौन से अधिकारी और राजनेता जल्दी उठते हैं.  आठ बजे तक उनके अधीनस्थ कर्मचारी और सचिवालय तैयार हो जाते हैं और फिर पूर्णकालिक कामकाज शुरू होता है.

सभी मानते हैं कि वे शासन की बारीकियां जानते हैं. सरकारी बैठकों में वे जो सवाल और आपत्तियां उठाते हैं, उससे पता चलता है कि उन्हें अपने काम पर पूरा अधिकार है. दोपहर के भोजन के बाद वे एक घंटे की नींद लेते हैं .

फिर तरोताजा होकर रात 10:30 बजे तक सरकारी काम में लग जाते हैं. इसी तर्ज पर उन्होंने हर काम का जवाब एपीपी के माध्यम से लेना शुरू कर दिया है. व्हाट्सएप ग्रुप के जरिए उन्हें विभिन्न विभागों और सचिवों के दैनिक प्रदर्शन की अपडेट मिलती रहती है. इन तमाम खूबियों के बावजूद खासुल-खास को अपनी सरकार में कई बड़ी खामियां भी नजर आने लगी हैं.

खासुल-खास का मानना ​​है कि प्रधानमंत्री की कड़ी मेहनत और कुशलता के बावजूद नतीजे जन कल्याण और आर्थिक सुधार के पक्ष में नहीं आ रहे हैं. आपत्तियां की जा रही हैं कि चार-पांच घंटे की लंबी और उबाऊ बैठकों के बाद कोई निर्णय नहीं लिया जाता.

बार-बार फैसले टाले जाते हैं. बदलाव किए जाते हैं. खासुल-खास का कहना है कि प्रधानमंत्री हर बात का ब्योरा मांगते हैं, लेकिन फैसला टाल देते हैं. ऐसा लगता है कि वह चाहते हैं कि कोई और या बड़ा मंडल फैसला ले या फिर बड़े भाई की तरफ से कोई निर्देश आए.

मुझे गलत मत समझो, वह बहुत खास है. वह निर्जीव है लेकिन बेहोश नहीं है. वह चीजों पर कड़ी नजर रखता है.  छठी इंद्रिय इतनी तेज है कि वह आने वाली घटनाओं को पहले ही पढ़ लेते हैं. वह इतना सचेत रहते है कि अक्सर दिलों में छुपे राज़ भी निकाल देते हैं.

'खासुल-खास ' यह मानने को तैयार नहीं हैं कि प्रधानमंत्री के पास अधिकार और अवसर की कमी है, लेकिन वे कुछ नहीं कर पा रहे हैं. 'खासुल-खास को लगता है कि मुक्तदरा पीएमएल-जी सरकार को जितना समर्थन दे रहा है, सरकार उसके बदले में सार्वजनिक और राजनीतिक समर्थन देने में सक्षम नहीं है.

उनका दावा है कि नून को गले का हार बनाकर सत्ता के सिंहासन पर बिठाया गया, लेकिन सत्ता की राह का कांटा वे अब भी नहीं चुन पाए हैं. 'खासुल-खास को आपत्ति है कि लगातार बैठकों और दिन-रात की कोशिशों के बावजूद सुधार होता नहीं दिख रहा है.

जब तक सुधार लोगों तक पहुंचेगा, समस्याओं का अंबार लग जायेगा. अगर कोई पॉलिटिकल नैरेटिव होता तो विपक्ष के लिए सेंध लगाना संभव होता, लेकिन पॉलिटिकल नैरेटिव के अभाव में विपक्ष राजनीतिक मैदान में अकेला है.

'खासुल-खास कोई नौकर नहीं है और न ही उसे सरकार से कोई लेना-देना है. उसे मेरा पक्षी समझो, उसे तोता कहो, उसे लाटो समझो या आगे चलकर 'यह कंपनी नहीं चलेगी' जैसी बातें कहें.  मेरा तर्क, समाचार, विश्लेषण और आलोचनात्मक समीक्षा के मानकों को सामने रखकर समाचार सामने लाता है.

'खासुल-खास को शहबाज शरीफ से काफी सहानुभूति है, लेकिन अब वह मानने लगे हैं कि लीग में नवाज शरीफ की निर्णायक स्थिति है. हालांकि, यह भी हो सकता है कि शहबाज शरीफ जानबूझकर नवाज शरीफ की ओर देखें ताकि उनके इमाम अंदर आ जाएं ये सारे फैसले उनके भाई राजनीति इसलिए करते हैं ताकि कोई गलतफहमी न हो.

'खासुल-खास' का मानना ​​है कि निराशा बढ़ रही है. फैसले में देरी हो रही है. डिलिवरी नहीं हो रही है, इसलिए ‘ खिचड़ी’ पक रही है. अगर हालात नहीं सुधरे तो आने वाले दिनों में दूरियां बढ़ने लगेंगी.

'खासुल-खास' होशियार हैं. वह दिलों के राज भी जानते हैं. 'खासुल-खास' को शिकायत है कि कैप्टन खान ने मुक्तदरा के खिलाफ जेल में हर दिन एक उत्सव का आयोजन किया है और राजनीतिक सरकार ने कैप्टन खान को जेल में 8 कमरे दिए हैं.

आलोचना का निशाना मुक्ताद्र हैं, हालाँकि उनकी गलती केवल नून की सरकार का समर्थन करना है, लेकिन मुक्ताद्र की आलोचना पर चुप रहकर नून क्या संदेश देते हैं?अपनी टिप्पणी समाप्त करते हुए 'खासुल-खास' ने कहा कि खिचड़ी पक रही है, लेकिन मुख्य रसोइया दिल का साफ है.

मुझे 100 फीसदी यकीन है कि सरकार बनाने वाली रसोई का मुख्य रसोइया न तो उसके खिलाफ साजिश रचेगा और न ही रोकेगा. विपक्ष के साथ गुप्त बैठकें करेंगे और न ही वह कभी भी नून सरकार को अस्थिर करने की कोशिश करेंगे.

इसलिए फिलहाल नून सरकार को कोई खतरा नहीं है, लेकिन अगर नून सरकार ने 'खासुल-खास' की शिकायतों का समाधान नहीं किया तो अविश्वास बढ़ेगा. 'खासुल-खास' को लगता है कि शाहबाज शरीफ में काफी लचीलापन है.

अगर उन्हें गले मिलने की भनक भी लग जाए तो वह अपने शासन को बेहतर बनाने की क्षमता रखते हैं. 'खासुल-खास' ने कहा है कि प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ हाल के दिनों में मंत्रियों पर जमकर निशाना साध रहे हैं.

कभी नौकरशाही पर भड़क रहे हैं. कभी भ्रष्टाचार के आंकड़े बता रहे हैं तो कभी एफबीआर की कार्यकुशलता पर सवाल उठा रहे हैं. 'खासुल-खास' के मुताबिक, ये हालात सुधारने की कोशिशें हैं ताकि खिचड़ी के नीचे सिर्फ धीमी आंच का ईंधन ही बुझे. आग न लगे, धुआं न निकले और खिचड़ी पूरी तरह न पके.... !

(पाकिस्तान के अखबार जंग से साभार)