राकेश चौरासिया / नई दिल्ली
देश और दुनिया के लोगों का कश्मीर के मनोरम घाटियों के अप्रतिम सौंदर्य के प्रति आकर्षण सदियों से रहा. इसे ‘धरती का स्वर्ग’ भी कहा जाता है. कुछ दशकों पहले तक, भारत के नवयुगलों का कश्मीर की वादियों में ही कहीं अपना हनीमून मनाने का सपना रहता था. मगर, पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद ने कश्मीर के ताने-बाने को गंभीर नुकसान पहुंचाया. लेकिन, पिछले लगभग एक दशक में केंद्र सरकार ने आतंकवादियों और आतंक के प्रायोजकों के खिलाफ शून्य सहिष्णुता यानी जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई.
नतीजतन, कश्मीर आतंक के स्याह दौर से उबर आया और उसके बाद घाटी के लोगों के मन में फिर से अपने स्वर्णिम दिनों को पाने की लालसा जग उठी. आतंकी समूहों पर नकेल कसने और ‘धारा 370’ को कूड़ेदान के हवाले करने के बाद स्थापित शांति के कारण वहां पर्यटन उद्योग एक बार पटरी पर लौट आया, जो यहां के लोगों की आमदनी का मुख्य जरिया है.
पर्यटन से सम्बद्ध अन्य काम-धंधों और रोजगार ने रफ्तार पकड़ ली, तो यहां के लोगों को लगने लगा है कि अब उनकी जिंदगी भी चैन से गुजरेगी और आने वाली नस्लें भी अमन के साए तले तरक्की की नई इमारतें लिखेंगी. अब यहां आने वाले पर्यटकों की संख्या में गुणात्मक परिवर्तन हुआ है.
दिलकश नजारों को अपनी आगोश में समेटे कश्मीर बाहें फैलाए लोगों को लुभाता और ललचाता था. यहां के मुख्य उद्योग और व्यवसाय पर्यटन से जुड़े कश्मीरियों का शुमार खुषहाल और नफासतपसंद लोगों में होता था. अचानक खून के प्यासों ने यहां के भोले युवाओं के हाथों में कलम और किताबों की जगह पत्थर, एके-47, हथगोले और मोर्टार थमा दिए.
यहां हुरियत जैसे करेक्टर भी थे, जो जान-अनजाने में आतंकियों के मंसूबों के मददगार साबित हुए. हुरियत 1 जनवरी को हड़ताल का कैलेंडर जारी करती थी, जिससे यहां का पर्यटन व्यापारियों का काम-धंधा चौपट हो गया था.
हड़ताली कैलेंडर के कारण यहां साल में 150 दिन व्यर्थ चले जाते थे और आम जन-जीवन अस्त-व्यस्त रहता था. व्यवसायों के अलावा स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को भी बंद करना पड़ता था.
पाकिस्तान द्वारा थोपे गए तीन युद्धों और 1980 व 1990 के दशक में आतंकवाद ने कश्मीर के हजारों मुस्लिम की जिंदगियां छीन लीं, जिनमें अमन से गुजर करने वाले स्थानीय नागरिक शामिल थे.
हजारों फौजीयों को शहादत देनी पड़ी, प्रवासी मजदूरों की जानें गईं और लाखों कश्मीरी पड़ितों को अपनी जन्मभूमि से सिसकियों के बीच विलग होना पड़ा. आतंक से हुए सामाजिक-आर्थिक बदलाव ने आम कश्मीरी की कमर तोड़ दी.
आतंक के कारण बाजार में कश्मीर के प्रति धारण प्रतिकूल हो गई. आतंकवाद सामाजिक-आर्थिक क्षितिज को धुंधला देता है, क्योंकि संस्थागत और खुदरा निवेशक जोखिम के कारण हाथ खींच लेते हैं.
आतंकवाद पीड़ितों और आम जनों पर ऐसा मनोवैज्ञानिक आघात छोड़ता है, जो उन्हें संसाधनों से महरूम और यहां तक कि बेघर कर देता है. इन स्थितियों की जकड़ से कश्मीर को बाहर लाने के लिए, सरकार ने खजाने पर भारी बोझ पड़ने के बावजूद, दृढ़ इच्छाशक्ति से काम लिया और आतंक में सीधे संलिप्त या फिर आतंवादियों से हमदर्दी रखने वालों और उनका वित्त पोषण करने व्यक्तियों और संस्थाओं की मुश्कें कस दीं.
केंद्र सरकार ने पहले आतंकवादियों और उनके हमदर्दों पर लगाम लगाई और उसके बाद आर्थिक गतिविधियों को रफ्तार दी. महज सुरक्षा उपाय नाकाफी होते, इसलिए केंद्र सरकार ने वित्तीय संसाधनों को भी कश्मीर की तरफ मोड़ा, जो लोगों को रोजगार मुहैया कराने हेतु व्यापक पूंजी प्रवाह के लिए महत्वपूर्ण था.
दारुल सलाम की जमीन कश्मीर में केंद्र सरकार ने आतंक पर काबू पाने के बाद आर्थिक परिदृष्य को उर्वर बनाने के लिए कई स्तर पर काम किया. हाल ही में यहां आयोजित जी-20 पर्यटन कार्य समूह की बैठक असीम सार्थक सिद्ध हुई, जो जम्मू-कश्मीर पर्यटन की समृद्धि के लिए गेम चेंजर साबित होगी. यहां विश्व भर से आए प्रतिनिधियों ने अपनी खुली आंखों से महसूस किया. इससे कश्मीर में वैश्विक पर्यटकों का प्रवाह और बढ़ेगा.
सार्थक प्रयासों के परिणाम स्वरूप जम्मू और कश्मीर में 2022 में 1.88 करोड़ पर्यटकों की आमद हुई. यह आंकड़ा दो करोड़ तक भी जा सकता है. पर्यटन सचिव आबिद राशिद शाह बताते हैं, ‘‘साल दर साल और महीने दर महीने, पिछले साल की तुलना में इस साल हमें अधिक पर्यटक मिले. हम सुनिश्चित कर रहे हैं कि सभी घरेलू और अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों का जम्मू-कश्मीर में यादगार प्रवास हो.’’
जो लोग आतंक के कारण कश्मीर में हनीमून नहीं मना सके, वे अब वहां अपनी शादी की सालगिरह मनाने पहुंच रहे हैं. श्रीनगर घूमने पहुंची पुणे की कविता काते ने मीडिया को बताया, ‘‘आज हमारी 24वीं सालगिरह है, यही कारण है कि हमने यहां घूमने का प्लान बनाया. मैं यहां अच्छा महसूस कर रही हूं.’’ कुछ लोग कश्मीर के सौंदर्य का रसपान करने जा रहे हैं, तो कुछ लोगों को वहां शुरू हुए एडवेंचर स्पोर्ट्स और वॉटर स्पोर्ट्स में भाग लेने का आकर्षण खींच रहा है.
प्रशासन अब कश्मीर की प्राकृतिक छटा से आच्छादित विभिन्न टूरिस्ट स्पॉटों पर पर्यटन उत्सव आयोजित कर रहा है, जिससे पर्यटन को गति मिली है. अब कई जगहों पर पर्यटन उत्सव मनाने की मांग हो रही है. तुलैल घाटी में पर्यटन उत्सव के लिए आशान्वित एक स्थानीय नागरिक मोहम्मद अयूब का कहना है, ‘‘तुलैल घाटी में पर्यटन महोत्सव का आयोजन न केवल हमारी घाटी की सुंदरता को प्रदर्शित करेगा, बल्कि सांस्कृतिक आदान-प्रदान और आर्थिक अवसरों के लिए एक मंच भी प्रदान करेगा, जो एक उभरते पर्यटक हॉटस्पॉट के रूप में तुलैल की स्थिति को और मजबूत करेगा.’’
सरकार ने कश्मीर की पर्यटन क्षमता को पहचाना है और कई रमणीय स्थानों को इसके लिए चिन्हित किया है. कश्मीर घाटी अमर सौंदर्य और सीमा पर उपलब्ध पर्यटन संभावनाओं से भरपूर है, जो अद्वितीय, मनोरम और आकर्षक है.
भारत का यह उत्तरी क्षेत्र अपनी प्राकृतिक सुंदरता, आश्चर्यजनक परिदृश्य, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और गर्मजोशी भरे आतिथ्य के लिए प्रसिद्ध है. कौन भारतीय होगा, जो और पहलगाम की खूबसूरत जगहों से जुड़े पलों को याद नहीं करता.
बंगस घाटी का अभयारण्य, केरन में नदी किनारे का स्वर्ग, प्रेम और सौंदर्य की भूमि लोलाब, असीम सुंदरता का प्रवेश द्वार माचिल, सीमावर्ती टीटवाल और तंगधार का जुड़वां आकर्षण, गुरेज घाटी की नैसर्गिक यात्रा, उरी के स्पॉट और तुलैल घाटी की अछूती प्रकृति किसे नहीं पुकारती.
यहां बर्फ से ढकी चोटियां, उबड़-खाबड़ चट्टानों से बहता पानी नयनाभिराम दृश्य प्रस्तुत करता है. ये क्षेत्र सुंदरता, शांति और मनोरम प्रकृति का एक अनूठा मिश्रण हैं. यहां की घाटियों में बारिश और बर्फ का विस्मय एवं रोमांच देखते ही बनता है. यहां की वादियों के अप्रयुक्त खजाने में दुनिया भर के आगंतुकों को मोहित करने की क्षमता है.
केंद्र सरकार द्वारा इन क्षेत्रों की यात्रा को सुगम और अधिक सुरक्षित बनाने के लिए बुनियादी ढांचे, आवास, भोजन और सुरक्षा उपाय करने के प्रयास किए गए हैं, क्योंकि पर्यटन के लिए महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता होती है, ताकि बाहरी लोग यहां अधिकाधिक सुखद अनुभव और अनुकूलन प्राप्त कर सकें. सेना और सरकार ने उन स्थानों को खोलने में काफी प्रगति की है, जिन्हें कभी आतंकवाद के कारण असुरक्षित माना जाता था.
उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ताजा माहौल से आशान्वित हैं. वे कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर कभी आतंकवादियों का गढ़ हुआ करता था, लेकिन अब इसे पर्यटन और विकासात्मक गतिविधियों के हॉटस्पॉट के रूप में जाना जाता है, क्योंकि शटडाउन अतीत की बात है और अब यहां हर दिन सामान्य है. शांति महत्वपूर्ण है. और सभी को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि शांति के बिना जम्मू-कश्मीर में विकास और प्रगति संभव नहीं है.
इसी तरह, केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने उधमपुर में बड़ी परियोजनाओं की समीक्षा करने के बाद कहा कि 190 करोड़ रुपये की नदी देविका पुनर्जीवन परियोजना और 100 करोड़ रुपये की मंतलाई परियोजना सहित अन्य के माध्यम से एकीकृत विकास शामिल होगा.
दिल्ली-कटरा एक्सप्रेस हाईवे, कामाख्या से वैष्णो देवी ट्रेन सेवा और वंदे भारत एक्सप्रेस सहित अन्य पहल जम्मू-कश्मीर में धार्मिक पर्यटन के विकास और प्रचार का मार्ग प्रशस्त कर रही हैं.
कश्मीर में सरकार की आतंकवाद के खिलाफ ‘शून्य सहनशीलता नीति’ की नीति लागू की, जिसके सुखद परिणाम देखने को मिल रहे हैं. साथ ही अपनी जमीन की रक्षा और सामाजिकता को बरकरार रखना सामूहिक जिम्मेदारी होती है. इसलिए उछाह, उमंग और उत्साह से भरा आम कश्मीरी भी सरकार के इस महायज्ञ में अपना सहयोग और समर्थन दे रहा है.
यहां कभी युवकों को जबरन एके 47 थमाई जाती थीं, नहीं तो उनकी और उनके परिजनों की जान का खतरा रहता था. वे युवा अब यूट्बर के तौर पर कश्मीरियत और घाटी की खूबसूरती के नगमे गुनगुना रहे हैं, कश्मीर में दशकों बाद कई फिल्मों की शूटिंग शुरू रही है, खिलाड़ी नए कीर्तिमान गढ़ रहे हैं, बेटियां बंदिशें तोड़ रोजगारपरक डिग्रियां हासिल कर रही हैं,
यहां के युवा सिविल सर्विस, डॉक्टरी, इंजीनियरिंग और अन्य तकीनकी प्रतियोगी परीक्षाओं में उत्तीर्ण होकर अपने सपनों का नया आकार दे रहे हैं. जाफरान मुस्करा रही है. यह बदलता कश्मीर है. यह नया कश्मीर है.
ये भी पढ़ें : अनुच्छेद 370 हटने के बाद क्या हो रहा है कश्मीर में