जमघट : लखनवी तहजीब का अनूठा त्योहार

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 13-11-2023
Jamghat: Unique festival of Lucknow culture
Jamghat: Unique festival of Lucknow culture

 

harjinderहरजिंदर

चीन से आई पतंगे भारत के त्योहारों से कब जुड़ गईं कोई ठीक से नहीं जानता. अब हालत यह है कि कईं त्योहार तो पतंगों के बिना अधूरे से लगते हैं. मसलन गुजरात का उत्तारयणी पर्व जो अपनी पतंगबाजी के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. इसी तरह पंजाब के कुछ हिस्सों में वसंत पंचमी के दिन पतंगे उड़ाई जाती हैं.

 पंजाब का जो हिस्सा पाकिस्तान में रह गया है वहां भी इस दिन खूब पतंगे उड़ाई जाती हैं. लाहौर में इस दिन जश्ने-बहारां का आयोजन होता है जिसमें पतंगबाजी सबसे प्रमुख होती है. लेकिन लखनऊ ने पतंगों के लिए जो दिन चुना है वह सबसे अलग है.
लखनऊ में दिवाली के अगले दिन पतंगबाजी का उत्सव होता है जिसे स्थानीय भाषा में जमघट कहते हैं.
 
इस दिन पतंगबाजी के उस्तादों से लेकर छोटे बच्चों तक सभी की नजरे आसमान पर होती हैं और पूरा आसमान तरह-तरह की रंग-बिरंगी पंतगों से भरा होता है. जिन्हें साल भर कभी पंतग उड़ाने का मौका नहीं मिलता वे भी इस दिन चरखी और पतंग लेकर घर की छत पर डटे दिखाई देते हैं.
 
यह पतंग उड़ाने का सबसे अच्छा मौका भी होता है. एक तरफ इस दिन गोवर्धन पूजा, अन्नकूट और परेवा जैसे त्योहार मनाए जाते हैं. दूसरी तरफ कायस्थ समुदाय के लोग इस दिन कलम पूजा करते हैं और वे पढ़ने लिखने का कोई काम नहीं करते. बाजार बंद रहते हैं, स्कूलों और दफ्तरों वगैरह में छुट्टी होती है. फिर मौसम भी ऐसा होता है जब दोपहर की धूप बहुत बुरी नहीं लगती. ऐसे में पतंग उड़ाने से अच्छा काम कोई और हो भी नहीं सकता.
 
कहा जाता है कि इस त्योहार की शुरुआत अवध के नवाब आसफउद्दौला ने की थी. वे समाज को ऐसा एक मौका देना चाहते थे जिसमें हिंदू और मुसलमान दूरियां मिटाते हुए एक साथ जश्न मना सकें. इसी मकसद से शुरू हुआ जमघट जल्द ही एक ऐसा त्योहार बन गया जिसमें लोग तो पूरे जोश से शामिल होते हैं लेकिन इससे किसी तरह के धार्मिक रीति रिवाज नहीं जुड़े हुए हैं.
 
पतंगे पूरी दुनिया में उड़ाई जाती हैं. बहुत से देशों में तो पतंगे बहुत खूबसूरत होती हैं. लेकिन हमारे यहां एक अंतर यह है कि भारत ने पतंगबाजी को एक कंपटीटिव स्पोर्टस का दर्जा दे दिया है. यहां पेच लड़ाए जाते हैं और पतंगे काटी जाती हैं, इसी से हार जीत तय होती है. अगर कोई इस खेल का पूरा लुत्फ लेना चाहता है तो उसे जमघट के दिन लखनऊ आना होगा.
 
शहर में पतंगबाजी के तरह-तरह के क्लब और कईं तरह की टीमें इस दिन पतंगों की प्रतियोगिताएं करती हैं. शर्तें लगाई जाती हैं, जिसे स्थानीय भाषा में कहते हैं बदे लड़ाना। दूसरी टीमों को मुकाबला करने की चुनौतियां भी दी जाती हैं.आम लोगों की पंतगबाजी से अलग यह उस्तादों का खेल होता है. इन टीमों में सिर्फ पतंग उड़ाने वाले ही नहीं होते, चर्खी दिखाने, सद्दी सुलझाने कन्ने बांधने वाले माहिर भी होते हैं.
 
इन प्रतियोगिताओं में जितने लोग पंतग उड़ाते हैं उससे ज्यादा दर्शक होते हों जो अपनी-अपनी टीम के हौसला अफजाई के लिए खूब हंगामा भी करते हैं. कईं बार अपनी टीम के लिए पूरा का पूरा मुहल्ला ही जुट जाता है. शाम को हारने वाली टीम जीतने वाली टीम को शर्त की रकम देती है. जिससे मिठाई खरीदकर सबको बांटी जाती है- जीतने वालों को भी, हारने वालों को भी और दर्शकों को भी। मुंह मीठा होते ही हार जीत के सभी तनाव भी खत्म हो जाते हैं.
 
पतंगे तो पूरे देश में ही उड़ाई और लड़ाई जाती हैं. लेकिन लखनऊ की पंतगबाजी जिस तरह से विभिन्न समुदायों को एक साथ जोड़ती है, वैसे उदाहरण बहुत कम हैं. लखनऊ की पतंगे खुद एक दूसरे को काटते हुए भी लोगों को एक दूसरे से जोड़ती हैं.
 
( लेखक वरष्ठि पत्रकार हैं )