31 मार्च 2025 को जुम्मा तुल विदा है, यानी रमज़ान के आखिरी शुक्रवार की विदाई नमाज। इस दिन मस्जिदों में भारी भीड़ उमड़ती है, और अक्सर जगह की कमी के चलते नमाजी सड़कों पर भी नमाज अदा करने को मजबूर हो जाते हैं. यही स्थिति कई बार विवाद और प्रशासनिक दखल का कारण बनती है.
पिछले वर्षों में इस मुद्दे को लेकर कई बार टकराव और बहस देखी गई है. कई राज्य सरकारों ने खुले में नमाज पढ़ने पर पाबंदी लगा रखी है, फिर भी रमज़ान का आखिरी जुमा और ईद-बकरीद की नमाजों में लोगों को सड़कों पर आना पड़ता है. ऐसे में सवाल उठता है कि इस समस्या का समाधान कैसे निकाला जाए?
इस मसले पर आवाज़ द वॉयस ने मुस्लिम बुद्धिजीवियों, मौलवियों और इस्लामी विद्वानों से बातचीत की। उनका मानना है कि इस्लाम की बुनियादी शिक्षा दूसरों को तकलीफ न देने की है, और इसीलिए इस मामले को शांति और समरसता के साथ सुलझाने की जरूरत है.
जमीयत उलेमा फरीदाबाद के अध्यक्ष और बल्लभगढ़ ऊंचा गांव के मौलाना जमालुद्दीन का कहना है कि जुमे की नमाज के लिए विशेष तैयारियां की जा रही हैं. उन्होंने बताया कि इस बार उनके इलाके के हिंदू भाई भी उनकी मदद कर रहे हैं. उन्होंने आगे कहा-
"हमने गली-मोहल्ले में फालतू खड़े वाहनों को हटवा दिया है. साथ ही मोटरबाइकों और गाड़ियों के लिए अलग-अलग पार्किंग व्यवस्था की गई है.अगर भीड़ ज्यादा होती है, तो मस्जिद में कई जमातों में नमाज अदा कराई जाएगी. जरूरत पड़ी तो मस्जिद की तीसरी मंजिल भी खोल दी जाएगी. पानी और पार्किंग की व्यवस्था के लिए हमारे इलाके के हिंदू भाई भी आगे आए हैं."
मेरठ रेंज के डीआईजी कलानिधि नैथानी ने अलविदा जुमा, ईद-उल-फितर और चैत्र नवरात्रि के मद्देनजर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के निर्देश दिए हैं/उन्होंने कहा-
"सड़क पर नमाज नहीं पढ़ने दी जाएगी। परंपरा से हटकर कोई भी आयोजन नहीं होना चाहिए. इसके लिए थाना प्रभारियों और चौकी इंचार्जों की जिम्मेदारी तय की गई है."
जामिया स्कूल की टीचर और जानी-मानी साहित्यकार रख्शंदा रूही मेंहदी ने भी इस मुद्दे पर अपनी राय दी। उनका कहना है-
"इस्लाम शांति का पैगाम देता है. मुसलमान कतई नहीं चाहेंगे कि किसी को अनावश्यक परेशानी हो. अगर रास्ते में नमाज पढ़ने से आने-जाने वालों को दिक्कत होती है, तो इससे परहेज किया जाना चाहिए. मस्जिद में दो-तीन जमातें करके समाधान निकाला जा सकता है. अगर खुले में नमाज पढ़ने की मजबूरी हो, तो पुलिस प्रशासन से अनुमति लेनी चाहिए."
अजमेर में ख्वाजा गरीब नवाज के संयोजक हाजी सलमान चिश्ती ने भी सड़क पर नमाज पढ़ने से बचने की सलाह दी है. उन्होंने कहा-
"हमें कानून का पालन करना चाहिए और अपनी समस्याओं के समाधान के लिए प्रशासन से सहयोग लेना चाहिए. छोटी-छोटी बातों को लेकर विवाद खड़ा करने से बचना चाहिए."
नॉएडा निवासी और खाड़ी देशों में संपादक रह चुके वरिष्ठ पत्रकार शाहीन नज़र ने कहा कि पहले लोग एक-दूसरे की तकलीफ को समझते थे, लेकिन आज के दौर में सहनशीलता कम हो गई है. उन्होंने अपने इलाके की एक मस्जिद का उदाहरण देते हुए बताया-
"हमारी मस्जिद में भीड़ को देखते हुए 2-3 बार नमाज कराई जाती है, ताकि किसी को परेशानी न हो और सड़क जाम न हो.. पुलिस को भी इस दौरान थोड़ा संयम रखना चाहिए, ताकि आम लोगों में उनके प्रति कड़वाहट न रहे.."
इस चर्चा से यह स्पष्ट होता है कि सड़क पर नमाज पढ़ने से बचने के कई उपाय किए जा सकते हैं:
एक से अधिक जमातों का आयोजन: मस्जिदों में जगह की कमी हो तो 2-3 बार नमाज कराई जाए.
प्रशासन से अनुमति और सहयोग: अगर खुले में नमाज की जरूरत हो, तो स्थानीय प्रशासन से अनुमति ली जाए और वैकल्पिक स्थान की व्यवस्था कराई जाए.
स्थानीय समुदाय की भागीदारी: हिंदू-मुस्लिम भाईचारे को बढ़ावा देते हुए पार्किंग और अन्य व्यवस्थाओं में सहयोग लिया जाए.
पुलिस और प्रशासन का संतुलित रवैया: कानून व्यवस्था बनाए रखते हुए लोगों की धार्मिक भावनाओं का सम्मान किया जाए.
इस्लाम अमन और भाईचारे की तालीम देता है, और इसी सोच के साथ इस समस्या का समाधान निकाला जाना चाहिए..