भारत-पाक संबंध: कट्टरपंथियों के लिए नसीहत, संवाद ही रास्ता

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 19-10-2024
Indo-Pak relations in the eyes of Dawn: Advice for fundamentalists, dialogue is the only way
Indo-Pak relations in the eyes of Dawn: Advice for fundamentalists, dialogue is the only way

 

मलिक असगर हाशमी

इस्लामाबाद में आयोजित एससीओ शिखर सम्मेलन में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर की मौजूदगी को पड़ोसी देश किस नजरिए से देखता है, इसकी अक्कासी की है पाकिस्तान के प्रतिष्ठित अखबर ‘डाॅन’ ने. हालांकि ‘डाॅन’ के इस नजरिए को कई लोग यह कह कर खारिज कर सकते हैं कि यह पूरे पाकिस्तान की सोच नहीं है. मगर डॉन के संपादकीय में कही गई बातों को पूरी तरह खारिज भी नहीं किया जा सकता है. इसमें कही गई बातें वास्तविकता के बेहद करीब हैं. और यह तो एकदम सोलह आने सच है कि यदि पाकिस्तान ने भारत से अपने संबंध सुधार लिए तो उसकी आर्थिक तंगी बहुत हद तक दूर हो जाएगी. इसके अलावा इस संपादकीय में ’संवाद से मसले का हल सुलझाने’ और अपने ‘कट्टरपंथियों को नसीहत की बातें’  कही गई है, जो भारत का मूल नजरिया रहा है. इन टिप्पणियों के साथ यहां पाकिस्तान के प्रतिष्ठि अंग्रेजी अखबार डाॅन का यह विशेष संपादकीय हू-ब-हू प्रकाशित किया जा रहा है ताकि आम भारतीय भी समझ सकें कि पाकिस्तान का बुद्धिजीवि वर्ग एससीओ शिखर सम्मेलन से भारत-पाकिस्तान के बनते-बिगड़ते रिश्तों के बारे में क्या ख्याल रखता है.......................


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द्विपक्षीय प्रगति


भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर की इस्लामाबाद में आयोजित एससीओ शिखर सम्मेलन में भागीदारी के दौरान कोई बड़ी द्विपक्षीय सफलता नहीं मिली, जिसकी उम्मीद भी नहीं की जा रही थी. लेकिन, सबसे सकारात्मक बात यह रही कि भारत और पाकिस्तान के बीच वर्षों से बनी शत्रुता की जगह अब सभ्य और विनम्र आदान-प्रदान ने ले ली है.

हालांकि श्री जयशंकर ने हमेशा की तरह 'सीमा पार आतंकवाद' पर भारतीय रुख स्पष्ट किया, लेकिन पाकिस्तान को सीधे तौर पर संदर्भित नहीं किया. उनके बयान कूटनीतिक भाषा में थे. यह बात गौर करने लायक है कि जहां एससीओ के शासनाध्यक्षों को इस सम्मेलन में भाग लेने की आवश्यकता थी, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं भाग लेने के बजाय विदेश मंत्री को भेजना उचित समझा.

फिर भी, मौजूदा द्विपक्षीय संबंधों के संदर्भ में यह भारत द्वारा पूरी तरह इस मुद्दे को टालने के बजाय सीमित रूप से जुड़ने की ओर इशारा करता है, जो एक सकारात्मक संकेत है.श्री जयशंकर ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और अपने पाकिस्तानी समकक्ष से मुलाकात के दौरान अभिवादन किया और पाकिस्तान के आतिथ्य और शिष्टाचार के लिए धन्यवाद भी दिया.

यह पिछले साल की तुलना में निश्चित रूप से एक प्रगति है, जब पाकिस्तानी विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो-जरदारी को गोवा में आयोजित एससीओ विदेश मंत्रियों की बैठक में बेहद शत्रुतापूर्ण माहौल का सामना करना पड़ा था.

indiaशायद एससीओ, जो चीन और रूस के नेतृत्व में संचालित होता है, मरणासन्न सार्क जैसे समूहों की तुलना में क्षेत्रीय सहयोग के लिए एक बेहतर मंच बन रहा है।.इसका एक कारण यह हो सकता है कि भारत सार्क के अंतर्गत पाकिस्तान के साथ जुड़ने से इनकार करता रहा है. लेकिन यह भी संभव है कि नई दिल्ली की सोच में बदलाव हो रहा है, और भारत एससीओ को नुकसान पहुंचाने के डर से बीजिंग और मॉस्को को नाराज नहीं करना चाहता.

इस्लामाबाद में दिए अपने बयान में श्री जयशंकर ने "आतंकवाद" और "अलगाववाद" को "दोस्ती और अच्छे पड़ोसी संबंधों" में बाधक बताया. यह निश्चित रूप से भारत की पारंपरिक लाइन है, लेकिन पाकिस्तान की भी भारत के प्रति कुछ वास्तविक चिंताएं हैं, जिनमें कश्मीर का मुद्दा, भारत में मुसलमानों के साथ व्यवहार, और पाकिस्तान में भारतीय समर्थन से सक्रिय विध्वंसकारी तत्वों की गतिविधियां शामिल हैं.

एससीओ शिखर सम्मेलन के बाद जारी संयुक्त बयान में, सभी प्रतिभागियों ने "बातचीत के माध्यम से मतभेदों के शांतिपूर्ण समाधान" की प्रतिबद्धता की पुष्टि की, जो इस क्षेत्र में शांति का मार्ग प्रशस्त कर सकता है. बातचीत को बिना किसी बाधा के जारी रखना चाहिए और दोनों देशों के बीच बेहतर संबंधों की राह में आने वाली सभी रुकावटों को दूर किया जाना चाहिए.

हालांकि भारत के कट्टरपंथी पाकिस्तान से वार्ता की आवश्यकता को खारिज कर सकते हैं, क्षेत्रीय एकीकरण के सपने, विशेषकर जब दिल्ली यूरेशियाई बाजारों तक पहुंचना चाहती है, बिना संवाद के अधूरे रह सकते हैं. इसी तरह, पाकिस्तान में कट्टरपंथियों को समझना चाहिए कि भारत के साथ बेहतर संबंधों से पाकिस्तान को आर्थिक रूप से लाभ हो सकता है.

ऐसी खबरें भी हैं कि श्री जयशंकर की यात्रा के दौरान क्रिकेट संबंधों को फिर से शुरू करने पर चर्चा हुई. हालांकि भारत ने इसका खंडन किया है, लेकिन खेल संबंधों में सुधार और संबंधित उच्चायुक्तों की बहाली, सामान्यीकरण की दिशा में एक सकारात्मक शुरुआत हो सकती है.