प्रमोद जोशी
भारत और पाकिस्तान के रिश्तों को लेकर हाल में कुछ खबरें ऐसी सुनाई पड़ीं, जिन्हें एकसाथ जोड़कर पढ़ने की इच्छा होती है. हालांकि इन खबरों की पृष्ठभूमि अलग है और उनका आपस में सीधे कोई संबंध नहीं है, पर उनसे दोनों देशों के ठंडे-गर्म रिश्तों की शिद्दत का पता लगता है.
पहली खबर है पाकिस्तानी सेना के पूर्व डीजी आईएसपीआर मेजर जनरल (सेनि) अतहर अब्बास ने हाल में 14वें कराची लिटरेचर फेस्टिवल के दौरान हुई एक चर्चा में कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच सेना के बजाय किसी दूसरे स्तर पर बातचीत होनी चाहिए. ऐसा पाकिस्तान के हित में जरूरी है.
दूसरी खबर है पाकिस्तान की मदद को लेकर भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर का दो टूक बयान. पाकिस्तान इन दिनों गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. जयशंकर से एक इंटरव्यू में पूछा गया कि क्या ऐसे में हम पाकिस्तान की सहायता कर सकते हैं ?
उन्होंने जवाब दिया कि स्वाभाविक रूप से पड़ोसियों की चिंताएं हैं और एक भावना है कि हमें उनकी मदद करनी चाहिए. कल अगर किसी और पड़ोसी को कुछ हो जाता है तो भी यही होगा, लेकिन आप जानते हैं कि पाकिस्तान के लिए देश में क्या भावना है? जयशंकर ने श्रीलंका के आर्थिक संकट के दौरान भारत की सहायता का जिक्र किया और कहा कि श्रीलंका के साथ हमारे संबंध अलग हैं.
पड़ोसी का धर्म
ध्यान दें पिछले साल पाकिस्तान में जबर्दस्त बाढ़ आई थी, जिसमें भारी जान-माल का नुकसान हुआ था. आमतौर पर अतीत में दोनों देशों में जिसपर भी प्राकृतिक आपदा आई, दूसरे ने मदद की है. पर इसबार की आपदा में भारत ने पाकिस्तान की सहायता नहीं की. भारत ने संभवतः सहायता का मन बनाया था, पर पाकिस्तान ने मदद की प्रार्थना नहीं की. दूसरी तरफ हाल में तुर्किये के भूकंप के बाद भारत ने आगे बढ़कर मदद की.
मदद करना या लेना वस्तुतः मानवीय रिश्तों को बताता है. भारत और पाकिस्तान दो पड़ोसी नहीं, एक भौगोलिक-सांस्कृतिक परिवेश से निकले दो देश हैं. दोनों का मनमुटाव भी समझ में आता है, राजनीतिक-विवाद भी पड़ोसियों के बीच चलता है, पर दोनों के रिश्ते जिस दिशा में बढ़ते जा रहे हैं, वह चिंता का विषय है.
करीबी रिश्ते
ऐसा नहीं है कि रिश्तों में बदमज़गी के पीछे दोनों देशों की जनता की भूमिका है. सच यह है कि ऐसे तमाम मौकों पर दोनों तरफ के लोग एक-दूसरे के साथ प्रेम-भाव से मिलते हैं. अमेरिका, यूरोप और पश्चिम एशिया के देशों में रहने वाले दोनों देशों के नागरिकों के बीच अक्सर फर्क करना मुश्किल हो जाता है.
भारत और पाकिस्तान में इतनी बड़ी संख्या में नागरिकों के बीच पारिवारिक-रिश्तेदारियाँ हैं, जितनी दुनिया के किन्हीं दो देशों के बीच नहीं होंगी. एक भाई इधर और एक बहन उधर, चाचा-भतीजा, मामा-बुआ वगैरह-वगैरह. हजारों साल पुरानी सांस्कृतिक-सामाजिक एकता, फिर भी ऐसी दुश्मनी?
जावेद अख्तर का बयान
अब तीसरी खबर पर आएं, जिसमें इस दोस्ती और दुश्मनी के गैर-राजनीतिक आयाम छिपे बैठे हैं. फरवरी के दूसरे-तीसरे हफ्ते में पाकिस्तान के लाहौर में हुए फैज़ समारोह में भारत से गए गीतकार जावेद अख्तर के एक बयान को लेकर सरहद के दोनों तरफ की प्रतिक्रियाओं ने आशा और निराशा दोनों को एकसाथ जगाया है.
13फरवरी, 1911को सियालकोट में जन्मे फैज़ अहमद फैज़ क्रांतिकारी शायर थे. उनकी याद में हर साल लाहौर में फैज़ फेस्टिवल मनाया जाता है. तीन दिन तक चलने वाले इस समारोह में कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं. फैज अहमद फैज की बेटी मुनीजा हाशमी फैज़ फाउंडेशन ट्रस्ट चलाती हैं और इस कार्यक्रम की मुख्य आयोजक हैं.
इस कार्यक्रम में भारत के लेखक-कलाकार भी जाते रहे हैं. इस साल वहाँ जावेद अख्तर गए थे, जिनकी एक टिप्पणी ने सरहद के दोनों तरफ के लोगों का ध्यान खींचा. जावेद अख्तर पहली बार इस समारोह में शामिल नहीं हुए थे. चार साल पहले भी वे इस समारोह में शरीक हो चुके हैं.
उनकी बातों को लाहौर के दर्शक न केवल दिलचस्पी से सुनते हैं, बल्कि तालियों से सराहते भी है. आमतौर पर वे शायरी, बॉलीवुड, भाषा और भारत-पाकिस्तान के सामाजिक जीवन से जुड़ी बातें करते हैं और दर्शकों के सवालों के जवाब भी देते हैं.
वायरल वीडियो
इसबार भी उन्होंने समारोह के मंच से बड़ी रोचक बातें कहीं. इन्हीं बातों के बीच से 51सेकंड का वीडियो वायरल हो गया, जिसकी वजह से दोनों देशों में दो तरह की प्रतिक्रियाएं हुईं. इस वीडियो में जावेद अख्तर कह रहे हैं, 'यहां मैं तकल्लुफ़ से काम नहीं लूँगा. हमने तो नुसरत फ़तह अली ख़ान के बड़े-बड़े फ़ंक्शन किए, मेंहदी हसन के बड़े-बड़े फंक्शन किए, आपके मुल्क में तो लता मंगेशकर का कोई फ़ंक्शन नहीं हुआ. इस बात पर उन्हें दर्शकों की ओर से ख़ासी दाद मिली.
इसके बाद उन्होंने कहा, 'चलिए हम एक दूसरे को इल्ज़ाम ना दें, इस से हल नहीं निकलेगा. बात ये है कि आजकल जो इतनी गर्म फ़िज़ा (दोनों मुल्कों के माबैन माहौल है, वो कम होनी चाहिए. इसके बाद उन्होंने कहा, 'हम बंबई के लोग हैं. हमने देखा हमारे शहर पर कैसे हमला हुआ था, वो लोग नॉर्वे से तो नहीं आए थे, ना मिस्र से आए थे…वो लोग अभी भी आपके मुल्क में घूम रहे हैं. तो ये शिकायत हिंदुस्तानियों के दिल में हो तो आपको बुरा नहीं मानना चाहिए.
मुसबत सोच
प्रोग्राम में एक ख़ातून ने जावेद अख़्तर से सवाल किया कि आप कई बार पाकिस्तान आ चुके हैं और आप देख चुके हैं कि पाकिस्तान एक बहुत दोस्ताना, मुसबत (सकारात्मक) सोच रखने और मुहब्बत वाला मुल्क है, लेकिन हिन्दुस्तान में हमारा तसव्वुर इतना अच्छा नहीं है.
मैं ये जानना चाहती हूँ कि आप यहां आते हैं तो क्या वहां जा कर बताते हैं कि वो तो बड़े अच्छे लोग हैं, वो तो जगह-जगह बम नहीं मारते, हमें फूल भी पहनाते हैं और प्यार भी करते हैं। क्या आप जा कर बताते हैं या नहीं क्योंकि हम चाहते हैं कि इस खित्ते में अच्छे हालात होँ, हम आपस में मुहब्बत और दोस्ती करें.
इस पर जावेद अख़्तर ने कहा 'आप जो कह रहीं हैं इसमें बहुत सच्चाई है। और ये बहुत दुख की बात है कि लाहौर और अमृतसर के दरम्यान 30किलोमीटर का फ़ासला है. इसके बावजूद इन दोनों शहरों और मुल्कों के लोगों में एक दूसरे के बारे में जो लाइल्मी (अज्ञानता) है वो हैरतंगेज़ है। ये मत सोचें कि आप हिन्दुस्तान के बारे में सब कुछ जानते हैं या मैं ये नहीं कहूँगा कि मैं पाकिस्तान के बारे में सब कुछ जानता हूँ. ये लाइल्मी दोनों तरफ़ है.
सोशल मीडिया
आप पूरे वीडियो को व्यापक संदर्भ में देखें, तो यह बात सहज लगती है, पर इस वीडियो को तीन तरह से देखा गया. भारत में किसी ने सोशल मीडिया पर लिखा, ‘पाकिस्तान को घर में घुसकर मारा.’ सोशल मीडिया में यह वीडियो आने के पहले उनकी पाकिस्तान-यात्रा की भर्त्सना करने वाले संदेश भी थे, पर इस वीडियो के बाद उनकी तारीफ के संदेश आने लगे.
भारत के इन प्रशंसा-संदेशों के जवाब में पाकिस्तान से भर्त्सना-संदेश भी आने लगे. वहाँ के सिनेमा और सांस्कृतिक-जीवन से जुड़े बड़े कलाकारों ने एक के बाद एक ट्वीट फेंकने शुरू किए. अभिनेत्री रेशम ने इंस्टाग्राम पर लिखा, किसी भी चीज से ऊपर मेरा वतन है. इसके पहले उन्होंने इंस्टाग्राम पर एक तस्वीर शेयर की, जिसमें वे जावेद अख्तर के साथ नजर आ रही हैं. उन्होंने इस बात पर खेद व्यक्त किया.
अभिनेता शान शाहिद तब से लगातार जावेद अख्तर के खिलाफ ट्वीट कर रहे हैं. उन्होंने पूछा, इसे वीज़ा किसने दिया? बहुत से ट्वीट बेहद अभद्र भाषा में हैं. पत्रकार आयमा खोसा ने लिखा, 'सिर्फ एक छोटा सा इनसान ही किसी दूसरे मुल्क में जाकर अपने उन मेज़बानों की तौहीन करेगा जिन्होंने उसकी मेहमान-नवाज़ी और एहतराम में कोई कसर नहीं उठा रखी.
क्या गलत बोला ?
दूसरी तरफ पाकिस्तान के ही कुछ लोगों ने, भले ही उनकी संख्या बहुत कम है, लिखा है कि जावेद अख्तर ने क्या गलत बोल दिया? उन्होंने आपके सवाल का जवाब दिया है. आर्टिस्ट आसमां अरशद महमूद ने लिखा, जावेद साहब ने कुछ भी गलत नहीं कहा…हम दहशतगर्दों से हमदर्दी रखते हैं और हमारे पास इस बात के सबूत हैं कि मुंबई-हमले में हमारे सत्ता-प्रतिष्ठान का हाथ था.
पत्रकार ज़ुबैर अली ख़ान ने लिखा, 'जावेद अख़्तर साहब ने फ़ैज़ फेस्टिवल में जो कहा इस में ग़लत किया था? एक दूसरे की बात को बर्दाश्त करना सीखीं, अमन के क़याम से पहले दोनों तरफ़ अपनी गलतियों को तस्लीम करना होगा वर्ना दोनों तरफ़ के लोग प्रोपेगैंडा का शिकार हो कर गुरबत में ही पिसते रह जाएंगे। हमें दुश्मन नहीं पड़ोसी बनना है, ज़रा सोचिए.
बहरहाल जावेद अख्तर ने इन सब बातों के जवाब में कहा कि काफी लोगों ने मेरी बात पर तालियाँ बजाईं. पाकिस्तान में बहुत से लोग हैं, जो भारत के प्रशंसक हैं और हमारे साथ रिश्ते चाहते हैं.
बीबीसी उर्दू की शुमाइला जाफ़री से बात करते हुए मुनीजा हाशमी ने कहा कि ’वो जिस तरह चाहते थे वैसे बोले, लोगों ने उन्हें बड़े एहतराम से सुना, ये बहुत ख़ूबसूरत था. अगर कोई सियासत करना चाहता है तो ये इस पर मुनहसिर है, हम अपने दिल के दरवाज़े खुले रखते हैं, यही फ़ैज़ साहब ने हमें सिखाया है.
सांस्कृतिक संपर्क
कुछ सच हैं और कुछ झूठ. दोनों देशों के बीच गीत-संगीत, थिएटर, सिनेमा, कॉमेडी कलाकारों वगैरह के रिश्ते भी बने हैं, पर पिछले एक दशक से ज्यादा समय हो गया, दोनों देशों के बात पत्रकारीय रिश्ते भी टूट चुके हैं. पहले समझौता था कि दोनों देशों के दो-दो संवाददाता एक दूसरे के यहाँ काम करेंगे, पर पहले पाकिस्तान ने 2011के बाद से भारत में अपने संवाददाताओं की नियुक्ति रोकी, और फिर 2014में दो भारतीय संवाददाताओं को निकाला. तब से पत्रकारीय-संपर्क शून्य है.
किताबों-पत्रिकाओं और अखबारों का आदान-प्रदान, टीवी चैनलों को काम करने और प्रसारण की छूट वगैरह ऐसी गतिविधियाँ हैं, जिनके सहारे अपनापन सरहदें पार करता है. जावेद अख्तर ने जिस लाइल्मी की बात कही है, वह यों ही पैदा नहीं होती. इस इलाके के हालात ठीक रखने के लिए जरूरी है कि कम से कम जनता के बीच संवाद हो.
इंटरनेट पर दोनों देशों के पाठकों के लिए कोई ऐसी पत्रिका कभी शुरू की जा सकती है, जिसकी भाषा एक हो, फर्क सिर्फ लिपि का हो. संवाद का रास्ता एकदम समतल नहीं होगा. पथरीला ही सही, पर वह होना चाहिए.
( लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं )
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