इंदिरा गांधी का मुस्लिम तुष्टिकरण और पसमांदा समाज

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 08-11-2024
Indira Gandhi's Muslim appeasement and the Pasmanda community
Indira Gandhi's Muslim appeasement and the Pasmanda community

 

faiziडॉ फैयाज अहमद फैजी

पिछले दिनों 31 अक्टूबर को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का बलिदान दिवस था.इसमें कोई दो राय नहीं कि इंदिरा जी एक कुशल प्रशासक और लंबे समय तक भारत की प्रधानमंत्री रहने वाली महिला हैं.वह अपने असाधारण फैसलों के लिए देश और विदेश में विख्यात भी रहीं.जहां तक देशज पसमांदा समाज और उसकी समस्याओं का प्रश्न है,वह अपने पिता की तरह मुस्लिम समुदाय को एक समरूप इकाई ही मानती रहीं और पसमांदा के सवाल पर खामोशी बरती.

मुस्लिम समाज में जातिवाद की समस्या को स्वीकार करना तो दूर अपने क्रियाकलापों से इस विभेद को नकारती ही रहती थीं. नेहरू की तरह इंदिरा गांधी ने भी अल्पसंख्यक मामलों में अशराफ तुष्टीकरण की अपनी नीति को तरजीह देती रहीं.मुसलमानों के मामले में वह अशराफ लीडरों और कट्टर अशराफ उलेमा(मौलवियों) पर ही निर्भर रहती थी.

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) का जन्म भी इन्ही अशराफ तुष्टिकरण वाली परिस्थितियों में हुआ था.उस समय की इंदिरा सरकार बच्चों को गोद लेने के लिए बने कानून में संशोधन ला रही थी,लेकिन अशराफ राजनेताओं, बुद्धिजीवियों और अशराफ उलेमा ने इसका जमकर विरोध किया.

 उन्होंने आपस मे मिलकर एक संगठन का निर्माण किया जिसे ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) कहते हैं.यह एक कट्टर धार्मिक, मध्ययुगीन मानसिकता वाला, महिला और पसमांदा विरोधी तथा इस्लाम धर्म में नस्लीय और जातिगत ऊंच नीच की मान्यता देने वाला संगठन है,जो उसके “परिचय” में लिखित बोर्ड के गठन के उद्देश्य से स्पष्ट हो जाता है.

लिखा है कि "जब हुकूमत(सरकार) ने कानून साज़ी (बनाना) के जरिए(द्वारा)शरई कानून (शरीयत कानूनों) को बेअसर(निष्प्रभावी) करने की कोशिश किया."(यह बात हमारे पार्लियामेंट्री सिस्टम पर झूठा आरोप प्रतीत होता है)

फिर लिखा है

"मुस्लिम मआशरे(समाज) में तमाम(संपूर्ण) गैर-इस्लामी रस्म व रिवाज(सभ्यता एवं संस्कृति) मिटाने का जामे मंसूबा( व्यापक योजना)".(यह इस्लाम के नाम पर देशज पसमांदा को उसकी देसी सभ्यता एवं संस्कृति से विमुख करने की एक चाल प्रतीत होता है.)

अशराफ से घिरी इन्दिरा जी ने सेकुलरिज्म को त्यागते हुए न सिर्फ कानून लाने को लेकर अपने कदम पीछे खींच लिए,बल्कि AIMPLB को विधिवत मुसलमानों के प्रतिनिधि सभा के रूप में उभरने का अवसर भी दे दिया.इस मामले में इंदिरा ने पसमांदा पक्ष जानने का तनिक भी प्रयास नहीं किया.

indira

उन्होंने निरीह पसमांदा को मध्ययुगीन और कट्टरपंथी मानसिकता वाले अशराफी संगठन के रहमो करम के हवाले कर दिया.इस प्रकार जाने अनजाने या जान बूझकर पसमान्दा समाज को पस्ती के गर्त मे पड़ा छोड़ दिया.अशराफ तुष्टिकरण में ही इन्दिरा ने सन् 1981 में कानून लाकर उच्चतम न्यायालय के सन् 1967 के फैसले को उलट करके अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सीटी के अल्पसंख्यक दर्जा को बहाल कर दिया.

यह सर्वविदित है कि AMU को अल्पसंख्यक दर्जा होने पर उसके शैक्षणिक, गैर शैक्षणिक कर्मचारी और विद्यार्थी के रूप में, पसमांदा समाज का प्रवेश, संविधान प्रदत्त सामाजिक न्याय के आरक्षण के अनुसार लाभ न मिलने की वजह से लगभग वर्जित है.अगर AMU को अल्पसंख्यक दर्जा इंदिरा सरकार ने नहीं दिया होता तो वहां संविधान प्रदत्त सामाजिक न्याय का आरक्षण लागू होता और पसमांदा जो ओबीसी और एसटी आरक्षण में आता है, को समुचित भागीदारी सुनिश्चित हो सकता था.

इसी कड़ी मे इण्डियन इस्लामिक कल्चरल सेंटर (IICC) को भी देखा जा सकता है जो इंदिरा गांधी के मुस्लिम(अशराफ) तुष्टिकरण का एक और शाहकार साबित हुआ है.संदर्भ ये था कि 1980 में इस्लाम के एक हजार चार सौ साल पूरा होने पर पूरी मुस्लिम दुनिया में जश्न चल रहा था.

indira

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार ने उप राष्ट्रपति जस्टिस हिदायतुल्ला खान की अगुवाई वाली कमेटी की सिफारिश पर 1981 में सोसायटी का पंजीकरण करके इसे पॉश लुटियंस जोन में लगभग 72 हजार वर्ग फुट राज्य भूमि अलॉट कर दी.24 अगस्त 1984 में इंदिरा गांधी ने इसका शिलान्यास किया और इसे इस्लाम और मुसलमान नाम पर शासक वर्गीय आशराफ वर्ग को समर्पित कर दिया.

यह सेंटर बाद में जाकर एक छोटा पाकिस्तान ही साबित हुआ.यह सेंटर मुस्लिम विशिष्टता को बढ़ावा देता है.यह ज्ञात होना चाहिए कि इस तरह की मुस्लिम विशिष्टता के कारण ही भूत काल मे पाकिस्तान का निर्माण हुआ था.अब यह सेंटर विदेशी शासकवर्गीय अशराफ मुसलमानो का इस्लाम और मुसलमान के नाम के आड़ मे मौज मस्ती का अड्डा भर बन कर रह गया है.बड़ी संख्या में इसके सदस्य विदेशों में रहते हैं.हालांकि कुछ हिंदू भी इसके सदस्य हैं,लेकिन वह ऐसे ही है जैसे पाकिस्तान में हिंदू समाज.

इंदिरा का यह एक विशुद्ध अशराफ तुष्टीकरण था.अगर ऐसा नहीं है तो फिर उन्होंने इंडियन बौद्ध कल्चरल सेंटर, इंडियन जैन कल्चरल सेंटर, इंडियन पारसी कल्चरल सेंटर या इंडियन यहूदी कल्चर सेंटर क्यों नहीं बनवाया?समय-समय पर पसमांदा आंदोलन यह मांग उठाता रहा है कि इस इंडियन इस्लामिक कल्चरल सेंटर को प्रथम पसमांदा आंदोलन के जनक असीम बिहारी के नाम पर एक विश्व स्तरीय हॉस्पिटल में बदल दिया जा.

इंदिरा ने मुसलमानों के बीच सामाजिक सुधार के महत्वपूर्ण जिम्मेदारी से अपने आप को सदैव अलग ही रखा.एक सेकुलर देश के सेकुलर प्रधानमंत्री के लिए ये उचित नहीं था.इसके लिए इंदिरा का अशराफ नेताओं पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता ही मुख्य कारण जान पड़ता है.

( लेखक पेशे से चिकित्सक और पसमांदा मामले के विशेषज्ञ हैं.यह उनके विचार हैं.)