देशज पसमांदा समाज, वक्फ बोर्ड और भ्रांतियां

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 06-03-2025
Indigenous Pasmanda society, Wakf Board and misconceptions
Indigenous Pasmanda society, Wakf Board and misconceptions

 

faiziडाॅ फैयाज अहमद फैजी

पिछले दिनों कर्नाटका राज्य से ये खबर आई थी कि वक्फ बोर्ड द्वारा किसानों की जमीनों पर दावों के खिलाफ किसानों ने संघर्ष छेड़ दिया है. हाल ही में कर्नाटक के वक़्फ़ मंत्री जमीर अहमद खान ने एक बैठक में वक्फ बोर्ड की जमीनों का सर्वेक्षण करने की बात की थी.

किसानों का आरोप है की जमीनों के मालिकाना अधिकार वाले पत्रों में पहले ही बदलाव कर दिया गया है जिसे किसानों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. हालांकि कर्नाटक के गृह मंत्री जी.परमेश्वर ने किसानों को कहा है कि उनकी सरकार  मामले की समीक्षा करेगी.
 
यह मामला वक्फ बोर्ड की विसंगतियों को ही परिलक्षित करता है और यह बताता है कि मौजूदा वक्फ बोर्ड में संशोधन की आवश्यकता कितनी अपरिहार्य है.संयुक्त संसदीय समिति  वक्फ संशोधन बिल ने  पूरे देश मे भ्रमण कर लगभग सभी हितधारकों से संवाद स्थापित किया और कुछ आवश्यक बदलाव के साथ बिल को संसद के बजट सत्र में दोनों सदनों के पटल पर रख दिया है.
 
आल इण्डिया पसमांदा मुस्लिम महाज के प्रतिनिधि मण्डल के साथ मैंने भी जेपीसी के समक्ष देशज पसमांदा का पक्ष रखा है और कई एक सुझाव रखने के साथ बिल के पक्ष मे अपना समर्थन दिया है.बाहरी तौर पर देखने से वक्फ बोर्ड की अवधारणा उचित ही जान पड़ती है,
 
लेकिन पड़ताल करने पर यह समझ आता है कि आजादी और बंटवारे से पहले ही तत्कालीन सरकार से मिलकर कुछ अशराफ लोगों ने ऐसे कानून बनवाए, जिससे उनका स्वार्थ सिद्ध होता रहे। समय- समय पर इसके नियम कानून में बदलाव होते रहते हैं.
 
विधिवत रूप से 1954 में वक्फ बोर्ड का गठन हुआ. हालांकि, 1995 के संशोधन से वक्फ बोर्ड को अनेक शक्तियां मिलीं. पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार ने वक्फ एक्ट 1954 में संशोधन किया और नए-नए प्रावधान जोड़कर वक्फ बोर्ड को और अधिक शक्तियां प्रदान कर दिया.
 
वक्फ एक्ट 1995 का सेक्शन 3(आर) के मुताबिक, अगर कोई संपत्ति, किसी भी उद्देश्य के लिए मुस्लिम कानून के मुताबिक पाक (पवित्र), मजहबी (धार्मिक) या (चेरिटेबल) परोपरकारी मान लिया जाए तो वह वक्फ की संपत्ति हो जाएगी.
 
वक्फ एक्ट 1995 का आर्टिकल 40 कहता है कि यह जमीन किसकी है, यह वक्फ का सर्वेयर और वक्फ बोर्ड तय करेगा. बाद मे वर्ष 2013 में मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार ने 1995 के मूल वक्फ एक्ट में बदलाव करके बोर्ड की शक्तियों में और वृद्धि करते हुए वक्फ को इससे संबंधित मामलों में लगभग पूर्ण स्वायत्तता प्रदान कर दिया.
 
अभी तक चाहे देश में किसी भी पार्टी की सरकार हो, लेकिन आप वक्फ बोर्ड पर ध्यान देंगे तो उसमें अब तक अशराफ यानी कि शासक वर्गीय मुसलमानो को ही उसके कर्ता-धर्ता पाएंगे. वक्फ का मतलब दान दी गयी संपत्ति होता है. उस दान दी हुई राशि और संपत्ति से गरीब, कमजोर और असहाय लोगों की ही मदद की जानी चाहिए, लेकिन फिलहाल वक्फ बोर्ड के लोग इसको अपने स्वार्थ के हिसाब से मैनेज करते रहें हैं.
 
अल्पसंख्यक मंत्री किरन रिजिजू ने वक्फ बोर्ड में माफिया का कब्जा होने की बात स्वीकारा है. वक्फ बोर्ड के पास अपना खुद का ट्रिब्यूनल कोर्ट है. वक्फ के पास पावर है, सरकार ने भी वक्फ को पावर दिया ताकि गरीबों और असहाय की मदद हो सके, लेकिन उस पावर का वक्फ में बैठे अशराफ मुसलमानों द्वारा अपने निजी स्वार्थी के लिए गलत इस्तमाल किया जाता रहा है.
 
भारत में ज्यादातर जो मुस्लिम लीडर हैं वो अशराफ ही हैं, इसलिए अगर उनका कोई भाई लूट रहा होता है, तो दूसरा उसका विरोध नहीं करता है. वक्फ द्वारा कई जगह हिंदुओं की संपत्ति पर कब्जा की बातें भी सामने आई हैं.
 
मुस्लिम समुदाय की संपत्तियों पर भी वक्फ बोर्ड अपना दावा करते आया है. कई जगहों के कब्रिस्तान, मस्जिद और मदरसा तक को अपना बताते हुए कब्जा कर लिया है। साथ ही उन संपत्तियों को कई बार अपने फायदे के लिए बेच दिया जाता है. जबकि इस्लामिक कानून के मुताबिक वक्फ किये गए किसी भी संपत्ति का क्रय-विक्रय नहीं किया जा सकता है.
 
आज तक वक्फ बोर्ड से गरीब और दबे-कुचले मुस्लिम लोगों का कोई खास फायदा होता हुआ नहीं दिख रहा है. वक्फ से पसमांदा समाज के मुसलमान को जो फायदा मिलना चाहिए, उनको वो फायदा नहीं दिया जा रहा है. शायद इसी को देखते हुऐ सरकार ने बिल मे OBC मुसलमानो को भी भागेदारी देने की बात किया है.
 
जेपीसी के समक्ष अपना पक्ष प्रस्तुत करते हुए मैंने इसमें दलित और आदिवासी मुसलमानो को भी प्रतिनिधित्व देने की गुहार लगाई है. जिस पर वहाँ मौजूद ज्यादातर सदस्यों ने सहमति भी जताई थी.हर मामले की तरह इस विषय पर भी मुस्लिम समाज के लोगों को भ्रमित किया जा रहा है.
 
वक्फ संसोधन बिल पास हो जाए तो पूरे मुस्लिम समुदाय और देश दोनों को फायदा होगा. अभी जिस तरह से विरोध हो रहा है, बिल के पास होने के बाद होगा, ठीक उसी तरह जब कभी तीन तलाक के बारे में विरोध हो रहा था, हालांकि वो कदम समाज के हित के लिए था.
 
तथाकथित सेक्युलर, लिबरल और अशराफ़ गठजोड़ वाले मीडिया, बुद्धिजीवी लोगो द्वारा पूरे मुद्दे को सांप्रदायिक बनाने की कोशिश की जा रही है और सरकार की मनसा पर प्रश्नवाचाक चिन्ह लगा रहें हैँ, जबकि सरकार सिर्फ संशोधन करने की बात कर रही है, तो लोगों को पहले समझना होगा कि इसको बेवजह का संप्रदायिक मसला बनाने की कोशिश ना किया जाए.
 
लोगो को समझना चाहिए कि वक़्फ़ बोर्ड सरकार की संस्था है समय समय पर सरकारों ने उसके लिए एक्ट बनाए उसमें सुधार(अमेंडमेंट) भी करते रहें हैं.इसमें व्याप्त करप्शन/विसंगतियों को दूर करने के लिए यह बिल लाया गया है इस के कुछ पॉइंट्स पर सहमति असहमति जताई जा सकती है किंतु पूरे बिल का विरोध करना रिग्रेसिव एटीट्यूड है. जिससे समाज और देश दोनों को बचना चाहिए.
 
 
(लेखक अनुवादक, स्तंभकार, मीडिया पैनलिस्ट ,पसमांदा सामाजिक कार्यकर्ता एवं आयुष चिकित्सक )