फ़िरदौस ख़ान
हिन्दुस्तान में मुसलमानों से वाबस्ता जितने मसले हैं, उतने शायद ही दुनिया के किसी और देश में देखने और सुनने को मिलते हों. परिवार नियोजन को ही लें. आज पूरी दुनिया में मुसलसल बढ़ती आबादी एक बड़ी चुनौती बन चुकी है. इस बढ़ती आबादी ने बहुत-सी समस्याएं पैदा कर दी हैं. संसाधन सीमित हैं. ज़मीन को खींचकर बड़ा तो नहीं किया जा सकता है. बस्तियां बस रही हैं और खेत लगातार छोटे होते जा रहे हैं. खाद और रसायनों का इस्तेमाल करके आख़िर कब तक कृषि भूमि का अत्यधिक दोहन किया जा सकता है. रसायनों के ज़्यादा इस्तेमाल से खेत भी बंजर होने लगे हैं. जब तक बढ़ती आबादी पर क़ाबू नहीं पाया जाता, तब तक संसाधन कम ही पड़ते रहेंगे, चाहे कितनी ही कोशिशें कर ली जाएं. अगर हमें जल, जंगल और ज़मीन को बचाना है, तो किसी भी हाल में बढ़ती आबादी पर रोक लगानी ही होगी. यह तभी हो सकता है, जब सब अपनी ज़िम्मेदारी समझें.
अब हमारा भारत दुनिया का सबसे ज़्यादा आबादी वाला मुल्क बन चुका है. संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत की कुल आबादी 142.86 करोड़ तक पहुंच गई है, जबकि चीन की कुल आबादी 142.57 करोड़ है. यह आबादी लगातार बढ़ ही रही है. ऐसे में इतनी बड़ी आबादी की बुनियादी ज़रूरतें पूरी करने के लिए संसाधन कहां से आएंगे? इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है. हां, बढ़ती आबादी की समस्या से ज़रूर निपटा जा सकता है. इसके लिए आबादी पर क़ाबू पाना होगा.
परिवार नियोजन कार्यक्रम
जन्म दर को कम करने के मक़सद से केंद्र सरकार ने साल 1952 में परिवार नियोजन कार्यक्रम शुरू किया था. इस कार्यक्रम को शुरू करने वाला भारत पहला देश था. लेकिन अफ़सोस की बात यह है कि सरकार की तमाम क़वायद के बावजूद देश की आबादी लगातार बढ़ती ही जा रही है. इससे निपटने के लिए जनसंख्या नियंत्रण क़ानून लाने की बात कही जा रही है. साल 2019 में जनसंख्या विनियमन विधेयक लाया गया था. इसके तहत दो से ज़्यादा बच्चे पैदा करने पर सज़ा और सरकारी योजनाओं के फ़ायदे से वंचित करने का प्रस्ताव रखा गया था, लेकिन यह मामला अधर में ही लटका हुआ है.
परिवार नियोजन का विरोध
देश के ज़्यादातर मुसलमान परिवार नियोजन के ख़िलाफ़ हैं. उनका मानना है कि परिवार नियोजन इस्लाम के ख़िलाफ़ है. उनकी इस सोच के पीछे मज़हब के वे अलमबरदार हैं, जो उन्हें यह बताते हैं कि बच्चे अल्लाह की देन हैं. अपनी इस बात को सही ठहराने के लिए उनके पास क़ुरआन की दलीलें भी हैं.
वे क़ुरआन का हवाला देते हैं- “और ग़रीबी की वजह से अपनी औलाद को क़त्ल न करो. हम ही तुम्हें रिज़्क़ देते हैं और उन्हें भी देंगे. और बेहयाई के कामों के क़रीब मत जाओ अगरचे वे ज़ाहिरी हों या पोशीदा हों. और उस जान को क़त्ल न करो, जिसे अल्लाह ने हुरमत दी है, सिवाय शरई हक़ के.” (6:151)
“और तुम अपनी औलाद को ग़रीबी के ख़ौफ़ से क़त्ल न करो. हम उन्हें भी रिज़्क़ देते हैं और तुम्हें भी रिज़्क़ देते हैं. बेशक उन्हें क़त्ल करना बहुत सख़्त गुनाह है. यही वे बातें हैं, जिनका उसने तुम्हें हुक्म दिया है, ताकि तुम समझो.” (17:31)
लेकिन क़ुरआन की इन आयतों में अपनी औलाद को क़त्ल करने से मना किया गया है, न कि परिवार नियोजन पर पाबंदी लगाई गई है. औलाद को क़त्ल करना एक बात है और परिवार नियोजन दूसरी बात. इनका आपस में कोई लेना-देना ही नहीं है. क़ुरआन करीम में बार-बार दोहराया गया है कि इसे समझो, लेकिन लोग न तो क़ुरआन का तर्जुमा पढ़ते हैं और न ही उसे समझने की कोशिश करते हैं. वे तो सिर्फ़ सवाब कमाने की नीयत से क़ुरआन की तिलावत करते रहते हैं. मज़हबी सियासतदां इसी बात का फ़ायदा उठाते हैं और मुद्दों को अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल करते हैं.
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दरअसल तक़रीबन डेढ़ हज़ार साल पहले सऊदी अरब में बेटियों को पसंद नहीं किया जाता था. उन्हें बोझ समझा जाता था और पैदा होते ही उन्हें ज़मीन में ज़िन्दा दफ़न कर दिया जाता था. क़ुरआन करीम में इसका ज़िक्र मिलता है. अल्लाह तआला फ़रमाता है- “और जब उनमें से किसी को लड़की की पैदाइश की ख़ुशख़बरी दी जाती है, तो रंज से उसका चेहरा स्याह हो जाता है और वह गु़स्से से भर जाता है. वह क़ौम से छुपा फिरता है, उस ख़बर की वजह से जो उसे सुनाई गई है. वह सोचता है कि उसे रुसवाई के साथ ज़िन्दा रखे या ज़िन्दा मिट्टी में दफ़न कर दे. जान लो कि तुम लोग कितना बुरा फ़ैसला करते हो. (16 : 58-59)
“और जब ज़िन्दा दफ़नाई गई लड़की से पूछा जाएगा कि उसे किस गुनाह की वजह से क़त्ल किया गया?” (81:8-9)
अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस कुप्रथा पर रोक लगाई और लोगों को तालीम दी कि वे अपनी बेटियों की अच्छी परवरिश करें. कई हदीसों में इसका ज़िक्र मिलता है. अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- "जिसकी तीन बेटियां या तीन बहनें, या दो बेटियां या दो बहनें हैं, जिन्हें उसने अच्छी तरह रखा और उनके बारे में अल्लाह से डरता रहा, तो वह जन्नत में दाख़िल होगा." (सहीह इब्ने हिब्बान)
अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “जिसकी तीन बेटियां हों और वह उनके होने पर सब्र करे, उन्हें अपनी कमाई से खिलाये व पिलाये और पहनाये, तो वे उस शख़्स के लिए क़यामत के दिन जहन्नुम से आड़ होंगी.” (इब्ने माजा शरीफ़)
हज़रत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “जिस शख़्स ने जवान होने तक दो बेटियों की परवरिश की तो क़यामत के दिन मैं और वह इस तरह आएंगे जैसे दो अंगुलियां. फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दो अंगुलियों को मिला दिया.” (मुस्लिम, तिर्मिज़ी)
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दरअसल आज भी बहुत से लोग बेटों की चाह में बेटियों को मां के पेट में ही क़त्ल करते रहते हैं या ज़्यादा बच्चे पैदा करते रहते हैं. क़ुरआन करीम में अल्लाह तआला फ़रमाता है- “आसमानों और ज़मीन की बादशाहत अल्लाह की है. वह जो चाहता है, पैदा करता है. वह जिसे चाहता है बेटियां देता है और जिसे चाहता है बेटे देता है. या उन्हें बेटे और बेटियां दोनों ही अता करता है. वह जिसे चाहता है बांझ बना देता है.” (42: 49-50)
क़ुरआन में कहीं भी ऐसा नहीं है कि परिवार नियोजन ग़लत है. क़ुरआन की कई आयतें ऐसी हैं, जिनमें दो बच्चे के दरम्यान अंतराल रखने का ज़िक्र किया गया है. क़ुरआन करीम में अल्लाह तआला फ़रमाता है- “और मायें अपने बच्चों को पूरे दो बरस तक दूध पिलाएं. यह हुक्म उसके लिए है, जो दूध पिलाने की मुद्दत पूरी करना चाहे. (2: 233)
“और हमने इंसान को अपने वालिदैन के साथ हुस्ने सुलूक करने का हुक्म दिया है. उसकी मां ने उसे पेट में रखने में तकलीफ़ उठाई और तकलीफ़ सहकर ही उसे जनम दिया. उसके पेट में रहने और दूध छोड़ने का वक़्त तीस माह है.” (46: 15)
“और हमने इंसान को उसके वालिदैन के मामले में नेकी करने का हुक्म दिया कि उसकी मां ने तकलीफ़ पर तकलीफ़ बर्दाश्त करके उसे पेट में रखा और दो बरस में उसका दूध छुड़ाया. (31: 14)
क़ाबिले ग़ौर बात यह भी है कि हदीसों में बहुत ज़्यादा बच्चों का ज़िक्र शायद ही मिलता हो. इन्हीं हदीसों को देखें] कहीं दो बच्चों का ज़िक्र है, तो कहीं तीन का. एक हदीस के मुताबिक़ जिसके तीन बेटे पैदा हों और उनमें से किसी का नाम मुहम्मद न रखे, तो वह जाहिल है. (तबरानी कबीर)
कई हदीसों में परिवार नियोजन के लिए गर्भनिरोधक तरीक़े इस्तेमाल किए जाने का ज़िक्र मिलता है. हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि हम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मुबारक ज़माने में अल अज़ल किया करते थे. हालांकि उस वक़्त क़ुरआन करीम नाज़िल हो रहा था. (बुख़ारी, तिर्मिज़ी, इब्ने माजा, मिश्कात शरीफ़)
हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इसकी ख़बर पहुंची, लेकिन आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मना नहीं किया. (मुस्लिम शरीफ़)
एक हदीस के मुताबिक़ सहाबियों ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अल अज़ल का ज़िक्र करते हुए अर्ज़ किया कि यहूदियों का दावा है कि यह मामूली शिशुहत्या है. इस पर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि यह झूठ है.
इन मोतबिर हदीसों से साबित होता है कि इस्लाम में गर्भनिरोधक तरीक़े अपनाने की कोई मनाही नहीं है. जो लोग इसे इस्लाम के ख़िलाफ़ बता रहे हैं, उन्हें या तो इस्लाम की पूरी जानकारी नहीं है या फिर वे इस्लाम के ख़िलाफ़ काम कर रहे हैं.
मुस्लिम देशों में परिवार नियोजन
दुनिया के कई मुस्लिम देशों ने परिवार नियोजन की ज़रूरत को समझा है और इसे बढ़ावा भी दिया है. इस मामले में ईरान बहुत आगे हैं. वहां की हुकूमत ने साल 1989 में परिवार नियोजन कार्यक्रम शुरू कर दिया था. पड़ौसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश, इंडोनेशिया और मिस्र सहित कई इस्लामी देश परिवार नियोजन कार्यक्रम चला रहे हैं. इसके तहत लोगों को परिवार नियोजन के लिए जागरूक किया जा रहा है. गर्भनिरोधक चीज़ें मुफ़्त तक़सीम की जा रही हैं. ख़ास बात यह भी है कि इन देशों की सरकारें इस अभियान में दीनी जमातों की मदद भी ले रही हैं. मस्जिदों में मौलवी लोगों को परिवार नियोजन के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं.
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फिर भारत में परिवार नियोजन का विरोध क्यों हो रहा है? ऐसा नहीं है कि सब मुसलमान परिवार नियोजन के ख़िलाफ़ हैं. हां, इनकी तादाद कम ज़रूर है. सनद रहे कि जनसंख्या विस्फोट एक बड़ी समस्या है. यह कहना ग़लत न होगा कि यह अनेक समस्याओं की जड़ है. इसलिए मुसलमानों को भी बढ़ती आबादी के मुद्दे पर संजीदगी से ग़ौर करना चाहिए और परिवार नियोजन को तरग़ीब देनी चाहिए.
(लेखिका आलिमा हैं. उन्होंने फ़हम अल क़ुरआन लिखा है.)