भारत तो एकजुटता से ही मजबूत रहेगा

Story by  क़ुरबान अली | Published by  [email protected] | Date 16-08-2021
भारत तो एकजुटता से ही मजबूत होगा
भारत तो एकजुटता से ही मजबूत होगा

 

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कुरबान अली

हिंदुस्तान क्या है ? विभिन्न सभ्यताओं, संस्कृतियों, धर्मों, जातियों, सम्प्रदायों और भाषाओं का संगम. यही इसकी खूबसूरती है. यह संगम ही इसे ‘विभिन्नताओं में एकता‘ वाला देश बनाता है.आज से लगभग 128  वर्ष पहले स्वामी विवेकानंद जब शिकागो गए थे, सभी धर्मों के विश्व संसद को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था, ‘‘ मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से आता हूं जहां सभी धर्मों को शरण दी गई.

सभी धर्मों को सम्मान दिया जाता है. मुझे गर्व है कि मैं ऐसे धर्म से जुड़ा हूं जिसने दुनिया को सहनशीलता और सभी धर्मों की स्वीकार्यता सिखाई‘‘.लगभग 5,000 वर्ष का हमारा ज्ञात इतिहास है. इनमें से लगभग 2,500 वर्ष पहले आज के बिहार में गौतम बुद्ध और भगवान महावीर पैदा हुए थे.

यह 2,500 वर्ष पूर्व की कहानी है. 2,017 साल पहले ईसा मसीह पैदा हुए. इतिहासकार बताते हैं कि ईसा मसीह की जिंदगी में ही पहला ईसाई भारत के केरल के समुद्र तट पर पहुंच गया था. यानी इस मुल्क में लगभग 2,000 वर्ष पूर्व ही ईसाई धर्म भारत आ गया था.

लगभग 1,400 वर्ष पूर्व इस्लाम आया, वह भी पैगंबर मुहम्मद के जीवन के दौरान . उस वक्त समुद्री रास्तों से एक दूसरे मुल्क से संपर्क होता था. पैगंबर के जमाने में उनके जो साथी थे (जिनको सहाबी कहते हैं) उनमें से एक केरल का  चेरामन पेरुमल था, जो ताजुद्दीन बना.

उसने ही 1,400 वर्ष पूर्व केरल में पहली मस्जिद बनाई थी. इसके बाद लगभग पांच सौ वर्ष पूर्व सिक्ख धर्म आया. गुरु नानक जो बड़े सूफी संत माने गए हैं. उन्होंने सिख धर्म स्थापित किया.

लगभग 1,000 वर्ष पहले लफ्ज ‘हिंदुस्तान‘ अस्तित्व में आया. मशहूर इतिहासकार अलबरूनी ने हजार साल पहले अपनी पुस्तक ‘किताब-उल-हिंद’ में बताया कि यह जो मुल्क हिंदुस्तान है, इसकी जो संस्कृति है, वह बहुत विशाल और महान है.

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उसने पंडितों से संस्कृत पढ़-समझकर भारत का इतिहास लिखा. यह बताया कि भारत कितना समृद्ध है. उसके ढाई-तीन सौ वर्ष बाद हजरत अमीर खुसरो पैदा हुए. उन्होंने राजधानी दिल्ली में रहकर उस भाषा को गढ़ा जो हिंदवी कहलाई.

वो पहले आदमी हैं जिन्होंने लफ्ज ‘हिंदवी’ का इस्तेमाल किया. यह हिंदी की भी जनक है और उर्दू की भी. वह कहते थे, तुर्क होने के बावजूद मैं हिंदी बोलता और जानता हूं. ‘‘मन तुर्क हिंदुस्तानियम, मन हिंदवी गोयम जबाब.”  हिन्दुस्तानीयम शब्द सबसे पहले अमीर खुसरो ने गढ़ा जो बाद में हिंदुस्तान बना.

यानी पिछले लगभग एक हजार साल में विभिन्न संस्कृतियों और मजहबों से जो एक संस्कृति पैदा हुई, जिसे हम प्यार से गंगा-जमुनी तहजीब या ‘हिन्दुस्तानियत‘ कहते हैं. उसका इस महान देश को एक बनाए रखने में बहुत बड़ा योगदान है.

यह बिल्कुल गलत है कि इसमें किसी एक धर्म, जाति भाषा या संप्रदाय का योगदान है. इसमें सबका योगदान है. जब अमीर खुसरो लिख रहे थे, ‘जिहाले मिस्कीन मकुन तगाफुल, वराए नैना बनाए बतियां, सखी पिया को जो मैं न देखूं तो कैसे काटूं अंधेरी रतियां’ तो उसमें ब्रज भी मिला रहे थे,

उसमें फारसी भी मिला रहे थे और हिन्दवी पैदा कर रहे थे. इसी हिंदुस्तान की बात महात्मा गांधी करते हैं. जब भाषा की बात आई तब उन्होंने कहा कि मेरी जुबान हिंदुस्तानी है. उसे चाहे जिस भी लिपि में लिखा जाए मुझे इससे कोई ऐतराज नहीं . लेकिन मैं इस जबान को हिंदुस्तानी जुबान कहना पसंद करूंगा.

1857 का विद्रोह वह तारीख है जो हमारी आजादी की पहली लड़ाई और हमारे राष्ट्रीय आंदोलन की ‘कट ऑफ डेट‘ है. इस बात को ‘हिंदुत्व‘ के सबसे बड़े आदर्श वीर सावरकर ने भी माना है. उन्होंने किताब लिखी है, ‘भारत की आजादी की लड़ाई’ उसमें 1857 को ही ‘कट ऑफ डेट‘ माना है.

वो लड़ाई मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के नेतृत्व में लड़ी गई.1857 से लेकर 1947 तक जो 90 वर्ष का समय है,  इसको हम राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में जानते है. इसमें कई सारी विचारधाराएं थीं.

जैसे दक्षिणपंथी, वामपंथी, समाजवादी, गांधीवादी, भगत सिंह के मानने वाले, इंकलाब , सिख, हिंदू, मुसलमान और ईसाई सभी थे. सब ने मिल कर अपने इस अजीम मुल्क की आजादी की लड़ाई लड़ी.

उसी 90 साल में यह तय हो गया था कि आजादी के बाद यह मुल्क कैसा होगा. इसका संविधान उसकी विचारधारा क्या होगी. देश कैसे चलेगा? 1931 का कांग्रेस का कराची रेज्यूल्युशन हमारे आज के भारतीय संविधान की मूल आत्मा है.

उस समय यह तय हो गया कि यह देश आजादी के बाद एक ‘सेक्यूलर‘ राष्ट्र होगा. यह एक लोकतांत्रिक समाजवादी देश होगा. इसमें हर आदमी को बराबर का दर्जा और अधिकार हासिल होंगे.
1947 में बंटवारे और पाकिस्तान बन जाने के बाद भारत को आसानी से हिंदू राष्ट्र घोषित किया जा सकता था. चूं भी नहीं होती, क्योंकि मुसलमान अपने हिस्से का पाकिस्तान ले चुके थे.

मगर यह महात्मा गांधी और उनके सहयोगियों सरदार पटेल, राजेंद्र प्रसाद, जवाहरलाल नेहरु की नैतिक शक्ति थी, जिन्होंने कहा कि हमने इस मुल्क की लड़ाई, जो 90 साल से ज्यादा लड़ी गई, उसमें हमने वायदा किया था मुल्क की अवाम के साथ कि जब आजादी मिलेगी तो ऐसा मुल्क बनाएंगे जिसमें किसी एक मजहब, भाषा का वर्चस्व (प्रभुत्व) नहीं होगा.

सबको बराबर के अधिकार होंगे. इसलिए महात्मा गांधी के सह-अस्तित्व की जो परिकल्पना है वह यही है. वह तो ‘सबको सम्मति दे भगवान ईश्वर अल्लाह तेरो नाम’ गाने वाले व्यक्ति थे. उन्होंने कभी भी मुस्लिम लीग के उस दावे को नहीं माना कि वह सारे  हिंदुस्तान के मुसलमानों  का  पूर्ण रूप से प्रतिनिधित्व करती है. वह अपने आप को हिंदू और मुसलमानों दोनों का नुमाइंदा मानते थे.
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कुछ बरस पहले मशहूर साहित्यकार डा.राही मासूम रजा ने सवाल किया था कि ‘क्या रामायण और महाभारत सिर्फ हिंदुस्तान के हिंदुओं की धरोहर है ? फिर इसका जवाब देते हुए उन्होंने लिखा था ‘रामायण‘ और ‘महाभारत‘ मेरी भी संस्कृति और विरासत का हिस्सा है.

वाल्मीकि और तुलसीदास का उत्तराधिकारी मैं भी हूं. यह बात ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ को हिन्दू-काव्य मानने वाले जितनी जल्दी समझ जाएं उतना ही अच्छा होगा. यही कारण है कि हमारी राजनीति उस अंबिका की तरह हो गई है जिसने ऋषि व्यास को देखकर आंखें बंद कर ली थीं.

हम जिस राजनीति के उत्तराधिकारी हैं वह सिर्फ धृतराष्ट्रों को जन्म दे सकती है. यदि हमें जीना है. देश को आगे ले जाना है तो हमें इन अंधे नेताओं की उंगली पकड़कर चलना छोड़ना पड़ेगा.‘

लगभग 30-31 बरस पहले इंडोनेशिया का एक दल रामलीला का मंचन करने दिल्ली आया था. उस दल के सभी 22 सदस्य मजहब से मुसलमान थे. रामलीला मैदान में उन्हें देखकर बीजेपी लीडर लालकृष्ण आडवाणी ने टिप्पणी की थी ‘‘मैं भारतीय मुसलमानों को ऐसा ही देखना चाहता हूं.‘‘

इस पर वरिष्ठ पत्रकार सईद नकवी ने एक लेख लिखा था जिसने बाद में किताब की शक्ल ले ली- ‘‘रिफ्लेक्शन ऑफ एन इंडियन मुस्लिम.‘‘ इस किताब में अनेक मिसालें दे कर बताया गया कि देश में कई मंदिरों के मुख्य पुजारी या कस्टोडियन मुसलमान हैं.

इसी तरह कई दरगाहों के कस्टोडियन हिंदू या सिख. अमरनाथ की गुफा में शेष अवतार के लिंग के दर्शन सबसे पहले एक मुस्लिम चरवाहे ने ही किए थे. आज  भी वहां चढ़ाए जाने वाले चढ़ावे का एक हिस्सा उस मुस्लिम चरवाहे के परिवार को जाता है. शायद इस कारण मशहूर शायर अल्लामा इकबाल ने भगवान राम की श्रद्धा में यह नज्म लिखी थी :

इस देस में हुए हैं हज़ारों मलक सरिश्त,

मशहूर जिनके दम से है दुनिया में नामे-हिन्द,

है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़,

अहले-नज़र समझते हैं उसको इमामे-हिन्द।

आज के इस दौर में हम इस चीज को याद करें जो रास्ता हमें महात्मा गांधी ने दिखाया था. वह न सिर्फ आजादी का था, हमारी उस 5,000 साल की विरासत को भी एकजुट रखने का रास्ता है.

हम अगर इस विचारधारा में यकीन करेंगे कि यह हिंदू राष्ट्र है तो यह मुल्क नहीं चलेगा. पाकिस्तान नफरत और धर्म के नाम पर बना था. 25 साल नहीं लगे उसको टूटने में. जब लोगों के दिल टूट जाते हैं, तो मुल्क टूट जाया करते हैं.

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मौलाना आजाद ने 1946 में एक इंटरव्यू दिया था ‘चट्टान’ मैगजीन के एडिटर शोरिश कश्मीरी को. उसमें उन्होंने कहा कि अगर मैं ये समझता कि पाकिस्तान का बनना  भारतीय उप-महाद्वीप के मुसलमानों के हक में है तो मैं पहला आदमी होता जो पाकिस्तान की हिमायत करता, लेकिन मैं देख रहा हूं कि ये मजहबी जुनून फिलहाल लोगों के सिरों पर चढ़ कर बोल रहा है.

जब-जब इसका नशा  उतरेगा , ये एक दूसरे का गला काटेंगे. 25 साल नहीं लगे मौलाना आजाद कि इस भविष्यवाणी को सच साबित होने में. जब पंजाबियों ने बंगालियों का गला काटा और उनकी महिलाओं के साथ रेप किया और बांग्लादेश का निर्माण हुआ.