फरहीन एम
भारत ने अपनी मानवीय सहायता के प्रयासों से दुनिया में एक मजबूत और विश्वसनीय प्रथम प्रतिक्रियाकर्ता के रूप में अपनी पहचान बनाई है, खासकर संकट के समय में जब अन्य देशों को मदद की आवश्यकता होती है. हाल ही में म्यांमार में आए विनाशकारी भूकंप के बाद, भारत ने तत्परता से राहत और सहायता प्रदान की, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि भारत मानवीय संकटों में न केवल क्षेत्रीय बल्कि वैश्विक स्तर पर भी अपनी भूमिका निभाता है.
म्यांमार भूकंप: भारत की त्वरित प्रतिक्रिया
28 मार्च को म्यांमार में 7.7 तीव्रता का भूकंप आया, जिसने न केवल भौतिक संरचनाओं को ध्वस्त किया, बल्कि हजारों लोगों की जान भी ले ली. बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, 3,000 से अधिक लोग मारे गए और 4,500 से ज्यादा लोग घायल हुए. इस भीषण आपदा के बीच, लाखों लोग अपने घरों से बेघर हो गए और भोजन व आश्रय की तलाश में इधर-उधर भागने लगे.
भारत ने जैसे ही इस संकट की खबर सुनी, उसने तत्काल सहायता जुटाने का कार्य शुरू किया. भारत ने अपनी आपातकालीन प्रतिक्रिया तंत्र को सक्रिय किया और चिकित्सा दल, राहत सामग्री और बचाव कर्मियों को म्यांमार भेजने की तैयारी शुरू कर दी.
भारतीय नौसेना ने दो जहाजों को राहत सामग्री के साथ तैनात किया, जबकि भारतीय वायुसेना ने ‘ऑपरेशन ब्रह्मा’ के तहत कई विमानों को राहत सामग्री और चिकित्सा दल के साथ यांगून भेजा. पहले विमान ने भूकंप के कुछ घंटों के भीतर 15 टन राहत सामग्री म्यांमार भेजी.
भारत की तत्परता और प्रभावी सहायता को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर कहा, "सभी की सुरक्षा और भलाई के लिए प्रार्थना कर रहा हूं. भारत हर संभव सहायता देने के लिए तैयार है." इस दौरान भारत ने म्यांमार को 400 टन से अधिक राहत सामग्री भेजी.
भारत की मानवीय मदद की लंबी परंपरा
भारत का यह कदम एक उदाहरण मात्र था। पिछले कुछ वर्षों में भारत ने न केवल अपने पड़ोसी देशों, बल्कि दूरदराज के देशों को भी आपदा के समय मदद पहुंचाई है.
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तुर्की और सीरिया भूकंप (2023): फरवरी 2023 में तुर्की और सीरिया में 7.8 तीव्रता का भूकंप आया, जिससे विशाल तबाही मची. भारत ने तुरंत ‘ऑपरेशन दोस्त’ के तहत राहत सामग्री, एनडीआरएफ टीमों और फील्ड अस्पतालों को भेजा। भारतीय बचाव दल ने अंतरराष्ट्रीय टीमों के साथ मिलकर ठंड के मौसम में मलबे में फंसे लोगों को बचाया.
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अफ़गानिस्तान भूकंप (2022): जून 2022 में अफ़गानिस्तान के पक्तिका प्रांत में 6.2 तीव्रता का भूकंप आया, जिससे भारी नुकसान हुआ. राजनीतिक जटिलताओं के बावजूद, भारत ने वहां टेंट, भोजन, और चिकित्सा किट भेजी. यह कदम एक राजनीतिक संदेश देने के साथ-साथ मानवता की सेवा में भारत के योगदान को भी उजागर करता है.
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कोविड-19 वैश्विक सहायता (2020-21): महामारी के दौरान, जब भारत अपने ही आंतरिक संकट से जूझ रहा था, तब भारत ने ‘दुनिया की फार्मेसी’ के रूप में अपने पड़ोसी देशों और अन्य देशों को कोविड-19 वैक्सीन की आपूर्ति की. भारत ने लगभग 100 देशों को लाखों वैक्सीन खुराक दी, जिनमें ब्राजील और बारबाडोस जैसे देश शामिल थे, जिन्होंने भारत को धन्यवाद दिया.
भारत की मदद को मीडिया में कम आंका जाता है
हालांकि भारत ने लगातार मानवीय सहायता प्रदान की है, लेकिन इसके बावजूद पश्चिमी मीडिया में भारत की भूमिका को सही तरीके से नहीं रेखांकित किया गया है. कुछ विश्लेषकों का मानना है कि इसका कारण भू-राजनीतिक पूर्वाग्रह हो सकता है.
पश्चिमी मीडिया आम तौर पर अमेरिका, यूरोपीय देशों और संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक संस्थाओं को आपदा राहत में प्रमुख भूमिका निभाने वाला मानती है, जबकि भारत का योगदान अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है.
इसके अतिरिक्त, भारत की विदेश नीति की बुनियाद ‘पड़ोसी पहले’ और ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ (दुनिया एक परिवार है) जैसे सिद्धांतों पर है, जो मानवीय सहायता को एक कर्तव्य मानता है. भारत अपने प्रयासों को प्रचारित करने की बजाय कड़ी मेहनत और निष्कलंक सेवाभाव में विश्वास रखता है, और यही कारण है कि इसका योगदान विश्व मंच पर उतना गूंज नहीं पाता.
भारत की मानवतावादी भूमिका: वैश्विक शक्ति के रूप में उभरता भारत
भारत की मानवीय सहायता की परंपरा को देखने से यह साफ़ है कि यह केवल एक क्षेत्रीय शक्ति नहीं है, बल्कि एक वैश्विक शक्ति के रूप में सामने आ रहा है जो संकट के समय दुनिया के विभिन्न हिस्सों में मदद पहुंचाता है.
भारत के सहयोग और समर्पण के बावजूद, वैश्विक मीडिया में इसे उतनी तवज्जो नहीं मिलती, जितनी उसे मिलनी चाहिए. हालांकि, भारत ने बार-बार साबित किया है कि वह न केवल एक जिम्मेदार वैश्विक नागरिक है, बल्कि संकट के समय में सबसे भरोसेमंद साथी भी है.
इसका उद्देश्य केवल सहायता पहुंचाना नहीं है, बल्कि यह संदेश भी देना है कि भारत अपने ‘पड़ोसी पहले’ सिद्धांत के तहत पूरी दुनिया के लिए एक मजबूत और विश्वसनीय सहयोगी बनकर सामने आ रहा है. अब समय आ गया है कि दुनिया इस योगदान को खुले दिल से स्वीकार करे और भारत की मानवीय भूमिका को सही तरीके से पहचानें.