सऊदी अरब का 89 वां राष्ट्रीय दिवस और मजबूत होते भारत-अरब रिश्ते

Story by  क़ुरबान अली | Published by  [email protected] | Date 23-09-2021
सऊदी अरब के 89 वें राष्ट्रीय दिवस पर भारत-सऊदी अरब रिश्ते
सऊदी अरब के 89 वें राष्ट्रीय दिवस पर भारत-सऊदी अरब रिश्ते

 

23 सितम्बर को सऊदी अरब का 89 वां राष्ट्रीय दिवस है. आज ही के दिन सन 1932 में  सऊदी अरब के बादशाह अब्दुल अजीज अल सऊद ने ‘किंगडम ऑफ नज्द एंड हेजाज‘ का नाम बदलकर किंगडम ऑफ सऊदी अरब किया था. यहां मार्च 1938 में तेल की खोज हुई. तब से  आजतक सऊदी अरब दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है. उसके पास अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा तेल के भंडार हैं. गैस भण्डारण के मामले में वह दुनिया का छठा बड़ा देश है. विश्व बैंक के मुताबिक, सऊदी अरब बहुत ही मजबूत अर्थव्यवस्था वाला देश है जिसका मानव विकास सूचकांक बहुत ही ऊंचा है. वह दुनिया भर की बीस सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है. 

 
इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार कुरबान अली भारत-सऊदी अरब रिश्तों की पड़ताल कर रहे हैं. 
 
 
भारत-सऊदी अरब रिश्ते 
 
यूं तो भारत और अरब देशों  के बीच सांस्कृतिक और व्यापारिक रिश्ते सैंकड़ों साल पुराने हैं. दोनों देशों के बीच समुद्री रास्तों के जरिए आपसी व्यापार होता आया है,  लेकिन 1947 में हिन्दुस्तान आजाद होेने और भारत  व सऊदी अरब के बीच राजनयिक रिश्ते कायम हो ने के बाद दोनों मुल्कों ने अपने रिश्तों की एक नई  इबारत लिखी और अपने आपसी रिश्तों और हितों को आगे बढ़ाया.
 
1955 में  सऊदी अरब के बादशाह शाह सऊद  ने एक बड़े लाव लश्कर के साथ हिंदुस्तान का दौरा किया. उनके इस दौरे के दौरान दोनों मुल्कों ने अपने ताल्लुकात बेहतर बनाने के उद्देश्य से कई अहम समझौतों पर दस्तखत किए.
 
शाह सऊद ने अपने इस दौरे के दौरान अलीगढ़.और जामिया का भी दौरा किया. दोनों विश्वविद्यालयों को सहायता राशि दी. शाह सऊद की दावत पर 1956 में भारत के पहले प्रधानमंत्री  जवाहरलाल नेहरू ने सऊदी अरब का दौरा किया.
 
वहां उनका शानदार स्वागत किया गया.उसी यात्रा के दौरान नेहरू को ‘रसूल-अस-सलाम‘ कह कर पुकारा गया,जिसका अरबी अर्थ है ‘शाँति का संदेश वाहक‘. लेकिन उर्दू में ये शब्द पैगंबर मोहम्मद के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इसलिए नेहरू के लिए ये शब्द इस्तेमाल करने पर
 
पाकिस्तान में शाह सऊद की काफी आलोचना हुई थी. लेकिन जवाहरलाल नेहरू और शाह सऊद के निधन के बाद हिन्द-सऊदी अरब संबंधों में पहले जैसी गर्मजोशी नहीं रही. इसकी एक बड़ी वजह तो पाकिस्तान का रवैया था,जो सऊदी अरब को लगातार भारत के खिलाफ भड़काता रहता था.
 
उसे काफिरों का  देश बता कर भारत से दूर रखता रहा था.1971 में बांग्ला देश को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध ने इस दूरी को और बढ़ाया. तबसे लेकर सन 1982 तक यानी तकरीबन एक दशक तक  तक हिन्द-सऊदी  संबंधों  पर ठंडी बर्फ जमी रही.
 
दोनों मुल्कों के दरम्यान कुछ गर्म जोशी उस वक्त आई जब 1982 में भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सऊदी अरब का दौरा किया. नए सिरे से दोनों मुल्कों के दरमियान कूटनीतिक और  व्यापारिक संबंधो  की एक नई इबारत लिखी.उनकी इस यात्रा के बाद सऊदी अरब ने भी दिल खोलकर हिन्दुस्तानियों का स्वागतकरने लगा. उन्हें बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए.
 
ये सिलसिला सन  2006 की जनवरी माह में उस वक्त और आगे बढ़ा जब हिंदुस्तान ने सऊदी बादशाह किंग अब्दुल्ला को गणतंत्र दिवस के अवसर पर मुख्य अतिथि बनाकर आमंत्रित किया. उनका जोरदार स्वागत किया गया.
 
किंग अब्दुल्ला के इस दौरे के दौरान 16 से ज्यादा द्विपक्षीय समझौतों पर दस्तखत किए गए. इस दौरे के जवाब में हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने सन 2010 में सऊदी अरब का दौरा किया. दोनों मुल्कों के व्यापारिक रिश्तों को एक नई दिशा दी. सन 2016 में मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सऊदी अरब का दौरा किया. उन्हें वहां के सबसे बड़े नागरिक सम्मान से नवाजा गया.  
 
पिछले एक दशक में और मजबूत रिश्ते

किसी जमाने में पूरी तरह पाकिस्तान के साथ रहने वाला सऊदी अरब अब धीरे-धीरे भारत के करीब आ रहा है. इसकी बड़ी वजह  सन 2004 में  2004 में शुरू की गई भारत सरकार की वो विदेश नीति है जिसके तहत सऊदी अरब से रिश्ते बेहतर बनाने की कोशिश की गई. जिसके नतीजे में सन  2006 में सऊदी अरब के तत्कालीन शासक किंग अब्दुल्ला का भारत दौरा हुआ. प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने सऊदी अरब की यात्रा की यात्रा की. 
 
उल्लेखनीय  है कि इस समय सऊदी अरब  में 27 लाख से ज्यादा भारतीय रहते हैं . तकरीबन 15 लाख भारतीय रोजगार कर रहे हैं. इनसे हर साल वहां से 11 बिलियन डॉलर से ज्यादा विदेशी मुद्रा भारत में आती है.भारत अपनी जरूरत का 18 प्रतिशत कच्चा तेल और 32 प्रतिशत एलपीजी  सऊदी अरब से आयात करता है.
 
सऊदी से लगभग 22 अरब डॉलर के पेट्रोलियम पदार्थ भारत खरीदता है.दोनों देशों के बीच तकरीबन 27.5 अरब डॉलर से ज्यादा का व्यापार है. इस लिहाज से सऊदी अरब भारत का चैथा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन चुका है.
 
सऊदी अरब  भारत में 100 अरब डॉलर का निवेश करना चाहता है. दूसरी ओर, सऊदी अरब में स्मार्ट सिटी, रेड सी टूरिज्म और एंटरटेनमेंट सिटी जैसी परियोजनाओं में भारतीय कंपनियां लगातार हिस्सेदारी बढ़ा रही हैं.
 
सऊदी अरब भारत के उन 8 रणनीतिक साझेदारों में से एक है जिसके साथ लगातार संबंध बेहतर हो रहे हैं. दोनों देश अंतरराष्ट्रीय मंच पर आपसी संबंध बेहतर करने के लिए लगातार राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखा रहे हैं. इसके अलावा हर साल लगभग डेढ़ लाख भारतीय हज करने और कई लाख उमरा करने सऊदी अरब जाते हैं. सऊदी अरब भारतीय हज यात्रियों को कई तरह की सुविधाएं मुहैया कराता है.
 
मजबूत हुई अर्थव्यवस्था

 सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने इस साल अप्रैल में दिए गए एक इंटरव्यू में भारत का नाम प्रमुखता से लिया. उन्होंने कहा कि सऊदी अरब भारत से रिश्तों को मजबूत करने पर काम कर रहा है. प्रिंस सलमान ने कहा, ‘‘1950 के दशक में अमेरिकी अर्थव्यवस्था दुनिया की पूरी अर्थव्यवस्था का 50 फीसदी थी,लेकिन अब केवल 20 फीसदी है. दूसरे विश्व युद्ध के बाद पूरी दुनिया की तस्वीर बदली है. हम बाकी के रणनीतिक साझेदारों से रिश्ते मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं.‘‘
 
‘‘हम खाड़ी के देशों, मध्य पूर्व के देशों और ब्रिटेन,फ्रांस, यूरोप के अलावा भारत, चीन, रूस, लातिन अमेरिका और अफ्रीका से रिश्ते मजबूत कर रहे हैं. हम ये सब सऊदी अरब के हित में कर रहे हैं. इससे किसी देश को कोई नुकसान नहीं होगा‘‘.
 
चीन घोषणा कर रहा है कि सऊदी अरब उसका रणनीतिक पार्टनर है. भारत भी ऐसा ही कह रहा है. रूस ने भी ऐसा ही कहा. हालांकि, अमेरिका के साथ हमारी रणनीतिक साझेदारी है.‘‘ क्राउन प्रिंस ने कहा, ‘‘हम अपने हितों के लिए विदेशी संबंधों को मजबूत कर रहे हैं.
 
यह बाकी के देशों और अंतराष्ट्रीय हित के लिए भी ठीक है. आखिरकार हर देश का अपना चुनाव होता है. हम पारस्परिक हितों का ध्यान रखते हैं. सऊदी अरब अपने आंतरिक मामलों में किसी भी देश के हस्तक्षेप को बर्दाश्त नहीं करेगा. ना ही किसी दूसरे मुल्क में दखल देगा.
 
गौरतलब है कि पाकिस्तान को सऊदी अरब ने पिछले 35 सालों में कई अरब डॉलर की आर्थिक तथा सैन्य सहायता दी थी. समझा जाता है कि उसने परमाणु हथियार बनाने के लिए गुप्त रूप से अरबों डॉलर दिए थे.लेकिन जब सऊदी अरब को यमन में युद्ध के लिए सैनिकों की जरूरत पड़ी, तब पाकिस्तान ने इंकार कर दिया.
 
सऊदी अरब-पाकिस्तान रिश्तों में जो दूरी आई है वह निकट समय में खत्म होती नजर नहीं आती.अब सऊदी अरब के लिए यह संभव नहीं होगा कि वह अधिक समय तक पाकिस्तान की भारत विरोधी नीतियों को समर्थन देता रहे.
 
राजनीतिक टीकाकारों का मानना है कि सऊदी अरब, इस्लामिक जगत का एक महत्वपूर्ण देश है. उसका प्रभाव दक्षिण एशिया के सुन्नी मुसलमानों पर लगातार बढ़ रहा है.भारत, सऊदी अरब के साथ व्यापारिक संबंधों के साथ सैन्य संबंध भी बना रहा है जो उसको आने वाले समय में बढ़ते हुए चरमपंथ को रोकने में मदद करेगा.
 
जब से भारत ने रक्षा क्षेत्र में उत्पादन के लिए 49 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति दी है, सऊदी अरब भी भारत के सुरक्षा क्षेत्र में निवेश करना चाहता है.इसके अतिरिक्त दोनों देश सैन्य सहयोग भी बढ़ाने के इच्छुक हैं.साथ ही भारत फारस की खाड़ी शांति में चाहता है.
 
यहां से भारत का 70 प्रतिशत से भी अधिक कच्चा तेल आयात होता है.इस क्षेत्र में 70 लाख से भी अधिक भारतीय काम करते हैं,जो हर साल 25 से 30 अरब डॉलर भारत भेजते हैं.इस बीच तेजी से बदलती क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियां भारत और सऊदी अरब के संबंधों को घनिष्ठ बनाने में मदद कर रही हैं.
 
दूसरी ओर सऊदी अरब भारत के लिए कच्चे तेल का एक बड़ा निर्यातक बन गया.भारत लगभग 20 प्रतिशत कच्चा तेल सऊदी अरब से प्राप्त करता है, जिसकी सालाना कीमत 28.2 अरब डॉलर है और इन दोनों देशों का व्यापार 2013-14 में 39.4 अरब डॉलर था.
 
इसके अलावा  सऊदी अरब में लगभग 27 लाख 30 हजार भारतीय काम करते हैं, जिनसे देश को करोड़ों डॉलर की विदेशी मुद्रा हासिल होती है.उम्मीद है कि सऊदी अरब आने वाले समय में वो भारत के ढांचागत क्षेत्र में भी अपना निवेश बढ़ाएगा.
 
-लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और बीबीसी में रहते हुए मुस्लिम देशों को कवर किया है