मलिक असगर हाशमी
भारत और अरब देशों के बीच संबंध सदियों से चले आ रहे हैं, जो ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक पहलुओं से समृद्ध हैं.आज भारत दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्रों में से एक और एक उभरती वैश्विक शक्ति के रूप में जाना जाता है, जिसने अरब बुद्धिजीवियों का महत्वपूर्ण ध्यान आकर्षित किया है.
वे भारत के विकास, राजनीति और सांस्कृतिक विविधता को गहन रुचि के साथ देख रहे हैं.इस लेख में हम अरब बुद्धिजीवियों के भारत के प्रति दृष्टिकोण का विस्तृत विश्लेषण करेंगे, जिसमें उनके राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विचार शामिल हैं.
राजनीतिक परिदृश्य
आधुनिक समय में, अरब बुद्धिजीवी भारत की राजनीति पर बारीकी से नज़र रख रहे हैं, विशेषकर 2014 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सत्ता में आने के बाद.कई बुद्धिजीवी इस बात को लेकर चिंतित हैं कि हिंदू राष्ट्रवाद का बढ़ता प्रभाव भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को प्रभावित कर सकता है.
डॉ. आज़मी बिशारा, एक प्रमुख अरब बुद्धिजीवी और इज़राइली नेसेट के पूर्व सदस्य, ने इस विषय पर विस्तार से लिखा है कि बीजेपी की विचारधारा लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के साथ असंगत है.इसके विपरीत, कुछ बुद्धिजीवियों ने भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली की प्रशंसा की है.
डॉ. अब्द अल-वहाब अल-मसिरी, एक मिस्र के बुद्धिजीवी, ने कहा है कि भारत का लोकतंत्र "अरब दुनिया के लिए एक मॉडल" है, जिसमें सामूहिक अधिकारों के साथ व्यक्तिगत स्वतंत्रता को संतुलित करने की क्षमता है.इस प्रकार, भारत की राजनीति के प्रति दृष्टिकोण में विविधता स्पष्ट है.
आर्थिक परिदृश्य
आर्थिक दृष्टि से, भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था अरब बुद्धिजीवियों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है.वे भारत की आर्थिक उदारीकरण नीतियों की प्रशंसा करते हैं, जिसने विदेशी निवेश को आकर्षित किया है.जॉर्डन के अर्थशास्त्री और पूर्व मंत्री डॉ. फहाद अल-फनेक ने कहा है कि भारत का आर्थिक मॉडल "एक सफलता की कहानी" है, जिससे अरब देश सीख सकते हैं.
हालांकि, कुछ बुद्धिजीवी भारत में बढ़ती आर्थिक असमानता पर भी चिंता व्यक्त करते हैं.मिस्र के अर्थशास्त्री डॉ. समीर अमीन का मानना है कि भारत की आर्थिक वृद्धि बढ़ती असमानता और गरीबी की कीमत पर हुई है.उन्हें लगता है कि भारत को अधिक समावेशी आर्थिक नीतियों को अपनाने की आवश्यकता है.
सांस्कृतिक परिदृश्य
अरब बुद्धिजीवी भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से बहुत प्रभावित हैं.भारतीय साहित्य, संगीत और सिनेमा का अरब देशों में विशेष महत्व है.कई बुद्धिजीवी भारत की सांस्कृतिक विविधता की सराहना करते हैं, जिसमें विभिन्न भाषाओं और धर्मों का समावेश है.मोरक्को के दार्शनिक डॉ. मुहम्मद अल-जाबरी ने इसे "अरब दुनिया के लिए एक मॉडल" के रूप में देखा है.
हालांकि, कुछ बुद्धिजीवी वैश्वीकरण के प्रभावों को लेकर चिंतित हैं.सऊदी अरब के लेखक डॉ. अब्द अल-रहमान मुनीफ का मानना है कि भारत की सांस्कृतिक पहचान वैश्वीकरण के कारण खतरे में है, और इसके संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है.
अरब बुद्धिजीवियों का दृष्टिकोण बहुआयामी
भारत के बारे में अरब बुद्धिजीवियों का दृष्टिकोण जटिल और बहुआयामी है.वे देश के राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिदृश्य पर विभिन्न विचार प्रस्तुत करते हैं.जबकि कुछ ने बढ़ते राष्ट्रवाद और आर्थिक असमानता के मुद्दों पर चिंता व्यक्त की है, अन्य ने भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली और सांस्कृतिक विविधता की सराहना की है.
जैसे-जैसे भारत का विकास होता जा रहा है, अरब बुद्धिजीवी इसे बड़ी रुचि के साथ देखना जारी रखेंगे, जो देश की गतिशीलता और जटिलता की समझ को और गहरा करेगा.इस प्रकार, भारत और अरब दुनिया के बीच का संबंध एक जटिल ताना-बाना है, जिसमें प्रशंसा और आलोचना दोनों का समावेश है, जो आगे चलकर दोनों क्षेत्रों के लिए लाभकारी साबित हो सकता है.