देस-परदेस : चीनी इशारों पर किस हद तक चलेगा मालदीव?

Story by  प्रमोद जोशी | Published by  [email protected] | Date 07-05-2024
देस-परदेस : चीनी इशारों पर किस हद तक चलेगा मालदीव?
देस-परदेस : चीनी इशारों पर किस हद तक चलेगा मालदीव?

 

permodप्रमोद जोशी

इस हफ्ते 10 मई तक मालदीव से भारतीय सैनिकों की वापसी पूरी हो जाएगी. पिछले दो महीनों में मालदीव से भारतीय सैन्यकर्मियों के दो बैच वापस आ चुके हैं और उनकी जगह असैनिक विशेषज्ञों को तैनात कर दिया है. शेष कर्मियों की तैनाती इस हफ्ते हो जाएगी.

बावजूद इसके लगता नहीं है कि दोनों देशों के रिश्तों में सुधार हो जाएगा, बल्कि गिरावट ही आ रही है. इसके पीछे चीन की भूमिका है, जिसने मालदीव के कुछ प्रभावशाली राजनीतिक नेताओं को लालच में फँसा लिया है और फिलहाल वहाँ की राजनीति ने उसे स्वीकार कर लिया है।

बात केवल चीन तक सीमित नहीं है. मालदीव भारत-विरोधी रास्तों को खोजता दिखाई पड़ रहा है. हाल में उसने तुर्की से कुछ ड्रोन और दूसरे शस्त्रास्त्र की खरीद की है. कश्मीर और पाकिस्तान से जुड़ी नीतियों के कारण तुर्की का भारत-विरोधी नज़रिया साफ है.

भारत-विरोधी प्रतीकों का मालदीव बार-बार इस्तेमाल कर रहा है. हाल में तुर्की कोस्टगार्ड के एक पोत का मालदीव में पोर्ट-विज़िट ऐसी ही एक प्रतीकात्मक-परिघटना है. 

विदेशमंत्री की यात्रा

एक खबर यह भी है कि मालदीव के विदेशमंत्री मूसा ज़मीर इस हफ्ते, संभवतः 9 या 10 मई को भारत का दौरा करने वाले हैं. यह तारीख अभी निश्चित नहीं है, पर दौरा निश्चित है. तारीख का महत्व केवल इतना है कि 10मई से मालदीव में सहायता कार्य कर रहे भारतीय विमानों का संचालन सैनिकों की जगह भारत की ही एक असैनिक तकनीकी-टीम करने लगेगी.

इतना होने से बाद क्या मालदीव का भारत के प्रति रुख बदल जाएगा? मालदीव के नेतृत्व का अंदाज़ बता रहा है कि उनके पीछे कोई है, जिसकी अकड़ में वे इस अंदाज़ में बात कर रहे हैं. इसकी शुरुआत पिछले साल सितंबर के चुनाव के पहले ही हो गई थी, जब वहाँ ‘इंडिया-आउट’ अभियान चलाया गया. ‘इंडिया-आउट’ के साथ बाद में वहाँ ‘चाइना इन’ का नारा भी लगने लगा है.

चुनाव के बाद वहाँ के नए राष्ट्रपति पहली विदेश-यात्रा भारत की करते रहे हैं, जबकि मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने अपनी पहली विदेश-यात्रा के लिए तुर्की को चुना और फिर उसके बाद चीन को. जनवरी में उन्होंने अपनी चीन-यात्रा के दौरान कई सहयोग-समझौतों पर हस्ताक्षर किए. बाद में उन्होंने रक्षा-सहायता का एक और समझौता किया.

इंडिया आउट

इस पृष्ठभूमि के साथ अब उनके विदेशमंत्री के भारत-दौरे पर नज़र रखनी होगी. मोहम्मद मुइज़्ज़ू के कार्यकाल का यह पहला उच्च स्तरीय भारत-दौरा होगा. भारत में इन दिनों चुनाव चल रहे हैं. ऐसे में नई सरकार बनने का इंतज़ार करना चाहिए था, पर इस समय इस दौरे की जरूरत क्यों हुई, इसे भी समझना होगा. 

भारत-समर्थक इब्राहिम सोलिह को हराकर पिछले साल नवंबर में मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने राष्ट्रपति का पद संभाला था. चुनाव के पहले से उनके समर्थक देश में ‘इंडिया-आउट’ अभियान चला रहे थे, पर उनका मुख्य कार्यक्रम ‘चाइना इन’ है. 

ऐसा करके मुइज़्ज़ू अपने गुरु और पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन की नीतियों का पालन कर रहे हैं. उनके कार्यकाल में, चीनी कंपनियों को कई परियोजनाओं के लिए अनुबंध दिए गए थे, जिनमें द्वीपों को पट्टे पर देना भी शामिल था. 2015में बिना किसी बहस के संसद के माध्यम से एक मुक्त-व्यापार समझौता भी किया गया, जिसे अब वे पूरी शक्ल देंगे. 

चीन का दौरा

सोलिह सरकार द्वारा भ्रष्टाचार के आरोप में जेल भेजे गए यामीन को हाल में आरोपों से बरी कर दिया गया है. मुइज़्ज़ू ने जनवरी में चीन का दौरा किया, जिसके बाद देश की अर्थव्यवस्था, पर्यटन और सुरक्षा पहलुओं में चीन की भूमिका फिर से  बढ़ गई है. सोलिह-नशीद सरकार की 'इंडिया फर्स्ट' नीति समाप्त हो गई है और ‘चाइना इन’ पॉलिसी शुरू हो गई है.

हिंद महासागर के देशों को चीन आर्थिक-सहायता देकर अपने ऊपर निर्भर बना रहा है, पर यह सहायता नहीं कर्ज़ है. मुइज़्ज़ू ने चीन के साथ कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, जो सभी चीन के बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) को आगे बढ़ाने के लिए डिजाइन किए गए हैं.

इसके साथ ही मार्च में, दोनों देशों ने दो सुरक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, जिनके तहत चीन को क्षेत्र में दोहरे उपयोग की (यानी सैनिक और असैनिक) सुविधाएं प्रदान की गईं. मालदीव के आसपास छोटे-छोटे निर्जन द्वीप हैं, जो उथले पानी में हैं. ऐसे द्वीपों को कंक्रीट, पत्थरों और मिट्टी की सहायता से चीन उन्हें रहने लायक बना देता है. ऐसा उसने दक्षिण चीन सागर में किया है.

अप्रैल में, मालदीव के बंदरगाह प्राधिकरण ने ट्रांस-शिपमेंट और बंकरिंग सुविधाओं के साथ लामू इंटीग्रेटेड मैरीटाइम हब प्रोजेक्ट विकसित करने और कध्धू द्वीप पर एक हवाई अड्डा विकसित करने के लिए एक चीनी कंपनी के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. एक और परियोजना जिसे चाइना हार्बर इंजीनियरिंग कंपनी विकसित कर रही है-'उथुरु थिला फाल्हू' - मालदीव रक्षा प्रतिष्ठान के बगल में है, पहले यह परियोजना भारतीय थी.

संसदीय-चुनाव

केवल राष्ट्रपति पद के चुनाव में ही नहीं, गत 22अप्रैल को हुए संसदीय चुनावों में भी मुइज़्ज़ू की पार्टी को भारी सफलता मिली है. 93सदस्यों के सदन में पीपुल्स नेशनल कांग्रेस को 66सीटों पर जीत हासिल हुई है. इनमें सहयोगी दलों की सीटों को भी जोड़ दें, तो यह संख्या 77 होती है.

चीन-समर्थक मुइज़्ज़ू की जीत, मालदीव की राजनीति पर उनकी पकड़ को साबित करता है. मुइज़्ज़ू भारत के साथ केवल रक्षा-सहयोग को ही सीमित नहीं कर रहे हैं. उन्होंने मालदीव के नागरिकों से उच्च स्तर की चिकित्सा के लिए भारत के बजाय दूसरे देशों में जाने का आग्रह किया है. भारत से आवश्यक वस्तुएं भी वे कम मँगाना चाहते हैं.

देखना होगा कि मालदीव के विदेशमंत्री क्या बातें करते हैं. संभवतः वे साल के अंत में मुइज़्ज़ू की भारत यात्रा की संभावना पर भी चर्चा करेंगे. कयास हैं कि मालदीव की पिछली सरकारों द्वारा लिए गए ऋणों की वापसी में ज़मीर, भारत सरकार से उदारता दिखाने का आग्रह करेंगे.

चीनी पोत

हाल में चीनी नौसेना के एक पोत के दो महीने में दो बार मालदीव आने के कारण भारतीय पर्यवेक्षकों का ध्यान इस तरफ गया है. हालांकि यह पोत वैज्ञानिक अनुसंधान का काम करता है, पर उसका इस्तेमाल जासूसी के लिए भी किया जाता है. हाल में भारत के रक्षा अनुसंधान संगठन (डीआरडीओ) ने कुछ महत्वपूर्ण शस्त्रास्त्र प्रणालियों का परीक्षण किया है. उस दौरान यह पोत इसी इलाके में था.

इस सिलसिले में भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा था कि हमारा ध्यान इस पोत की उपस्थिति पर है और हम अपनी राष्ट्रीय-सुरक्षा के संदर्भ में उचित कदम उठाएंगे. मुइज़्ज़ू और उनकी सरकार के कुछ मंत्रियों की कड़वी टिप्पणियों के बावजूद भारत सरकार ने अभी तक कोई नकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है.

मालदीव की माँग पर उसने अपने सैन्य-कर्मियों को हटा लिया है और मालदीव के विकास के लिए 771करोड़ रुपये की धनराशि आबंटित भी की है. देखना होगा कि मालदीव के साथ भारत अपने सॉफ्ट-राजनय को किस हद तक ले जाता है.

दीर्घकालीन सुरक्षा की दृष्टि से भारत लक्षद्वीप में दो नौसैनिक अड्डों का विकास कर रहा है, जो दूरगामी रक्षा-नीति का अंग है. भारत को इस इलाके में चीन के बढ़ते प्रभाव की चिंता जरूर है. चीन के साथ मालदीव ने तुर्की के साथ भी रिश्तों का आधार मजबूत किया है.

कोर-ग्रुप की बैठक

भारत और मालदीव के रिश्तों को लेकर गठित उच्च स्तरीय कोर ग्रुप की चौथी बैठक शुक्रवार 3मई को दिल्ली में हुई. बैठक में दोनों पक्षों ने रक्षा-सहयोग, विकास-सहयोग परियोजनाएं, द्विपक्षीय व्यापार और निवेश बढ़ाने के प्रयासों पर बात की गई, पर सबसे महत्वपूर्ण बात थी, भारतीय विमानन प्लेटफॉर्मों के संचालन से जुड़े भारतीय सैन्यकर्मियों की वापसी.

मालदीव ने भारत सरकार से कहा था कि आप 10मई तक अपने सभी सैन्यकर्मियों की वापस बुला लें. चिकित्सा निकासी और मानवीय राहत कार्यों के लिए उपयोग में आने वाले दो हेलिकॉप्टरों और एक डॉर्नियर विमान को संचालित करने के लिए पायलटों सहित 80 से अधिक भारतीय सैन्यकर्मी मालदीव में तैनात थे. अब मालदीव के विदेश मंत्रालय के बयानों से संकेत मिलता है कि भारत सरकार 10मई तक अपने वचन को निभा देगी.

भारत का नरम रुख

मालदीव की तीखी बातों के जवाब में भारत ने अभी तक नरम रुख ही अपनाया है. अलबत्ता भारतीय राजनयिक मानते हैं कि ऊँट को पहाड़ के नीचे आने दीजिए. मुइज़्ज़ू का मालदीव उसी रास्ते पर जा रहा है, जिसपर श्रीलंका गया था. चीन ने उसे अपने बीआरआई के फंदे में फँसा लिया है. उनके सामने बहुत जल्द पुराने कर्ज़ों की वापसी का संकट पैदा हो सकता है.

शायद इसीलिए मुइज़्ज़ू ने भी अपना रुख नरम किया है. हाल में मालदीव के मीडिया के साथ एक इंटरव्यू में मुइज़्ज़ू ने कहा, भारत हमारा ‘सबसे नज़दीकी सहयोगी’ बना रहेगा. उन्होंने मालदीव पर भारत के 40.09करोड़ डॉलर के कर्ज़ को लेकर राहत देने का भारत से अनुरोध किया.

उन्होंने कहा कि भारत ने मालदीव को बहुत ज़्यादा मदद दी है और सबसे बड़ी संख्या में परियोजनाओं को लागू किया है. सैन्य-कर्मियों का मुद्दा दोनों देशों के बीच एकमात्र विवादित मामला था.

भू-राजनीति

वास्तव में ऐसा है नहीं. मालदीव ने केवल विमानों का रख-रखाव करने वाले सैन्य-कर्मियों के मुद्दे को ही नहीं उठाया. इस मुद्दे को उठाने के कुछ ही समय के बाद उसने हाइड्रोग्राफ़िक सर्वे के समझौते को खत्म किया. इसके बाद दिसंबर 2023में मालदीव ने मॉरिशस के पोर्ट लुई में आयोजित कोलंबो सिक्योरिटी कॉनक्लेव (सीएससी) सम्मेलन में शामिल होने से इनकार किया.

सीएससी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के स्तर की एक बैठक है, जो 1995से मालदीव और भारत के कोस्ट गार्ड के अभ्यासों का नतीजा है, जिसमें 2011में श्रीलंका भी शामिल हुआ था. 2021में सीएससी एक औपचारिक संगठन बन गया. श्रीलंका में इसका सचिवालय बनाया गया. मॉरिशस इसके पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल हुआ, जबकि सेशेल्स और बांग्लादेश इसके पर्यवेक्षक बने.

इतना ही नहीं, चीन के युन्नान प्रांत के कुनमिंग में हुए 'चाइना-इंडियन ओशन रीजन फ़ोरम ऑन डेवलपमेंट कोऑपरेशन' के दूसरे सम्मेलन में मालदीव के उप-राष्ट्रपति हुसैन मोहम्मद लतीफ़ ने हिस्सा लेकर चीन की भू-राजनीतिक योजनाओं के साथ जाने का इरादा भी व्यक्त कर दिया है. ये बातें भारत की सुरक्षा पर असर डालती हैं.

दीर्घकालीन दृष्टि

इन बातों से मालदीव के नए नेतृत्व के इरादों पर रोशनी पड़ती है. क्या मुइज़्ज़ू सरकार गहराई से सोच-विचार करके इस रास्ते पर बढ़ रही है या वह जल्दबाज़ी में है? भारत को ठंडे दिमाग से इसके दूरगामी प्रभावों पर विचार करना होगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मालदीव के राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू की पिछले साल दुबई में मुलाकात हुई थी. दोनों ने भारत के विमानों के संदर्भ में तय किया था कि एक द्विपक्षीय कोर समूह इस विषय पर चर्चा करेगा.

यह कोर समूह चार बैठकें कर चुका है. शुक्रवार को हुई चौथी बैठक में तय हुआ है कि अगली बैठक पारस्परिक रूप से सुविधाजनक तारीख पर माले में की जाएगी. संभवतः जून या जुलाई में यह बैठक होगी. कहना मुश्किल है कि यह कोर ग्रुप कोई रास्ता दिखा पाएगा.

( लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं )

ALSO READ मतदाता कर पाएगा ‘डिफिडेंस’ और ‘कॉन्फिडेंस’ का फर्क?