प्रमोद जोशी
भारत और पड़ोसी देशों के रिश्तों के लिहाज से पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की थाईलैंड और श्रीलंका-यात्रा काफी महत्वपूर्ण रही. भारत का उद्देश्य पड़ोसियों के साथ संबंधों को मजबूत करना है. इस यात्रा में देश की ‘एक्ट-ईस्ट’ और दक्षिण-एशिया नीतियों की झलक मिलती है.
उन्होंने थाईलैंड में बिमस्टेक सम्मेलन में भाग लेने के अलावा वहाँ बांग्लादेश की कार्यवाहक सरकार के मुख्य सलाहकार डॉ मुहम्मद यूनुस, म्यांमार की सैन्य सरकार के प्रमुख मिन आंग ह्लाइंग और नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली से भी मुलाकात की.
ढाका में सत्ता परिवर्तन के बाद युनुस के साथ उनकी यह पहली बैठक थी. इसी तरह पिछले वर्ष नेपाल में ओली के फिर से प्रधानमंत्री बनने के बाद यह पहली मुलाकात थी. उन्होंने भूटान के राष्ट्रपति शेरिंग तोब्गे से भी मुलाकात की.
हालांकि थाईलैंड भारत के पूर्व में बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर से जुड़ा देश है, पर उसे भारतीय विदेश-नीति के नक्शे पर वह महत्व नहीं मिला, जिसका वह हकदार है. दक्षिण पूर्व एशिया में इंडोनेशिया और सिंगापुर के बाद तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है थाईलैंड.
दोनों देशों के बीच फ्री-ट्रेड एग्रीमेंट 2010में हो गया था. भारतीय यात्रियों के लिए वीज़ा-मुक्त प्रवेश के कारण थाईलैंड, भारतीय मध्यम वर्ग की सैर का प्रमुख गंतव्य बन चुका है. दोनों देश अब रक्षा, हाईटेक और स्पेस रिसर्च में सहयोग पर सहमत हुए हैं.
अस्थिरता का दौर
यह यात्रा ऐसे समय में हुई, जब एक तरफ बांग्लादेश और म्यांमार में अराजकता है और इलाके में चीन का प्रभाव बढ़ रहा है. पिछले साल अगस्त से बांग्लादेश के साथ रिश्तों में तनाव है.हाल में डॉ यूनुस ने अपनी पहली राजकीय यात्रा के लिए चीन को चुनकर इतना प्रकट जरूर कर दिया कि बांग्लादेश अब हमारा वैसा मित्र नहीं है, जैसा शेख हसीना के कार्यकाल में था. .
श्रीलंका में हालात हालाँकि धीरे-धीरे सामान्य हो रहे हैं, पर वह भारत और चीन के प्रतिस्पर्धी हितों से जूझ रहा है. वह अपने निकटतम पड़ोसी भारत और सबसे बड़े ऋणदाता चीन के साथ संबंधों को संतुलित कर रहा है.
पिछले साल चुने गए राष्ट्रपति अनुरा दिसानायके ने दिसंबर में अपनी पहली विदेश-यात्रा के लिए भारत को चुना था. इसके बाद जनवरी में उन्होंने बीजिंग की यात्रा की.
रक्षा-सहयोग
पीएम मोदी की श्रीलंका यात्रा के दौरान दोनों देशों ने पाँच वर्षीय रक्षा सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत भारत में श्रीलंकाई सैन्यकर्मियों के प्रशिक्षण, सूचना प्रौद्योगिकी साझा करने तथा अन्य सहयोग शामिल हैं. दोनों देशों ने पावर ग्रिड कनेक्टिविटी, डिजिटलीकरण, सुरक्षा और स्वास्थ्य सेवा पर भी समझौतों पर हस्ताक्षर किए.
श्रीलंका के राष्ट्रपति दिसानायके ने शनिवार को राजधानी के इंडिपेंडेंस स्क्वायर में मोदी के लिए लाल कालीन बिछाया और 19तोपों की सलामी के साथ उनका स्वागत किया. उन्हें श्रीलंका के सर्वोच्च नागरिक सम्मान मित्र विभूषण से भी सम्मानित किया.
दिसानायके के राष्ट्रपति बनने के बाद वे श्रीलंका का दौरा करने वाले पहले विदेशी शासनाध्यक्ष हैं. इसके पहले वे 2019में श्रीलंका गए थे. कोलंबो में दिसानायके के कार्यालय से एक टेलीविज़न समारोह के दौरान मोदी ने कहा, हम मानते हैं कि हमारे सुरक्षा हित एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. "हमारी सुरक्षा एक दूसरे पर निर्भर और एक दूसरे से जुड़ी हुई है.
इस दौरान दिसानायके ने भारत के केवल क्षेत्रीय शक्ति नहीं, बल्कि एक विश्व शक्ति के रूप में उदय की सराहना की. उन्होंने कहा, किसी को भी भारत की सुरक्षा को कमजोर करने के लिए श्रीलंकाई क्षेत्र का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जाएगी.
चीनी पनडुब्बियाँ
भारत ने इसके पहले कोलंबो के मुख्य बंदरगाह पर आने वाली चीनी पनडुब्बियों और अनुसंधान पोतों के आगमन पर आपत्ति जताई थी. भारत द्वारा दो बार ऐसी यात्राओं पर चिंता जताए जाने के बाद से श्रीलंका ने चीनी पनडुब्बियों को अपने यहाँ आने की अनुमति नहीं दी है.
पिछले वर्ष कोलंबो ने विदेशी अनुसंधान पोतों के आगमन पर भी प्रतिबंध लगा दिया, क्योंकि भारत ने आरोप लगाया था कि चीनी जहाजों का इस्तेमाल भारत पर जासूसी करने के लिए किया जा रहा है.
भारत-यूएई परियोजना
इस यात्रा का एक और आकर्षण भारत और संयुक्त अरब अमीरात द्वारा श्रीलंका में ऊर्जा केंद्र विकसित करने की योजना पर सहमति बनना भी है. भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कोलंबो में संवाददाताओं को बताया कि श्रीलंका के पूर्व में स्थित प्राकृतिक बंदरगाह त्रिंकोमाली में इस हब के निर्माण में बहु-उत्पाद पाइपलाइन का निर्माण शामिल होगा.
मोदी और दिसानायके ने त्रिंकोमाली में 120मैगावाट के सामपुर सौर ऊर्जा संयंत्र को भी लॉन्च किया. यह संयंत्र कई वर्षों से ठप पड़ा था, लेकिन भारत के सहयोग से इसे एक संयुक्त परियोजना के रूप में फिर से चालू किया गया है. रेलवे की दो परियोजनाओं को भी लॉन्च किया गया.
ऋण पुनर्गठन
मिस्री ने कहा, दोनों देशों ने अपनी ऋण पुनर्गठन प्रक्रिया भी पूरी कर ली है. श्रीलंका के वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, श्रीलंका पर भारतीय एक्ज़िम बैंक और भारतीय स्टेट बैंक का लगभग 1.36अरब डॉलर का ऋण बकाया है.
चीन, श्रीलंका का सबसे बड़ा ऋणदाता बनकर उभरा है, जिसने 2022में श्रीलंका पर उसके 14अरब डॉलर के ऋण-भुगतान में हुई चूक के बावजूद ऋण का पुनर्गठन किया. इससे श्रीलंका को आर्थिक मंदी से उभरने का मौका मिला.
कोलंबो ने जनवरी में चीन की एक सरकारी कंपनी के साथ एक समझौते पर भी हस्ताक्षर किए थे, जो द्वीप के दक्षिण में एक तेल रिफाइनरी में 3.7अरब डॉलर का निवेश करेगी. यह श्रीलंका का सबसे बड़ा एकल विदेशी निवेश होगा और इसे द्वीप की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है.
डॉ यूनुस से भेंट
डिप्लोमेसी के लिहाज से बैंकॉक में पीएम मोदी की बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस के साथ बैठक बहुत महत्वपूर्ण रही. बिमस्टेक शिखर सम्मेलन के दौरान आयोजित इस बैठक के नतीजों पर भारत और बांग्लादेश दोनों देशों के पर्यवेक्षकों की निगाहें थीं.
इसकी एक वजह बांग्लादेश में हुए सत्ता-परिवर्तन की छाया है, पर दूसरी वजह डॉ यूनुस की हाल की चीन-यात्रा से जुड़ी थी, जहाँ एक कार्यक्रम में उनके मात्र 30या 32सेकंड के लिए बोले गए कुछ शब्दों ने क्षेत्रीय भू-राजनीति में हलचल पैदा कर दी.
प्रोफेसर यूनुस ने चीन में कहा, भारत की ‘सात बहनें (पूर्वोत्तर के राज्यों का अनौपचारिक नाम)’ भूमि से घिरा क्षेत्र है और उस क्षेत्र में 'समुद्र का एकमात्र संरक्षक' बांग्लादेश, आर्थिक गतिविधियों के विस्तार के लिए चीन का उपयोग करने पर विचार कर सकता है.
अप्रिय टिप्पणी
स्वाभाविक रूप से यह भारत के लिए अप्रिय टिप्पणी थी. भारत को उस भाषा और तरीके पर आपत्ति है जिसमें उन्होंने यह बात कही. उस देश पर भी, जहाँ उन्होंने यह बात कही. भारतीय विशेषज्ञ यह समझ नहीं पा रहे हैं कि जो व्यक्ति भारत के साथ अच्छे संबंध चाहता है, वह भारत के प्रतिस्पर्धी किसी तीसरे देश में जाकर ऐसी बातें क्यों कह रहा है?
पिछले कुछ महीनों में बांग्लादेश के नए सत्ताधारियों की ओर से लगातार अप्रिय टिप्पणियाँ की जा रही हैं. केवल टिप्पणियाँ ही नहीं वहाँ पाकिस्तानी आईएसआई की गतिविधियाँ भी बढ़ी हैं.देश की कार्यवाहक सरकार, जो चुनाव के सहारे चुनकर नहीं आई है, लगातार ऐसी बातें कह रही है, जिनसे उनकी बुनियादी नीतियों में परिवर्तन की गंध आ रही है.
पीएम मोदी ने इस मुलाकात में ऐसे बयानों से बचने का आग्रह किया जो ढाका-दिल्ली संबंधों को खराब करते हों या माहौल को बिगाड़ते हों. इसके अलावा बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों, विशेषकर हिंदुओं की सुरक्षा को लेकर चिंता भी व्यक्त की. डॉ यूनुस ने शेख हसीना के हाल के वक्तव्यों को लेकर अपनी अप्रसन्नता व्यक्त की.
विदेशमंत्री एस जयशंकर ने 3अप्रैल को बिमस्टेक मंच से कहा कि बंगाल की खाड़ी में भारत की सबसे लंबी तटरेखा है. उन्होंने भारत-म्यांमार-थाईलैंड राजमार्ग का हवाला देते हुए कहा कि पूर्वोत्तर भारत की 'पहुँच' का रास्ता प्रशांत महासागर तक ले जाया जा रहा है. जयशंकर की टिप्पणी प्रोफेसर यूनुस के बयान का जवाब थी.
पड़ोसी देशों से रिश्ते
मोदी सरकार ने 2014में शुरुआत पड़ोस के आठ शासनाध्यक्षों के स्वागत के साथ की थी, पर दक्षिण एशिया में सहयोग का उत्साहवर्धक माहौल नहीं बना. नवंबर, 2014में काठमांडू के दक्षेस शिखर सम्मेलन में पहली ठोकर लगी. उस सम्मेलन में दक्षेस देशों के मोटर वाहन और रेल संपर्क समझौते पर सहमति नहीं बनी, जबकि पाकिस्तान को छोड़ सभी देश इसके लिए तैयार थे.
दक्षेस देशों का बिजली का ग्रिड बनाने पर पाकिस्तान सहमत हो गया था, पर उस दिशा में भी कुछ हो नहीं पाया. काठमांडू के बाद दक्षेस का शिखर सम्मेलन नवंबर, 2016में पाकिस्तान में होना था. वह शिखर सम्मेलन नहीं हो पाया और उसके बाद से गाड़ी जहाँ की तहाँ रुकी पड़ी है.
बिमस्टेक
इसके बाद भारतीय डिप्लोमेसी में बदलाव आया और दक्षेस से बाहर जाकर सहयोग के रास्ते खोजने शुरू हुए. शुरुआत 15जून 2015को थिंपू में हुए बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल मोटर वेहिकल एग्रीमेंट (बीबीआईएन) से हुई.
भारत ने साउथ एशिया सब रीजनल इकोनॉमिक को-ऑपरेशन संगठन की ओर देखना शुरू किया. इसमें भारत के अलावा बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, नेपाल और श्रीलंका सदस्य हैं. इसी तरह बे ऑफ बंगाल इनीशिएटिव फॉर टेक्नीकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन (बिमस्टेक) में भारत के अलावा बांग्लादेश, भूटान, नेपाल और श्रीलंका के अलावा म्यांमार तथा थाईलैंड भी हैं.
बैंकॉक सम्मेलन
तीन बार स्थगित होने और थाईलैंड तथा म्यांमार को झकझोर देने वाले भीषण भूकंप के बाद बिमस्टेक का छठा शिखर सम्मेलन 4अप्रैल को बैंकॉक में हुआ. इस समूह में सात सदस्य देश हैं, भारत, बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका, थाईलैंड, नेपाल और भूटान.
नेपाल में 2018में चौथे शिखर सम्मेलन के बाद यह क्षेत्रीय नेताओं की पहली आमने-सामने की बैठक थी. पांचवां शिखर सम्मेलन महामारी के कारण 2022में वर्चुअल तरीके से हुआ था.
छठा शिखर सम्मेलन बिमस्टेक को पुनर्सक्रिय करने के इरादे से आयोजित किया गया था. अभी यह समूह शक्ल ले ही रहा है. 2022में अपनाए गए इसके चार्टर से संस्थागत स्पष्टता प्रकट हुई है.
अब बिम्सटेक बैंकॉक विज़न 2030को लॉन्च किया जा रहा है, जो सदस्य देशों के बीच भविष्य के सहयोग का मार्ग प्रशस्त करेगा. बंगाल की खाड़ी में माल और यात्री परिवहन को बढ़ावा देने, व्यापार और यात्रा को बढ़ाने के लिए समुद्री परिवहन सहयोग पर समझौते पर भी हस्ताक्षर किए गए.
समूह ने इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (आयोरा) और ड्रग्स एंड क्राइम पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के साथ दो समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए, जो अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय संगठनों के साथ साझेदारी बनाने की बिमस्टेक की शुरुआत का संकेत है.
बहरहाल भारत के लिए यह पहल महत्वपूर्ण है, क्योंकि दक्षेस के लगभग विफल हो जाने के बाद इस इलाके में क्षेत्रीय-सहयोग का यह एक महत्वपूर्ण मार्ग साबित हो सकता है.
(लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं)
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