प्रमोद जोशी
पाकिस्तान में नई सरकार बन जाने के बाद अफग़ानिस्तान, ईरान की सीमा और बलोचिस्तान से चिंताजनक खबरें आई हैं. देश की स्थिरता के जुड़े कम से कम तीन मसलों ने ध्यान खींचा है. ये हैं अर्थव्यवस्था, विदेश-नीति और आंतरिक तथा वाह्य सुरक्षा. उसपर आंतरिक राजनीति का दबाव भी है, जिससे बाहर निकल नहीं पाई है.
शायद इसी वजह से पिछले हफ्ते 23मार्च को ‘पाकिस्तान दिवस’ समारोह में वैसा उत्साह नहीं था, जैसा पहले हुआ करता था. चुनाव के बाद राजनीतिक स्थिरता वापस आती दिखाई पड़ रही है, पर निराशा बदस्तूर है. इसकी बड़ी वजह है आर्थिक संकट, जिसने आम आदमी की जिंदगी में परेशानियों के पहाड़ खड़े कर दिए हैं.
कई तरह के संकटों से घिरी पाकिस्तान सरकार की अगले कुछ महीनों में ही परीक्षा हो जाएगी. इनमें एक परीक्षा भारत के साथ रिश्तों की है. हाल में देश के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने सभी राजनीतिक दलों से मौजूद समस्याओं से निपटने के लिए मतभेदों को दरकिनार करने का आग्रह किया है.
अब वहाँ के विदेशमंत्री मोहम्मद इसहाक डार ने कहा है कि हम भारत से व्यापार को बहाल करने पर ‘गंभीरता’ से विचार कर रहे हैं. यह महत्वपूर्ण इशारा है. ब्रसेल्स में परमाणु ऊर्जा शिखर सम्मेलन में भाग लेने के बाद डार ने लंदन में शनिवार को एक संवाददाता सम्मेलन में बात कही. उन्होंने कहा, पाकिस्तानी कारोबारी चाहते हैं कि भारत के साथ व्यापार फिर से शुरू हो. हम इसपर विचार कर रहे हैं.
पुलिस की हड़ताल
पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत से एक ऐसी खबर मिली है, जो देश के टूटते मनोबल का संकेत देती है. दक्षिणी वजीरिस्तान के छह पुलिस स्टेशनों और उनसे जुड़ी चौकियों के करीब बारह सौ पुलिसकर्मी हड़ताल पर चले गए हैं. इन थानों और चौकियों में शनिवार से रोज़नामचे (डेली डायरी) नहीं भरे गए हैं.
पुलिस नियमों के अनुसार, किसी भी पुलिस स्टेशन में गश्त, मामलों की जाँच, छापेमारी, एफआईआर दर्ज करना, अदालती पेशियों, अफसरों की उपस्थिति सहित दैनिक कार्य, डायरी में दर्ज होते हैं.
इस हड़ताल से दक्षिणी वजीरिस्तान में अराजकता पैदा हो रही है. इस इलाके में आतंकवादी गतिविधियाँ चल रही हैं. पुलिस वाले सरकारी वाहन या पुलिस मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं तो उनपर हमले होते हैं. इस वजह से वे ड्यूटी के लिए निजी वाहनों का इस्तेमाल कर रहे हैं.
इलाके में ज्यादातर निजी वाहन गैर-कानूनी हैं. इन्हें अवैध तरीकों से बगैर सीमा शुल्क चुकाए पाकिस्तान लाया जाता है. उनका रजिस्ट्रेशन भी नहीं होता. पूरा इलाका ऐसे वाहनों से भरा पड़ा है, जो अराजकता की निशानी है.
अफ़ग़ान सीमा
पाक-अफ़ग़ान सीमा पर तनाव तो काफी समय से चल रहा है, पर गत 16मार्च को उत्तरी वजीरिस्तान में तहरीके तालिबान के एक हमले में पाकिस्तानी सेना के सात लोगों की जान चली गई. इसके जवाब में पाकिस्तानी वायुसेना ने एक अरसे बाद जवाबी कार्रवाई की और 18मार्च को टीटीपी के ठिकानों को निशाना बनाया.
तालिबान के नेतृत्व वाले रक्षा मंत्रालय के मुताबिक पाकिस्तानी लड़ाकू विमानों ने अफगान पक्तिका प्रांत के बरमेल जिले और खोस्त प्रांत के सेपेरा जिले में नागरिक बस्तियों पर बमबारी की. इसमें महिलाओं और बच्चों सहित कम से कम आठ लोगों की मौत हो गई.
इस स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान के विदेश विभाग ने जो बयान जारी किया, उसमें सीधे तालिबान सरकार का नाम लिया. उसमें यह भी कहा गया कि पाकिस्तानी फौजियों पर हमलों में शामिल आतंकियों को तालिबान सरकार में शामिल लोगों का समर्थन हासिल है.
टीटीपी की चुनौती
इतना ही नहीं, अफगानिस्तान में पाकिस्तान के विशेष प्रतिनिधि राजदूत आसिफ दुर्रानी ने तालिबान पर आतंकवादियों को पनाह देने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के पाँच-छह हजार आतंकवादी इस इलाके में सक्रिय हैं.
तालिबान ने इन आरोपों को खारिज किया और कहा कि काबुल अपनी जमीन का इस्तेमाल किसी भी देश के खिलाफ करने से इनकार करता है. इतना ही नहीं तालिबान ने जवाबी कार्रवाई की और पाकिस्तानी चौकियों को निशाना बनाया.
तालिबानी रक्षा मंत्रालय का कहना है अफगानिस्तान की रक्षा के लिए हम किसी भी आक्रामक कार्रवाई का जवाब देने के लिए तैयार हैं. तालिबान सरकार ने जिस तरह से पाकिस्तान को अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहने की चेतावनी दी है, उससे आशंका जोर पकड़ रही है कि दोनों देशों के बीच पहले से बिगड़ चुके रिश्ते और खराब होने जा रहे हैं.
इससे तहरीके तालिबान को और मजबूत होने का मौका मिलेगा, क्योंकि अपने देश के भीतर हवाई हमलों को तालिबान भी स्वीकार नहीं करेंगे. तालिबान सरकार के प्रवक्ता ज़बीउल्ला मुजाहिद ने यह भी कहा कि सीमा के बहुत से इलाके ऐसे हैं, जिनपर नियंत्रण रख पाना काफी मुश्किल है.
सीधा टकराव
ध्यान दें कि यह चेतावनी तालिबान-प्रशासन ने दी है, तहरीके तालिबान ने नहीं. तालिबानी रक्षा मंत्रालय ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, अफगानिस्तान की राष्ट्रीय इस्लामी सेना भारी हथियारों के साथ सीमा पर सैन्य चौकियों को निशाना बनाकर पाकिस्तान को जवाब दे रही है.
हालांकि पाकिस्तान के मुकाबले तालिबान की सेना के पास साधन बराबरी के नहीं हैं, पर यह इलाका तालिबान का परिचित है और लंबी धीमी लड़ाई लड़ने का उसके पास अनुभव बेहतर है. दूसरी तरफ पाकिस्तान का मनोबल टूटा हुआ है. उधर पाकिस्तान ने धमकी दी है कि अफग़ानिस्तान के साथ कारोबारी रिश्तों में दबाव डाला जाएगा. इस सिलसिले में बात करने के लिए अफ़ग़ानिस्तान का एक प्रतिनिधिमंडल पाकिस्तान आया हुआ है.
लंबी लड़ाई शुरू होने के अंदेशे को देखते हुए अमेरिका ने भी पाकिस्तान से कहा कि अपने अभियान में संयम बरते. ह्वाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरिन ज्यां-पियरे ने कहा कि हमने अफगानिस्तान पर शासन करने वाले तालिबान से भी आग्रह किया है कि वह यह सुनिश्चित करे कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल आतंकी हमलों के लिए न किया जाए. दोनों देशों को अपने मतभेदों को बातचीत के जरिए सुलझाना चाहिए.
तालिबान का संरक्षक
लंबे अरसे तक पाकिस्तान खुद को तालिबान का संरक्षक मानता रहा है. 1996में जब तालिबान सत्ता में आए थे, उस समय पाकिस्तान का निर्विवाद रूप से उनपर पूरा दबाव था. पर आज वह स्थिति नहीं है. पिछले दो दशकों में तहरीके तालिबान के उदय से स्थिति बदल गई है.
यह संगठन पाकिस्तानी है, पर इसका पश्तून आधार इसे पाकिस्तान के नेतृत्व से दूर करता है. 15अगस्त 2021में सत्ता परिवर्तन के बाद पाकिस्तान को आशा थी कि अब टीटीपी पर काबू पाना आसान होगा, पर ऐसा हुआ नहीं, बल्कि उसकी ताकत और बढ़ गई है.
हाल के दस-बारह वर्षों में टीटीपी ने सीमा पर छह सौ से ज्यादा हमले किए हैं, पाकिस्तान के एक हजार से ज्यादा लोगों की हत्याएं की हैं. मरने वालों में ज्यादातर सैनिक हैं या सरकारी कर्मचारी. खासतौर से 2014में पेशावर के आर्मी पब्लिक स्कूल पर हुए हमले ने पाकिस्तान के भरोसे को बुरी तरह तोड़ दिया, जिसमें 130छात्रों की मौत हुई थी.
ईरान सीमा पर तनाव
पिछले एक साल में तो ताबड़तोड़ हमलों की झड़ी लग गई है. इस किस्म के हमलों से सेना का मनोबल भी टूटता है. अफ़ग़ान सीमा पर चल रही इस हिंसा के साथ-साथ ईरान की सीमा पर भी अराजकता का माहौल है, जिसके कारण पाकिस्तान और ईरान के रिश्ते बिगड़े हैं.
इस साल जनवरी में ईरानी सेना ने पाकिस्तान में घुसकर कार्रवाई की. उसके जवाब में पाकिस्तान ने भी ईरान की सीमा पर सिस्तान-बलोचिस्तान क्षेत्र में घुसकर कार्रवाई की. हालांकि दोनों देशों ने बातचीत करके तनाव बढ़ने नहीं दिया, पर इस घटनाक्रम ने इस समस्या को रेखांकित जरूर किया है.
पिछले साल पाकिस्तान ने अपने देश में अवैध तरीके से रह रहे अफ़ग़ान शरणार्थियों को निकालने का अभियान चलाया. इसके तहत करीब पाँच लाख लोगों को वापस भेजा जा चुका है. इससे अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान के प्रति नाराज़गी बढ़ी है.
बलोच हमले
उधर 20मार्च को ग्वादर पोर्ट अथॉरिटी कॉम्प्लेक्स में बलोचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) के मजीद ब्रिगेड ने आत्मघाती हमला करके दूसरी तरह की चेतावनी पाकिस्तानी सेना को दी है. पाकिस्तानी सेना के अनुसार इस हमले में आठ हमलावर उसके दो सैनिक भी मारे गए.
इसके कुछ दिन पहले ही बीएलए ने कोलवा शहर में सेना के दस वाहनों के कॉन्वॉय पर हमला बोला था. पिछले दो साल में बलोच इनसर्जेंसी बढ़ी है और मजीद ब्रिगेड नामक उसके संगठन ने आधुनिकतम हथियारों का संचालन सीख लिया है.
अर्थव्यवस्था
गुरुवार 21मार्च को प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की सहायता के बिना जीवित नहीं रह पाएगी. अगले महीने 1.1अरब डॉलर की सहायता की उम्मीद करते हुए, उन्होंने कहा कि देश को दो-तीन साल के आईएमएफ कार्यक्रम के साथ गहरे संरचनात्मक सुधार लाने की जरूरत है.
इसके एक दिन पहले आईएमएफ ने संकेत दिया था कि वह बेल-आउट सौदे की 1.1अरब डॉलर की किस्त को अनलॉक करने के लिए इस्लामाबाद के साथ एक अस्थायी समझौते पर पहुंच गया है. पाकिस्तान को पिछले साल की गर्मियों में मिले 3अरब डॉलर के बचाव पैकेज की यह अंतिम किश्त होगी. यह सौदा 11अप्रैल को समाप्त हो रहा है.
पाकिस्तान इस समय भुगतान संतुलन संकट से जूझ रहा है, जिसके कारण वह डिफॉल्ट के कगार पर आ गया था. इस आखिरी किश्त के बाद भी पाकिस्तान को एक और दीर्घकालिक बेलआउट की जरूरत है.
बढ़ती महंगाई
इस साल संवृद्धि-दर मामूली रहने की उम्मीद है और मुद्रास्फीति लगातार लक्ष्य से काफी ऊपर बनी हुई है. आईएमएफ चाहता है कि पाकिस्तान को संरचनात्मक सुधारों की जरूरत है. ऐसा करने के लिए बिजली, पेट्रोलियम वगैरह की दरें बढ़ेंगी. इस बात से जनता की नाराज़गी बढ़ेगी. पाकिस्तान में मुफ्त की बिजली पाने वालों की संख्या भी बहुत बड़ी है. उसे ठीक करना होगा.
गत 20 मार्च को प्रधानमंत्री शरीफ ने कैबिनेट को सूचित किया कि देश को नए आईएमएफ ऋण की आवश्यकता है, और इस सौदे को हासिल करने के लिए टैक्स बेस बढ़ाना जरूरी है.
( लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं )
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