हामिद मीर
पाकिस्तान की राजनीति इस समय एक विचित्र स्थिति में फंसी हुई है, जहां शक्तियों के खेल और समझौतों का ताना-बाना है, और ये सब तमाशा बनकर सामने आ रहा है.वर्तमान में, पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और शहबाज शरीफ की सरकार के बीच बातचीत का तमाशा तूल पकड़ चुका है.यह केवल राजनीतिक संघर्ष का हिस्सा नहीं, बल्कि इसने न्याय व्यवस्था और सरकारी कार्यप्रणाली पर भी सवालिया निशान खड़ा कर दिया है.
इमरान खान की जमानत और राजनीतिक अस्तित्व
इमरान खान पर एक बड़ा आरोप है – अल-कादिर ट्रस्ट मामले में 190 मिलियन पाउंड के कथित गबन का.हालांकि, इस मामले में कई तारीखें तय की गईं, लेकिन हर बार न्यायाधीश उस फैसले को स्थगित कर देते हैं.अब यह स्थिति तक पहुँच चुकी है कि इमरान खान की बहन अलीमा खान ने सार्वजनिक रूप से चुनौती दी है कि यदि उनमें हिम्मत है तो वे सजा सुनाएं.
ऐसे समय में इमरान खान को 10 से 14 साल की सजा का सामना करना पड़ सकता है.लेकिन इमरान खान जानते हैं कि उन्हें इस मामले में दी जाने वाली सजा उनके लिए भविष्य में एक अवसर बन सकती है.इस मामले में इमरान खान के खिलाफ आरोपों के बावजूद, उनका राजनीति में प्रभाव अब भी मजबूत है.
यह देखा गया है कि वे अपनी सजा का उपयोग एक राजनीतिक हथियार के रूप में कर रहे हैं, ताकि सत्ता के उन ताकतवर लोगों के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई की जा सके, जो उनके खिलाफ साजिश कर रहे हैं.
सत्ता के खेल और भ्रष्टाचार
पाकिस्तान के शासक वर्ग में जो असल खेल चल रहा है, वह केवल इमरान खान तक सीमित नहीं है.देश की मौजूदा सरकार भी अपनी स्थिति को लेकर असमंजस में है.वित्तीय संकट और सरकारी खर्चों में वृद्धि के बावजूद, सरकार ने राजनीतिक खेल खेलते हुए अपनी स्थिति को मजबूत करने की कोशिश की है.कई मामलों में, भ्रष्टाचार और जवाबदेही की निंदा करने के बावजूद, सरकार ने न केवल बजट घाटे को बढ़ाया है, बल्कि वह बर्बादी के कुछ अरबों रुपये के प्रोजेक्ट भी शुरू कर रही है.
इसी बीच, इस्लामाबाद में भ्रष्टाचार का एक गंभीर मसला सामने आता है, जहां पहले सड़कें बनाई जाती हैं, फिर उन्हें तोड़ा जाता है और फिर से बनाई जाती हैं, ताकि भ्रष्टाचार के रास्ते खोले जा सकें.सरकारी खजाने से जो पैसे बर्बाद हो रहे हैं, वह पाकिस्तान के नागरिकों की पीड़ा को बढ़ाते हैं, लेकिन जवाबदेही का कोई स्पष्ट उपाय नहीं दिखता.
शहबाज शरीफ और पीटीआई: एक कमजोर वार्ता
शहबाज शरीफ की सरकार और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के बीच चल रही बातचीत भी इस समय एक कमजोर और शक्तिहीन स्थिति में है.इमरान खान के पक्ष से जो टीम बातचीत में शामिल है, वह भी सत्ता के असली निर्णयकर्ताओं के मुकाबले शक्तिहीन है.बातचीत का यह तमाशा केवल राजनीतिक संघर्ष की ओर इशारा करता है, जिसमें किसी को भी सही समाधान नहीं मिल रहा है.यह स्थिति पाकिस्तान की राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ाती है.
इमरान खान को समझौता करने के लिए कई बार समझाया गया है, लेकिन उन्होंने हर बार इन प्रस्तावों को ठुकरा दिया.उनका कहना है कि वे किसी भी हाल में पाकिस्तान छोड़ने या प्रधानमंत्री बनने की योजना नहीं बना रहे हैं.उनका इरादा है कि वे किसी सैन्य अदालत से फैसला हासिल करें, ताकि वे अपनी स्थिति को और मजबूत कर सकें और अपने विरोधियों को चुनौती दे सकें.
सरकार की स्थिति और न्याय व्यवस्था का तमाशा
पाकिस्तान की वर्तमान सरकार दावा करती है कि उसने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को संकट से बाहर निकाला है, लेकिन इसके विपरीत, देश का वित्तीय घाटा बढ़ता जा रहा है.सरकारी खर्च बढ़ने के साथ-साथ, कर्ज़ का बोझ भी बढ़ रहा है.2023 में प्रत्येक पाकिस्तानी पर 271,000 रुपये का कर्ज था, जो 2024 में बढ़कर 302,000 रुपये होने की उम्मीद है.
2025 में, सरकार को बजट घाटे को 3.5 प्रतिशत तक सीमित करने की आवश्यकता होगी, लेकिन 2024 में यह घाटा 7.3 प्रतिशत तक पहुंच गया है.पाकिस्तान की राजनीति और न्याय व्यवस्था इस समय एक गहरी समस्या से गुजर रही है.इमरान खान का सजा से बचने के लिए राजनीतिक खेल और भ्रष्टाचार की स्थिति ने पाकिस्तानी राजनीति को तमाशे में बदल दिया है.
देश के नागरिकों के लिए यह एक जटिल स्थिति है, जिसमें न्याय और पारदर्शिता की कमी स्पष्ट रूप से महसूस हो रही है.यदि सरकार और पीटीआई मिलकर इस समस्या को हल नहीं करते, तो यह तमाशा और भी बढ़ेगा, और पाकिस्तान की राजनीति की विश्वसनीयता और स्थिरता को खतरा हो सकता है.
लेखक पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार हैं.जंग से साभार