हरजिंदर
कहते हैं, नफरत का कोई गणित नहीं होता. उसका सिर्फ बाजार होता है. शायद यही वजह है कि नफरत सबसे पहले बाजारों में ही दिखाई देती है. पिछले हफ्ते देश के दो पहाड़ी राज्यों हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के बाजारों में जिस तरह से नफरत दिखाई दी वह चिंता में डालने वाली है.
बात हिमाचल से शुरू करते हैं. इस राज्य में मुसलमानों की आबादी 2.2 फीसदी से भी कम है. यह संख्या इतनी कम है कि इसका समाज पर कोई बड़ा असर दिखेगा यह सोचा भी नहीं जा सकता. राजधानी शिमला में तो मुसलमानों की आबादी डेढ़ फीसदी से भी कम है.
शिमला में जाखू पर्वत के उस पार है संजोली, जिसे नया शिमला भी कहा जाता है. इसी संजोली में एक मस्जिद है जिसके बारे में कहा गया कि वहां कुछ अवैध निर्माण हुआ है और इस को लेकर सांप्रदायिक तनाव फैल गया.
वैसे तो किसी भी तरह का अवैध निर्माण स्थानीय निकाय और निर्माण करने वाले के बीच का मसला है. अगर इसे आम लोगों को कोई परेशानी हो रही हो तो उन्हें इसका विरोध करना ही चाहिए. अवैध निर्माण चाहे किसी धार्मिक स्थल का ही क्यों न हो, उस गिराया ही जाना चाहिए.
लेकिन अगर इसे सांप्रदायिक उन्माद का विषय बना दिया जाता है तो इसका अर्थ है कि मामला सिर्फ अवैध निर्माण का नहीं , बल्कि इसे किसी खास मकसद से तूल दिया जा रहा है. इस मसले को लेकर जिस तरह से संजोली की मुख्य सड़कों पर प्रदर्शन हुए उससे तो यही जाहिर होता है. बाजार बंद हो गए . पुलिस को शांति स्थापित करने के लिए जूझना पड़ा.
बाद में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने यह कहा कि अवैध निर्माण वे खुद ही गिरा देंगे तो मामला शांत हो जाना चाहिए था, लेकिन वह फिर भी शांत होता नहीं दिख रहा.हिमाचल के ही दूसरे सिरे पर बसे मंडी शहर में इसके तुरंत बाद ही उग्र प्रदर्शन हुए.
भीड़ को तितर बितर करने के लिए पुसिल को वाटर कैनन का इस्तेमाल करना पड़ा. वहां भी मसला एक मस्जिद के अवैध निर्माण का था. कहा गया कि इस मस्जिद में ऊपर की दो मंजिलें अवैध रूप से बनाई गई हैं.
मंडी शहर में मुसलमानों की आबादी एक फीसदी से भी काफी कम है. लेकिन शिमला के बाद मंडी में जिस तरह से घटनाएं हुईं वह बताता है कि यह तनाव सहज नहीं है, बल्कि किसी खास मकसद से इसे पैदा किया जा रहा है. रोजमर्रा जिंदगी में समुदायों के बीच अक्सर जो तनाव पैदा हो जाते हैं वे इस तरह के तो नहीं होते.
अगर हम हिमाचल के पड़ोसी राज्य उत्तराखंड को देखें तो वहां रुड़की, उधम सिंह नगर और राजधानी देहरादून ऐसे इलाके हैं जहां मुसलमानों की आबादी थोड़ी ज्यादा कही जा सकती है. इसके अलावा बाकी जिलों में मुस्लिम आबादी का अनुपात तकरीबन वैसा ही है जैसा कि हिमाचल में है. लेकिन इन जिलों से भी सांप्रदायिक तनाव की खबरें आने लगी हैं.
कुछ महीने पहले ऐसी ही खबरें उत्तरकाशी से आई थीं. तनाव के चलते बहुत से कारोबारियों को वहां से पलायन करना पड़ा था. कुछ ऐसा ही पिछले हफ्ते देहरादून में हुआ. छेड़छाड़ की एक घटना के बाद एक समुदाय के लोगों को बाजार से बाहर कर देने का दबाव बनाया गया.
वैसे इन दिनों ऐसी खबरों में कुछ भी नया नहीं है. ये सब आपको आए रोज कहीं न कहीं से सुनाई दे जाएगा. दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि सामाजिक स्तर पर इसे रोकने के प्रयास भी कहीं नहीं हो रहे. लेकिन यह सब अगर पहाड़ी राज्यों में होता है तो चिंता और बढ़ जाती है.
ये राज्य अपनी शांति और सामाजिक सामंजस्य के लिए जाने जाते हैं. इसी वजह से मैदानी क्षेत्रों के बहुत से तनावों से अक्सर बच जाते रहे हैं. पर अब उनके लिए भी बचना मुशकिल होता जा रहा है. इसका अर्थ है कि नफरत खतरनाक स्तर तक बढ़ रही है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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