‘गजवा-ए-हिन्द’ का प्रचार अर्थहीन

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 30-08-2023
Ghazwa e hind
Ghazwa e hind

 

डॉ. हफीजुर्रहमान

गजवा-ए-हिन्द भारत राष्ट्र के इस्लामी ताकतों के हाथों पतन का संकेत देता है. दुर्भाग्य से अरबी शब्द ‘गजवा’ को भारत राज्य पर अंततः मुस्लिम प्रभुत्व के रूप में गलत समझा जाता है. बड़ी संख्या में इस्लामी विद्वान इस कथित भविष्यवाणी को बेहद भ्रामक और झूठा बताकर स्पष्ट रूप से खारिज करते हैं. वे इसकी प्रामाणिकता पर सवाल उठाते हैं और दावा करते हैं कि न तो स्वयं पैगंबर मोहम्मद (पीबीयूएच) और न ही उनके निर्देशित साथियों ने कभी ऐसे झूठे दावे किए. वास्तव में यह राजनीति से प्रेरित प्रचार, कुछ अप्रामाणिक हदीसों (पैगंबर मोहम्मद की बातें) और उनकी गलत व्याख्याओं के जरिए फैला है.

पाकिस्तान और कश्मीर के चरमपंथी गुट हिज्बुल मुजाहिदीन, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, हरकत-उल-मुजाहिदीन, हरकत-उल-जिहाद जैसे विभिन्न आतंकवादी संगठनों के माध्यम से जहरीले गजवा-ए-हिंद सिद्धांत को भारतीय धरती पर फैलाया गया है. इस्लामी अल-बद्र अफगान तालिबान का मूल उद्देश्य तबाही और राजनीतिक अस्थिरता पैदा करना है. अफगान तालिबान, अल-बद्र अफगान तालिबान से खुद को दूर रखता है.

गजवा-ए-हिन्द की व्यापक रूप से गलत और निराधार प्रचार के रूप में निंदा की जाती है. कश्मीर स्थित अंसार गजवत-उल-हिंद (अल-कायदा से संबद्ध इस्लामी आतंकवादी समूह) सावधानीपूर्वक कश्मीर को भारतीय चंगुल से मुक्त करने और एक इस्लामी राज्य में बदलने का प्रयास करता है. इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए यह भारतीय राज्य के खिलाफ जिहाद (पवित्र युद्ध) छेड़ने के लिए पाकिस्तान और अफगानिस्तान से कश्मीर में भाड़े के सैनिकों को सक्रिय रूप से भर्ती करता है.

चरमपंथी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और उसके जैसे संगठन गजवा-ए-हिंद की ‘भविष्यवाणी’ की कल्पना करते हैं, एक काल्पनिक परिदृश्य में, जहां पाकिस्तानी सेना भारत पर कब्जा कर लेती है और इसे एक केंद्रीय इस्लामी शासन के तहत एकजुट करती है.

गजवा-ए-हिन्द पर इस्लामी विद्वानों के विचार

गजवा का शाब्दिक अर्थ युद्ध है, जिसमें पैगंबर मोहम्मद (पीबीयूएच) ने खुद इस्लामी सेनाओं को जीत दिलाई, जबकि सिरयाह का मतलब उन युद्धों से है, जो हालांकि पैगंबर मोहम्मद (पीबीयूएच) के जीवनकाल के दौरान लड़े गए थे, लेकिन उन्होंने उनमें खुद को भाग लेने से रोक दिया और इसके बजाय उनके साथियों ने इस्लामी सेनाओं का नेतृत्व किया.

इस्लामी विद्वानों का एक समूह हदीस की प्रामाणिकता को सिरे से खारिज करता है और इस बात पर जोर देता है कि गजवा-ए-हिंद की धारणा मौलिक इस्लामी सिद्धांतों के विपरीत है. केवल प्रामाणिक स्रोतों के आधार पर गजवा-ए-हिंद की कहानियों का विश्लेषण करना अनिवार्य है.

दो हदीसों को छोड़कर लगभग 4500हदीसों का पूरा संग्रह गजवा-ए-हिंद जैसी किसी भी चीज से रहित है. आइए हम इन दोनों हदीसों की जांच करते हैं. अबू हुरैरा ने पहली रिपोर्ट दी है, जिसे अधिकांश इस्लामी विद्वानों ने सर्वसम्मति से अविश्वसनीय बताया है. सौबान दूसरा बयान करते हैं.

अल्बानी जैसे मुख्यधारा के इस्लामी विद्वान इसे भविष्यवाणी के रूप में लेते हैं, जो उमर (आरए) और उस्मान (आरए) की खिलाफत के दौरान गुजरात, सिंध और केरल बंदरगाहों के माध्यम से मुस्लिम व्यापारियों और सूफी संतों के शांतिपूर्ण आगमन का संकेत देता है. दिलचस्प बात यह है कि हदीस के छह प्रमुख संग्रहों में से पांच में उपरोक्त दोनों हदीसों में से कोई भी नहीं पाई जाती है.

वास्तव में जब हमने गजवा के उपर्युक्त शाब्दिक अर्थ पर विचार किया, तो हमने पाया कि दोनों हदीसों में से कोई भी जांच के लायक नहीं है, क्योंकि दृढ़ इस्लामी विश्वास के अनुसार पैगंबर मोहम्मद (पीबीयूएच) पहले ही अपने स्वर्गीय निवास के लिए रवाना हो चुके हैं और इस अस्थायी दुनिया के लिए वापस लौटने वाले नहीं हैं. इसलिए, गजवा-ए-हिंद से संबंधित ये दोनों हदीसें खारिज कर दी गईं.

गजवा-ए-हिंद की विचारधारा, नेसाई और अहमद इब्ने हम्बल के दो संग्रहों में पाए गए असत्यापित हदीस की गलत व्याख्याओं पर टिकी है. हालाँकि, ये हदीस समकालीन इस्लामी विचारधारा में कोई सार्थक स्थान पाने में विफल रही हैं.

सच कहें तो, यह कभी भी पैगंबर मोहम्मद (पीबीयूएच), उनके निर्देशित उत्तराधिकारियों (जिन्होंने उनकी मृत्यु के बाद 30वर्षों तक शासन किया), या अहल-ए-बैत (पैगंबर मोहम्मद का पवित्र परिवार) की शिक्षाओं का घटक तत्व नहीं था. यह स्वीकार करना आवश्यक है कि इस्लामिक खिलाफत काल के पहले 30वर्षों में, लड़ाई पूरी तरह से सांसारिक लाभ के लिए लड़ी गई और जिहाद (इस्लामी पवित्र युद्ध) का विचार कभी सामने नहीं आया.

इसी तरह, मलेशियाई इस्लामी विद्वान शेख इमरान हुसैन भी गजवा-ए-हिंद की हदीस को अप्रामाणिक बताते हैं. इस्लामी विचारधारा के विभिन्न रंगों के बीच यह विशेष हदीस अस्वीकार्य और संदिग्ध बनी हुई है. मिस्र से लेकर सऊदी अरब, ईरान, नजफ और भारतीय उपमहाद्वीप तक के सुन्नी और शिया इस्लामी विद्वान बिना किसी अनिश्चित शब्दों के इन हदीस को नकली घोषित करते हैं.

प्रारंभिक और मध्ययुगीन मुस्लिम शासक जैसे उम्मयद और अब्बासी, ओटोमन्स और मुगल मुख्य रूप से सत्ता संघर्ष में लगे हुए थे और जिहाद से दूर थे, जबकि गजवा-ए-हिंद दर्शन ने कभी भी अपने सैन्य अभियानों का आधार नहीं बनाया.

कोई भी प्रामाणिक इस्लामी स्रोत (भविष्यवाणी के समय से लेकर निर्देशित खलीफा काल से लेकर सूफी संतों की शिक्षाओं तक) गजवा-ए-हिंद की गलत धारणा की पुष्टि नहीं करता है. अब्दुल हक देहलवी और उनके अनुयायियों जैसे दिग्गजों की रचनाएं गजवा-ए-हिंद की अभिव्यक्ति के किसी भी संदर्भ से पूरी तरह से रहित हैं. इस हदीस की उपरोक्त व्यापक जांच हमें सुरक्षित रूप से यह निष्कर्ष निकालने के लिए मजबूर करती है कि गजवा-ए-हिंद से संबंधित हदीसें अविश्वसनीय और अप्रामाणिक हैं.

अरबी की अत्यधिक शब्दावली-समृद्ध भाषा है और एक ही वस्तु के लिए दसियों और सैकड़ों शब्द हो सकते हैं. उदाहरण के लिए ‘शेर’ के लिए लगभग 300पर्यायवाची शब्द हैं, ऊँट के लिए 150से अधिक, इत्यादि. इसी तरह अरबी में गजवा शब्द के कई तरह के अर्थ हैं, जिनमें सद्गुणों को अपनाने और बुराइयों से बचने के लिए आत्म-संघर्ष, एक नैतिक समाज बनाने के ईमानदार प्रयास शामिल हो सकते हैं.

गजवा-ए-हिंद सिद्धांत के शुरुआती निशान केवल आधी सदी पहले 1971में बांग्लादेश के निर्माण में पाए जा सकते हैं. इसके तुरंत बाद पाकिस्तानी शासकों ने गजवा-ए-हिंद एजेंडे को आक्रामक रूप से आगे बढ़ाया. प्रारंभ में यह सीमित क्षेत्र तक ही सीमित था.

हालांकि, 1980के दशक के दौरान पाकिस्तानी सैन्य शासन ने जिहाद की आड़ में इस सिद्धांत को कश्मीर के माध्यम से भारत में निर्यात किया. आग की इन लपटों ने बहुत तेजी से भारत के अन्य हिस्सों को भी अपनी चपेट में ले लिया. इसने उन कमजोर युवाओं को सफलतापूर्वक कट्टरपंथी बना दिया, जो आसानी से इसमें कूद पड़े. मैं स्पष्ट कर दूं कि पाकिस्तान और बांग्लादेश के बड़ी संख्या में इस्लामी विद्वान द्वेषपूर्ण गजवा-ए-हिंद दर्शन से खुद को अलग करते हैं और इसे चरमपंथ को बढ़ावा देने वाला इस्लाम विरोधी विचार बताते हैं.

वास्तव में इस्लामी शिक्षाओं का सार शांति और शांति है, जबकि आक्रामकता, युद्ध, आत्मघाती बमबारी और अन्य विनाशकारी गतिविधियों को अत्यधिक हतोत्साहित किया जाता है. गजवा-ए-हिंद सिद्धांत पाकिस्तानी राजनीतिक प्रतिष्ठान के राजनीतिक प्रतिशोध और दुर्भावनापूर्ण इरादों का एक उत्पाद है, जिसका उद्देश्य विशेष रूप से गुप्त उद्देश्यों के लिए भारतीय युवाओं का शोषण करना है.

संक्षेप में कहें, तो गजवा-ए-हिंद के पैरोकार भारतीय मुसलमानों को अकल्पनीय मात्रा में अपूरणीय क्षति पहुंचाना चाहते हैं. अब समय आ गया है कि वे अपनी रणनीति पर दोबारा गौर करें और इस दुर्भावनापूर्ण एजेंडे को बंद करें. वर्तमान में, भारतीय मुसलमान खतरनाक चट्टानों के किनारे एक सतर्क मार्ग पर व्यवहार कर रहे हैं. इसका मुख्य कारण सीमा पार से निराधार और खतरनाक प्रचार है.

(डॉ. हफीजुर रहमान एक इस्लामिक विद्वान, लेखक और खुसरो फाउंडेशन, नई दिल्ली के संयोजक हैं.)


ये भी पढ़ें :  चंद्रविजयः चंद्रयान-3 कामयाबी, एक ही झटके में 13 कंपनियों के शेयर चढ़े 33.32 फीसद, पूंजी बढ़ी 20,000 करोड़