G 20 : वसुधैव कुटुंबकम यानी ‘विश्व एक परिवार

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 08-09-2023
Vasudhaiva Kutumbakam
Vasudhaiva Kutumbakam

 

तारिक सोहराब गाजीपुरी 

भारतीय संसद के प्रवेश कक्ष में ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ अर्थात ‘विश्व एक परिवार है’ शब्द उत्कीर्ण है. हमारा देश भारत लंबे समय से विभिन्न संस्कृतियों का स्वर्ग रहा है और ऐसी संस्कृतियों में हमें वसुधैव कुटुंबकम की इस दूरदर्शी दृष्टि के कारण शांति और सद्भाव की अभिन्न झलक मिलती है. ‘हम भारत के लोग’ न केवल इस विचार को दूसरों के साथ साझा करते हैं, बल्कि व्यावहारिकता के साथ इसके सार को दूर-दूर तक फैलाते भी हैं. यहां इस अंक में, मैं इसके मूल विचार पर प्रकाश डालने जा रहा हूं कि इस विचारधारा की उत्पत्ति कहां से हुई है और वसुधैव कुटुंबकम की छत्रछाया में इस सिद्धांत के आधार पर पृथ्वी पर मानव को कैसे आत्मसात किया जाता है.

जब सभी आकाशगंगाओं के निर्माता, सर्वशक्तिमान ईश्वर ने स्वर्ग में स्वर्गदूतों के साथ एक बैठक बुलाई, तो उन्होंने कहा कि वह आदम की इस प्रतिष्ठित छवि से पृथ्वी पर एक प्राणी अर्थात् मानव का निर्माण करने जा रहे हैं. हम सभी मनुष्य पृथ्वी पर प्रथम मनुष्य की संतान हैं.

आज हम इंसान दुनिया में हर जगह पाए जाते हैं, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम एक ही माता-पिता से उपजे हैं, इसलिए हम एक-दूसरे से अलग नहीं हैं और न ही हो सकते हैं. अंतिम पवित्र ग्रंथ, गौरवशाली कुरान भी कहता है कि अल्लाह ने सभी मनुष्यों को एक ही माता-पिता से बनाया है और सबसे अच्छा वह है, जो पृथ्वी पर शांति और सद्भाव बनाए रखता है. इस विचारधारा को विभिन्न भाषाओं में इसी आधार पर चित्रित किया गया है.


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वसुधैव कुटुंबकम वाक्यांश का शाब्दिक अर्थ कई शब्दों से मिलकर बना हैः वसुधैव (अनुवाद-‘पृथ्वी एक है’) और कुटुंबकम (परिवार), इस तरह इसका अर्थ है ‘विश्व एक परिवार है.’ जैसा कि हमारे ब्राह्मण बुद्धिजीवी अपने शोध के आधार पर कहते हैं कि मूल श्लोक ‘वसुधैव कुटुंबकम’ महाउपनिषद वीआई71-73 के अध्याय 6 में आता है, यह निश्चित रूप से एक विचारणीय बिंदु है.

भारतीय संस्कृतियों में इसका अपना अनूठा महत्व है. इसे भारतीय समाज में सबसे महत्वपूर्ण नैतिक मूल्य माना जाता है. इसीलिए महा उपनिषद के इस श्लोक को भारतीय संसद के प्रवेश कक्ष में उत्कीर्णनीय समझा गया.

जैसा कि मैंने ऊपर बताया, हमारा देश भारत विभिन्न संस्कृतियों का स्वर्ग रहा है और ऐसी सभी संस्कृतियाँ मानवीय पर्यावरण की सुंदरता को वैश्विक क्षितिज पर जोड़ने में सहायक हैं. धरती पर पहले इंसान ‘आदम’ का जन्म भारत की धरती पर हुआ था. यह नोहा की भूमि भी है (उन पर शांति हो!). यहां आपको हजारों लोग मिलेंगे, जो पवित्र कुरान को उसी गति से पढ़ते हुए अपनाते हैं, यहां भारत में कई संत सद्भाव और प्रेम के पवित्र छंदों का जाप करते हैं, उदाहरण के लिएः

“हमें है इश्क मस्ताना हमें दुनिया से यारी क्या?

जो बिखरे हैं पियारे से भटकते दम बेदम फिरते”

अनुवादः हमारे लिए प्रेम श्रेष्ठ है, हम एक परिवार हैं और हमें दुनिया की धोखा देने वाली नीतियों से कोई सरोकार नहीं है. और जो लोग धर्मात्मा लोगों से अपने को दूर रखते हुए नीच मानसिकता वाले होते हैं, वे मूल्यहीन होते हैं और इधर-उधर भटकते रहते हैं, तो फिर क्यों नहीं, ऐसे लोगों की उपस्थिति में भारत जैसा देश पृथ्वी पर रहने वाले प्यासे लोगों के लिए विश्व गुरु बनेगा.

जब पृथ्वी पर सभी मनुष्यों की उत्पत्ति एक ही माता-पिता से हुई है, तो उन्हें अलग कैसे किया जा सकता है? हम, पवित्र धर्मग्रंथों के लोग, यह महसूस करते हैं कि यदि दुनिया के किसी भी कोने में सुदूर इलाके में रहने वाला कोई व्यक्ति दर्द में है, तो हमें भी उसी दर्द का एहसास होना चाहिए. यदि किसी उचित व्यक्ति के साथ निष्पक्ष न्याय नहीं हो पाता है, तो हमें उसके पक्ष में निष्पक्ष न्याय के लिए पैरवी करने का पूरा प्रयास करना चाहिए.

हकीकत के आईने में बेशक वसुधैव कुटुम्बकम् का यही अर्थ है. नीच बुद्धि वाले लोग धर्मात्मा व्यक्तियों के लिए कष्ट उत्पन्न करते हैं. आइए निम्नलिखित शीर्षक के तहत निम्नलिखित पंक्तियों पर गौर करेंः विश्व एक परिवार है (वसुधैव कुटुंबकम)

विश्व एक परिवार है

एक सगा दूसरा पराया

छोटी सोच वाले कहते हैं

पूरा विश्व एक परिवार है

उदारता से जियो

निर्लिप्त रहो

उदार बनो

अपना दिल बड़ा करो, आनंद लो

ब्राह्मणवादी स्वतंत्रता का फल

-महाउपनिषद 6.71-75.

‘हज्जतुल विदा’ (काबा की अंतिम तीर्थयात्रा) के शुभ अवसर पर, सर्वशक्तिमान ईश्वर के दूत मोहम्मद इब्न अब्दुल्ला कहते हैं, ‘‘सभी प्राणियों का सम्मान करें, मानवता का सार फैलाएं, आप पर कोई वर्चस्व नहीं होना चाहिए, आप सभी का मतलब अमीर और गरीब, सफेद और काला समान हैं. हम भारतीय भी इसी शिक्षा को अपनाते हैं. हमारी विविधता हमारी एकता में निहित है.’’

हमारे प्रसिद्ध दार्शनिकों में से एक, गांधी स्मृति और दर्शन समिति के पूर्व निदेशक डॉ. एन. राधा कृष्णन का मानना है कि गांधी, समग्र विकास की दृष्टि और जीवन के सभी रूपों के लिए सम्मान, अहिंसा को एक सिद्धांत और रणनीति दोनों के रूप में स्वीकार करने में अंतर्निहित अहिंसक संघर्ष समाधान, वसुधैव कुटुंबकम की भारतीय अवधारणा की खुशबू फैलाएं.


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संक्षेप में मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि भारत में हमारी एकता वसुधैव कुटुंबकम पर आधारित है. हमारी वर्तमान सरकार को बड़े पैमाने पर अपना दायरा बढ़ाने की जरूरत है और उसी गति से, मैं हमारी लोकतांत्रिक सरकार से उन असामाजिक तत्वों पर अंकुश लगाने का अनुरोध करता हूं जो हमारे शांतिपूर्ण संविधान के नियमों का उल्लंघन करते हैं.

मैं सर्वशक्तिमान ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि वह वसुधैव कुटुंबकंब (दुनिया एक परिवार है) की दृष्टि से हमारे धर्मनिरपेक्ष देश, भारत का नाम रोशन करे. यदि हम स्वयं को ‘न्याय की दृष्टि से हम दुनिया हैं’ मानते है, तो दुनिया निश्चित रूप से हमारी होगी और तब ‘एक परिवार - एक भविष्य’ का लंबे समय से महसूस किया गया सपना न केवल तर्कों के रूप में बल्कि व्यावहारिक आधार पर भी साकार होगा. भी.

यहां अंत में मैं शायर डॉ. सर मोहम्मद इकबाल को उद्धृत करना चाहूंगा? जिन्होंने हिंदुस्तान (भारत) का नाम रोशन किया थाः

‘सारे जहां से अच्छा हिंदुस्ता हमारा...

हम बुलबुलें हैं इसकी ये गुलसितां हमारा...’

लेकिन क्या आप जानते हैं कि ऊपर बताए गए इस तार्किक शेर के पीछे क्या कारण था. मेरी राय में, इसका एकमात्र कारण ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भारत में बढ़ती विचारधारा थी.

हमारा सृष्टिकर्ता हमें विश्व में निराश्रितों, जरूरतमंदों और गरीबों के कष्टकारी कष्टों को दूर करने की इस विचारशील दृष्टि के आभूषणों से सुशोभित करे!


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