भारतीय मुसलमानों को लेकर भ्रम फैलाता विदेशी मीडिया

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 15-05-2023
भारतीय मुसलमानों को लेकर भ्रम फैला रहा है विदेशी मीडिया
भारतीय मुसलमानों को लेकर भ्रम फैला रहा है विदेशी मीडिया

 

 
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बदलाव निश्चित तौर पर हुआ है, लेकिन वह नाकाफी है. कम से कम पश्चिम के मीडिया से यह शिकायत तो अभी भी बनी ही हुई है. उसका नजरिया भारत के बहुत सारी वास्तविकताओं से मेल नहीं खाता. यह ठीक है कि अब पश्चिम में भारत को सपेरों या जादूगरों के देश के रूप में पेश नहीं किया जाता, लेकिन उसके बहुत सारे पूर्वाग्रह अभी भी बने हुए हैं.

मसलन भारत की आर्थिक तरक्की को अभी भी वहां बहुत से लोग हजम नहीं कर सके हैं.फिलहाल हम एक ऐसे मसले पर बात करेंगे जिसे लेकर पश्चिम के मीडिया में आजकल काफी कुछ छापा और दिखाया जा रहा है.
 
ब्रिटेन के खासे मशहूर अखबार द गार्जियन ने शुक्रवार को एक रिपोर्ट छापी जिसमें बताया गया कि भारत के बहुत से मंदिरों में मुसलमानों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई है, जो देश में बढ़ रही असहनशीलता का एक उदाहरण है.
 
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इसके ठीक एक दिन पहले अमेरिकी अखबार वाशिंग्टन पोस्ट ने एक लेख छापा जो कहता है कि भारत में मुसलमानों के खिलाफ नफरत को भड़काया जा रहा है. दुनिया उससे मुंह फेर कर खड़ी है.
 
अगर आप पूरे एक महीने के प्रतिष्ठित विदेशी अखबारों को उठा लें तो आपको ऐसे और भी लेख मिल जाएंगे. हो सकता है कि बहुत से लोग इसे विदेशी षड़यंत्र बताएं और इसके लिए विदेशी मीडिया को लानत भेजें. यह सब बहुत समय से होता रहा है. सवाल यह है कि अगर कोई पूर्वाग्रह हैं तो उसे खत्म कैसे किया जाए ?
 
एक बार लौटते हैं भारत की सपेरों और जादूगरों के देश वाली छवि पर. जैसे-जैसे भारत के वैज्ञानिकों और आईटी प्रोफेश्नल्स ने दुनिया पर अपनी छाप छोड़ी शुरू की यह छवि अपने आप खत्म होनी शुरू हो गई. अब भी सिर्फ पश्चिम के लोगों और मीडिया को कोस कर यह काम नहीं किया जा सकता था. यही रास्ता हमें अब भी अपनाना होगा.
 
लेकिन इसके पहले हमें अपने सच को भी स्वीकारना होगा. खासकर इस बात को पिछले कुछ साल में  हमारे समाज में नफरत बढ़ाई जा रही है. बेशक, इसका कारण राजनीति है लेकिन यह सच है कि पिछले कुछ साल में एक दूसरे के खिलाफ वहां भी पूर्वाग्रह बढ़े हैं जहां वे पहले बिलकुल नहीं थे. जब हम अपने पूर्वाग्रह बढ़ा रहे हैं तो पश्चिम से उन्हें कम करने की उम्मीद कैसे करें
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हम अगर मंदिर वाले मुद्दे को ही लें. भारत में ऐसे बहुत सारे उदाहरण हैं जहां मुसलमान मंदिर की दिनचर्या का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं. कुछ मंदिर ऐसे भी रहे हैं जहां मुसलमानों के प्रवेश पर रोक भी लगाई जाती रही है.
 
इसी के साथ कुछ मंदिर ऐसे हैं जहां दलितों के प्रवेश पर रोक है. महिलाओं के प्रवेश पर रोक वाले धर्मस्थल भी हैं. नई बात यह है कि अब इसे राजनैतिक मुद्दा बनाया जाने लगा है. राजनीति और मीडिया दोनों में ही ऐसी चीजों पर बहुत शोर मचता है.
 
इससे भी बड़ी दिक्कत यह है कि न तो राजनीति में और न ही समाज में इस नफरत को कम करने की कोई कोशिश कहीं दिख रही है. राजनीति तो खैर इसे बढ़ाने का काम ही कर रही है. विदेशों में इसे जिस तरह से पेश किया जाता है या इसकी जिस तरह से व्याख्या की जाती है.
 
वह हमें परेशान करता है. इससे मुक्ति का बेहतर तरीका उस आधार को ही खत्म करना है जिस पर ऐसी व्याख्याएं खड़ी की जाती हैं.एक बात समझनी जरूरी है कि हम न तो दूसरे देशों की मानसिकता को बदल सकते हैं, न वहां के मीडिया को बदल सकते हैं, लेकिन हम खुद को तो बदल ही सकते हैं. खुद हमारी भलाई भी इसी में है.