प्रमोद जोशी
पाकिस्तान में नई गठबंधन सरकार बन गई है, जिसके प्रधानमंत्री पद पर पीएमएल (नून) के शहबाज़ शरीफ चुन लिए गए हैं और पूरी संभावना है कि 9मार्च को होने वाले राष्ट्रपति पद के चुनाव में पीपीपी के आसिफ अली ज़रदारी चुन लिए जाएंगे. क्या इस बदलाव से भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में भी बदलाव आएगा ?
बाहरी सतह पर ऐसा कुछ नहीं हुआ है, जिससे कहा जा सके कि अब भारत-पाकिस्तान रिश्ते सुधरेंगे. दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद शहबाज़ शरीफ ने जो पहला बयान दिया है, उसमें भी ऐसी कोई बात नहीं कही है. अलबत्ता पाकिस्तान की ओर से चीजों को सामान्य बनाने के कुछ संकेत मिले हैं.
इस सरकार को सेना का समर्थन भी हासिल है, इसलिए माना जा रहा है कि भारत के साथ रिश्तों में सरकारी विसंगतियाँ कम होंगी. फिर भी यह नहीं मान लेना चाहिए कि दोनों देशों के रिश्ते इसलिए सुधर जाएंगे, क्योंकि वहाँ नवाज़ शरीफ फिर से ताकतवर हो गए हैं. रिश्ते तभी सुधरेंगे, जब शांति-स्थापना की समझदारी पक्के तौर पर जन्म ले लेगी. या फिर मजबूरियाँ ऐसे मोड़ पर आ जाएंगी, जहाँ से निकलने का रास्ता ही नहीं बचेगा.
संबंध-सुधार की धीमी गति
पाकिस्तान में भारत से दोस्ती की बात करना राजनीतिक-दृष्टि से आत्मघाती माना जाता है. नवाज़ शरीफ एकबार इसके शिकार हो चुके हैं, इसलिए ज्यादा से ज्यादा उम्मीद यही की जा सकती है कि नई सरकार इस मामले में बड़े जोखिम उठाने के बजाय धीरे-धीरे रिश्ते बेहतर बनाने का प्रयास करेगी. बहुत कुछ दोनों देशों के मीडिया-कवरेज पर भी निर्भर करेगा.
अगस्त, 2019 में जब भारत ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाया, तब पाकिस्तान सरकार ने नई दिल्ली से अपने उच्चायुक्त को वापस बुला लिया और दोनों देशों के बीच व्यापारिक-रिश्ते पूरी तरह तोड़ने की घोषणा की. उसके बाद जब भी राजनयिक-व्यापारिक संबंधों को सुधारने की बात हुई किसी न किसी किस्म का अड़ंगा लग गया.
पिछले शनिवार को एक जानकारी सामने आई कि भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने चीन से पाकिस्तान जा रहे एक पोत को मुंबई के न्हवा शेवा बंदरगाह पर रोका, जिसके बारे में सूचना थी कि इसमें ऐसी मशीनरी जाई जा रही है, जिनका इस्तेमाल पाकिस्तान के एटमी और बैलिस्टिक मिसाइल के लिए किया जा सकता है. इस बात का पाकिस्तान और चीन ने विरोध किया है. पता नहीं यह बात किस हद तक विवाद का विषय बनेगी, पर ऐसे मसले उठते रहे हैं और उठते रहेंगे.
नए संकेत
बावजूद इसके रिश्तों को एक हद तक सामान्य भी बनाया जा सकता है. संकेत मिल रहे हैं कि इस दिशा में पहला काम राजनयिक-स्तर पर ही होगा. पिछली 26फरवरी को साद अहमद वाराइच ने नई दिल्ली में पाकिस्तान उच्चायोग में नए उप-उच्चायुक्त (चार्ज डी अफेयर) का कार्यभार संभाला. यह नियुक्ति तीन साल के लिए हुई है. अभी तक उच्चायोग के प्रभारी एजाज़ खान अस्थायी नियुक्ति पर थे.
वाराइच हालांकि प्रभारी उप-उच्चायुक्त के रूप में आए हैं, पर वे काफी वरिष्ठ राजनयिक हैं. वे न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा में पाकिस्तानी दूत के रूप में कार्य कर चुके हैं और विदेश मंत्रालय में अफगानिस्तान, ईरान और तुर्किए डेस्क के महानिदेशक भी रह चुके हैं. संभव है बाद में उन्हें उच्चायुक्त घोषित कर दिया जाए. देखना यह भी है कि बदले में भारत अपने पाकिस्तान स्थित उच्चायोग में क्या करता है.
इसके अलावा दूसरा महत्वपूर्ण कदम होगा, इस महीने उच्चायोग में ‘पाकिस्तान दिवस’ कार्यक्रम. 2019 के बाद यह पहला मौका होगा, जब पाकिस्तानी उच्चायोग में यह कार्यक्रम होगा. राजनयिक टकराव और कोविड-19इन दो कारणों से यह कार्यक्रम चार साल तक नहीं मनाया गया.
पता लगा है कि इस साल 28 मार्च को पाकिस्तानी उच्चायोग में यह कार्यक्रम होगा. पिछली बार ‘पाकिस्तान दिवस’ जब मनाया गया था, तब पुलवामा और बालाकोट एयर स्ट्राइक के कारण माहौल खराब था. अब नए उप-उच्चायुक्त की नियुक्ति और ‘पाकिस्तान दिवस’ की खबरें हालात को सामान्य बनाने की दिशा में पहले कदम माने जा रहे हैं.
ऊबड़-खाबड़ रास्ते
भारत-पाकिस्तान रिश्तों की गाड़ी ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चलती है. किसी भी क्षण जबर्दस्त झटका लगता है और सब कुछ बिखर जाता है. तीन साल पहले फरवरी-मार्च 2021में रिश्ते सुधरते दिखाई पड़े और फिर अचानक सब कुछ बदल गया. फिर भी एक आस बँधी रहती है कि शायद अब कुछ सकारात्मक हो.
पिछले ढाई दशक में रिश्तों में बड़े मोड़ तभी आए जब पीपीपी या पीएमएल-एन में से कोई पार्टी सत्ता में थी, या फिर मुशर्रफ-सरकार थी. 1997में कम्पोज़िट डायलॉग की घोषणा और 1998में लाहौर बस यात्रा हुई. इसके बाद 1999 में करगिल-घुसपैठ के कारण माहौल बदल गया.
मुशर्रफ के साथ आगरा शिखर-सम्मेलन के बाद 25 अगस्त 2003 को मुम्बई में, 2007 में लखनऊ और वाराणसी में धमाके हुए. जुलाई 2008 में काबुल के भारतीय दूतावास पर हमला हुआ. 2008 में जयपुर और अहमदाबाद के धमाकों के बाद 26 नवम्बर 2008 को मुंबई में हमला हुआ. मुंबई पर हमले के बाद रुकी बातचीत को आगे बढ़ाने की कोशिशें शुरू होते ही 2011 में मुम्बई में फिर धमाके हुए.
पिछले तीन साल से चले आ रहे पाकिस्तान के आंतरिक राजनीतिक टकराव के दौरान भी कई बार यह बात सुनाई पड़ी कि भारत के साथ रिश्ते सुधारने चाहिए. वहाँ यह मानने वाले भी हैं कि भारत के साथ कारोबारी रिश्तों को कायम करना देशहित में है.
पिछले साल मार्च में भारत की ओर से भी एक महत्वपूर्ण बयान सामने आया था, जिसे भारत में उतना महत्व नहीं दिया गया, पर पाकिस्तान में नोट किया गया. अखबार ‘डॉन’ के मुताबिक, पाकिस्तान में भारत के उप उच्चायुक्त सुरेश कुमार ने 17 मार्च को लाहौर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (एलसीसीआई) के एक कार्यक्रम में कहा कि भारत ने पाकिस्तान के साथ व्यापारिक संबंध कभी बंद नहीं किए और हमारा देश व्यापारिक संबंधों को सामान्य बनाने की दिशा में आगे बढ़ना चाहता है.
भूगोल नहीं बदल सकते
उन्होंने कहा, भारत हमेशा पाकिस्तान के साथ बेहतर संबंध चाहता है, क्योंकि हम अपना भूगोल नहीं बदल सकते. हमने पाकिस्तान के साथ व्यापार रोका भी नहीं, पाकिस्तान ने ही ऐसा किया था. हमें सोचना चाहिए कि हम अपनी समस्याओं और स्थितियों को कैसे बदल सकते हैं.
इस खबर के दो पहलुओं पर ध्यान देने की जरूरत है. एक, लाहौर चैंबर ने भारतीय उप-उच्चायुक्त सुरेश कुमार को अपने कार्यक्रम में बुलाया और दूसरे, उन्होंने भारत के सकारात्मक मंतव्य को प्रकट किया. उनका बयान उनकी निजी राय नहीं थी. उनकी बात को पाकिस्तान में किस तरह से सुना गया है, यह ज्यादा महत्वपूर्ण है.
पिछले साल शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के विदेशमंत्रियों की बैठक में भाग लेने के लिए पाकिस्तान के विदेशमंत्री बिलावल भुट्टो ज़रदारी के गमन से भी माहौल बेहतर हुआ था. पाकिस्तानी विदेशमंत्री का गोवा आगमन 2011के बाद से इस्लामाबाद की तरफ से भारत की पहली ऐसी यात्रा थी. 2011में तत्कालीन पाकिस्तानी विदेशमंत्री हिना रब्बानी खार ने भारत का दौरा किया था.
नवाज़ शरीफ की पहल
मई 2014 में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने के लिए भारत का दौरा किया था. फिर जुलाई 2015 में उफा से बातचीत शुरू करने का सकारात्मक संदेश आया. जनवरी 2016 में विदेश-सचिव स्तर की बातचीत कार्यक्रम तय हो गया.
दिसंबर 2015 में तत्कालीन विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान का दौरा किया. फिर 25 दिसंबर को पीएम मोदी का लाहौर जाना बड़ी खबर बना. नवाज शरीफ ने 2016 में प्रस्तावित दक्षेस सम्मेलन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पाकिस्तान आने का निमंत्रण दिया था, जिसे मोदी ने स्वीकार कर लिया था. उसके एक हफ्ते बाद ही नए साल पर पठानकोट एयरबेस पर हमला हुआ और सारी कहानी देखते ही देखते बदल गई.
सेना का साथ
नवाज शरीफ की पहल इसलिए विफल हुई थी, क्योंकि सेना उनके साथ नहीं थी. पिछले दो-ढाई दशक में रिश्तों में बड़े मोड़ तभी आए जब पीपीपी या पीएमएल-एन में से कोई पार्टी सत्ता में थी, या फिर मुशर्रफ-सरकार थी.
1997 में कम्पोज़िट डायलॉग की घोषणा और 1998में लाहौर बस यात्रा. मुशर्रफ के साथ आगरा शिखर-सम्मेलन और उसके बाद चार-सूत्री समझौते की सम्भावनाएं बनीं.2010 के बाद दोनों देशों के कारोबारी रिश्ते बढ़े थे और बैंकिग के रिश्तों और एक-दूसरे देश में निवेशकों के पूँजी निवेश की सम्भावनाएं बनीं भी थीं, पर किसी न किसी मोड़ पर अड़ंगा लगा.
फरवरी 2021 में दोनों देशों ने नियंत्रण रेखा पर गोलाबारी रोकने का फैसला किया, तब लगा कि शायद अब बातचीत की ज़मीन तैयार होगी.
सुधार की दिशा
इसके बाद इमरान खान और नरेंद्र मोदी के बयानों से लगा कि रिश्ते सुधार की दिशा में बढ़ रहे हैं. 23 मार्च को ‘पाकिस्तान दिवस’ पर नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान को बधाई का पत्र भेजा कि पाकिस्तान के साथ भारत दोस्ताना रिश्ते चाहता है. साथ ही यह भी कि दोस्ती के लिए आतंक मुक्त माहौल जरूरी है.
जवाब में इमरान खान की चिट्ठी आई, 'हमें भरोसा है कि दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता के लिए दोनों देश सभी मुद्दों को सुलझा लेंगे, खासकर जम्मू-कश्मीर को सुलझाने लायक बातचीत के लिए सही माहौल बनना जरूरी है.' दोनों पत्रों में रस्मी बातें थीं, पर दोनों ने अपनी सैद्धांतिक शर्तों को भी लिख दिया था. फिर भी लगा कि माहौल ठीक हो रहा है.
उसके बाद 31 मार्च को जब खबर मिली कि पाकिस्तान की इकोनॉमिक कोऑर्डिनेशन काउंसिल (ईसीसी) ने भारत से चीनी और कपास मँगाने का फैसला किया है, तो लगा कि रिश्तों को बेहतर बनाने का जो ज़िक्र एक महीने से चल रहा है, यह उसका पहला कदम है.
उस वक्त खबर थी कि यूएई की सरकार ने बीच में पड़कर माहौल को बदला है. तीन महीनों से दोनों देशों के बीच बैक-चैनल बात चल रही है वगैरह. यूएई के अमेरिका स्थित राजदूत ने ऐसा दावा भी किया.
और यू-टर्न
आंशिक-व्यापार शुरू करने के ऐलान का स्वागत हो ही रहा था कि वहाँ की कैबिनेट ने इस फैसले को रोक दिया और कहा कि जब तक भारत 5अगस्त, 2019के फैसले को रद्द करके जम्मू-कश्मीर में 370 की वापसी नहीं करेगा, तब तक कारोबार नहीं होगा. इतने तेज यू-टर्न की उम्मीद किसी को नहीं थी.
प्रधानमंत्रियों की चिट्ठियों के पहले 17 मार्च को इमरान खान ने पाकिस्तान के थिंकटैंक नेशनल सिक्योरिटी डिवीजन के ‘इस्लामाबाद सिक्योरिटी डायलॉग’ का उद्घाटन करते हुए कहा, हम भारत से रिश्तों को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं.
बाद में उसी कार्यक्रम में तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल कमर जावेद बाजवा ने ‘बीती बातों को भुलाने’ की सलाह दी थी. उन्होंने रस्मी तौर पर कश्मीर का जिक्र जरूर किया, पर 5अगस्त, 2019से पहले की स्थिति बहाल करने और सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों का जिक्र नहीं किया.
‘एक पेज’ पर
सरकार और सेना ‘एक पेज’ पर नजर आने लगी. अतीत की भारत-पाकिस्तान वार्ताओं में ‘कांफिडेंस बिल्डिंग मैजर्स (सीबीएम)’ का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है. इस सीबीएम का रास्ता आर्थिक था. बाजवा ने उसपर जोर दिया था. दोनों देशों के बीच व्यापार की जबर्दस्त सम्भावनाएं हैं. इससे दोनों को फायदा होगा, लोगों का आना-जाना बढ़ेगा.
पिछले साल भारत में हुए क्रिकेट विश्व कप में पाकिस्तानी टीम भारत आई और वह जहाँ भी गई, उसका स्वागत हुआ. पाकिस्तानी खिलाड़ियों ने महसूस किया कि यहाँ और वहाँ में कोई फर्क नहीं है. वहाँ के ब्लॉगरों ने बताया कि हमें तो भारत में बड़ा अच्छा लगा.
दोनों देश संगीत, सिनेमा, क्रिकेट, हॉकी और टीवी धारावाहिकों के अलावा शादी के जोड़ों, सलवार-कमीजों, खान-पान, आयुर्वेदिक और यूनानी दवाओं, मिर्च-मसालों और अचारों के मार्फत ही नहीं जुड़े हुए हैं. सगे भाई-बहनों, मामा-भांजों, चचा-भतीजों वगैरह-वगैरह के मार्फत जुड़े हैं. इसलिए रिश्ते सुधारना मुश्किल नहीं है, चुनौती नए झगड़ों को खड़ा होने से रोकने की है.
( लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं )
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