देस-परदेस : डिप्लोमेसी से होगा क़तर के मसले का समाधान

Story by  प्रमोद जोशी | Published by  [email protected] | Date 04-01-2024
Foreign countries: Qatar issue will be resolved through diplomacy
Foreign countries: Qatar issue will be resolved through diplomacy

 

joshiप्रमोद जोशी

क़तर की जेल में क़ैद भारतीय नौसेना के आठ पूर्व अधिकारियों की सज़ा-ए-मौत को क़तर की अदालत ने कम कर दिया है. इस खबर से देश ने फिलहाल राहत की साँस ली है. इन आठ भारतीयों के सिर पर मँडरा रहा मौत का साया तो हट गया है, पर यह मामूली राहत है.

प्रारंभिक खबरों के अनुसार इन लोगों की सजाएं कम करके तीन से 25 साल की कैद तक में तब्दील कर दी गई हैं. आधिकारिक विवरण आने में कुछ समय लगेगा, इसलिए इन सूचनाओं को अपुष्ट ही मानना चाहिए. इतना स्पष्ट है कि जो भी हुआ है, वह भारत की डिप्लोमेसी के प्रयास से हो पाया है. 

पीड़ित-परिवार सजा के कम होने को सफलता नहीं मान रहे हैं और वे क़तर की सर्वोच्च अदालत में अपील करने की तैयारी कर रहे हैं. वहाँ सुनवाई और फैसला होने में भी तीन महीने या उससे भी ज्यादा समय लग सकता है.

क्षमा-याचिका

अंततः देश के शासनाध्यक्ष के पास क्षमादान की याचिका भी पेश की जा सकती है, पर वह सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद ही संभव है. क़तर के अमीर (शासनाध्यक्ष) हर साल केवल रमजान और देश के राष्ट्रीय दिवस (18दिसंबर) पर ही क्षमादान करते हैं.

उनके सामने क्षमा-याचिका तभी पेश की जा सकती है, जब हर तरह की अदालती प्रक्रियाएं पूरी हो चुकी हों. क़तर में भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और फिलीपींस जैसे देशों के नागरिक काम करते हैं. इनमें से कुछ को आपराधिक कारणों से सजाएं भी होती हैं. उनकी ओर से ऐसी क्षमा-याचिकाएं दायर की जाती हैं.

उदाहरण के लिए 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क़तर की यात्रा पर गए थे. इस यात्रा के बाद क़तर के अमीर ने रमज़ान के अवसर पर 23 भारतीयों को क्षमादान किया था. मीडिया रिपोर्टों के अनुसार 2016 में माफी प्राप्त करने वाले भारतीयों के अलावा 2014 में 14 और 2015 में सात और भारतीयों को क़तर के अमीर ने माफी दी थी.

2020 में जब कोविड-19 का प्रसार हो रहा था क़तर के अमीर ने 500 कैदियों को क्षमादान दिया था. आमतौर पर ये कैदी चोरी-चकारी जैसे छोटे अपराधों के कारण सजा पा रहे होते हैं. चूंकि इन आठ भारतीयों का केस संवेदनशीलता से जुड़ा है, इसलिए कदम फूँक-फूँक कर रखे जा रहे हैं.

भारत और क़तर के बीच 2015 में एक समझौता हुआ था, जिसके तहत दोनों देश अपने कैदियों को एक-दूसरे के यहाँ भेज सकते हैं. इस संधि पर दस्तखत होने के बाद कतर में कैद भारतीय कैदियों को अपनी सजा का शेष हिस्सा भारत में काटने के लिए यहां लाया जा सकता है, ताकि वे अपने परिजनों के निकट रह सकें और उनका सामाजिक पुनर्वास संभव हो सके.

इसी तरह भारत में सजा काटने वाले क़तर के कैदियों को उनके देश वापस भेजा जा सकता है. अलबत्ता अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इस संधि की पुष्टि दोनों देशों की ओर से हो चुकी है या नहीं. कई तरह के कयास हैं. मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए ज्यादा कयासबाजी उचित भी नहीं है.

qartar

अच्छे रिश्ते

इस प्रकरण के पीछे कारण जो भी रहे हों, पर इतना जरूर लगता है कि अदालत से मिली राहत के पीछे भारत और क़तर की सरकारों के अच्छे रिश्तों की भूमिका है. ज़हिर है कि पश्चिम एशिया के देशों के साथ भारत के अच्छे रिश्ते काम आ रहे हैं.

गत 23 दिसंबर को मुंबई के पास लाइबेरिया के फ्लैग केमिकल-ऑयल टैंकर एमवी केम प्लूटो पर हुए ड्रोन हमले के बाद भारत को ईरान और उसके करीब के देशों के साथ अपने अच्छे रिश्तों का सहारा लेने की जरूरत पड़ी थी. ये रिश्ते बहुत जटिल हैं, इसलिए इन्हें लेकर बहुत जल्दी किसी परिणाम पर नहीं पहुँचा जा सकता है.

अब यह तय होना है कि इन आठों पर लगाए गए आरोप वास्तव में सही थे या नहीं. असली राहत तभी होगी, जब वे दोषमुक्त होकर देश में वापस आएंगे. इसे समझने के लिए हमें क़तर की न्यायिक-प्रशासनिक व्यवस्था को समझना होगा, साथ ही अगले कुछ दिनों या महीनों का इंतज़ार करना होगा, पर उसके पहले अदालत के नवीनतम फैसले से जुड़े विवरणों की प्रतीक्षा करनी होगी.

संवेदनशीलता

सवाल है, उनपर आरोप क्या हैं?  मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए अभी तक आरोप स्पष्ट नहीं हैं. गत 26अक्तूबर को जब क़तर की एक अदालत ने इन्हें मौत की सज़ा सुनाई थी, तब पूरे देश में सन्नाटा छा गया था. शुरू में ऐसा लगता था कि भारतीय पक्ष को प्रस्तुत करने का मौका ही नहीं मिल पा रहा है, यहाँ तक कि इन आठों से भारतीय अधिकारियों का संपर्क भी नहीं हो पा रहा था.

उस समय भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा था कि हम इस मामले में अपील दायर करने की दिशा में प्रयास करेंगे. पहली सफलता उच्चतर अदालत में अपील की अनुमति के रूप में मिली. उसके बाद 20नवंबर को अपीलीय अदालत में पहली और 23नवंबर को दूसरी सुनवाई हुई. तब तक भी भारतीय राजदूत को कौंसुलर संपर्क की अनुमति भी नहीं मिली थी.

मोदी की मुलाकात  घटनाक्रम में बड़ा बदलाव 1दिसंबर को आया, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की  दुबई में जलवायु परिवर्तन पर कॉप-28शिखर सम्मेलन के दौरान कतर के शासक शेख तमीम बिन हमद अल थानी से मुलाकात हुई. इस दौरान दोनों के बीच काफी देर तक बातचीत हुई. इसके एक दिन बाद पीएम मोदी ने इस मुलाकात को लेकर ट्वीट किया.

इस मुलाक़ात के दो दिन बाद 3दिसंबर को भारतीय राजदूत को कौंसुलर एक्सेस मिल गई. और अदालत में 7दिसंबर को एक और सुनवाई हुई. इसके 21दिन बाद 28दिसंबर को क़तर की अदालत ने मौत की सज़ा को कम कर दिया.

सवाल है कि इस मामले में अब क्या हो सकता है. क्या इन पूर्व नौ-सैनिकों को वापस भारत लाया जा सकेगा. फिलहाल 28दिसंबर को हमारे विदेश मंत्रालय ने बयान जारी करते हुए कहा कि सज़ा को कम कर दिया गया है. हमें पूरे आदेश का इंतज़ार है.

बयान के अनुसार, शुरू से ही हम उन लोगों के साथ खड़े हैं और हम उन्हें कौंसुलर और क़ानूनी मदद पहुंचाएंगे. हम इस मामले को क़तर के प्रशासन के साथ भी उठाएंगे. इस मामले की कार्यवाही की गोपनीय और संवेदनशील प्रकृति के कारण, इस समय कोई और टिप्पणी करना उचित नहीं होगा. मौत की सज़ा

इन भारतीयों को कतर की एक अदालत ने 26 अक्टूबर, 2023 को मौत की सजा दी थी. उसके पहले 30अगस्त, 2022में क़तर सरकार ने इन्हें गिरफ़्तार किया था. मार्च में इन पर जासूसी के आरोप तय किए गए थे.

गिरफ़्तार किए गए आठ भारतीय नागरिक नौसेना के पूर्व अधिकारी हैं और क़तर की ज़ाहिरा अल आलमी नाम की कंपनी में काम करते थे. यह कंपनी क़तर की नौसेना के लिए काम कर रही थी. यह कार्यक्रम रेडार से बचने वाली हाईटेक इतालवी तकनीक पर आधारित पनडुब्बी हासिल करने के लिए चलाया जा रहा था.

कंपनी में 75 भारतीय कर्मचारी काम कर रहे थे. इनमें से ज्यादातर भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारी थे. इस पकड़-धकड़ के बाद कंपनी ने अपना काम 31 मई 2023 से बंद कर दिया और उसमें काम कर रहे लगभग 70 भारतीय कर्मचारियों को मई 2023 के अंत तक देश छोड़ने का निर्देश दिया. ग्लोबल मीडिया रिपोर्टों के अनुसार इन पूर्व नौसैनिकों पर आरोप है कि उन्होंने उन्नत इतालवी पनडुब्बी को ख़रीदने से संबंधित क़तर के ख़ुफ़िया कार्यक्रम के बारे में इसराइल को जानकारी दी थी.

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राजनयिक-संबंध

भारत और क़तर के बीच राजनयिक-संबंधों की स्थापना 1973में हुई थी. दोनों के बीच मजबूत आर्थिक-रिश्ते हैं. इस देश की कुल आबादी करीब 28लाख है, जिसमें करीब सात लाख भारतीय हैं. यानी कि करीब चौथाई आबादी भारतीयों की है.

इस तरह क़तर, बड़ी संख्या में भारतवंशियों को रोज़गार देने वाला देश है. भारत की अनेक कंपनियाँ क़तर में काम कर रही हैं. इनमें लार्सन एंड टूब्रो, पुंज लॉयड, शापूरजी पालोनजी, वोल्टास, सिंप्लेक्स, टीसीएस, विप्रो, महिंद्राटेक और एचसीएल शामिल हैं.

2021-22 में दोनों देशों के बीच 15.03 अरब डॉलर का कारोबार हुआ था. 2022-23 में देश में क़तर से 16.81 अरब डॉलर के माल का आयात हुआ था, जिसमें से केवल 8.32 अरब डॉलर का आयात एलएनजी का था. क़तर से होने वाला शेष आयात भी पेट्रोलियम उत्पादों का ही है. जैसे कि एलपीजी, प्लास्टिक वगैरह. इसके विपरीत भारत से क़तर को हुआ निर्यात केवल 1.91 अरब डॉलर का ही था. इसमें ज्यादातर अनाज, ताँबे, लोहे और इस्पात की वस्तुएं, सब्जियाँ, फल, मसाले और प्रोसेस्ड फूड उत्पाद थे.

एलएनजी की भूमिका

दोनों देशों के रिश्तों में सबसे बड़ी भूमिका लिक्विफाइड नेचुरल गैस (एलएनजी) की है. भारत को एलएनजी का सबसे बड़ा सप्लायर क़तर है. भारत ने 1990 में क़तर के साथ इसका समझौता किया था, जिसके तहत 25साल तक 75लाख टन एलएनजी की हर साल सप्लाई क़तर करेगा. यह समझौता 2028 तक के बढ़ा दिया गया था, जिसके तहत 85 लाख टन की एलएनजी की सप्लाई हो रही है. इसे और आगे बढ़ाने के लिए बातें चल रही हैं.

भारत ने 2023 के वर्ष में कुल 1.98 करोड़ टन एलएनजी का आयात किया, जिसमें से 1.07 करोड़ टन क़तर से आई. इसका मतलब है कि क़तर के साथ 85 लाख टन की सप्लाई का जो दीर्घकालीन समझौता है, उसके अलावा क़तर के स्पॉट मार्केट से भी भारत ने एलएनजी की खरीद की. ज़ाहिर है कि क़तर हमारी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण स्थान है.

( लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं )


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