प्रमोद जोशी
वैश्विक-इस्लाम की मानवीय और उदारवादी छवि बनाने की दिशा में काम कर रही मुस्लिम वर्ल्ड लीग के महासचिव डॉ मुहम्मद बिन अब्दुल करीम अल इस्सा का भारत दौरा बहुत महत्वपूर्ण समय पर हो रहा है. दुनिया में मुसलमानों की दूसरी या तीसरी सबसे बड़ी आबादी भारत में निवास करती है, उसके लिए और साथ ही दूसरे धर्मावलंबियों के लिए वे महत्वपूर्ण संदेश लेकर भारत आ रहे हैं.
इस्लाम को लेकर दुनिया में बहुत सी भ्रांतियां हैं, जिन्हें दूर करना भी मुस्लिम वर्ल्ड लीग और डॉ इस्सा का एक उद्देश्य है. इस संस्था के महासचिव बनने के पहले डॉ इस्सा सउदी अरब के न्याय मंत्री के रूप में कार्य कर चुके हैं. उन्होंने कई प्रकार के सुधार-कार्यों को पूरा किया है. इनमें न्यायिक-सुधार, पारिवारिक मामले, युवा और स्त्रियों तथा मानवाधिकार से जुड़े मसले शामिल हैं.
मानवीय-पक्ष
वे इस्लाम के शांतिप्रिय और मानवीय-पक्ष को सामने रखना चाहते हैं और इस गलतफहमी को दूर करना चाहते हैं कि इस्लाम हिंसा को बढ़ावा देता है. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इस्लाम से जुड़ी कई तरह की भ्रांतियाँ हैं, जिन्हें वे दूर करने के मिशन पर हैं.
अपनी भारत-यात्रा के दौरान वे मध्यमार्गी इस्लाम, विभिन्न सभ्यताओं के बीच संवाद, धार्मिक सहिष्णुता, अंतर-संस्कृति संवाद, अहिंसा और धार्मिक-बहुलता जैसे विषयों पर अपने विचार रखेंगे. विवेकानंद फाउंडेशन के एक कार्यक्रम में अलग-अलग धर्मों के बीच सौहार्द बनाए रखने पर वक्तव्य देंगे. इस दौरान वे दिल्ली की जामा मस्जिद जाकर वहाँ नमाज भी पढ़ेंगे और आगरा का ताज महल भी देखने जाएंगे.
मुस्लिम वर्ल्ड लीग एक अंतर्राष्ट्रीय इस्लामिक संगठन है, जिसकी स्थापना साल 1962में की गई थी. इसका मुख्यालय मक्का में है. सऊदी अरब के शासन द्वारा प्रवर्तित इस संस्था का एक उद्देश्य इस्लाम के उदारवादी रूप से दुनियाभर के लोगों ख़ासकर ग़ैर मुस्लिमों को रूबरू करवाना है.
सउदी अरब में इन दिनों सुधार की प्रक्रिया चल रही है और आधुनिकता के साथ इस्लाम को जोड़ने के प्रयास चल रहे हैं. उनका संगठन इस मिशन को आगे बढ़ाने का काम भी कर रहा है.
दो संदेश
उनकी इस यात्रा से दो तरह के संदेश जाएंगे. एक, भारत और इस्लामिक देशों के रिश्ते और बेहतर होंगे. स्वतंत्रता के बाद से भारत में सरकार किसी भी राजनीतिक दल की रही हो, मुस्लिम देशों के रिश्ते हमेशा अच्छे रहे हैं. इसका सबसे बड़ा कारण है, यहाँ की विशाल मुस्लिम आबादी. उनका दूसरा संदेश इसी मुस्लिम आबादी के नाम होगा.
अरब न्यूज को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, 'इस्लाम के बहुत सारे मानने वालों को लगता है कि पश्चिम उनके खिलाफ साजिश रच रहा है. ऐसी ‘कॉन्सपिरेसी थ्योरी’ गलत है. पश्चिमी मुल्कों ने खुद धार्मिक राज्य की अवधारणा को खत्म कर धर्मनिरपेक्षता अपनाई है, ऐसे में वे आप को निशाना क्यों बनाएंगे?'
कुछ लोगों को लगता है कि जब भारत में यूनिवर्सल सिविल कोड को लेकर बहस चल रही है, तब उनकी यात्रा के दौरान बदमज़गी पैदा हो सकती है. ऐसा क्यों माना जाए? यह भी तो संभव है कि वे कोई बेहतर सुझाव दें.
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल इन दिनों मुस्लिम-जगत के साथ संपर्क स्थापित कर रहे हैं. उनके माध्यम से डॉ अल-इस्सा को भारत बुलाना केंद्र सरकार की ओर से सद्भाव का कदम भी माना जा सकता है.
अरब देशों से दोस्ती
चीन, अमेरिका और जापान के बाद सउदी अरब भारत का चौथा सबसे बड़ा कारोबारी सहयोगी है. भारत सबसे ज़्यादा खनिज तेल सऊदी अरब से आयात करता है. अरब देश अब अपना ध्यान पेट्रोलियम से हटाकर दूसरे क्षेत्रों में लगाना चाहते हैं. सऊदी अरब के वली अहद मोहम्मद बिन सलमान ने इसके लिए विजन-2030 तैयार किया है.
भारत उभरती अर्थव्यवस्था है, जिसके साथ वे बेहतर रिश्ते बनाना चाहते हैं. खाड़ी के देशों में भारत के 85 लाख कामगार रहते हैं. केवल सऊदी अरब में ही 27 लाख से ज़्यादा भारतीय कामगार हैं जबकि यूएई की कुल आबादी के 30 फ़ीसदी लोग भारतीय हैं. जाहिर है कि भारत के हित इन देशों के साथ जुड़े हैं.
भारत को इस्लामिक देशों के सहयोग संगठन (ओआईसी) का सदस्य बनाने की मुहिम भी चली थी, जिसे पाकिस्तान ने सफल नहीं होने दिया. बावजूद इसके इस्लामिक देशों के बीच भारतीय राजनय की अच्छी पैठ है.
मार्च, 2019 में तत्कालीन विदेशमंत्री सुषमा स्वराज को अबू धाबी के सम्मेलन में शामिल होने का निमंत्रण दिया गया और पाकिस्तान के विरोध की अनदेखी की गई. पाकिस्तान के विदेशमंत्री ने उस सम्मेलन का बहिष्कार किया था.
हाल में सऊदी अरब, यूएई और बहरीन के साथ भारत के रिश्तों में सुधार हुआ है. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सउदी अरब, यूएई और मिस्र के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से अलंकृत किया जा चुका है.
वैश्विक-शांति
भारत में वे सरकार और विभिन्न संस्थाओं तथा विद्वानों के साथ जिन मुद्दों पर बात करेंगे, उनसे एक अच्छा माहौल बनने में मदद मिलेगी. अफगानिस्तान में शांति जैसे क्षेत्रीय मसलों पर भी बात होनी चाहिए, क्योंकि दक्षिण एशिया में शांति और प्रगति के लिए अफगानिस्तान में स्थितियों को सामान्य बनाना बेहद जरूरी है.
डॉ इस्सा जिस मॉडरेट इस्लाम की बात करते हैं, उससे चरमपंथ और आतंकवाद जैसी चुनौतियों से निपटने में मदद मिलेगी. साथ ही भारत में फैली तमाम गलतफहमियाँ दूर होंगी.
मोदी की मिस्र-यात्रा
यह एकतरफा नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कुछ गलतफहमियों को दूर करना चाहते हैं. पिछले महीने उन्होंने मिस्र की यात्रा के दौरान वहाँ के ग्रैंड मुफ्ती डॉ शॉकी इब्राहिम अब्देल-करीम आलम के साथ मुलाकात की थी. उस दौरान भारत और मिस्र के बीच मजबूत सांस्कृतिक रिश्तों, सामाजिक और धार्मिक सद्भाव के मुद्दों पर भी चर्चा हुई.
दार-अल-इफ्ता में आईटी का ‘सेंटर ऑफ एक्सेलेंस’ खोलने की भी बात हुई. इसके पहले भारत की सांस्कृतिक संबंध परिषद के निमंत्रण पर वे भारत आए थे. डॉ अल ईसा की यात्रा को भी इसी डिप्लोमेसी का हिस्सा मानना चाहिए.
मुसलमानों के नाम संदेश
देशों के आपसी रिश्ते बेहतर बनाने के अलावा डॉ इस्सा का संदेश भारत के मुसलमानों के नाम भी होगा. यह बात बार-बार कही जाती है कि मुसलमानों के सामाजिक-सुधारों और आधुनिकीकरण की बातें उनके बीच से निकल कर आनी चाहिए. यह बात कहने के लिए डॉ इस्सा से बेहतर और कौन हो सकता है?
डॉ इस्सा का मंगलवार को नई दिल्ली में होने वाला कार्यक्रम वैश्विक-शांति और सांप्रदायिक-सद्भाव की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है. इस्लामिक कल्चरल सेंटर में वे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की उपस्थिति में एक अहम सभा को संबोधित करेंगे. अपनी भारत यात्रा के दौरान वे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, विदेशमंत्री एस जयशंकर और अल्पसंख्यक-मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी से भी मुलाकात करेंगे.
कट्टरपंथ का विरोध
पिछले साल प्रसिद्ध लेखक सलमान रुश्दी पर जानलेवा हमला हुआ था. उस समय डॉ इस्सा ने कट्टरपंथी और हिंसक रास्ते की निंदा की थी. मुस्लिम वर्ल्ड लीग के लिए वह एक महत्वपूर्ण वैचारिक-मोड़ था. अमेरिका में 9/11की घटना के बाद दुनिया में इस्लाम की छवि को लेकर जो बहस शुरू हुई थी, वे उसे दिशा दे रहे हैं.
पिछले साल लेखक सलमान रुश्दी पर जानलेवा हमला हुआ था. उस समय डॉ इस्सा ने कट्टरपंथी और हिंसक रास्ते की निंदा की थी. कुछ साल पहले समाचार एजेंसी रॉयटर्स से एक इंटरव्यू में डॉ इस्सा ने कहा, ‘जो हो चुका, वह हो चुका. अब हमें कट्टरपंथ की विचारधारा को जड़ से खत्म करना है. धार्मिक कट्टरता आतंकवाद का प्रवेशद्वार है. इसे बंद करना अब मुस्लिम वर्ल्ड लीग का मिशन है.‘
विज़न-2030 का अंग
2016 में जिस साल वे लीग के प्रमुख बने, उसी साल सऊदी अरब का सुधार-कार्यक्रम विज़न-2030शुरू हुआ. यह सऊदी अरब के शहज़ादे मुहम्मद बिन सलमान की खास परियोजना है. 2017में इस सिलसिले में रियाद में हुए ग्लोबल फोरम में उन्होंने कहा था, हम चरमपंथ को तुरंत खत्म कर देना चाहते हैं और सऊदी अरब को अब उदारवादी इस्लाम की और लौटना होगा.
अल इस्सा क्राउन प्रिंस के करीबी हैं. वह प्रिंस के विज़न के मुताबिक सऊदी अरब की छवि को और उदारवादी दिखाने के प्लान को आगे बढ़ा रहे हैं. बतौर न्याय मंत्री भी उन्होंने महिलाओं और युवाओं से जुड़े कई सुधारों को शुरू किया था.
प्रिंस के विज़न के मुताबिक वे सऊदी अरब की छवि को और उदारवादी दिखाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. 2017 में वे वैटिकन गए और उन्होंने ईसाइयों के धर्मगुरु पोप के साथ बातचीत की. 2019 में उन्होंने श्रीलंका के बुद्ध और मुस्लिम धार्मिक नेताओं से मुलाकात की. उन्होंने रूसी ऑर्थोडॉक्स चर्च के साथ भी बातचीत की. अमेरिका और उसके बाहर काम कर रहे यहूदी संगठनों के साथ भी संवाद स्थापित किया.
( लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं )
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